कैसा है आपका हंगर मीटर

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आपकी दिनचर्या का आपके हंगर मीटर पर बहुत असर पड़ता है. जैसे आप डिनर करते वक़्त टी.वी. देखते है.ड्राइविंग करते वक़्त आप गाने सुनते है. इंटरनेट पर ब्राउज़िंग करते वक़्त फ़ोन पर चैटिंग करते है. क्यूंकि ज़िन्दगी अत्यधिक व्यस्त होती जा रही है इसलिए दिन भर में आप जो प्राप्त करना चाहते है उसके लिए मल्टीटास्किंग यानी एक साथ कई काम करने की योग्यता की ज़रुरत लगातार बदती जा रही है. इसके परिणामस्वरूप आप में से अधिकतर के लिए सचेत रहना वास्तविकता के विपरीत एक सूक्षम आदर्श बन गया है. हालांकि सचेत रहने को कमी के चलते कई भावनात्मक तथा मानसिक समस्याएं पैदा होती है. ऐसे में माईन्द्फुल ईटिंग यानी सावधान रह कर खाना बहुत ज़रूरी है.

आज कल भोजन सिर्फ स्वाद तक ही सीमित नहीं रेह गया है. आप भोजन का आनंद अपनी पांचों इन्द्रियों का पूरी तरह से प्रयोग करके लेने में सक्षम है. आप लगातार इस बात का ध्यान रखते है कि आपका शरीर आपकी भूख तथा संतुष्टि के बारे में आप क्या बताता है. अपने हंगर मीटर को सही रखने के लिए निम्र बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है. ज़िन्दगी में खाने से सम्बंधित बहुत सी हिदायतें दी जाती है, जैसे लाल मीट का सेवन नहीं करना चाहिए. शाम 7 बजे के बाद कार्बोहाइड्रेट्स का सेवन न करें और हर दो घंटे बाद कुछ न कुछ खाएं. इन सब बातों से लोगों का अपने शरीर की भूख और संतुष्टि के संकेतों से संपर्क टूट गया है.

हम एक ऐसी ऐसी पीडी में रहते है जो कैलोरीज की गिनती पर ही निर्भर है इसलिए हम जो खो जाते है और जिस तरह खाते है इन दोनों बातों के संबंध में नियम तथा संख्या महत्त्वपूर्ण रहती है न कि हमारी जागरूकता.हमें नहीं पता कि हमें अपने शरीर पर कैसे विश्वास करना चाहिए और भावनात्मक उत्तेजनाओं द्वारा शारीरिक भूख तथा संतुष्टि में फर्क करना भी हम नहीं जानते. हालांकि हम ऐसी क्षमता लेकर पैदा होते है, परन्तु कंडीशनिंग के चलते हम यह सम्पर्क गवां बैठते है. बचों को प्राकृतिक तौर पर पता होता है. कि जब भूख लगे तो उन्हें खाना है और जब पेट भर जाए तो खाना रोक देना है.

हम में से प्रत्येक के पास पहले ही वजन कम करने का सर्वाधिक प्रभावी उपकरण यानी हंगर स्केल है. इसमें एक से 10 तक लेवल होते है और यह हमारे शरीर की प्राकृतिक ज़रूरतों से हमें पुन: परिचित करवाने में सहायक होता है. इसकी सहायता से हमें पता चलता है कि हमें कितना भोजन करना चाहिए, तलब तथा वास्तविक भूख के मध्य फर्क करना भी यह टूल हमें सिखाता है. साथ ही यह अधिक खाने के खतरे का भी रोकता है. इस टूल के विभिन्न लेवल इस प्रकार है:-

Level 1:- खाली पेट– आपको बेहोशी या बिमारी का एहसास हो सकता है, क्यूंकि आप भूखे है और आपने जैसे कई दिनों से कुछ भी खाया नहीं है.

Level 2:- अत्यधिक भूख– आपका पेट बहुत परेशानी वाली आवस्था में है. आप आसानी से खीझ उठते है.

Level 3:- आप भूखे है– आपको उर्जा की कमी महसूस हो रही है और आप हल्का सा असुखद है.

Level 4:- आप हल्के से भूखे है. आपको भूख महसूस होती है. परंतु इसके संकेत तथा लक्षणों को आप काबु

Level 5:- न्यूट्रल– आपको भूख तो महसूस हो सकती है, परन्तु आप खाने से पहले कुछ देर इंतज़ार कर सकते है.

Level 6:- लगभग संतुष्ट – आप काबु में रेह कर खा सकते है.

Level 7:- आप आरामदायक ढंग से संतुष्ट है– खाना बंद कर दें या आप अभी खाना शुरू ना करें.

Level 8:- अत्यधिक भरा हुआ पेट– आप बहुत से निवाले खा चुके है.

Level 9:- असुखद ढंग से भरा हुआ पेट – आपको लगता है कि आपको अफारा हो गया है.

Level 10:- आपने ठूंस ठूंस कर खाया है– आप हिल तक नहीं सकते और भोजन पर दोबारा नज़र डालने की आपकी इच्छा नहीं है

अपने हंगर स्केल को लगातार चैक करते रहे जिससे आप इस बात में सक्षम हो सकें कि आपने खाना कब शुरू करना है और कब समाप्त. हमें भूख का एक न्यूट्रल लेवल प्राप्त करना चाहिए जो इस स्केल के मध्य में यानी level 3 तथा level 7 के बीच आता है. इसमें आपको लेवल 3 पर खाना शुरू करना चहिए और level 6 या 7 महसूस होते ही खाना रोक देना चाहिए. हमारी ज़िन्दगी स्थिर यानी निष्क्रिय है और हमारी जीवनशैली में लगातार परिवर्तन की ज़रुरत होती है. इसी तरह हमारे हंगर लेवल में भी परिवर्तन होगा. यदि हम अपने हंगर स्केल पर ध्यान देंगे तो हमारा वजन स्वास्थकर ढंग से चलेगा. कई मामलों में आपके शरीर को सही मात्रा में कितना भोजन चाहिए, इस बात को समझने में कई दिन या सप्ताह लग सकते है. यदि आप खुद की भोजन का चुनाव करने की स्वतंत्रताविकसित कर लेते है और आपको पता है कि आप कितना खाएंगे तो इससे आपका अपने शरीर तथा अपने भोजन के मध्य एक बेहतर रिश्ता बनाने में मदद मिलेगी.

 

 

हरिवंश राय बच्चन की “मधुशाला”

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हरिवंश राय बच्चन एक जाना माना नाम है, जिन्हें परिचय की ज़रुरत नहीं है. उनके लेखन को हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर माना जाता है. उन्होंने कुछ महान कविताएं लिखीं, जो हमारे दिल में हमेशा रहेंगी. “मधुशाला” अपने उनमे से एक है.

