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जोसेफ़ स्टालिन : इतिहास के सबसे क्रूर तनाशाओं में से एक

इवान द टेरिबल” से लेकर “पीटर द ग्रेट” तक, रूसी इतिहास में कई शक्तिशाली शासकों ने शासन किया है। हालाँकि किसी भी शासक ने जोसेफ़ स्टालिन जैसी अमिट छाप नहीं छोड़ी। वह इतने प्रभावशाली थे कि उनके शासन प्रणाली को एक विशेष संज्ञा दी गई है जिसे “स्टालिनवाद” के नाम से जाना जाता है।

सोवियत संघ के शासक जोसेफ़ स्टालिन को कभी कम्युनिस्टों का आदर्श माना जाता था। उन्हें सोवियत संघ का हीरो माना जाता था, मगर क्या वो वाकई ऐसे थे? इतिहास को देखा जाए तो लगता है कि स्टालिन हीरो भी थे और विलेन भी।

जी हाँ, आज की हमारी यह पोस्ट जोसेफ़ स्टालिन के जीवन पर आधारित है। जिन्होंने शुरुआत तो इंकलाब से की थी, मगर बाद में वो सनकी तानाशाह बन गए।

स्टालिन का जन्म 18 दिसंबर 1879 को जॉर्जिया के गोरी में हुआ था। उनके बचपन का नाम था, जोसेफ विसारियोनोविच जुगाशविली। उस वक्त जॉर्जिया रूस के बादशाह जार के साम्राज्य का हिस्सा था।

स्टालिन के पिता पेशे से एक मोची थे। इतिहासकारों के अनुसार वह बहुत शराब पीते थे और स्टालिन को बहुत पीटते थे। उनकी मां कपड़े धोने का काम करती थी। सात साल की उम्र में स्टालिन को चेचक की बीमारी हो गई, जिससे उनके चेहरे पर दाग पड़ गए। इस बीमारी की वजह से उनके बाएं हाथ में भी खराबी आ गई थी। बचपन में स्टालिन बहुत कमजोर थे। दूसरे बच्चे उन्हें बहुत तंग किया करते थे।

काम अच्छा न चलने की वजह से कुछ समय के बाद स्टालिन के पिता रोज़गार की तलाश में जॉर्जिया की राजधानी तिफ़्लिस चले गए।

स्टालिन की मां धार्मिक ख्यालात वाली थीं। उन्होंने 1895 में स्टालिन को पादरी बनने की पढ़ाई करने के लिए जॉर्जिया की राजधानी तिफ्लिस भेजा, लेकिन स्टालिन को धार्मिक किताबों में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। उन्होंने इतिहास की किताबें जैसे कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स की रचनाएँ पढ़ना शुरू कर दिया, जिसने युवा स्टालिन के विश्वदृष्टिकोण को प्रभावित किया।

19 वर्ष की आयु में स्टालिन ने एक समाजवादी विचारधारा वाले संगठन की सदस्यता भी ले ली थी। ये संगठन रूस के बादशाह के खिलाफ लोगों को एकजुट करता था। मां की ख्वाहिश के खिलाफ जाकर स्टालिन ने पादरी बनने से साफ इनकार कर दिया। जिसके कारण 1899 में उन्हें धार्मिक स्कूल से बाहर कर दिया गया।

कार्ल मार्क्स और अन्य कम्युनिस्ट सिद्धांतकारों के बारे में स्टालिन के अध्ययन ने उन्हें बोल्शेविकों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, जो व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में रूस में एक क्रांतिकारी राजनीतिक आंदोलन था।

1899 ई. में इसके दल से प्रेरणा प्राप्त कर काकेशिया के मजदूरों ने हड़ताल शुरू कर दी, जिसका सरकार ने इन मज़दूरों का दमन किया। 1900 ई. में तिफ्लिस के दल ने फिर क्रांति का आयोजन किया। इसके फलस्वरूप जोज़फ़ को तिफ्लिस छोड़कर बातूम भागना पड़ा। 1902 ई. में जोज़फ़ को बंदीगृह में डाल दिया गया।

