वर्तमान में भारत में शिक्षा-व्यवस्था व प्रणाली के अवमूल्यन और इसमें फैले भ्रष्टाचार को देखते हुए इसमें कोई अचरज नहीं कि विश्व के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों यानी यूनिवर्सिटीज में भारत की एक भी यूनिवर्सिटी शामिल नहीं है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि विश्व का सबसे पहला विश्वविद्यालय भारत में ही था. वैदिक काल से ही भारत में गुरुकुल और आश्रम की परंपरा थी जिसके तहत इन केन्द्रों में शिक्षा दी जाती थी. यहाँ तक कि भारत 8वीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक विश्व में शिक्षा का सबसे प्रसिद्ध केंद्र था. आज हम ऐसे ही प्राचीन विश्वविद्यालयों की बात करेंगे जो कि उस समय शिक्षा के मंदिर थे. अफ़सोस कि अब यह सब इतिहास की बातें हैं.
नालंदा
प्राचीन काल में नालंदा यूनिवर्सिटी भारत ही नहीं बल्कि विश्व में उच्च शिक्षा का सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख केन्द्र हुआ करता था. यह वर्तमान बिहार राज्य के पटना शहर से 88.5 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर में स्थित था. भारत घूमने आए चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग की यात्रा-वृतांत और संस्मरणों से इस विश्वविद्यालय का पता चला था. ऐसा माना जाता है कि इस विश्वविद्यालय में एक साथ लगभग दस हज़ार छात्रों को पढ़ाया जाता था और इसमें कम से कम दो हज़ार शिक्षक थे. नालंदा विश्वविद्यालय में न केवल भारत के बल्कि पूरी दुनिया से जैसे इंडोनेशिया, फारस, तुर्की, कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत आदि देशों के विद्यार्थी पढने आते थे. नालंदा यूनिवर्सिटी में कम से कम 300 कमरे और विद्यार्थियों और शिक्षकों के अध्ययन के लिए नौ मंजिला विशालकाय पुस्तकालय भी था जिसमें लाखों पुस्तकें थी. इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने 450-470 इस्वी के दौरान की थी.
तक्षशिला
तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना 2700 वर्ष पहले हुई थी. यहाँ में दुनिया के विभिन्न देशों के लगभग दस हज़ार पांच सौ विद्यार्थी पढ़ते थे. ऐसा माना जाता है कि यहाँ का अनुशासन बहुत ही सख्त था और सभी को एक ही नजरिये से देखा जाता है, फिर चाहे विद्यार्थी राजा की संतान हो या सामान्य नागरिक. तक्षशिला में मुख्यतः राजनीति और शस्त्र विद्या की शिक्षा दी जाती थी.
तक्षशिला के एक शस्त्रविद्यालय में विभिन्न राज्यों के 103 राजकुमार पढ़ते थे. विधिशास्त्र और आयुर्वेद के इसमें विशेष वर्ग थे। कोसलराज प्रसेनजित, मल्ल सरदार बंधुल, लिच्छवि महालि, शल्यक जीवक और लुटेरे अंगुलिमाल के अलावा नीतिशास्त्र के महान ज्ञाता चाणक्य और संस्कृति के प्रकांड विद्वान् पाणिनि जैसे लोग यहीं पढ़े थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार तक्षशिला विश्विद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय की तरह भव्य नहीं था। इसमें अलग-2 छोटे-2 गुरुकुल होते थे। इन गुरुकुलों में व्यक्तिगत रूप से विभिन्न विषयों के आचार्य विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करते थे।
विक्रमशिला
विक्रमशिला विश्वविद्यालय बिहार राज्य के भागलपुर जिले में स्थित था. इस की स्थापना 775-800 ई में पाल वंश के राजा धर्मपाल ने की थी. 8वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के अंत तक यह यूनिवर्सिटी नालंदा यूनिवर्सिटी की प्रतिद्वंद्वी मानी जाती था. विक्रमशिला विश्वविद्यालय तंत्र शास्त्र की पढ़ाई के लिए जाना जाता था. ऐसा माना जाता है कि विक्रमशिला में 1,000 विद्यार्थियों को कम से कम 100 अध्यापक पढ़ाते थे.
वल्लभी
वल्लभी विश्वविद्यालय की स्थापना लगभग 470 ई. में मैत्रक वंश के संस्थापक सेनापति भट्टारक ने की थी. यह विश्वविद्यालय 6वीं से लेकर 12वीं शताब्दी तक दुनिया का सबसे अच्छा विश्वविद्यालय माना जाता था. यह शिक्षा-केंद्र गुणमति और स्थिरमति नाम की विद्याओं के साथ साथ धर्मनिरपेक्ष विषयों का मुख्य केन्द्र माना जाता था. इस खासियत के कारण पूरी दुनिया से विद्यार्थी यहां पढ़ने आते थे.
उदांतपुरी विश्वविद्यालय
उदांतपुरी वर्तमान बिहार में स्थापित किया गया था। इसकी स्थापना पाल वंश के राजाओं ने की थी। आठवीं शताब्दी के अंत से 12वीं शताब्दी मतलब लगभग 400 सालों तक इसका विकास चरम पर था। इस विश्वविद्यालय में लगभग 12000 विद्यार्थी थे।