रामराजा मन्दिर मध्य प्रदेश के ओरछा नगर में स्थित है। यह एक पवित्र हिंदू तीर्थ स्थल है। यहाँ नियमित रूप से बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। इसे आमतौर पर ओरछा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
यह भारत का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान राम की पूजा एक राजा के रूप में की जाती है। रामराजा मंदिर की एक और खासियत है कि एक राजा के रूप में विराजने होने की वजह से उन्हें 4 बार की आरती में सशस्त्र सलामी यानी ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ दिया जाता है। मंदिर में भगवान को दिया जाने वाला भोजन और अन्य सभी सुविधाएं शाही हैं।
इस मंदिर में भगवान राम अपने दाहिने हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढाल रखते हैं। श्री राम पद्मासन में बैठे हैं, उनका बायां पैर उनकी दाहिनी जांघ के ऊपर है। अयोध्या से मध्य प्रदेश के ओरछा की दूरी तकरीबन साढ़े चार सौ किलोमीटर है, लेकिन इन दोनों ही जगहों के बीच गहरा संबंध है।
जिस तरह अयोध्या में ‘राम नाम’ की गूंज हर समय व हर चीज में गूंजती है, वैसे ही ओरछा की धड़कन में भी राम विराजमान हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी व अहम विशेषता है कि यहां हिंदुओं के साथ मुसलमान भी राजाराम की आराधना करते हैं। अयोध्या और ओरछा का करीब 650 साल पुराना रिश्ता है।
यहाँ पर हर साल भारत के कोने कोने से पर्यटक आते है जिनकी संख्या लगभग 650,000 है और वहीं विदेशी पर्यटकों संख्या लगभग 25,000 है। मंदिर में दैनिक आगंतुकों की संख्या 1500 से 3000 तक होती है और मकर संक्रांति, वसंत पंचमी, शिवरात्रि, राम नवमी, कार्तिक पूर्णिमा और विवाह पंचमी जैसे कुछ महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों पर ओरछा में आने वाले भक्तों की संख्या कई गुणा बढ़ जाती है।
इतिहास
कई स्थानीय लोगों के अनुसार राम राजा मंदिर की एक कहानी प्रचलित है। ओरछा के राजा मधुकर शाह जू देव (1554 से1592 ) (मधुकर शाह जू देव) बृंदावन के बांके बिहारी (भगवान कृष्ण) के भक्त थे जबकि उनकी पत्नी रानी गणेश कुँवरि, जिन्हें कमला देवी भी कहा जाता है, भगवान राम की भक्त थीं।
इस बात को लेकर हमेशा दोनों में विवाद की स्थिति रहती थी। एक बार मधुकर शाह ने रानी को वृंदावन जाने का प्रस्ताव दिया लेकिन उन्होंने मना कर दिया और अयोध्या जाने की जिद पकड़ ली।
तब राजा ने रानी पर व्यंग्य किया कि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ। इस बात को रानी ने इतनी गंभीरता से ले लिया कि वह राम को लाने सन् 1573 के आषाढ़ माह में अयोध्या के लिए निकल पड़ीं।
श्रीराम की प्रतिमा को लेकर रानी गणेश कुंवरि साधु-संतों और महिलाओं के बड़े जत्थे के साथ अयोध्या से ओरछा की यात्रा पर निकल पड़ीं। साढ़े आठ माह में प्रण पूरा करके रानी सन् 1574 की रामनवमी को ओरछा पहुंचीं।
यह सब देख कर राजा बेहद आश्चर्यचकित हो गए। महारानी कुंवरि गणेश ने ही श्रीराम को अयोध्या से ओरछा लाकर विराजित किया था। उनके लिए यह विशाल मंदिर बनाया गया परंतु कहते हैं कि उन्हें सुरक्षा कारणों से मंदिर की बजाए रसोई में विराजमान किया गया। इसके पीछे तर्क था कि रजवाड़ों की महिलाओं की रसोई से अधिक सुरक्षा और कहीं नहीं हो सकती।
ओरछा में भगवन राम की पूजा हिन्दु और मुसलमान दोनों करते हैं। ओरछा निवासी मुन्ना खान जो सिलाई का काम करते हैं, कहते हैं कि में रोज दरबार सजदा करता हूं। हमारे तो सब यही हैं।
वहीँ ओरछा के ही नईम बेग भी राम को उतना ही मानते हैं जितना रहीम को, वह कहते हैं कि आपसी भाईचारा ऐसा ही रहे, जैसा मंदिर में रामराज ओरछा के राम राजा दरबार में है।
ओरछा के राम श्रद्धा चाहते हैं इसलिए उन्होंने विशाल चतुर्भुज मन्दिर त्याग कर वात्सल्य भक्ति की प्रतिमूर्ति महारानी कुंवरि गणेश की रसोई में बैठना स्वीकार किया था। राम भक्तों के भावों में बसते हैं, भवनों की भव्यता में नहीं।