दुनिया भर में बहुत से ऐसे अरबपति हैं जिनके लाइफस्टाइल के चर्चा अक्सर सुनने को मिलते हैं. इनका कमाने का अंदाज कुछ अलग ही होता है और वैसे ही वह पैसा भी खर्च करते हैं. इनकी लाइफ स्टाइल भी आम लोगों से बिल्कुल अलग होती है. इनकी बिजनेस मीटिंग भी अपने लग्जरी प्राइवेट जेट्स में होती हैं. ये लोग अपने घूमने-फिरने में भी करोड़ों रुपए खर्च करते हैं. आज हम यहां दुनिया के 10 सबसे लग्जरी प्राइवेट जेट्स और उनके मालिक के बारे में बता रहे हैं.
1.एयरबस ए 380 (Airbus A380)
एयरबस ए 380 प्राइवेट जेट का मालिक, सऊदी बिजनेसमैन और निवेशक प्रिंस अल-वालीद बिन तलाल है. एयरबस ए 380 प्राइवेट जेट में हर किसी के लिए अलग कमरा बना है. एयरबस ए 380 की कीमत 300 मिलियन डॉलर है.इस विमान में चार रोल्स-रॉयस ट्रेंट 900 इंजन या एलाइनस जीपी 7200 का इंजन लगा है. एयरबस ए 380 की उड़ान क्षमता 15700 किलोमीटर और इसकी रफ्तार 900 किलोमीटर प्रति घंटा है.
हांगकांग के जोसेफ ल्यू एक, रियल एस्टेट निवेशक हैं. इनके बोइंग 747 प्राइवेट जेट की कीमत 1025 करोड़ रुपए है. बोइंग 747 प्राइवेट जेट की उड़ान क्षमता 14800 किलोमीटर और इसकी रफ्तार 917 किलोमीटर प्रति घंटा है.

गूगल के संस्थापक लैरी के पास बोइंग 767 प्राइवेट जेट है. बोइंग 767 प्राइवेट जेट की कीमत 790 करोड़ रुपए और इसकी उड़ान क्षमता 10418 किलोमीटर प्रति घंटा है.

एयरबस ए 319 कॉर्पोरेट जेट के मालिक हैं विजय माल्या. एयरबस ए319 में दो सीएफएम इंटरनेशनल सीएफएफ 56-5 या दो आईएई वी2500 इंजन लगे हुए हैं. इस प्राइवेट जेट की उड़ान क्षमता 11650 किलोमीटर और इसकी कीमत 80.7 मिलियन डॉलर है.

गल्फस्ट्रीम जी-550 (Gulfstream G550)दुनिया में केवल दो ही लोगों के पास है. गल्फस्ट्रीम जी-550 प्राइवेट जेट भारत के लक्ष्मी मित्तल और ब्रिटिश बिजनेसमैन फिलिप ग्रीन के पास है. इस जेट के कॉकपिट में चार हनीवैल डीयू-1310 ईएफआईएस स्क्रीन और रॉल्स-रॉयस बीआर 710 टर्बोफैन का इंजन लगा हुआ है. जी-550 प्राइवेट जेट की उड़ान क्षमता 12501 किलोमीटर और इसकी कीमत 59.9 मिलियन डॉलर है.

रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी के पास बोइंग बिजनेस जेट है. बोइंग बिजनेस जेट की उड़ान क्षमता 890 किलोमीटर प्रति घंटा और इसकी कीमत 371 करोड़ रुपए है.

बॉम्बार्डियर बीड़ी-700 प्राइवेट जेट की मालिक अमेरिकी बिजनेसवुमन ओपरा विनफ्रे है. बॉम्बार्डियर बीड़ी-700 प्राइवेट जेट की उड़ान क्षमता 904 किलोमीटर और इसकी कीमत 319 मिलियन डॉलर है.

माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल के पास जेट डसॉल्ट फेल्कॉन 7एक्स प्राइवेट जेट है. 7एक्स प्राइवेट जेटमें एक बार 63 यात्री सफर कर सकते हैं. इसकी कीमत 275 करोड़ है. अगर इसकी रफ्तार की बात करें तो इसकी रफ्तार 900 किलोमीटर प्रति घंटा है.

