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आखिर क्या है कारण रूस – यूक्रेन युद्ध का ?

रूस-यूक्रेन संकट अब तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 24 फरवरी को यूक्रेन के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू किया। रुसी सेना ने कई दिशाओं से यूक्रेन पर आक्रमण किया और अब इसे नाटो के पूर्वी विस्तार को समाप्त करने और रूस की मांगों पर यूरोप में युद्ध की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। इस पोस्ट में हम जानेगें कि आखिर क्या कारण है रूस-यूक्रेन के युद्ध का :-

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बरसों पुराना है। हालांकि, 2021 में तनाव बढ़ गया जब यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन से यूक्रेन को नाटो में शामिल होने का आग्रह किया। यूक्रेन 44 मिलियन लोगों का एक लोकतांत्रिक देश है, जिसका इतिहास 1,000 से अधिक वर्षों का है। यह रूस के बाद क्षेत्रफल के हिसाब से यूरोप का सबसे बड़ा देश भी है। सोवियत संघ के पतन के बाद, उसने मास्को से स्वतंत्रता के लिए मतदान किया। पुतिन यूक्रेन को दुश्मनों द्वारा रूस से उकेरी गई एक कृत्रिम रचना मानते हैं। उन्होंने यूक्रेन को पश्चिम की कठपुतली भी बताया है। ज़ेलेंस्की के नाटो का हिस्सा बनने के अनुरोध से रूस नाराज़ हो गया और उसने यूक्रेन की सीमा के पास सैनिकों को रखना शुरू कर दिया। 10 नवंबर 2021 को, अमेरिका ने यूक्रेनी सीमा के पास रूसी सेना की गतिविधियों की सूचना दी। 28 नवंबर को, यूक्रेन ने कहा कि रूस जनवरी के अंत या फरवरी की शुरुआत में लगभग 92,000 सैनिकों को एक आक्रामक हमले के लिए तैयार कर रहा है। हालांकि, मास्को ने इसका खंडन किया और कीव पर अपने स्वयं के सैन्य निर्माण का आरोप लगाया।

क्या है कारण फ़रवरी 2022 युद्ध का

युद्ध का कारण यह है कि यूक्रेन उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो का सदस्य देश बनना चाहता है और रूस इसका विरोध कर रहा है। नाटो अमेरिका और पश्चिमी देशों के बीच एक सैन्य गठबंधन है, इसलिए रूस नहीं चाहता कि उसका पड़ोसी देश नाटो का मित्र बने। नाटो देशों पर ठने इस पूरे विवाद ने एक नई युद्ध की संभावना को जन्म दिया है जिसमें एक से ज्यादा देश भाग ले सकते हैं। रूस ने यूक्रेन से लगी 450 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अपने 1,25,000 सैनिकों को तैनात किये हैं। इन जवानों को यूक्रेन की पूर्वी और उत्तर-पूर्वी सीमा पर तैनात किया गया है। रूस ने काला सागर में अपने युद्धपोत भी तैनात किए हैं जो खतरनाक मिसाइलों से लैस हैं। 2014 में रूस ने यूक्रेन में एक महत्वपूर्ण बंदरगाह क्षेत्र क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था और तब से संघर्ष कभी खत्म ही नहीं हुआ। रूस ने यूक्रेन की सीमा पर ड्रोन भी तैनात किए हैं, जो पलक झपकते ही किसी भी सैन्य अड्डे को तबाह कर सकते हैं। रूस ने यूक्रेन को चारों तरफ से घेर लिया है। रूस-यूक्रेन संघर्ष ने दुनिया को दो गुटों में बांट दिया है। एक तरफ रूस है, जिसे चीन जैसे देशों का समर्थन प्राप्त है और दूसरी तरफ यूक्रेन है, जिसे अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य नाटो देशों से समर्थन मिल रहा है।

गैस पाइपलाइन भी है विवाद एक वजह

दरअसल रूस पाइपलाइन के जरिए गैस को यूरोप तक भेजता था। जिन देशों से होकर ये पाइपलाइन जाती थी, रूस को उन्हें ट्रांजिट शुल्क देना पड़ता था जिसमें यूक्रेन भी शामिल था। एक रिपोर्ट के अनुसार 2014 तक रूस हर साल करीब 33 बिलियन डॉलर का भुगतान यूक्रेन को कर रहा था। ये राशि यूक्रेन के कुल बजट की 4 फीसदी थी। रूस को समझ आ गया था कि युद्ध के हालात में यूक्रेन उसके पैसे का ही इस्तेमाल करेगा और जिसके चलते रूस ने एक नया प्लान बनाया और नॉर्ड स्ट्रीम -2 गैस पाइपलाइन की शुरूआत की गई। इसमें वेस्टर्न रूस से नॉर्थ ईस्टर्न जर्मनी तक बाल्टिक महासागर के रास्ते 1200 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाई गई। वैसे तो इसमें करीब 10 बिलियन डॉलर का खर्च आया, लेकिन अब उसे यूक्रेन को कोई ट्रांजिट शुल्क नहीं देना पड़ता था। अब रूस जर्मनी तक सीधे गैस भेज सकता है वो भी बिना कोई ट्रांजिट शुल्क दिए। यह भी एक वजह बन गई जिससे यूक्रेन और पोलैंड जैसे देश रूस से नाराज हो गए।

रूस क्यों नहीं चाहता कि यूक्रेन नाटो देशों में शामिल हो?

नाटो एक सैन्य समूह है जिसमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे 30 देश शामिल हैं। अब रूस के सामने चुनौती यह है कि उसके कुछ पड़ोसी देश पहले ही नाटो में शामिल हो चुके हैं। इनमें एस्टोनिया और लातविया जैसे देश हैं, जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा थे। अब अगर यूक्रेन भी नाटो का हिस्सा बन गया तो रूस हर तरफ से अपने दुश्मन देशों से घिर जाएगा और अमेरिका जैसे देश उस पर हावी हो जाएंगे। अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाता है और रूस भविष्य में उस पर हमला करता है तो समझौते के तहत इस समूह के सभी 30 देश इसे अपने खिलाफ हमला मानेंगे और यूक्रेन की सैन्य सहायता भी करेंगे। रूसी क्रांति के नायक व्लादिमीर लेनिन ने एक बार कहा था कि ‘यूक्रेन को खोना रूस के लिए एक शरीर से अपना सिर काट देने जैसा होगा’। यही वजह है कि रूस नाटो में यूक्रेन के प्रवेश का विरोध कर रहा है। यूक्रेन रूस की पश्चिमी सीमा पर स्थित है। जब 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रूस पर हमला किया गया तो यूक्रेन एकमात्र ऐसा क्षेत्र था जहां से रूस ने अपनी सीमा की रक्षा की थी। अब अगर यूक्रेन नाटो देशों के साथ चला गया तो रूस की राजधानी मास्को, पश्चिम से सिर्फ 640 किलोमीटर दूर होगी। फिलहाल यह दूरी करीब 1600 किलोमीटर है। यह भी पढ़ें :-  द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के “साल बाद” तक लड़ता रहा यह जापानी सिपाही

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