उन्हें हिंदी भाषा को समृद्ध करने का श्रेय दिया जाता है,और कुछ ही लोग जानते हैं कि हिंदी उनकी एकमात्र विशेषता नहीं है। वह पहले भारतीय है जो पीएचडी थे।उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में, पीएचडी की थी.वर्ष 2003 में हरिवंश राय बच्चन ने आखिरी सांस ली. वह अपने शब्द हमारे लिए पीछे छोड़कर गए है,जो आज तक हमें मंत्रमुग्ध करते हैं। यह है उनकी सबसे लोकप्रिय कविता.

मशुशाला

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ –
‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।

चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
‘दूर अभी है’, पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।

मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।

मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।

सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।

जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।

मेंहदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।

हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।

लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।

जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।

बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
‘होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले’
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।

धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।

लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।

बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला’
‘और लिये जा, और पीये जा’, इसी मंत्र का जाप करे’
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।

बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।

बड़े बड़े परिवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला,
हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला,
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
जमे रहेंगे पीनेवाले, जगा करेगी मधुशाला।सब मिट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला,
सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ’ हाला,
धूमधाम औ’ चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें,
जगा करेगा अविरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।भुरा सदा कहलायेगा जग में बाँका, मदचंचल प्याला,
छैल छबीला, रसिया साकी, अलबेला पीनेवाला,
पटे कहाँ से, मधु औ’ जग की जोड़ी ठीक नहीं,
जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, पर नित्य नवेली मधुशाला।

बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,
पी लेने पर तो उसके मुह पर पड़ जाएगा ताला,
दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,
विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।

हरा भरा रहता मदिरालय, जग पर पड़ जाए पाला,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दुख क्या जाने,
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी, ईद मनाती मधुशाला।

एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।

नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला,
कौन अपिरिचत उस साकी से, जिसने दूध पिला पाला,
जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही,
जग में आकर सबसे पहले पाई उसने मधुशाला।

बनी रहें अंगूर लताएँ जिनसे मिलती है हाला,
बनी रहे वह मिटटी जिससे बनता है मधु का प्याला,
बनी रहे वह मदिर पिपासा तृप्त न जो होना जाने,
बनें रहें ये पीने वाले, बनी रहे यह मधुशाला।

सकुशल समझो मुझको, सकुशल रहती यदि साकीबाला,
मंगल और अमंगल समझे मस्ती में क्या मतवाला,
मित्रों, मेरी क्षेम न पूछो आकर, पर मधुशाला की,
कहा करो ‘जय राम’ न मिलकर, कहा करो ‘जय मधुशाला’।

सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,
बादल बन-बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला,
झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,
बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला।

तारक मणियों से सज्जित नभ बन जाए मधु का प्याला,
सीधा करके भर दी जाए उसमें सागरजल हाला,
मत्त समीरण साकी बनकर अधरों पर छलका जाए,
फैले हों जो सागर तट से विश्व बने यह मधुशाला।

अधरों पर हो कोई भी रस जिहवा पर लगती हाला,
भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला,
हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती,
आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला।

पौधे आज बने हैं साकी ले ले फूलों का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर पिरमल-मधु-सुरिभत हाला,
माँग माँगकर भ्रमरों के दल रस की मदिरा पीते हैं,
झूम झपक मद-झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला!

प्रति रसाल तरू साकी सा है, प्रति मंजरिका है प्याला,
छलक रही है जिसके बाहर मादक सौरभ की हाला,
छक जिसको मतवाली कोयल कूक रही डाली डाली
हर मधुऋतु में अमराई में जग उठती है मधुशाला।

मंद झकोरों के प्यालों में मधुऋतु सौरभ की हाला
भर भरकर है अनिल पिलाता बनकर मधु-मद-मतवाला,
हरे हरे नव पल्लव, तरूगण, नूतन डालें, वल्लरियाँ,
छक छक, झुक झुक झूम रही हैं, मधुबन में है मधुशाला।

साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला,
तारक-मणि-मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला,
अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते,
प्रति प्रभात में पूर्ण प्रकृति में मुखिरत होती मधुशाला।

उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला,
बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला,
जीवन के संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते
सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला।

अंधकार है मधुविक्रेता, सुन्दर साकी शशिबाला
किरण किरण में जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला,
पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी
तारकदल से पीनेवाले, रात नहीं है, मधुशाला।

किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देती हाला
किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देता प्याला,
किसी ओर मैं देखूं, मुझको दिखलाई देता साकी
किसी ओर देखूं, दिखलाई पड़ती मुझको मधुशाला।

साकी बन मुरली आई साथ लिए कर में प्याला,
जिनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला,
योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए,
देखो कैसों-कैसों को है नाच नचाती मधुशाला।

वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला,
रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला,
विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में,
पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।

चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,
जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस-रंगी हाला,
मन के चित्र जिसे पी-पीकर रंग-बिरंगे हो जाते,
चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।

घन श्यामल अंगूर लता से खिंच खिंच यह आती हाला,
अरूण-कमल-कोमल कलियों की प्याली, फूलों का प्याला,
लोल हिलोरें साकी बन बन माणिक मधु से भर जातीं,
हंस मत्त होते पी पीकर मानसरोवर मधुशाला।

हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल है हाला,
चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला,
कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।

धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रक्तिम हाला,
वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,
अति उदार दानी साकी है आज बनी भारतमाता,
स्वतंत्रता है तृषित कालिका बलिवेदी है मधुशाला।

दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला,
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला,
कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को?
शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।

पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।

सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला,
सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से
चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।

बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।

मुसलमान औ’ हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।

कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,
बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,
एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,
देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!।

 

और रसों में स्वाद तभी तक, दूर जभी तक है हाला,
इतरा लें सब पात्र न जब तक, आगे आता है प्याला,
कर लें पूजा शेख, पुजारी तब तक मस्जिद मन्दिर में
घूँघट का पट खोल न जब तक झाँक रही है मधुशाला।।

आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,
आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,
होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर
जहाँ अभी हैं मन्दिर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।

यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला,
ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला,
मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ,
किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।

सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,
द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला,
वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों,
युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला।

वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला,
रंभा की संतान जगत में कहलाती ‘साकीबाला’,
देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे!
किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।

कभी न सुन पड़ता, ‘इसने, हा, छू दी मेरी हाला’,
कभी न कोई कहता, ‘उसने जूठा कर डाला प्याला’,
सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,
सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।

श्रम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला,
सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला,
व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे,
ठुकराते हैं मंदिरवाले, पलक बिछाती मधुशाला।

एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला,
अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,
रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,
साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला।

बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला,
समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला,
हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को,
मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।

कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला
हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला,
आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है,
कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुटिल की मधुशाला।

आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला
आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला,
छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,
एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।

आज सजीव बना लो, प्रेयसी, अपने अधरों का प्याला,
भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला,
और लगा मेरे होठों से भूल हटाना तुम जाओ,
अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले प्रणय की मधुशाला।

सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही, मुझको कन्चन का प्याला
छलक रही है जिसमें माणिक रूप मधुर मादक हाला,
मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ
जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।

दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला,
भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला,
नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ,
अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़ – अदाई मधुशाला।

छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,
आने के ही साथ जगत में कहलाया ‘जानेवाला’,
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।

क्या पीना, निर्द्वन्द न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला,
क्या जीना, निश्चिंत न जब तक साथ रहे साकीबाला,
खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे,
मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला।

मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला!
मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!
इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ,
सिंधु-तृषा दी किसने रचकर बिंदु-बराबर मधुशाला।

क्या कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन में हाला,
क्या कहता है, अब न चलेगी मादक प्यालों की माला,
थोड़ी पीकर प्यास बढ़ी तो शेष नहीं कुछ पीने को,
प्यास बुझाने को बुलवाकर प्यास बढ़ाती मधुशाला।

लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला,
लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला,
लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का,
लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला।

कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको देने में हाला,
दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटा फूटा प्याला,
मैं तो सब्र इसी पर करता, तू पीछे पछताएगी,
जब न रहूँगा मैं, तब मेरी याद करेगी मधुशाला।

ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ दिया जब पी हाला,
गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,
साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा,
दुनिया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला।

क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुर्बल मानव मिटटी का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला,
मृत्यु बनी है निर्दय साकी अपने शत-शत कर फैला,
काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला।

प्याले सा गढ़ हमें किसी ने भर दी जीवन की हाला,
नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला,
जब जीवन का दर्द उभरता उसे दबाते प्याले से,
जगती के पहले साकी से जूझ रही है मधुशाला।

अपने अंगूरों से तन में हमने भर ली है हाला,
क्या कहते हो, शेख, नरक में हमें तपाएगी ज्वाला,
तब तो मदिरा खूब खिंचेगी और पिएगा भी कोई,
हमें नमक की ज्वाला में भी दीख पड़ेगी मधुशाला।

यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूँगा पी हाला,
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला,
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के
डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला।

यदि इन अधरों से दो बातें प्रेम भरी करती हाला,
यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,
हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,
मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला।

याद न आए दुखमय जीवन इससे पी लेता हाला,
जग चिंताओं से रहने को मुक्त, उठा लेता प्याला,
शौक, साध के और स्वाद के हेतु पिया जग करता है,
पर मै वह रोगी हूँ जिसकी एक दवा है मधुशाला।

गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला
भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला,
रूठ रहा है मुझसे रूपसी, दिन दिन यौवन का साकी
सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।

यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला,
पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला,
यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है,
पथिक, प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला।

ढलक रही है तन के घट से, संगिनी जब जीवन हाला
पत्र गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला,
हाथ स्पर्श भूले प्याले का, स्वाद सुरा जीव्हा भूले
कानो में तुम कहती रहना, मधु का प्याला मधुशाला।

मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल प्याला
मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला,
मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना
राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।

मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला,
दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।

और चिता पर जाये उंढेला पात्र न घ्रित का, पर प्याला
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला,
प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने वालों को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला।

नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला
काम ढालना, और ढालना सबको मदिरा का प्याला,
जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।

ज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली हाला,
पंडित अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया माला,
और पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला,
किन्तु न भूला मरकर के भी पीनेवाला मधुशाला।

यम ले चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला,
चलने दे साकी को मेरे साथ लिए कर में प्याला,
स्वर्ग, नरक या जहाँ कहीं भी तेरा जी हो लेकर चल,
ठौर सभी हैं एक तरह के साथ रहे यदि मधुशाला।

पाप अगर पीना, समदोषी तो तीनों – साकी बाला,
नित्य पिलानेवाला प्याला, पी जानेवाली हाला,
साथ इन्हें भी ले चल मेरे न्याय यही बतलाता है,
कैद जहाँ मैं हूँ, की जाए कैद वहीं पर मधुशाला।

शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर किस उर की ज्वाला,
‘और, और’ की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला,
कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता!
कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला।

जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला,
जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला,
जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी,
जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!।

देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक-सी हाला,
देख रहा हूँ अपने आगे कब से कंचन का प्याला,
‘बस अब पाया!’- कह-कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे,
किंतु रही है दूर क्षितिज-सी मुझसे मेरी मधुशाला।

कभी निराशा का तम घिरता, छिप जाता मधु का प्याला,
छिप जाती मदिरा की आभा, छिप जाती साकीबाला,
कभी उजाला आशा करके प्याला फिर चमका जाती,
आँख मिचौली खेल रही है मुझसे मेरी मधुशाला।

‘आ आगे’ कहकर कर पीछे कर लेती साकीबाला,
होंठ लगाने को कहकर हर बार हटा लेती प्याला,
नहीं मुझे मालूम कहाँ तक यह मुझको ले जाएगी,
बढ़ा बढ़ाकर मुझको आगे, पीछे हटती मधुशाला।

हाथों में आने-आने में, हाय, फिसल जाता प्याला,
अधरों पर आने-आने में हाय, ढुलक जाती हाला,
दुनियावालो, आकर मेरी किस्मत की ख़ूबी देखो,
रह-रह जाती है बस मुझको मिलते-मिलते मधुशाला।

प्राप्य नही है तो, हो जाती लुप्त नहीं फिर क्यों हाला,
प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फिर क्यों प्याला,
दूर न इतनी हिम्मत हारुँ, पास न इतनी पा जाऊँ,
व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला।

मिले न, पर, ललचा ललचा क्यों आकुल करती है हाला,
मिले न, पर, तरसा तरसाकर क्यों तड़पाता है प्याला,
हाय, नियति की विषम लेखनी मस्तक पर यह खोद गई
‘दूर रहेगी मधु की धारा, पास रहेगी मधुशाला!’।

मदिरालय में कब से बैठा, पी न सका अब तक हाला,
यत्न सहित भरता हूँ, कोई किंतु उलट देता प्याला,
मानव-बल के आगे निर्बल भाग्य, सुना विद्यालय में,
‘भाग्य प्रबल, मानव निर्बल’ का पाठ पढ़ाती मधुशाला।

किस्मत में था खाली खप्पर, खोज रहा था मैं प्याला,
ढूँढ़ रहा था मैं मृगनयनी, किस्मत में थी मृगछाला,
किसने अपना भाग्य समझने में मुझसा धोखा खाया,
किस्मत में था अवघट मरघट, ढूँढ़ रहा था मधुशाला।

उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला,
उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला,
प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में!
पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला।

साकी के पास है तनिक सी श्री, सुख, संपित की हाला,
सब जग है पीने को आतुर ले ले किस्मत का प्याला,
रेल ठेल कुछ आगे बढ़ते, बहुतेरे दबकर मरते,
जीवन का संघर्ष नहीं है, भीड़ भरी है मधुशाला।

साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,
क्यों पीने की अभिलषा से, करते सबको मतवाला,
हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,
हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।

साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,
पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला,
जीवन भर का, हाय, पिरश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,
भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।

जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,
जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,
मतवालों की जिह्वा से हैं कभी निकलते शाप नहीं,
दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।

नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,
नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,
साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,
इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।

मद, मदिरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,
क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,
साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,
प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।

क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,
पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!
मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।

देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला,
देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला,
समझ मनुज की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करता,
किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।

एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,
भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,
छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,
विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।

बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,
भाँति भाँति का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,
एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,
जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।

एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला,
एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला,
एक समय पीनेवाले, साकी आलिंगन करते थे,
आज बनी हूँ निर्जन मरघट, एक समय थी मधुशाला।

जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,
छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला,
आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते,
कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।

कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,
कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला,
कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता है,
प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।

बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,
कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,
पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना,
मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।

छोड़ा मैंने पथ मतों को तब कहलाया मतवाला,
चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,
अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,
क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।

यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली हाला,
तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,
जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को
अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।

कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,
टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,
कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,
कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।

कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,
कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,
कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी,
कितने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।

दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता – हाला! हाला!
मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,
मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,
मैं अब जमकर बैठ गया हूँ, घूम रही है मधुशाला।

मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,
प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,
इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया –
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९।

किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,
इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला,
अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,
एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।

वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला,
जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबिंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला,
मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,
भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।

मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला,
पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,
साकी से मिल, साकी में मिल अपनापन मैं भूल गया,
मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।

मदिरालय के द्वार ठोंकता किस्मत का छूंछा प्याला,
गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला,
कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया!
बंद हो गई कितनी जल्दी मेरी जीवन मधुशाला।

कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला,
कहाँ गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला!
पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?
फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।

अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,
अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया –
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।

‘मय’ को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, ‘हाला’
‘मीना’ को ‘मधुपात्र’ दिया ‘सागर’ को नाम गया ‘प्याला’,
क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंडित जी
‘मय-महिफल’ अब अपना ली है मैंने करके ‘मधुशाला’।

कितने मर्म जता जाती है बार-बार आकर हाला,
कितने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला,
कितने अर्थों को संकेतों से बतला जाता साकी,
फिर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।

जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,
जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,
जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,
जितना ही जो रिसक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।

जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,
जिस कर को छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला,
आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो,
पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।

हर जिव्हा पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला
हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला
हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की
हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।

मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला,
मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,
मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,
जिसकी जैसी रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला।

यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,
यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला,
किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,
नहीं-नहीं कवि का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला।

कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,
कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!
पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,
कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!।

विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला
यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,
शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,
जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।

बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,
कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,
मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।

 

– हरिवंशराय बच्चन

 

कैसे और क्यों होता है प्यार

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प्यार को हमेशा ही दिमाग से नहीं, दिल से जोड़कर देखा जाता रहा है. पर सच्चाई तो यह है की किसी से अचानक प्यार हो जाना और किसी को दिलों जान से चाहने लग्ने में हमारे दिल की कोई ख़ास भूमिका नहीं होती और न ही ये सब कुछ अपने आप होता है. यह तो हमारे दिमाग में होने वाली कुछ रासायनिक क्रियाएँ तथा जीन सम्बन्धी संरचनाएं  एंव विशेषताएं ही प्यार हो जाने का प्रमुख कारण होता है और इन्ही की बदौलत प्यार और उसकी गहराई तय होती है.

मनिवैज्ञानिक मानते है कि वास्तव में प्यार एक मनिविज्ञान है, जिसे समझ पाना हर किसी के लिए संभव नहीं. सच्चाई तो यह हैं की एक दुसरे की तरफ आकर्षित होना एक रासायनिक प्रक्रिया है, जिसमे दुसरे की आवाज़, गंध, और उसके हाव भाव अच्छे लगते है और मन में यह भाव उत्पन हो जाता है कि वाही व्यक्ति उसके लिए सबसे बेहतर है. हर किसी के लिए हमारी भावना ऐसी नहीं होती और इसका कारण यही है की रसायन ही हमें किसी व्यक्ति को आत्मसात करने के लिए तैयार करते है और हम उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते है. मनोवैज्ञानिक मानते है कि दो लोगों के बीच रासायनिक मेल होने से ही आनंद की अनुभूति, हृदयगति का बढना इत्यादि मस्तिष्क के प्रेम रसायनों कास्न्नव तेज़ होना जैसी जैविक क्रियाएँ होती है.

यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन का कहना है कि प्यार”खींचो और धकेलो” की पद्धति पर काम करता है. जब किसी से प्रेम होता है तो व्यक्ति उसकी तरफ खिंचा चला जाता है और उससे जुडी हर बुराई को इग्नोर करता जाता है. प्यार में बुराई के बुराई को नज़र अंदाज़ करना आँखें मूंदना जैसा है, तभी कहा जाता है कि प्यार अंधा होता है.

कुछ मनोवैज्ञानिकों ने यह दावा भी किया है कि प्यार की अलग-अलग तरह की कुल ६ किस्मे होती है. इनमे से पहले तरह के प्यार को वैज्ञानिकों ने “रोस” नाम दिया है, जिसमे केवल शारीरिक रिश्ते बनते है, ऐसे प्यार में शादी का कोई अस्तित्व नै होता. प्यार की दूसरी क़िस्म को “ल्यूड्स” नाम दिया है, जिसमे दोस्ती प्यार में बदलने लगती है, लेकिन इसमें गंभीरता का अभाव पाया जाता है. तीसरे तरह के प्यार “अगापे” में प्रेमियों के बीच अटूट प्रेम होता है और उनमें एक दुसरे पर मर मिटने तथा एक दुसरे के लिए बलिदान देने के लिए तत्पर रहने की भावना जन्म ले चुकी होती है. अगली किस्म का प्यार है “मेनियक” , इसमें प्रेमी इस कदर एक दुसरे को चाहने लगते है कि वह अपने प्यार को हासिल न कर पाने की स्थिति में जान देने अथवा जान लेने के लिए भी तत्पर रहते है. प्यार की एक अन्य किस्म “प्रेगमा” में प्रेमी भावनाओं के समंदर न बहकर पहले अच्छे से एक दुसरे के बारे में जानकारी हासिल करते है और उसके बाद ही प्यार करने जैसे कदम उठाते है. वैसे भी जांचा परखा प्यार ही पूरी तरह से सफल प्यार की श्रेणी में आता है.

