बिना वीजा के विदेश यात्रा करना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं है. ये बात सब जानते है लेकिन आज हम आपको भारत के एक ऐसी ही जगह के बारे में बताने जा रहे है जहाँ के लोगों को बिना वीजा के दूसरे देश में घूमने की इजाजत है. आइए जानते हैं इस गाँव के बारे में…
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भारत के उत्तर पूर्व में नागालैंड की सीमा में बसा मोन (mon) जिला है. इस जिले का सबसे बड़ा गाँव लोंग्वा (longwa) है. जोकि म्यांमार की सीमा से महज 43 किलोमीटर की दूरी पर बसा है. इस गाँव के लोग पारम्परिक तरीके से बने लकड़ी के घरों में रहते है. इस गाँव की दिलचस्प बात यह है कि भारत और म्यांमार को अलग करने वाली सीमा गाँव के मुखिया के घर के बीच से होकर निकलती है. इसलिए यह कहा जा सकता है कि गाँव के मुखिया का आधा घर भारत और आधा म्यांमार में है.
इस गाँव में कोनाक नागा जाति के लोग रहते हैं. लोंग्वा गावं के मुखिया को अंग कहा जाता है. इस गाँव का राजा म्यांमार और अरुणाचल के 70 गाँव पर राज करता है और उसकी 60 बीवियां हैं.
यहाँ के लोग म्यांमार बिना वीजा के घूम सकते है. लोंग्वा गाँव के लोगों ने तिब्बती और म्यांमारी दोनो भाषाओं का मिश्रण करके अपनी नई भाषा बना ली है. लोंग्वा गाँव की दिलचस्प बात यह भी है कि गाँव के अधिकतर परिवारों के रसोई-घर म्यांमार में हैं जबकि वे सोते भारत में हैं. इस गाँव का लोकप्रिय त्यौहार ऑयलिंग मोन्यू है जो कि अप्रैल के पहले सप्ताह में मनाया जाता है.
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कोनाक नागा जाति में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि जिसके पास दुश्मनों के सबसे ज़्यादा सिर होंगे वही सबसे ज्यादा ताकतवर समझा जाता है. लोंग्वा गाँव के लोग खास किस्म के जेवर पहनते हैं जैसे कि मर्दों के मुंह पर स्याही और गलें में तांबे की माला होती है. जिससे यह पता लगाया जाता है कि कौन कितने सिर काट चुका है. घरो को सजाने के लिए यह लोग अजीबोगरीब चीजों का इस्तेमाल करते हैं. जैसे हाथी के दांत, सींग, खोपड़ी और भी बहुत कुछ इस्तेमाल करते हैं.
लोंग्वा गाँव के बायीं तरफ भारत है और दायीं तरफ म्यांमार है. ये लोग एकता में विश्वास रखते हैं. इसी भाईचारे के कारण इनके पास दो देशों की नागरिकता हैं. ये लोग दो अलग-अलग देशों में रहते हैं लेकिन इनका रिश्ता बहुत मज़बूत है.