1905 में स्टालिन ने पहली बार रूसी साम्राज्य के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध में हिस्सा लिया। रूस में बोल्शेविक क्रांति के लीडर व्लादिमीर लेनिन से स्टालिन की पहली मुलाकात फिनलैंड में हुई थी। लेनिन उनकी प्रतिभा के कायल हो गए। 1907 में स्टालिन ने तिफ्लिस में एक बैंक में डकैती कर ढाई लाख रूबल चुरा लिए। ये रकम जार विरोधी आंदोलन में काम आई।

1903 से 1913 के बीच उन्हें छह बार साइबेरिया भेजा गया। मार्च 1917 में सब क्रांतिकारियों को मुक्त कर दिया गया। स्टालिन ने जर्मन सेनाओं को हराकर दो बार खार्कोव को स्वतंत्र किया और उन्हें लेनिनग्रेड से खदेड़ दिया।

जोसेफ़ स्टालिन ने 1906 में “केटेवान स्वानिजे” नाम की लड़की से शादी कर ली। वो एक छोटे-मोटे सामंती परिवार से ताल्लुक रखती थी। शादी के एक साल बाद स्टालिन के एक बेटा पैदा हुआ। तिफ्लिस में बैंक डकैती के बाद स्टालिन को जॉर्जिया छोड़कर भागना पड़ा था। वो अजरबैजान के बाकू शहर में जाकर रहने लगे।

शादी के एक साल बाद ही 1907 में स्टालिन की पत्नी केटेवान का टाइफाइड से निधन हो गया। इस बात से स्टालिन को जबरदस्त झटका लगा। स्टालिन ने अपने बेटे को उसके नाना-नानी के पास छोड़कर खुद को पूरी तरह से रूसी क्रांति के हवाले कर दिया। इसी दौरान उन्होंने अपना नाम बदलकर स्टालिन रख लिया। ‘स्टालिन‘ का रूसी में अर्थ है “लोह पुरुष“।

नवंबर 1917 में बोल्शेविक पार्टी ने अंततः अपना लक्ष्य हासिल कर लिया। लगभग एक साल की हड़तालों और प्रथम विश्व युद्ध के विनाशकारी प्रभावों के बाद लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविकों ने ज़ारिस्ट शक्तियों को उखाड़ फेंका और रूस पर नियंत्रण कर लिया। उन्होंने श्रमिक परिषदों या “सोवियतों” की एक प्रणाली स्थापित की जिससे सोवियत संघ का जन्म हुआ।

लेनिन ने लोगों से अमन, जमीन और रोटी का वादा किया। स्टालिन ने इस क्रांति में अहम रोल निभाया था। वो उस दौरान बोल्शेविक पार्टी का अखबार प्रावदा चलाते थे जब उन्होंने लेनिन को जार की सेना से छुड़ाकर फिनलैंड भागने में मदद की थी। इससे खुश होकर लेनिन ने स्टालिन को पार्टी में बड़ा ओहदा दिया।

जार की हुकूमत खत्म होने के बाद रूस में गृह युद्ध छिड़ गया। गृह युद्ध के दौरान स्टालिन ने पार्टी के भगोड़ों और बागियों को सरेआम सूली पर चढ़ाने का आदेश दिया। जब लेनिन सत्ता में आए तो उन्होंने स्टालिन को कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव नियुक्त किया।

1924 में लेनिन की मौत हो गई। इसके बाद स्टालिन ने खुद को उनके वारिस के तौर पर पेश किया। हालांकि पार्टी के बहुत से नेता ये समझते थे कि लेनिन के बाद लियोन ट्राटस्की ही उनके वारिस होंगे, लेकिन ट्रॉटस्की को कई लोग बहुत आदर्शवादी मानते थे।

उन्हें लगता था कि ट्रॉटस्की के सिद्धांतों को असल जिंदगी में लागू कर पाना बहुत मुश्किल है। इस दौरान स्टालिन ने अपनी राष्ट्रवादी मार्क्सवादी विचारधारा का जोर-शोर से प्रचार शुरू कर दिया।

उन्होंने कहा कि उनका मकसद सोवियत संघ को मजबूत करना है, पूरी दुनिया में इंकलाब लाना नहीं। जब ट्रॉटस्की ने स्टालिन की योजनाओं का विरोध किया, तो स्टालिन ने उन्हें देश निकाला दे दिया। 1920 के दशक के आखिर के आते-आते स्टालिन सोवियत संघ के तानाशाह बन चुके थे।