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार मस्तिष्क में स्थित एक अंग “हाइपोथेलेमस” में जब “डोपेमाइन” तथा “नोरपाइनफेरिन” नामक दो न्यूरोट्रांसमीटरों की अधिक मात्रा हो जाती है तो यह शरीर में उत्तेजना व् उमंग पैदा करने लगती है. ये न्यूरोट्रांसमीटर मस्तिष्क में उस समय सक्रिय होते है, जब दो विपरीत लिंगी मिलते है. कभी कभी समलिंगियों के मामले में भी ऐसा ही देखा जाता है. जब भी इन्हें एक दुसरे की कोई बात आकर्षित करती है तो उनके मस्तिष्क का यह हिस्सा अचानक सक्रिय हो उठता है. जब मस्तिष्क के इस हिस्से की सक्रियता के कारण “डोपेमाइन” नामक इस रसायन का स्तर बढता है तो यह मस्तिष्क में आनंद, गर्व, उर्जा तथा प्रेरणा के भाव उत्पन्न करता है. डोपेमाइन के कारण ही एक अन्य रसायन “आक्सीटोक्सिन” का सत्राव भी बढता है, जो दुसरे साथी को बांहों में भरने और दुलारने की प्रेरणा देता है जबकि “नोरपाइनफेरिन” के कारण “एडरिनेलिन” रसायन का स्त्राव बढता है, जो दिल की धडकनें तेज़ करने के लिए उतरदायी होता है. “वेसोप्रेसिन” रसायन आपसी लगाव बड़ाने तथा अटूट बंधन के लिए होता है.

न्युयोर्क की एक जानी मानी समाजशास्त्री डॉ. हेलन फिशर इस सिलसिले में बहुत लंबा शोध कार्य कर चुकी है. उनका भी यही मानना है कि मस्तिष्क में पाए जाने वाले रसायनों “डोपेमाइन” तथा “नोरपाइनफेरिन” से ही प्यार की भावना का सीधा संबंध है. इन्ही कारणों से प्रेमियों में असाधारण उर्जा का विस्फोट होता है और प्यार करने वालों की नींद और भूख गायब होने की भी यही प्रमुख वजह है. जहाँ दोपेमाइन रसायन हमें उत्तेजित करता है, वहीँ ये दोनों रसायन हमें शांत करके लगाव विकसित करते है. इसी प्रकार “सेरोटोनिन” नामक एक अन्य रसायन अथवा न्यूरोट्रांसमीटर अस्थायी प्यार के लिये ज़िम्मेदार होता है जबकि “इन्दोर्फिन” नामक रसायन सच्चे, स्थायी और समर्पित प्यार का आधार है.

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भारत के कुछ रहस्यमयी पर्यटन स्थल

भारत के कुछ रहस्यमयी पर्यटन स्थल

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भारत में बहुत से रहस्यमयी पर्यटन स्थल है.हमने अक्सर लोगों को यह कहते सुना है कि भारत रहस्यों का देश है. हमारे पास आपके लिए इसका जवाब है! हाँ ! भारत वास्तव में अपने सबसे विचित्र स्थानों में गहरे गहरे रहस्य दफन किए हुए है, जो कि लोगों को चौंका देते हैं जब वे उनके बारे में जानते हैं. हमने भारत के उन रहस्यमय स्थानों में से कुछ सूचीबद्ध किए हैं जो आपको इस आश्चर्यजनक देश के अद्भुत चमत्कारों के बारे में बताते हैं।

नीला कुरिंजी फूल, मुन्नार (केरल)

कई अदभुतप्राकृतिक नज़रों की भूमि केरल में एक अदभुत नज़ारा है यहाँ 12 वर्षों में एक बार खिलने वाला नीलाकुरिंजी फूल. वनस्पति विज्ञानी इन फूलों को “स्ट्रोबिलान्थिस कुन्थिएनम” भी कहते है क्योंकि ये सिर्फ 12 वर्ष बाद ही खिलते है वह भी मुन्नार के पर्वतों पर.यह अगस्त से उगने शुरू होते है और अक्टूबर तक खिलते रहते है. नीलाकुरिंजी फूलों के मध्य खड़े होने का अनुभव बहुत निराला होता है. अधिकतर प्रयटक वर्ष के इस समय के दौरान ही वहां जाते है ताकि यह अदभुत नज़ारा देख सकें

चुम्बकीय पर्वत, लदाख (जम्मू कश्मीर)

कल्पना करें कि जब अपकी कार पूरी तरह बंद हो तब भी यह पर्वत के ऊपर की और जाती हो, जी हाँ समुद्र तल से 11 हज़ार फुट की ऊंचाई पर लदाख में एक चुम्बकीय पर्वत स्थित है जो एक कार को तब भी अपने ऊपर की और खींचता है जब कार बंद हो यानी इसका इंजन ऑफ हो. यह सभी पर्यटकों  के लिए एक रोमांचक अनुभव है और लेह के रास्ते में अवश्य देखा जाने वाला अदभुत अविश्वसनीय नज़ारा.

उड़ता पत्थर, शिवपुर (महाराष्ट्र)

हजरत कमर अली दरवेश पुणे में स्थित दरगाह है, जिसके साथ एक जादुई कथा जुडी हुई है. ऐसा माना जाता है कि लगभग 800 वर्ष पहले यह दरगाह एक व्यायामशाला हुआ करती थी और कमर अली नामक सूफी संत का यहाँ मौजूद पहलवानों ने मजाक उड़ाया था. इससे हताश होकर कमर अली ने पहलवानों द्वारा बॉडी बिल्डिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पत्थरों पर जादू कर दिया. आज भी यहाँ 70 किलोग्राम वजनी एक चट्टान को 11 उँगलियों के स्पर्श तथा उस संत का नाम ऊँची आवाज़ में उच्चारण करके उठाया जाता है.

पक्षियों की सामूहिक आत्महत्या, जतिंगा (असम)

जतिंगा का प्राचीन नगर असम के बोरेल पर्वतों में स्थित है. प्रत्येक मानसून से यह नगर एक सर्वाधिक असामान्य परिदृश्य का गवाह बनता है. सितम्बर-अक्टूबर के आसपास विशेष काली अँधेरी रातों में सैंकड़ों की संख्या में प्रवासी पक्षी भवनों की ओर उड़ान भरते है और उनसे टकरा कर मर जाते है.यह रहस्य अब तक अनसुलझा है.

लोनार क्रेटर झील, महाराष्ट्र

1.8 किलोमीटर ब्यास और 150 मीटर की गहराई वाली यह क्रेटर झील 50 हज़ार वर्ष पूर्व उस समय बनी थी जब इस क्षेत्र में एक क्षुद्र ग्रह टकराया था जिसे अब दक्षिणी पठार भी कहा जाता है. ट्रैकिंग के शौक़ीन लोगों के लिए यह एक लोकप्रिय डेस्टिनेशन है जो औरंगाबाद से 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

कंकालों की झील-रूपकुंड झील, चमोली (उत्तराखंड)

रूपकुंड झील हिमालय के एक निर्जन हिस्से में 16500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है. यह झील हिम से ढंकी रहती है और इसके आसपास चट्टानी ग्लेशियर स्थित है.इस स्थान के बारे में सर्वाधिक रहस्यमई बात यह है कि यहाँ पर 600 मानवीय कंकाल मिले थे. इनका संबंध 9 ईस्वी से माना जाता था.जब हिम पिघलती है झील के संकरे तल में से ये कंकाल दिखाई देने लगते है.