डसॉल्ट फेल्कॉन 900 प्राइवेट जेट, स्विट्जरलैंड के बिजनेसमैन सेर्गियो मैंनटैगाजा के पास है. इस जहाज में सात यात्री सफर कर सकते हैं. इस प्राइवेट जेट में टीएफए 731-5 बी आर-1सी टर्बोफैन इंजन लगा हुआ है. डसॉल्ट फेल्कॉन 900 प्राइवेट जेट की उड़ान क्षमता 950 किलोमीटर प्रति घंटा और इसकी कीमत 33 मिलियन अमेरिकी डॉलर है.

जॉर्ज एफ वार्गा के संस्थापक जॉर्ज वार्गा के पास एमब्रेयर ईएमबी 190 बीजे लाइनएज 1000 है. इस जहाज की कीमत 40.95 मिलियन अमेरिकी डॉलर है तथा इसमें CF34-10E के टर्बोफैन का इंजन लगा हुआ है.





आज आयुर्वेद और योग को उपचार के महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में गिना जाता है. पश्चिमी उपचार पद्धतियों और एलोपेथी की खोज से पहले ही भारत में आयुर्वेद और सिद्ध-आसन आधारित उपचार पद्धतियों की खोज हो चुकी थी. आयुर्वेद और योग से भारत उच्च-स्तरीय उपचार की औषधियाँ बना चूका था. आज के दौर में भी लोग आयुर्वेद और योग की सहायता से असाध्य रोगों का सफलतापूर्वक इलाज कर रहे हैं.
हीरा अपनी सौन्दर्य, शक्ति, कठोरता और स्थायित्व के लिए जाना जाता है. हीरा-व्यापार के बारे में अर्थशास्त्र में पाया जाता है. 18वीं शताब्दी में ब्राजील में पाए जाने तक भारत हीरे का एक मात्र स्रोत था. कहा जाता है कि भारत में हीरे का व्यापार 5000 वर्ष पुराना है. इसमें कोई शंका नहीं है कि हीरा पृथ्वी पर पाए जाने वाली सबसे कीमती वस्तु है.
शायद, रमण प्रभाव 20 वी सदी में विज्ञान के लिए भारत की और से सबसे महत्वपूर्ण योगदान था. इसकी खोज C.V Raman और KS krishnan ने द्रव्य में, जी लैंड्सबर्ग और एल आई मांदेलश्ताम ने इसकी खोज क्रिस्टल में की थी. प्राय: इन्द्रधनुष बनते हुए सभी ने देखा है। सूर्य से आने वाली सफेद प्रकाश किरणें जब वायुमंडल में मौजूद पानी के कणों से गुजरती हैं तो इस प्रकाश में मौजूद विभिन्न रंगों की किरणें अलग अलग हो जाती हैं। जिसे विज्ञान की भाषा में अपवर्तन कहते हैं। दरअसल सफेद प्रकाश कई रंग की किरणों का मिश्रण होता है।
मशहूर भारतीय चिकित्सक सुशुत्रा ने अपने काम में मोतियाबिंद का जिकर किया है. अपनी आंख में चाकू मारना एक बहुत ही भयानक काम है. मोतियाबिंद ऑपरेशनों में आँख का नेचुरल लेंस को हटाया जाता है. इसकी खोज भारत में हुई थी. बाद में इसका परचार भारतीय चिकित्सक सुश्त्रा दुवारा पूरी दुनिया मैं किया गया. मोतियाबिंद ऑपरेशन आम तोर पर एक आँख के विशेषज्ञ द्वारा हस्पताल में किया जाता है, ताकि रोगी को कोई असुविदा ना हो.
टीपू सुल्तान, जो मैसूर का राजा था. उसने पहली बार रोकेट तोपखाना का इस्तेमाल ईस्ट इंडिया के खिलाफ किया था. इस तोपखाने में लोहे का आवरण और एक धातु का सिलिंडर होता था जो बहुत जबरदस्त धमाके से लम्बी दूरी तक हमला करता था. इससे परभावित हो कर अंग्रेजो ने इसमे नई चीजों को डालकर नपोलियन के खिलाफ युद्ध में इस्तेमाल किआ था. लेकिन सच्चाई यही है कि तोपखाने की खोज भारत में हुईं थी.
ये एक रुई ही थी जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत की और आकर्षित किया. भारतीय पुरातन काल से ही रुई का कारोबार करते आये हैं. परंतु इसके नया अवतरण कोएली व्हिटनी दुवारा लाया गया. ये चर्खी आसानी और तेजी से रुई को बीजों से अलग करती है. एली व्हिटनी की चर्खी बहुत अधुनिक थी जो एक तारों का संग्रह और छोटी तार की हुक से बनी हुई थी.