जब स्टालिन नेता बने तब भी सोवियत कृषि पर छोटे ज़मींदारों का नियंत्रण था और पुराने ज़माने की कृषि तकनीकों का उपयोग किया जा रहा था। पिछड़े सोवियत संघ का औद्योगीकरण करने के लिए स्टालिन ने लेनिन की आर्थिक नीतियों को त्याग दिया।

बीस के दशक में ही स्टालिन ने पंचवर्षीय योजनाओं के जरिए देश की तरक्की के लिए काम करना शुरू कर दिया।स्टालिन के राज में सोवियत संघ में कोयले, तेल और स्टील का उत्पादन कई गुना बढ़ गया। देश ने तेजी से आर्थिक तरक्की की। स्टालिन ने अपनी योजनाओं को बहुत सख्ती से लागू किया।

कारखानों को बड़े-बड़े टारगेट दिए जाते थे। कई बार तो ये टारगेट पूरे कर पाना नामुमकिन सा लगता था। जो लोग टारगेट हासिल करने में नाकाम रहते थे, उन्हें देश का दुश्मन कह कर जेल में डाल दिया जाता था।

रूसी इतिहास में पहली गगनचुंबी इमारतें बनाई गईं। मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी की मुख्य इमारत, “सेवन सिस्टर्स” में से एक, 1997 तक यूरोप की सबसे ऊंची इमारत थी।

जोसेफ़ स्टालिन खुद को एक नरमदिल और देशभक्त नेता के तौर पर प्रचारित करते थे, लेकिन स्टालिन अक्सर उन लोगों को मरवा देते थे, जो भी उनका विरोध करता था। फिर चाहे वो सेना के लोग हों या फिर कम्युनिस्ट पार्टी के।

कहा जाता है कि स्टालिन ने पार्टी की सेंट्रल कमेटी के 139 में से 93 लोगों को मरवा दिया था। इसके अलावा उन्होंने सेना के 103 जनरल और एडमिरल में से 81 लोगों को मरवा दिया था।

स्टालिन की खुफिया पुलिस बड़ी सख्ती से उनकी नीतियां लागू करती थी। साम्यवाद का विरोध करने वाले तीस लाख लोग साइबेरिया के गुलाग इलाके में रहने के लिए जबरदस्ती भेज दिए गए थे। इसके अलावा करीब साढ़े सात लाख लोगों को मरवा दिया गया था।

1919 में जोसेफ़ स्टालिन ने नदेज्दा एल्लीलुएवा से दूसरी शादी की। इस शादी से स्टालिन को एक बेटी स्वेतलाना और बेटा वैसिली हुआ, लेकिन स्टालिन अपनी दूसरी पत्नी से बहुत बदसलूकी करते थे।

उनकी दूसरी पत्नी नदेज्दा ने 1932 में खुदकुशी कर ली। हालांकि आधिकारिक तौर पर बताया गया कि उनकी मौत बीमारी की वजह से हुई। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान स्टालिन की पहली शादी से हुए बेटे याकोव को जर्मन सेना ने गिरफ्तार कर लिया।

जब जर्मनी ने बंदियों की अदला-बदली में याकोव को रूस को सौंपने का प्रस्ताव किया, तो स्टालिन ने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया। जर्मनी के युद्धबंदी कैंप में ही स्टालिन के बेटे याकोव की 1943 में मौत हो गई थी।

जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ, तो स्टालिन ने जर्मनी के तानाशाह हिटलर के साथ समझौता करके पूर्वी यूरोप के देशों का आपस में बंटवारा कर लिया। जर्मनी की सेना ने बड़ी आसानी से फ्रांस पर कब्जा कर लिया। ब्रिटेन को भी पीछे हटना पड़ा।

Adolf-Hitler-min

इस दौरान रूसी सेना के जनरलों ने स्टालिन को आगाह किया कि जर्मनी सोवियत संघ पर भी हमला कर सकता है, लेकिन स्टालिन ने अपने फौजी कमांडरों की चेतावनी अनसुनी कर दी।

1941 में जर्मनी ने पोलैंड पर कब्जा कर लिया और सोवियत संघ पर भी जबरदस्त हमला किया। सोवियत सेनाओं को भारी नुकसान उठाना पड़ा।