तैरते द्वीप, लोकटक झील(मणिपुर)

मणिपुर की लोकटक झील को विश्व की एकमात्र तैरती झील कहा जाता है.यह भारत की सर्वाधिक असामान्य जगहों में से एक है. इस झील में वनस्पति के बड़े बड़े पुंज है जो शानदार ढंग से गोलाकार है और सतह पर तैरते है. इन्हें फुमडी के नाम से जाना जाता है. तैरने वाली चीज़ें वनस्पति, मिट्टी तथा जैविक पदार्थों के झुंड है. इनमे से कुछ द्वीप इतने बड़े है कि उन पर रेसोर्ट्स तक बनाए गए है.

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क्या जिंदा होंगे मैमथ 21वीं सदी में

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मैमथ एक विशालकाय हाथी सदृश जीव था जो अब विलुप्त हो चुका है। यह साइबेरिया के टुंड्रा प्रदेश में बर्फ में दबे एक हाथी का नाम है, जो अब विलुप्त हो चुका है, परन्तु बर्फ के कारण जिसका संपूर्ण मृत शरीर आज भी सुरक्षित मिला है। आकार में मैमथ वर्तमान हाथियों के ही बराबर होते थे, परंतु कई गुणों में उनसे भिन्न थे।

विश्व भर में देखी गई ब्लॉकबस्टर फिल्म “द जुरासिक पार्क” में पत्थरों में बने कीटों से निकाले गए. डी.एन.ए. द्वारा वैज्ञानिकों ने डायनासोरों के क्लोन को तैयार किया था.खैर वह तो एक काल्पनिक फिल्म थी परंतु कुछ इसी तरह की तकनीक को हार्वर्ड के वैज्ञानिक हकीक़त में बदलने के प्रयास कर रहे है.

उनके प्रयास सफल रहे तो इस तकनीक के बूते अपने अस्तित्व के खात्मे के 4000 वर्षों बाद प्राचीन हाथी यानी वूल्ली मैमथ एक बार फिर 21वीं सदी में जिंदा हो सकते है. हार्वर्ड के वैज्ञानिकों की एक टीम गत दो वर्षों से एक डी.एन.ए. एडिटिंग तकनीक पर काम कर रही है ताकि प्राचीन हाथियों का निर्माण किया जा सके.

इस टीम का लक्ष्य एक ऐसा हाईब्रिड भ्रूण तैयार करना है जो इन प्राचीन मैमथ और आधुनिक हाथियों के डी.एन.ए. से तैयार हो सके.वैज्ञानिकों का दावा है की वे सफलता के बेहद करीब है और अगले दो वर्षों में वे इस भ्रूण को बनाने में कामयाब होंगे.

इसके बाद इस भ्रूण को किसी असली हाथी के अंदर सुरक्षित रखा जाएगा या फिर किसी कृत्रिम कोख में रखा जाएगा. हालाँकि, इसे हाथी की कोख में रखना एक तरह से क्रूरता होगा इसलिए अधिक सम्भावना है कि कृत्रिम कोख का ही इस्तेमाल होगा

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मज़दूर का जीनियस बेटा-करोरों की संख्या को करता है सेकंड में गुणा

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12वर्षीय जीनियस चिराग राठी को जब 42,225 को 645 से गुणा करने को कहा जाता है तो इसका सही सही उतर’27235125′ बताने में उसे मुश्किल से आधा सेकंड लगता है. वह बड़े से बड़ा गुणा और भाग बिना कॉपी पेन के सेकंडों में कर लेता है. 20 करोड़ तक अंकों को जमा,घटा तथा गुणा करने की चिराग की क्षमता जिले में करामाती बच्चे के रूप में मशहूर हो चुके इस छात्र के शिक्षकों के दावे को पुख्ता करती है. इतना ही नहीं,चिराग इतना जीनियस है की उसे 20 करोड़ तक का पहाडा याद है.चिराग जब क्लास चार में था तब उसकी उम्र सिर्फ 8 साल थी तब उसे 300 तक का टेबल याद था.

गणित के अध्यापक ने उसकी प्रतिभा को पहचाना और रोज़ उसे ज्यादा से ज्यादा पहाड़े याद करने को देते रहे. आज इस मेधावी छात्र को 20 करोड़ तक का पहाडा याद है.चिराग के एक शिक्षक का कहना है,”चिराग और बच्चों से थोडा अलग है.हर काम को वह तुरंत कर लेता है. गुणा,भाग वह कुछ ही पलों में हल करलेता है. उसकी यह प्रतिभा इश्वर का वरदान है.”

एक मजदूर के बेटे चिराग की इस अप्रत्याशित प्रतिभा को देख कर उसके स्कूल प्रशासन ने उसके साथ एक शिक्षक की विशेष ड्यूटी लगाई है जो 12वीं कक्षा तक गणित की उसकी तैयारी करवाने में मदद कर रहा है. चिराग को अपनी उम्र से बड़ी कक्षा के विषयों की तैयारी करने में भी कोई दिक्कत नहीं है.लाखों और करोड़ की संख्याओं को जमा करने में उसे और भी कम वक़्त लगता है.

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कोई दीवाना कहता है…….Dr. Kumar Vishvas

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Dr. Kumar Vishvas एक ऐसा नाम है जिससे हम कई रूपों से जानते है, कोई इन्हें कवि के तौर पर जानता है तो कोई पॉलिटिशियन के रूप में जानता है.कुमार विश्वास हिन्दी के एक अग्रणी कवि तथा सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता हैं. कुमार विश्वास का जन्म 10 फ़रवरी 1970 को  Gaziabad, Uttar Pradesh में हुआ था. चार भाईयों और एक बहन में सबसे छोटे कुमार विश्वास ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा लाला गंगा सहाय विद्यालय, पिलखुआ से प्राप्त की. उनके पिता डॉ॰ चन्द्रपाल शर्मा, आर एस एस डिग्री कॉलेज में प्रवक्ता थे. उनकी माता श्रीमती रमा शर्मा गृहिणी हैं. राजपूताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज से बारहवीं में उनके उत्तीर्ण होने के बाद उनके पिता उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे. डॉ. कुमार विश्वास का मन मशीनों की पढ़ाई में नहीं लगा और उन्होंने बीच में ही वह पढ़ाई छोड़ दी. उन्होंने स्नातक और फिर हिन्दी साहित्य में पोस्टग्रेजुएट किया, जिसमें उन्होंने स्वर्ण-पदक प्राप्त किया. तत्पश्चात उन्होंने “कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना” विषय पर पीएचडी की. उनके इस शोध-कार्य को 2001 में पुरस्कृत भी किया गया. आईये आज हम आपको  Dr. kumar vishvas की बहुत चर्चित कविता बताते है.

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!

मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!

समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!

भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!

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Dr. Kumar Vishvas

दूध से है एलर्जी तो कैल्शियम की कमी पूरी करेंगे ये आहार

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हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए शरीर में कैल्शियम पूरा होना बहुत जरूरी होता है. दूध इस कैल्शियम की कमी को पूरा करता है लेकिन कुछ लोगों को दूध से एलर्जी होती है. दूध और इससे बनी चीजों से परहेज करने से कैल्शियम की कमी हो जाती है, जिससे सेहत संबंधी बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. आप भी इस तरह की परेशानी से जूझ रहे हैं तो कैल्शियम से भरपूर दूसरी चीजों का सेवन कर सकते हैं। जिनसे कैल्शियम की कमी पूरी हो जाएगी.

  1. सोया मिल्क
    सोया मिल्क में कैल्शियम और न्यूट्रिशियंस भरपूर मात्रा में होता है. इसे रोजाना दूध की तरह पिया जा सकता हैं. डेयरी प्रॉडक्ट की तरह इसका पनीर, दही बनाकर अपनी डाइट में शामिल किया जा सकता हैं.
  2. रॉगी
    यह कैल्शियम और फाइबर का बहुत अच्छा स्त्रोत है. इसमें चावल से भी ज्यादा कैल्शियम होता है। इसे खाने से दूध की कमी पूरी हो जाती है. इसे डोसा,इडली के अलावा दूसरे आहारों के साथ मिलाकर भी खाया जा सकता है.
  3. लोबिया
    लोबिया को रौंगी के नाम से भी जाना जाता है. इसे सब्जी, सूप या सलाद के रूप में भी खा सकते हैं. दूध की तरह इसमें भी कैल्शियम भरपूर मात्र में पाया जाता है.
  4. संतरे का जूस
    संतरे में विटामिन सी के साथ कैल्शियम भी होता है. इसी लिए आप नाश्ते में दूध की जगह पर संतरे का जूस पी सकते हैं.
  5. अंजीर
    अंजीर एक फ्रूट है,जिसे सूखाकर ड्राइ फ्रूट की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है. यह हड्डियों की मजबूती प्रदान करती हैं. कैल्शियम, आयरन के अलावा इसमें और भी जरूरी पोषक तत्व शामिल होते हैं, यह पाचन क्रिया दुरूस्त रखने में भी मददगार है.
  6. नॉन डेरी मिल्क                                                                                                              इन दिनों नॉन डेरी मिल्क बहुत प्रचलित है. नॉन डेरी मिल्क जैसे की बादाम,नारियल और चावल का मिल्क.  इसका एक गिलास आपको गाय के दूध की तुलना में बराबर स्तर का कैल्शियम देगा. दूध का यह एक अच्छा विकल्प हैं.
  7. टोफू                                                                                                                           टोफू को सोया दूध से प्रोटीन निकाल के बनाया जाता है. शाकाहारियों लोगों में  यह बहुत लोकप्रिय है , इसकी मांस से तुलना की जाती है. टोफू के साथ, आप कैल्शियम और प्रोटीन प्राप्त कर रहे हैं.
  8. पालक                                                                                                                         पालक एक आश्चर्यजनक कैल्शियम पैक है. यह एक सब्जी के रूप में खाई जाती है. इसे अकेले या पनीर या दाल के साथ खाया जा सकता है.पालक में एक सामान्य कैल्शियम सामग्री होती है जो ऑक्सलेट से प्रभावित हो सकती है.
  9. ओकरा (भिण्डी)                                                                                                             ओकरा में फाइबर अधिक होता और कैलोरी कम है, कैल्शियम सहित बहुत सारे विटामिन और खनिजों का पैक है ओकरा. भिण्डी एक सब्जी है. इसका वृक्ष लगभग १ मीटर लम्बा होता है. बनारस में इसे ‘राम तरोई’ कहते हैं और छत्तीसगढ़ में इसे ‘रामकलीय’ कहते हैं.
  10. बादाम                                                                                                                         बादाम में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है. कैल्शियम हड्डियों के लिए जरूरी होता है. इसलिए बादाम का सेवन करने वालों को हड्डियों की बीमारी यानी ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा कम होता है.बादाम में प्रोटीन, वसा, विटामिन और मिनेरल पर्याप्त मात्रा में होते हैं, इसलिए यह स्वास्‍थ्‍य के लिए तो अच्छा है ही, त्वचा के लिए भी अच्छा है.

जानिये, आप पर क्या असर पड़ेगा 2018 के पहले चंद्रग्रहण का

31 जनवरी, सन 2018, दिन बुधवार, माघ पूर्णिमा के दिन सायंकाल से सारे भारतवर्ष में चंद्रग्रहण दिखाई देगा. इस ग्रहण की आकृति सारे भारत में देखी जाएगी. यह ग्रहण मिजोरम, अरुणाचल-प्रदेश, आसाम, सिक्किम, मेघालय, पूर्वी पश्चिम बंगाल में चन्द्रोदय के बाद आरम्भ होगा. भारत के अन्य भागों में इस ग्रहण का आरंभ चन्द्रोदय से पहले ही हो जाएगा, इसका अर्थ है कि वहाँ जब चन्द्र उदय होगा तो ग्रहण शुरु हो चुका होगा.

भारत के अलावा यह ग्रहण उत्तरी अमेरीका, उत्तरी-पूर्वी दक्षिणी अमेरीका में चन्द्र अस्त के साथ ही समाप्त हो जाएगा. जबकि उत्तरी पूर्वी यूरोप, एशिया, हिन्द महासागर में चन्द्रोदय के समय यह ग्रहण प्रारम्भ होगा.अॉस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड में यह चंद्रग्रहण प्रारंभ से समाप्ति काल तक पूर्ण रुप में दृश्य होगा. इस दिन चंद्रमा तीन रंगों में दिखाई देगा. 35 सालों बाद ऐसा हो रहा है.

चंद्रग्रह कब होता है:- 

चंद्रग्रहण तब होता है जब सूर्य और चांद के बीच में धरती आ जाती है। इसके बाद पृथ्वी की वजह से चांद पर पड़ने वाली सूरज की किरणें रुक जाती हैं। इसी को चंद्रग्रहण कहते हैं।

चंद्रग्रहण का समय:

चन्द्र ग्रहण की अवधि कुल 3 घंटे 23 मिनट की होगी। पूर्णिमा तिथि होने के कारण भगवान शिव और भगवान विष्णु की उपासना के लिए सुबह 8:28 तक का समय सही माना जा रहा है।

चंद्रग्रहण का समय – 05:58:00 से  08:41:10 तक
चंद्रग्रहण की अवधि  – 2 घंटे  43 मिनट 10 सेकंड
सूतक काल प्रारंभ – प्रातः 07:07:21 AM
सूतक काल की समाप्ति – रात्रि 08:41:10 PM

चंद्रग्रहण का राशियों पर असर:-

मेष:-

नौकरी और व्यवसाय में सफलता मिलेगी. कार्यस्थल पर आपकी मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी. आजीविका से जुड़े सभी क्षेत्रों में लाभ की प्राप्ति होगी. स्वास्थ्य का ध्यान रखें. संपत्ति सम्बन्धी समस्याएं हो सकती हैं.ग्रहणकाल में शिव जी की उपासना करें.

