आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि बिल कैसे बनता है, और किसको है अधिकार इसको बनाने। तो आइये जानिए इसके बारे में।
सबसे पहले आपको बता दें कि कानून बनाने का मुख्य काम संसद में होता है, यह भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित है। किसी भी तरह का प्रस्तावित कानून, संसद में एक बिल के रूप में प्रतिस्थापित किया जाता है।
आपको बता दें कि संसद में बिल तभी पास होता है, जब उसको राष्ट्रपति की अनुमति मिलती यानि कि विधेयक (बिल) बनाने का विशेष अधिकार राष्ट्रपति को ही होता उसकी अनुमति के बिना बिल नहीं बनता।
संसद में पेश किये जाने वाले बिल दो तरह के होते हैं।
सरकारी बिल
गैर-सरकारी विधेयक
सरकारी विधेयक मंत्रिमंडल के सदस्यों द्वारा पेश किये जाते हैं, जबकि गैर-सरकारी विधेयक अन्य सदस्यों द्वारा ले जाते हैं, जो मंत्रिपरिषद के सदस्य नहीं होते हैं।
विधेयक बनने की प्रक्रिया।
प्रथम वाचन
इसमें बिल की प्रतिस्थापना के साथ-साथ विधेयक का प्रथम वाचन प्रारम्भ हो जाता है। यह अवस्था बड़ी सरल होती है। आपको बता दें कि जो मंत्री विधेयक को प्रस्तावित करता है, वह अध्यक्ष को सूचित करता है। अध्यक्ष यह प्रश्न सदन के सामने रखता है। जब सभी मंत्रियों का सामान्य मत हो जाता है, तो इस विधेयक को प्रस्थापित करने के लिए बुलाया जाता है।
द्वितीय वाचन
सामान्य चर्चा के पश्चात सदन के पास चार विकल्प होते हैं।
सदन स्वयं विधेयक पर विस्तृत धारावार चर्चा करें।
विधेयक सदन की प्रवर समिति को भेज दें।
दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भेज दें।
जनमत जानने के लिए जनता में वितरित करें।
यदि विधेयक प्रवर समिति को सौपा जाता है। तो संबंधित समिति विधेयक का विस्तृत निरीक्षण करती है। समिति चाहे तो वह विषय विशेषज्ञों तथा विधिवेताओं से भी उनकी राय ले सकती है। पूरे विचार विमर्श के पश्चात समिति अपनी रिपोर्ट सदन को भेज देती है।
तृतीय वाचन
द्वितीय वाचन पूरा हो जाने के बाद, मंत्री विधेयक को पास करने के लिए सदन से अनुरोध करता है। इस अवस्था में प्राय: कोर्इ चर्चा नहीं की जाती। सदस्य केवल विधेयक विरोध या पास करने के लिए बिल का समर्थन अथवा उसका विरोध कर सकते हैं। इसके लिए उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों का साधारण बहुमत आवश्यक है।
द्वितीय सदन में बिल का कार्य
आपको बता दें कि जब विधेयक किसी एक सदन से पास हो जाता है, तो उसको दूसरे सदन में भेज दिया जाता है। यहां पर भी वही तीन वाचनों वाली प्रक्रिया अपनार्इ जाती है। जो कुछ इस प्रकार होती हैं।
अगर विधेयक दोनों सदनों में पास होता है, तो उसको राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेज दिया जाता है।
अगर विधेयक में कुछ संशोधन करना हो, तो उसको संशोधन की दशा में बिल पहले पास करने वाले सदन को वापस भेज दिया जाता है। इस दशा में पहला सदन संशोधनों पर विचार करेगा और अगर वो उन्हें स्वीकार कर लेता है, तो बिल राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेज दिया जाता हैं, यदि पहला सदन संशोधनों को मानने से मना कर दे, तब इसे गतिरोध माना जाता है।
दूसरा सदन भी विधेयक को अस्वीकार कर सकता है, वो भी गतिरोध ही कहलाता है। दोनों सदनों की गतिरोध को समापित करने के लिए बिल को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेज दिया जाता है, क्योंकि राष्ट्रपति के पास कुछ विकल्प होतें हैं, इसको हल करने के लिए।
जब राष्ट्रपति अपनी अनुमति प्रदान करता है, तो बिल या कानून बन जाता है।
यह भी पढ़ें:- जानिए ट्रैफिक नियम में होने वाले चालानों के बारे में
यह भी पढ़ें:- कानून व्यवस्था है खराब तो देश है बर्बाद