Wednesday, April 17, 2024
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कई वर्षों से नहीं मनाई गई इन जगहों पर होली, जानें क्या कारण?

होली का पर्व सारे देश में धूमधाम तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। होली को लेकर कई दिन पहले से ही जोरशोर से तैयारियां शुरू हो जाती हैं लेकिन हमारे ही देश में कई ऐसी जगहें हैं जहां रंगों का यह त्यौहार हमेशा फीका रहता है।

इन जगहों पर कभी भी होली के रंग नहीं बिखरते। आइए जानते हैं ये कौन सी जगहें है और आखिर क्यों यहां होली नहीं मनाते?

60 वर्षों से नहीं मनी यहाँ होली

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थित खरहरी गांव में लगभग 160 वर्षों से होली नहीं खेली गई है। होली न खेलने को लेकर ग्रामीणों की अपनी ही कुछ मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार वर्षों पहले इस गांव के लोग होलिका दहन कर रहे थे।

उसी दौरान गांव के सभी घर अचानक जलने लगे। इस घटना से लोगों में ऐसा खौफ बैठ गया और गांव के लोगों ने होली न मनाने का फैसला किया। इसके बाद से लेकर आज तक इस गांव में होली नहीं मनाई गई।

कुछ लोगों का कहना है कि उन्हें डर है कि अगर उन्होंने होली खेली तो उनके साथ कुछ बुरा हो सकता है। कहा जाता है कि एक बार गांव का एक शख्स होली खेलने के लिए दूसरे गांव गया था।

जैसे ही वह अपने गांव खरहरी लौटा तो उसकी तबीयत बिगड़ गई और उसकी मौत हो गई। इसके बाद से लोगों का डर और बढ़ गया और भविष्य में कभी भी होली न खेलने का प्रण लिया। इस फैसले को सभी लोग मानते हैं और हर पीढ़ी के लोग इसका पालन कर रहे हैं।

झारखंड के इन गावों में डरते है होली से

झारखंड के बोकारो जिले के दुर्गापुर गांव के लोग होली के नाम से डरते हैं। यहां होली के दिन लोग भूलकर भी एक-दूसरे को रंग नहीं लगाते। कहा जाता है कि अगर यहाँ होली के दिन रंग खेलेंगे तो गांव में तबाही आ जाएगी।

एक कथा के अनुसार इस गांव को राजा दुर्गादेव ने बसाया था और उन्हीं का राज था। उस समय सब तीज-त्यौहार मनाए जाते थे लेकिन कुछ समय बाद राजा के बेटे की होली के दिन ही मौत हो गई।

उसके बाद जब भी गांव में होली का आयोजन होता था यहां कभी भयंकर सूखा पड़ जाता था या फिर महामारी का सामना करना पड़ता था, जिससे गांव में कई लोगों की मौत हो जाती थी।

फिर एक बार होली के ही दिन पास के इलाके रामगढ़ के राजा दलेल सिंह के साथ हुए युद्ध में राजा दुर्गादेव की भी मौत हो गयी जिसकी खबर सुनते ही रानी ने भी आत्महत्या कर ली।

कहते हैं अपनी मौत से पहले राजा ने आदेश दिया था कि उसकी प्रजा कभी होली न मनाए। तब से उसी शोक और आदेश के कारण यहां के लोगों ने होली मनानी छोड़ दी।

रायबरेली के इन गावों में नहीं मनाते होली

रायबरेली के डलमऊ क्षेत्र के खजूरी गांव में होली के दिन रंग नहीं बिखरते बल्कि यहां उस दिन शोक मनाते हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि पुराने समय में खजूरी गांव के किले को मुगल शासकों ने होली के दिन ही ध्वस्त कर दिया था। सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी।

तब से आज तक होली पर्व नहीं मनाया जाता है। वहीं जलालपुर धई में होली के दिन शोक मनाने के पीछे कहा जाता है कि जलालपुर धई रियासत थी। कभी वहां पर धईसेन नाम के राजा का शासन था। उनके ही नाम पर जलालपुर धई रियासत के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

उसकी रियासत पर मुगल शासक सैयद जमालुद्दीन की नजर थी। वह उस रियासत का स्वामित्व चाहता था। इसके बाद एक बार उसे पता चला कि होली के दिन राजा अपनी प्रजा के साथ होली खेलते हैं।

वहीं इस दिन राजा धईसेन अपने साथ कोई भी अस्त्रशस्त्र नहीं रखते। बस इसी बात का फायदा उठाकर जमालुद्दीन ने होली के दिन धईसेन और उसकी प्रजा पर आक्रमण कर दिया।

इन गावों में नहीं मनी बरसो से होली

उत्तराखंड के क्वीली, कुरझण और जौंदली गांव में तकरीबन 150 सालों से होली नहीं मनाई गई। यह गांव रूद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि ब्लॉक में हैं।

इन गांवों में होली के दिन शोक मनाए जाने के पीछे कई सारी मान्यताएं हैं। इसमें पहली मान्यता है कि इस गांव की इष्टदेवी मां त्रिपुर सुंदरी देवी हैं।

कहा जाता है कि मां को हुड़दंग पसंद नहीं है। ऐसे में होली पर तो मस्ती होती ही है तो लोगों ने होली खेलनी बंद कर दी। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि इस गांव में जब डेढ़ सौ साल पहले लोगों ने होली खेलने की कोशिश की तो तीनों ही गांव हैजा की चपेट में आ गए। इसके बाद किसी ने भी होली मनाने का साहस नहीं जुटाया।

राजस्थान में भी सुना रहता है होली का दिन

राजस्थान में ब्राह्मण जाति के चोवाटिया जोशी जाति के लोग होली नहीं मनाते। इसके पीछे कहा जाता है कि एक अरसे पहले इसी जाति की एक महिला होली के दिन होलिका की पवित्र अग्नि के फेरे लगा रही थी तभी उसका बेटा होलिका में गिर गया।

इसके बाद बच्चे को बचाने के चक्कर में महिला की मौत हो गई। कहा जाता है कि जिस वक्त उस महिला की मौत हुई वह अपने बेटे के गम में इतनी आहत थी कि उसने मरते-मरते कहा कि अब कभी कोई इस गांव में होली नहीं मनाएगा।

इस घटना के बाद से इस जनजाति के लोग होली मनाने का साहस नहीं जुटा पाए। अरसा बीत गया लेकिन आज भी इस जाति के लोग यहां शोक ही मनाते हैं।

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