वृषभ:-

करियर में बदलाव के योग हैं. नौकरी और व्यापार में उन्नति होगी. निर्णयों में सावधानी रखें. अचानक धन लाभ होने की संभावना. ग्रहणकाल में कृष्ण जी की उपासना करें.

मिथुन:-

धन हानि हो सकती है. सेहत का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि मानसिक अवसाद के शिकार हो सकते हैं. आंखों और कान नाक गले का ध्यान रखें. ग्रहणकाल में बजरंग बाण का पाठ करें.

कर्क:-

दुर्घटनाओं और शल्य चिकित्सा के योग. शारीरिक कष्ट से समस्या हो सकती है. वाहन सावधानी से चलाएं. मुकदमेबाज़ी और विवादों से बचें. ग्रहणकाल में चन्द्रमा के मंत्र का जाप करें.

सिंह:-

धन हानि होने की संभावना है. आँखों की समस्या का ध्यान दें. पारिवारिक विवादों से बचाव करें. ग्रहणकाल में यथाशक्ति हनुमान चालीसा का पाठ करें.

कन्या:-

आकस्मिक धन लाभ हो सकता है. नौकरी के निर्णयों में सावधानी रखें. साहस और परामक्रम में वृद्धि होगी. छोटी दूरी की यात्रा की संभावना है. भाई-बहन अच्छा समय व्यतीत करेंगे. ग्रहणकाल में रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करें.

तुला:-

शारीरिक विकारों से परेशानी बढ़ सकती है. किसी बात का भय बना रह सकता है. जीवन में संघर्ष बढ़ेगा. पारिवारिक जीवन में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. करियर में अचानक समस्याएं आ सकती हैं किसी दुर्घटना के शिकार हो सकते हैं. ग्रहणकाल में दुर्गा कवच का पाठ करें.

वृश्चिक:-

प्रेम संबंधों में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. पढ़ाई-लिखाई में अड़चनें आ सकती हैं. अपयश और विवाद की संभावना बन सकती है. मूत्र विकार और धन हानि से बचाव करें. ग्रहणकाल के दौरान हनुमान चालीसा का पाठ करें.

धनु:-

नौकरी और करियर में संकट आ सकता है. विरोधियों से चुनौती मिल सकती है, वे कई तरह की समस्या उत्पन्न करेंगे. आर्थिक जीवन सामान्य रहेगा. धन लाभ के साथ-साथ खर्च भी बढ़ेंगे. किसी कानूनी मामले से परेशानी हो सकती है. वाहन दुर्घटना से बचें. ग्रहणकाल में चन्द्रमा के मंत्र का जाप करें.

मकर:-

जीवनसाथी के साथ रिश्तों का ध्यान दें. कारोबार में धन की बड़ी हानि से बचाव करें. ग्रहणकाल में हनुमान बाहुक का पाठ करें.

कुम्भ:-

करियर में मनचाही सफलता मिल सकती है. सेहत में लापरवाही न करें. ग्रहणकाल में शिव जी की उपासना करें.

मीन:-

अनावश्यक अपयश के शिकार हो सकते हैं. पेट और कारोबार की समस्यायें आ सकती हैं. गर्भवती महिलायें विशेष सावधानी रखें. ग्रहणकाल में श्रीकृष्ण की उपासना करें.

क्या ना करें ग्रहण में:-

  • ग्रहण के समय खाना पकाने और खाने से बचना चाहिए, इतना ही नहीं सोना से भी बचना चाहिए. ऐसा कहा जाता है कि ग्रहण के वक्त सोने से सेहत पर बुरा असर पड़ता है.
  • चंद्र ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को खास ध्यान रखने की जरूरत है. क्योंकि ग्रहण के वक्त वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो कि बच्चे और मां दोनों के लिए हानिकारक मानी जाती है.
  • ग्रहण के समय मूर्ति छूना, भोजन तथा नदी में स्नान करना वर्जित माना जाता है. सूतक काल के समय किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत नहीं करनी चाहिए.
  • इसके अलावा नाख़ून काटना, बात कटवाना, निद्रा मैथुन आदि जैसी गतिविधियों से भी ग्रहण व् सूतक काल के समय परहेज करना चाहिए.

 

“पैड मैन” अक्षय के खुलासे पर स्तब्ध रह गईं महिलायें दर्शक

दो हफ्ते पहले अक्षय कुमार सोनी पर प्रसारित होने वाले कॉमेडी शो द ड्रामा कंपनी में अपनी नयी फिल्म पैड मैन की  प्रमोशन के सिलसिले में आये थे. अक्षय कुमार ने दर्शकों से सवाल पूछा, “आप में से कितनी औरतें जानती हैं कि हिंदुस्तान में कितनी औरतें हैं जो पैड्स का इस्तेमाल नहीं कर पातीं? क्या आप जानतीं हैं” फिर उन्होंने खुद ही जवाब देते हुए कहा, 82%.

यानि अक्षय की माने तो भारत की कुल 59 करोड़ महिलाओं में से 48 करोड़ महिलायें माहवारी के दिनों में पैड्स का इस्तेमाल नहीं कर पाती और अभी भी दूसरे परंपरागत तरीकों और साधनों पर भी निर्भर हैं.

इसके कारणों का उल्लेख करते हुए अक्षय कहते हैं, “किसी के पास पैसे नहीं है, और कोई जानकारी नहीं है. कितनी औरतें हैं जो हाईजीन का ध्यान नहीं रखती (और जल्दी बीमारियों का शिकार हो जाती हैं). भारत में कितनी सारी औरतें हैं जो पीरिअड्स के दौरान मिट्टी का इस्तेमाल करती हैं, पत्तों का इस्तेमाल करती हैं, भूसे का इस्तेमाल करती हैं.. अजीब-2 चीज़ें इस्तेमाल करती हैं”

फिर उन्होंने पैड मैन फिल्म का डायलॉग दोहराया, “If you want to make your country strong, make your women strong.” फिर अक्षय ने भारत के रक्षा बजट का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे डिफेन्स का क्या फायदा जहाँ देश की महिलाएं ही सुरक्षित नहीं हैं.

अक्षय ने कहा लोग बातें करते हैं, कि सेनेटरी पैड्स को GST फ्री रखना चाहिए. मैं कहता हूँ, “तेल लेने गया टैक्स फ्री it should be completely free”.

अक्षय कुमार की फिल्म पैड मैन 9 फरवरी 2018 को रीलिज़ हो रही है. यह फिल्म असल जिन्दगी के पैड मैन अरुणाचलम मुरुगनंतम के जीवन पर आधारित है.

ये रही वीडिओ:

https://youtu.be/bn6j8i4bmZc