स्टील एक बहुत ही महत्वपूर्ण खोज है. इसने ही उद्योगिक दुनिया को बदल के रख दिया, लेकिन भारतीयों ने ही सबसे पहले स्टील का इस्तेमाल किआ था. इसको चर्कोल और गर्म तरल लोहे को मिला के बनाया जाता था. स्टील 326 बीसी से इस्तेमाल हो रही है. स्टील ने टेक्नोलॉजी को भी मजबूत बनाया है. लेकिन फैक्ट यही है कि इसका ईजाद भारत में ही हुआ था.
स्याही एक तरल रंग होता है जो लिखने और ड्रा करने में इस्तेमाल होता है. इन दिनों ज्यादातर स्याही प्रिंटर कार्ट्रिज में इस्तेमाल होती है. भारतीय पहले थे जिन्हों ने इसका इस्तेमाल लिखने में और ड्रा करने में किया था. बहुत सारे धार्मिक पुस्तकें स्याही से ही लिखी गई थी.
जीरो अपने आप में ही एक काफी बड़ा सबूत है कि भारतीयों ने ही इसका इस्तेमाल सबसे पहले गणित में किया था. जीरो के भी विज्ञान और टेक्नोलॉजी की कल्पना करना भी असंभव है. बहुत लोग इस्पे बहस करते है कि जीरो की खोज कोई राकेट साइंस नहीं है. परंतु अगर जीरो ना होता तो राकेट साइंस ही ना होती. जीरो के कारण ही मनुष्य गुफाओं से निकल कर चांद पे पहुंचा.
बटन का आविष्कार भारतीयों द्वारा ही किया गया था हालांकि इस बात को अभी तक किसी ने साबित नहीं किया है लेकिन इंडस वैली सिविलाइज़ेशन में इस बात के काफी सबूत मिले हैं।
शतरंज का इतिहास कम से कम 1500 वर्ष पुराना है. इस खेल का अविष्कार छठवीं शदी में मध्य भारत में हुआ था और गुप्ता डायनेस्टी में इस खेल को इजाद किया गया था.
आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि ईमेल का आविष्कार भी भारतीय द्वारा ही किया गया था शिवा अय्यादुराई नामक व्यक्ति ने ईमेल का अविष्कार किया था जो कि भारतीय थे. हाईस्कूल में पढ़ाई के दौरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन एंड डेंटिस्ट्री के लिए अय्यादुराई ने ईमेल प्रणाली पर अपना काम शुरू किया था. शिवा अय्यादुराई को इस काम में 1978 में कामयाबी मिली और पूरी तरह इंटरआफिस मेल प्रणाली विकसित की. इसे उन्होंने इसे ‘ई-मेल’ नाम दिया था.
इस प्रकार के नंबर सीरीज का अविष्कार भी भारतीयों द्वारा ही किया गया था इसका अविष्कार Virahanka, Gopala and Hemachandra द्वारा किया गया था. फिबोनाची संख्या का नाम पीसा के लियोनार्डो फिबोनाची के नाम पर रखा गया था.
यह गांव साउथ पेरू के आइसा शहर से महज आठ किमी दूर स्थित है. जो की रेगिस्थान बीचो-बीच बसा हुआ है. इस गाँव का नाम हुआकाचाइना है. हुआकाचाइना गाँव में एक छोटी झील है जो रेगिस्थान सतह से सैकड़ों फीट नीचे है.
इस गांव में कुल 100 लोग ही रहते हैं जो यहाँ के नागरिक कहलाते हैं. हुआकाचाइना गाँव में आपको बहुत सारी दुकानें देखने को मिलेगी, क्योंकि यहां पर्यटकों की संख्या काफी अधिक रहती है.
इस गांव को पर्यटन स्थल के हिसाब से बनाया गया है यहां पर कई विदेशी पर्यटक आते हैं और इस जगह का लुफ्त उठाते हैं. इस गांव में आपको बग्गी राइड से लेकर वोटिंग तक की व्यवस्था मिल जाएँगी.
इस गांव में ज्यादातर रिजॉर्ट्स, रेस्ट्रां और साथ में एक ब्लू गार्डन भी है जो चारों तरफ से रेतीले टीलों से घिरा हुआ है. इस गाँव के लोगों की आय का मुख्य साधन, टूरिस्ट लोगों से आने वाली कमाई से होता है. इस गांव के बीचो बीच यह पानी से भरा तालाब पूरे साल इसी प्रकार से भरा रहता है.
इसके इतिहास की बात की जाए तो यह जगह 1940 में काफी पॉपुलर हुई थीं क्योंकि उस समय यहां के राजा और शेख यहाँ पर आया करते थे. आम जनता के लिए इस जगह का उपयोग 1990 के बाद से शुरू किया गया था. अब इस जगह को सांस्कृतिक विरासत स्थल (Cultural Heritage Site) के रूप में भी देखा जा सकता है. आपको इस जगह का चित्र पेरू की करेंसी पर भी देखने को मिलता है.