हिटलर के धोखे से स्टालिन इस कदर गुस्सा हो गए कि वो कोई फैसला नहीं ले पा रहे थे। स्टालिन ने खुद को एक कमरे में कैद कर लिया। कई दिनों तक सोवियत संघ की सरकार दिशाहीन रही। इस दौरान हिटलर की सेनाएं राजधानी मॉस्को तक आ पहुंचीं। जर्मनी के लगातार हमलों से सोवियत संघ का बुरा हाल था।

देश तबाही के कगार पर खड़ा था, लेकिन स्टालिन नाजी सेना पर जीत के लिए अपने देश के लाखों लोगों को कुर्बान करने के लिए तैयार थे। दिसंबर 1941 में जर्मन सेनाएं रूस की राजधानी मॉस्को के बेहद करीब पहुंच गईं।

सलाहकारों ने स्टालिन को मॉस्को छोड़ने की सलाह दी मगर स्टालिन ने इससे साफ इनकार कर दिया। उन्होंने अपने कमांडरों को फरमान जारी किया कि उन्हें नाजी सेनाओं को किसी भी कीमत पर हराना होगा।

जर्मनी और रूस के बीच जंग में स्टालिनग्राड की लड़ाई से निर्णायक मोड़ आया। हिटलर ने इस शहर पर इसलिए हमला किया क्योंकि इसका नाम स्टालिन के नाम पर था।

वो स्टालिनग्राड को जीतकर स्टालिन को शर्मिंदा करना चाहता था लेकिन स्टालिन ने अपनी सेनाओं से कहा कि वो एक भी कदम पीछे नहीं हटेंगी। स्टालिनग्राड के युद्ध में रूसी सेना के दस लाख से ज्यादा सैनिक मारे गए लेकिन आखिर में सोवियत सेनाओं ने जर्मनी को मात दे दी।

सोवियत संघ ने हिटलर की सेनाओं को वापस जर्मनी की तरफ लौटने को मजबूर कर दिया। सोवियत सेनाएं जर्मनी को खदेड़ते हुए राजधानी बर्लिन तक जा पहुंचीं।

दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी को हराने में स्टालिन ने बहुत अहम भूमिका निभाई थी। युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप के एक बड़े हिस्से पर सोवियत सेनाओं ने कब्जा कर लिया। उन्होंने जर्मनी की राजधानी बर्लिन के पूर्वी हिस्से पर भी कब्जा कर लिया।

स्टालिन ने कहा कि ये सभी देश सोवियत संघ के अंगूठे तले रहेंगे। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका और ब्रिटेन, स्टालिन के साथ थे मगर युद्ध के बाद स्टालिन की नीतियों के चलते वो उसके दुश्मन बन गए।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा कि स्टालिन यूरोप के एक बड़े हिस्से को लोहे के पर्दे से बंद कर रहे हैं। बर्लिन को लेकर ब्रिटेन-अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनातनी इस कदर बढ़ गई कि स्टालिन ने पूर्वी बर्लिन में अमेरिकी और ब्रिटिश सेनाओं के घुसने पर रोक लगा दी।

अमेरिका ने पूर्वी बर्लिन में फंसे लोगों को 11 महीने तक हवाई रूट से मदद पहुंचाई। शीत युद्ध का आगाज हो चुका था। सोवियत संघ ने 29 अगस्त 1949 को अपने पहले एटम बम का परीक्षण किया।

अपने आखिरी दिनों में स्टालिन बहुत शक्की हो गए थे। वो पार्टी में कई लोगों को अपना दुश्मन मानने लगे थे। पांच मार्च 1953 को दिल का दौरा पड़ने से स्टालिन का निधन हो गया।

सोवियत संघ में बहुत से लोगों ने उनकी मौत पर मातम मनाया। उन्हें महान नेता बताया जिसने देश को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया था। जिसने हिटलर को हराने में अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन सोवियत संघ में ही लाखों लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने स्टालिन की मौत का जश्न भी मनाया था।

स्टालिन के बाद सोवियत संघ के नेता बने निकिता ख्रुश्चेव ने स्टालिन की नीतियों से किनारा कर लिया। कुल मिलाकर स्टालिन की जिंदगी एक ऐसे शख्स की रही, जिसने शुरुआत तो इंकलाब से की थी। मगर बाद में वो सनकी तानाशाह बन गए।

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