हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए संतान का होना जरुरी माना जाता हैl श्राद्ध की तिथियों में लोग अपने पितरों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर करते है और उन्हें जल और पिंड दान देते हैं।
कौन कहलाते हैं पितर
पितर वे व्यक्ति कहलाते है, जो इस धरती पर जन्म लेने के बाद जीवित नहीं है, उन्हें पितर कहते हैं। ये विवाहित हों या अविवाहित, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष जिनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है।
श्राद्ध क्या होता है
हिन्दू धर्म में भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि से आरम्भ होने वाले पितर पक्ष का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों के अनुसार पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा ही चुकाया जा सकता है। पितर पक्ष में श्राद्ध करने से पितर गण प्रसन्न रहते हैं। श्राद्ध में पितरों को उम्मीद रहती है, कि हमारे पुत्र-पौत्रादि पिंडदान और तिलांजलि प्रदान करेंगे। हिंदू धर्म शास्त्रों में पितर पक्ष में श्राद्ध अवश्य करने के लिए कहा गया है।
कब से शुरू हो रहे है श्राद्ध
इस वर्ष में श्राद्ध पक्ष 29 सितम्बर से 14 अक्टूबर तक तक रहेगें । पूर्णिमा से अमावस्या तक 15 तिथियां पितरों के निमित श्राद्ध कर्म के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इन 15 तिथियों में सभी अपने-अपने पितर को याद करते है और उनका श्राद्ध करते हैं।
पूर्णिमा, 29 सितंबर
जिन लोगों की मृत्यु पूर्णिमा को हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन करना चाहिए। इस तिथि से पितर पक्ष शुरू होता है।
प्रतिपदा, 30 सितंबर
इस तिथि पर उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु किसी भी महीनें के किसी भी पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर हुई हो। जैसे नाना-नानी के परिवार में किसी की मृत्यु हुई हो, और उसकी मृत्यु की तारीख पता न हो, तो उसका श्राद्ध प्रतिपदा पर किया जाता है।
द्वितिया, 1 अक्टबर
द्वितिया तिथि को मृत लोगों का श्राद्ध किया जाता है।
तृतीया, 2 अक्टूबर
जिसकी मृत्यु तृतीया तिथि पर हुई हो, उसका श्राद्ध इस दिन किया जाता है। इस बार दो दिन तृतीया तिथि रहेगी।
चतुर्थी, 3 अक्टूबर
इस तिथि पर उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु चतुर्थी तिथि को हुई हो।
पंचमी, 4 अक्टूबर
पंचमी तिथि पर मृत व्यक्ति का श्राद्ध किया जाता है। और अगर किसी अविवाहित व्यक्ति की मृत्यु पंचमी तिथि को हुई है, तो उसका श्राद्ध भी इस तिथि पर करना चाहिए।
षष्ठी, 5 अक्टूबर
षष्ठी तिथि पर उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि पर हुई हो।
सप्तमी, 6 अक्टूबर
जिस व्यक्ति की मृत्यु किसी भी महीनें और किसी भी पक्ष मे हुई हो , उसका श्राद्ध इस तिथि पर किया जाता है।
अष्टमी, 7 अक्टूबर
जिन लोगों का देहांत किसी माह की अष्टमी तिथि पर हुई है, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
नवमी , 8 अक्टूबर
माता की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध न करके नवमी तिथि पर उनका श्राद्ध करना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि, नवमी तिथि को माता का श्राद्ध करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती हैं. वहीं जिन महिलाओं की मृत्यु तिथि याद न हो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को किया जा सकता है ।
दशमी, 9 अक्टूबर
दशमी तिथि को जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध महालय की दसवीं तिथि के दिन किया जाता है.
एकादशी, 10 अक्टूबर
इस तिथि पर मृत लोगों का और संन्यासियों का श्राद्ध किया जाता है।
द्वादशी,11 अक्टूबर
इस दिन मृत लोगों का श्राद्ध द्वादशी तिथि पर किया जाता है।
त्रयोदशी, 12 अक्टूबर
अगर किसी बच्चे की मौत हो गई है तो उसका श्राद्ध इस तिथि पर करना चाहिए।
चतुर्दशी, 13 अक्टूबर
जिन लोगों की मौत किसी दुर्घटना में हो गई है, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि पर करना चाहिए।
अमावस्या, 14 अक्टूबर
सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों के लिए मोक्ष अमावस्या का श्राद्ध करना चाहिए।
पितर पक्ष में कैसे करें श्राद्ध
श्राद्ध पक्ष के दिनों में पूजा और तर्पण करें। पितरों के लिए बनाए गए भोजन के चार ग्रास निकालें और उसमें से एक ग्रास गाय, दूसरा हिस्सा कुत्ते, तीसरा टुकड़ा कौए और एक भाग मेहमान के लिए रख दें। गाय, कुत्ते और कौए को भोजन देने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। जो श्रद्धा पूर्वक किया जाएं उसे श्राद्ध कहते हैं।
पुराणों के अनुसार मनुष्य का अगला जीवन पिछले संस्कारों से बनता है। श्राद्ध कर्म इस भावना से किया जाता है, कि अगला जीवन बेहतर हो। जिन पितरों का हम श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करते हैं, वे हमारी मदद करते हैं।
पितर पक्ष में नई वस्तुओं की खरीदारी शुभ या अशुभ, जानिए क्या हैं मान्यताएं
श्राद्ध पक्ष को लेकर लोगों के मन में आम तौर पर यह धारणा बनी हुई है, कि यह अशुभ समय होता है और इस दौरान कोई भी नया काम करने या कोई भी नई चीज खरीदना शुभ नहीं माना जाता। ऐसा करने से पितरगण नाराज हो जाते हैं।
यही वजह है कि इस धारणा के कई व्यापार और उद्योग पितर पक्ष के दिनों में मंदे पड़ जाते हैं। वहीं शास्त्रों में इस बात का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है, कि पितर पक्ष में खरीदारी करने से अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं l
कुछ विद्वानों का मानना है कि पितर पक्ष में हमारे पूर्वज धरती का रुख करते हैं। ऐसे में हमें उनकी सेवा में और श्राद्ध कर्म में मन लगाना चाहिए। सेवा करने की बजाए यदि हम नई वस्तुओं की और ध्यान लगाए तो पितृ नाराज हो सकते हैं l यही वजह है कि पितृ पक्ष में नई वस्तु नहीं खरीदी जाती।