भारत के सबसे अमीर मंदिर का नाम पद्मनाभ स्वामी मंदिर हैं. यह मंदिर केरल प्रान्त की राजधानी तिरुवनन्तपुरम (त्रिवेन्द्रम) शहर के बीच स्थित है. पद्मनाभ स्वामी मंदिर प्राचीन और द्रविड़ शैली में बनाया गया है. इस मंदिर की देखभाल त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार द्वारा की जाती है. तथा ऐसा माना जाता है कि पद्मनाभ स्वामी मंदिर की कुल संपत्ति एक लाख करो़ड है. मंदिर के बीच में भगवान विष्णु की सुंदर व विशाल मूर्ति रखी गई है जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में भक्त दूर दूर से यहां आते हैं. ऐसा माना जाता है कि तिरुवनंतपुरम नाम भगवान के अनंत नामक नाग के नाम पर रखा गया है और भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को पद्मनाभ कहा जाता है.
तिरुपति वेन्कटेशवर मन्दिर, आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है. तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है. तिरुपति मंदिर, दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है. इस तिरुपति मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर जी निवास करते है जो कि भगवान विष्णु जी का अवतार माना जाता है. तिरुपति मंदिर समुद्र तल से 2800 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यह मंदिर सात पहाड़ों से मिलकर बने तिरूमाला के पहाड़ों पर स्थित है. तिरूमाला की पहाड़ी विश्व की दूसरी सबसे प्राचीन पहाड़ी मानी जाती है. इस मंदिर में लगभग 50,000 श्रद्धालु रोज दर्शन करने आते हैं और इस मंदिर की कुल संपत्ति लगभग 50,000 करोड़ बताई जाती है.
श्री जगन्नाथ मंदिर, भारत के उड़ीसा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है. यह मंदिर एक हिन्दू मंदिर व् जगन्नाथ यानि श्री कृष्ण को समर्पित है. श्री जगन्नाथ मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक माना जाता है. जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है. श्री जगन्नाथ मंदिर लगभग 4,00,000 वर्ग फुट में फैला है. श्री जगन्नाथ मंदिर भारत को भारत के 5 अमीर मंदिरों में से एक माना जाता है. भक्तों द्वारा चढ़ाए गए दान को मंदिर की व्यवस्था और सामाजिक कामों में खर्च किया जाता है.
आज से करीब 70 साल पहले बनवाया शिरडी साई बाबा मंदिर एक प्रसिद्ध स्थान है लो कि 1.5 एकड़ में फैला हुआ है. यह मंदिर सबसे बड़े साई बाबा मंदिरों में एक माना गया है. साईं बाबा एक भारतीय गुरु, योगी और फकीर थे, उन्हें उनके भक्तों द्वारा संत कहा जाता है. सांई बाबा मंदिर भारत के अमीर मंदिरों में से एक माना जाता है. साई बाबा मंदिर की संपत्ति और आय दोनों ही करोड़ों में है और मंदिर के पास लगभग करोड़ों का सोना और चांदी हैं. मंदिर में हर साल लगभग 350 करोड़ का दान भक्तों द्वारा चढ़ाया जाता है.
सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई के प्रभादेवी में स्थित सबसे पूजनीय मंदिरों में से एक है. यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है. इस मंदिर का निर्माण 1801 में विट्ठु और देउबाई पाटिल ने किया था. इस मंदिर में गणपति का दर्शन करने सभी धर्म, जाति और समुदाय के लोग आते हैं. सिद्धिविनायक मंदिर की महिमा अपरंपार है, वेभक्तों की मनोकामनाओं को तुरंत पूरा करते हैं. सिद्धिविनायक मंदिर भारत के अमीर मंदिरों में से एक माना जाता है. इस मंदिर की वार्षिक आय 46 करोड़ रुपये हैं.
प्राचीन काल में नालंदा यूनिवर्सिटी भारत ही नहीं बल्कि विश्व में उच्च शिक्षा का सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख केन्द्र हुआ करता था. यह वर्तमान बिहार राज्य के पटना शहर से 88.5 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर में स्थित था. भारत घूमने आए चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग की यात्रा-वृतांत और संस्मरणों से इस विश्वविद्यालय का पता चला था. ऐसा माना जाता है कि इस विश्वविद्यालय में एक साथ लगभग दस हज़ार छात्रों को पढ़ाया जाता था और इसमें कम से कम दो हज़ार शिक्षक थे. नालंदा विश्वविद्यालय में न केवल भारत के बल्कि पूरी दुनिया से जैसे इंडोनेशिया, फारस, तुर्की, कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत आदि देशों के विद्यार्थी पढने आते थे. नालंदा यूनिवर्सिटी में कम से कम 300 कमरे और विद्यार्थियों और शिक्षकों के अध्ययन के लिए नौ मंजिला विशालकाय पुस्तकालय भी था जिसमें लाखों पुस्तकें थी. इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने 450-470 इस्वी के दौरान की थी.
तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना 2700 वर्ष पहले हुई थी. यहाँ में दुनिया के विभिन्न देशों के लगभग दस हज़ार पांच सौ विद्यार्थी पढ़ते थे. ऐसा माना जाता है कि यहाँ का अनुशासन बहुत ही सख्त था और सभी को एक ही नजरिये से देखा जाता है, फिर चाहे विद्यार्थी राजा की संतान हो या सामान्य नागरिक. तक्षशिला में मुख्यतः राजनीति और शस्त्र विद्या की शिक्षा दी जाती थी.
विक्रमशिला विश्वविद्यालय बिहार राज्य के भागलपुर जिले में स्थित था. इस की स्थापना 775-800 ई में पाल वंश के राजा धर्मपाल ने की थी. 8वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के अंत तक यह यूनिवर्सिटी नालंदा यूनिवर्सिटी की प्रतिद्वंद्वी मानी जाती था. विक्रमशिला विश्वविद्यालय तंत्र शास्त्र की पढ़ाई के लिए जाना जाता था. ऐसा माना जाता है कि विक्रमशिला में 1,000 विद्यार्थियों को कम से कम 100 अध्यापक पढ़ाते थे.
वल्लभी विश्वविद्यालय की स्थापना लगभग 470 ई. में मैत्रक वंश के संस्थापक सेनापति भट्टारक ने की थी. यह विश्वविद्यालय 6वीं से लेकर 12वीं शताब्दी तक दुनिया का सबसे अच्छा विश्वविद्यालय माना जाता था. यह शिक्षा-केंद्र गुणमति और स्थिरमति नाम की विद्याओं के साथ साथ धर्मनिरपेक्ष विषयों का मुख्य केन्द्र माना जाता था. इस खासियत के कारण पूरी दुनिया से विद्यार्थी यहां पढ़ने आते थे.
उदांतपुरी वर्तमान बिहार में स्थापित किया गया था। इसकी स्थापना पाल वंश के राजाओं ने की थी। आठवीं शताब्दी के अंत से 12वीं शताब्दी मतलब लगभग 400 सालों तक इसका विकास चरम पर था। इस विश्वविद्यालय में लगभग 12000 विद्यार्थी थे।