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जानिए क्यों कहलाते हैं शिव “अर्धनारीश्वर”

भगवान शिव की पूजा सदियों से हो रही है लेकिन इस बात को बहुत कम लोग ही जानते हैं कि शिव का एक और रूप है जो है अर्धनारीश्वर।

दरअसल शिव ने यह रूप अपनी मर्जी से धारण किया था। वह इस रूप के जरिए लोगों का संदेश देना चाहते थे कि स्त्री और पुरुष समान है।

आइए जानते हैं इस घटना का चक्र कि आखिर किस वजह से भगवान शिव को यह रूप धारण करना पड़ा था।

हिंदू पौराणिक शास्त्र में भगवान उस मानवीय कल्पना का प्रतीक है जो या तो स्वतंत्र शिव के रूप में पूजे जाते हैं।

लिंग पुराण के अनुसार सृष्टि की शुरुआत में एक कमल खिला। उसके अंदर ब्रह्मा बैठे थे। जागरूक होने पर उन्हें अकेलापन महसूस हुआ लेकिन वे इस प्रश्न में उलझ गए कि किसी का साथ पाने के लिए किसी और जीव का निर्माण कैसे कर सकते हैं।

अचानक उन्हें अपनी आंखों के सामने शिव का आभास हुआ। शिव का दाहिना हिस्सा पुरुष का था और बायां हिस्सा स्त्री का।

इससे प्रेरित होकर ब्रह्मा ने अपने आप को दो हिस्सों में बांट दिया। दाएं हिस्से से सभी पुरुष जीव आए और बाएं हिस्से से स्त्री जीव।

नाथ जोगियों के अनुसार जब वे (जोगी) शिवजी से मिलने कैलाश पर्वत पर गए, तब यह देखकर हैरान रह गए कि शिव पार्वती के साथ आलिंगन में इतने मगन थे कि उन्होंने जोगियों की ओर ध्यान तक नहीं दिया।

फिर वे समझ गए कि शिव और पार्वती के आलिंगन को रोकना शरीर के दाएं हिस्से को बाएं हिस्से से अलग करने जैसा होगा इसलिए उन्होंने शिव को प्रणाम कर उन्हें अर्द्धनारीश्वर के रूप में कल्पित किया।

दक्षिण भारत के मंदिरों में शिव की ओर स्नेह से देखता हुआ भृंगी नामक व्यक्ति दिखाई देता है। भृंगी शिव के दूसरे उपासकों से अलग है और बहुत दुर्बल है।

दरअसल उसकी सिर्फ़ हड्डियां नजर आती हैं और उसके दो नहीं, बल्कि तीन पैर हैं। कहते हैं कि भृंगी शिव का परम भक्त था। एक दिन कैलाश पर्वत पर आकर उसने शिव की प्रदक्षिणा करने की इच्छा व्यक्त की।

इस पर पार्वती ने कहा कि भृंगी उनके इर्द-गिर्द भी जाए लेकिन भृंगी तो शिव से इतना मोहित था कि उसे पार्वती के इर्द-गिर्द घूमने की कोई इच्छा नहीं हुई।

इसे देखकर माता पार्वती शिव की गोद में जा बैठीं और इस वजह से भृंगी अब दोनों के इर्द-गिर्द जाने को मजबूर था। लेकिन उसे तो सिर्फ़ शिव की प्रदक्षिणा करनी थी, इसलिए उसने अब सांप का रूप धारण कर शिव और पार्वती के बीच से खिसकने की कोशिश की।

शिव को यह मज़ेदार लगा और पार्वती को अपने शरीर का आधा हिस्सा बनाकर वे अर्द्धनारीश्वर में बदल गए लेकिन भृंगी ने अपनी हठ नहीं छोड़ी। वह कभी चूहे तो कभी मधुमक्खी का रूप लेकर शिव व पार्वती के बीच से जाने की कोशिश करता।

इससे पार्वती इतनी चिढ़ गईं कि उन्होंने भृंगी को श्राप दे दिया कि वह अपनी मां से मिले शरीर के सभी भाग खो देगा। भृंगी के शरीर से तुरंत मांस और खून गायब हो गया। सिर्फ़ हड्डियां बच गईं। वह ज़मीन पर ढेर हो गया।

तब भृंगी पर तरस खाकर शिवजी ने उसे एक तीसरा पैर दे दिया, ताकि वह तिपाई की तरह खड़ा हो सके। यह घटना दर्शाती है कि ईश्वर के स्त्रैण भाग को ना पूजने का क्या खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

वहीं, उत्तर भारत के पहाड़ी इलाक़ों की एक लोककथा के अनुसार जब पार्वती जी ने गंगा को शिवजी के सिर पर देखा तो वे बहुत क्रोधित हो गईं।

उन्होंने सोचा कि उनके होते हुए शिव किसी और स्त्री को कैसे अपने साथ रख सकते हैं। तब उन्हें शांत करने के लिए शिवजी ने दोनों का शरीर एक कर दिया और इस तरह वे अर्द्धनारीश्वर बन गए।

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