हिंदू कैलेंडर के अनुसार, संत कबीरदास जयंती ज्येष्ठ महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इसका मतलब है कि यह आम तौर पर मई के अंत या जून में मनाई जाती है।
इस वर्ष कबीर जयंती मंगलवार, 14 जून 2022 को मनाई जाएगी। संत कबीरदास जी एक लोकप्रिय समाज सुधारक और कवि थे। उनके लेखन का भक्ति आंदोलन पर भी बहुत प्रभाव पड़ा।
माना जाता है कि कबीर का जन्म सन् 1398 ई.(लगभग), लहरतारा ताल, काशी में हुआ था। कबीर के जन्म के विषय में बहुत से रहस्य हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि रामानंद स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक ब्राहम्णी के गर्भ से कबीर ने जन्म लिया था,जो की विधवा थी। कबीरदास जी की मां को भूल से रामानंद स्वामी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था।
उनकी मां ने कबीरदास को लहरतारा ताल के पास फेंक दिया था। कुछ लोग कहते हैं कि कबीर जन्म से ही मुसलमान थे और बाद में उन्हें अपने गुरु रामानंद से हिन्दू धर्म का ज्ञान प्राप्त हुआ।
कबीर के माता-पिता के विषय में लोगों का कहना है कि जब दो राहगीर, नीमा और नीरु विवाह कर बनारस जा रहे थे, तब वह दोनों विश्राम के लिए लहरतारा ताल के पास रुके।
उसी समय नीमा को कबीरदास जी, कमल के पुष्प में लपटे हुए मिले थे। कबीर का जन्म कृष्ण के समान माना जा सकता है।
जिस प्रकार कृष्ण की जन्म देने वाली मां अलग और पालने वाली अलग थी। उसी प्रकार कबीरदास को जन्म देने वाली और पालने वाली मां अलग-अलग थी।
संत कबीर दास जी ने कम उम्र में ही अध्यात्म में रुचि थी और खुद को उन्होंने भगवान राम और अल्लाह की संतान बताया। उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे अपने समय के सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते थे।
भक्ति आंदोलन उनके कार्यों से अत्यधिक प्रभावित था। उनके कुछ प्रसिद्ध लेखन में मुख्य रूप से छह ग्रंथ हैं:
कबीर साखी: इस ग्रंथ में कबीर साहेब जी साखियों के माध्यम से सुरता (आत्मा) को आत्म और परमात्म ज्ञान समझाया करते थे।
कबीर बीजक: कबीर की वाणी का संग्रह उनके शिष्य धर्मदास ने बीजक नाम से सन् 1464 में किया। इस ग्रंथ में मुख्य रूप से पद्य भाग है। बीजक के तीन भाग किए गए हैं।
कबीर शब्दावली: इस ग्रंथ में मुख्य रूप से कबीर साहेब जी ने आत्मा को अपने अनमोल शब्दों के माध्यम से परमात्मा कि जानकारी बताई है।
कबीर दोहवाली: इस ग्रंथ में मुख्य तौर पर कबीर साहेब जी के दोहे सम्मलित हैं।
कबीर ग्रंथावली: इस ग्रंथ में कबीर साहेब जी के पद व दोहे सम्मलित किये गये हैं।
कबीर सागर: यह सूक्ष्म वेद है जिसमें परमात्मा कि विस्तृत जानकारी है।
यदि कबीरदास के गृहस्थ जीवन की बात करें तो, उनका विवाह, वनखेड़ी बैरागी की पालिता कन्या “लोई” के साथ हुआ था। कबीरदास की दो संताने थीं, एक पुत्र जिसका नाम “कमाल” था और एक पुत्री जिसका नाम “कमाली” था।
कबीरदास का पुत्र कबीर के मतों को पसंद नहीं करता था, इसका उल्लेख कबीर की रचनाओं में मिलता है। कबीर ने अपनी रचनाओं में पुत्री कमाली का जिक्र कहीं नहीं किया है।
कहा जाता है कि कबीरदास द्वारा काव्यों को कभी भी लिखा नहीं गया, सिर्फ बोला गया है। उनके काव्यों को बाद में उनके शिष्यों द्वारा लिखा गया।
कबीर को बचपन से ही साधु-संगति बहुत प्रिय थी, जिसका जिक्र उनकी रचनाओं में मिलता है। कबीर की रचनाओं में मुख्यत: अवधी एवं साधुक्कड़ी भाषा का समावेश मिलता है। कबीर राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवि माने जाते हैं।
उनकी साखियों में गुरु का ज्ञान एवं भक्ति का जिक्र देखने को मिलता है। कबीर संपूर्ण जीवन काशी में रहने के बाद, मगहर चले गए। कहा जाता है कि 1518 के आसपास, मगहर में उन्होनें अपनी अंतिम सांस ली।
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