नवरात्रि का हिन्दु धर्म में बहुत महत्व है। नवरात्रि में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यता यह है कि जो व्यक्ति मां दुर्गा की पूजा आराधना सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से करता है उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है
इस बार शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर 2023 से आरंभ हो रही है इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है।
भक्त नवरात्रि के दौरान तन मन को शुद्ध करने के लिए व्रत भी रखते हैं। नवरात्रि के व्रत के दौरान कई नियमों का पालन भक्तों को करना होता है।
ऐसा ही एक नियम नवरात्रि के दौरान भोजन को लेकर भी है। नवरात्रि के व्रत लेने वाले लोग और जो व्रत नहीं लेते वह भी लहसुन प्याज का इस्तेमाल भोजन में नहीं करते। इसके पीछे वजह क्या है, आइए जानते हैं।
तामसिक गुण पाए जाते हैं लहसुन-प्याज में
नवरात्रि के व्रत मन की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अहम माने जाते हैं इसलिए नवरात्रि के नौ दिनों में लहसुन प्याज का सेवन वर्जित होता है, क्योंकि यह तामसिक प्रकृति के भोज्य पदार्थ होते हैं।
इनके सेवन से अज्ञानता और वासना में वृद्धि होती है। इसके साथ ही लहसुन-प्याज जमीने के नीचे उगते हैं और इनकी सफाई में कई सूक्ष्मजीवों की मृत्यु होती है, इसलिए भी इन्हें व्रत के दौरान खाना शुभ नहीं माना जाता है।
मन की चंचलता बढ़ाते हैं लहसुन-प्याज
तामसिक गुणों के कारण लहसुन-प्याज के सेवन से मन चंचल होता है। व्रत के दौरान मन की चंचलता व्यक्ति को विचलित करती है। इससे भोग-विलास की ओर मन आकर्षित होता है और व्यक्ति व्रत के नियमों का उल्लंघन कर सकता है।
पवित्रता को बनाए रखने के लिए ही लहसुन
प्याज का सेवन भोजन में नहीं करना चाहिए। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, जैसा अन्न व्यक्ति खाता है उसका मन भी वैसा हो जाता है इसलिए व्रत के दौरान सात्विक भोजन करने की सलाह हिंदू धर्म में दी गई है।
पौराणिक कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार, स्वरभानु नाम के दैत्य ने समुद्रमंथन के बाद देवताओं के बीच बैठकर छल से अमृत का सेवन कर लिया था।
यह बात जब मोहिनी रूप धारण किये हुए भगवान विष्णु को पता चली तो उन्होंने अपने चक्र से स्वरभानु का सिर, धड़ से अलग कर दिया। स्वरभानु के सिर और धड़ को ही राहु-केतु कहा जाता है।
सिर कटने के बाद स्वरभानु के सिर और धड़ से अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिरी और इन्हीं से लहसुन-प्याज की उत्पत्ति हुई। लहसुन-प्याज का जन्म अमृत की बूंदों से हुआ इसलिए रोगों को मिटाने में यह दोनों कारगर साबित होते हैं।
परंतु यह राक्षस के मुंह से होकर उत्पन्न हुई हैं, इसलिए यह अपवित्र मानी जाती हैं और भगवान को इनका भोग लगाना वर्जित है। इसके साथ ही व्रत के दौरान भी इनको खाना वर्जित है।