पृथ्वी हर दौर में परिवर्तन के दौर से गुजरती है. करोड़ों सालों में पृथ्वी के आकार, जलवायु और जीव-जन्तुओं के आकार-प्रकार में असंख्य परिवर्तन आए हैं. पृथ्वी जो कि अंततः मनुष्य का घर बनी, हर पल बदलाव से गुजर रही है. इन बदलावों में कुछ प्राकृतिक थे तो कुछ मनुष्यजनित. कुछ ऐसे ही बदलावों की हम यहाँ चर्चा कर रहे हैं जो मानव-जनित होने के कारण मनुष्य के लिए ही घातक सिद्ध होने की पूर्ण सम्भावना रखते हैं.
हमें दुनिया के नक्शे को दोबारा से बनाना होगा
दुनिया में पानी का सिर्फ 2% हिस्सा बर्फ है. आपको यह 2% बहुत कम लग रहा होगा, लेकिन सच यह है कि अगर यह 2% बर्फ का हिस्सा पिघल गया तो समुन्द्र में पानी का स्तर 70 मीटर तक बढ़ जायेगा. वातवरण में बदलाव पहले से ही आर्कटिक पर दिखने लग गये हैं. एक अनुमान में यह आया है कि 2050 तक यह 2% हिस्सा पिघल जायेगा.
दुनिया में खाने की कमी का खतरा
दुनिया की आबादी हाल ही 7 अरब से ज्यादा पहुंच चुकी है और आंकड़े कहते हैं कि यह आबादी अगले 50 वर्षों में 2 अरब और बढ़ जाएगी. इस कारण से आगे जाकर दुनिया को 70% खाने की पैदावार करनी होगी. बदकिस्मती से वातावरण में आने वाले परिवर्तन इस काम को बहुत मुश्किल बना देंगे.
अंटार्टिक कार्बन रिलीज़
कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी के वातावरण में स्वभाविक रूप में मौजूद है. औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद इसमें एक तिहाई की वृद्धि हुई है. सरकारें बहुत धीरे-2 इस खतरे के प्रति सचेत हो रही हैं. आर्कटिक ने अपने अंदर बहुत कार्बन जमा कर रखी है अगर आर्कटिक पिघल जायेंगे तो यह कार्बन वायुमंडल में जाकर पूरी दुनिया के लिए खतरा बन जाएगी.
महासागर अम्लीकरण
सारी कार्बन डाइऑक्साइड जो हमारे द्वारा छोड़ी जाती है, यह गैस वायुमंडल में नहीं जाती. इस कार्बन डाइऑक्साइड का तीसरा हिस्सा महासागरों द्वारा सोख लिया जाता है. हालांकि, बहुत ज्यादा कार्बन-डाइऑक्साइड को समुन्द्रों द्वारा सोखे जाने से ये समुन्द्र और भी जहरीले हो जायेंगे.
जीवों का विलुप्त होना
पृथ्वी पर जीवों का विलुप्त होना कुदरत का नियम है. कुछ विज्ञानियों का मानना है कि पृथ्वी पहले से ही विलुप्त होने के छठे द्वार में प्रवेश कर चुकी है. कई जीव-जंतुओं के निवास का विनाश और उनका ज्यादा मात्रा में शिकार ने जलवायु और उनकी मौजूदगी पर बहुत बुरा प्रभाव छोड़ा है.
कठोर मौसम (Extreme Weather)
वातावरण में बदलाव का यह अर्थ नहीं है कि वातावरण में कुछ डिग्री गर्मी का बढ़ना. एक अनुमान के अनुसार आने वाले कुछ वर्षो में मौसम के बदलाव से मरने वाले लोगों की प्रतिवर्ष संख्या 106,000 होगी और इस पर $184 अरब खर्च होंगे. इस बदलाव का असर पूरी दुनिया में दिखेगा.
अधिक हिंसक दुनिया
जब जलवायु परिवर्तन असल में अपना असर दिखाना शुरू करेगा, तब बहुत से लोगों के लिए पृथ्वी पर रहना बहुत मुश्किल हो जायेगा. तब लोगों में जमीन और कुदरती स्रोतों के लिए झगड़े होंगे. इसका उदाहरण सीरिया में दिख रहा है. विवादास्पद अध्ययन ने जलवायु परिवर्तन को इन हिंसक झड़पों से जोड़ दिया है.
विश्व की ग्लोबल कन्वेयर बैल्ट का बंद होना
ग्लोबल कन्वेयर बैल्ट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पानी धीरे-2 पूरी दुनिया में घूमता है. जलवायु में हो परिवर्तनों से यह ग्लोबल कन्वेयर बैल्ट चलनी बंद हो जाएगी जिससे पश्चिमी यूरोप के किसानों के लिए बर्फ से ढकी जमीन पर खेती करना मुश्किल हो जाएगा और उतर के आर्कटिक महासागर का तापमान 10 डिग्री तक बढ़ जायेगा.
यह पहले से अरबों के खर्चे कर रहा है
कोई भी नहीं जानता कि जलवायु से होने वाले परिवर्तनों से निपटने के लिए क्या कीमत चुकानी पड़ेगी. एक अध्यनन के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से हर वर्ष 4,00,000 लोग मर जाते हैं और इससे $1.2 खरब का नुकसान हर वर्ष हो रहा है. यह खर्च बहुत तेजी से बढ़ रहा है.
जलवायु हैकिंग
कोई भी यह नही बता सकता कि हमारे वातावरण में परिवर्तन कितना आएगा और यह कब तक चलेगा. ‘जीओ इंजीनियरिंग’ जिसको हम जलवायु हैकिंग भी बोलते हैं. इसमें सीधे तौर पर जलवायु को खुद इंजिनियर द्वारा बदला जायेगा. इसके परिणाम अच्छे भी हो सकते हैं और घातक भी.