भ्रांति या तथ्य??
बहुत सारी क्रांतिकारी खोजों के लिए प्रसिद्ध साइंटिस्ट अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने दिमाग का 13 प्रतिशत उपयोग किया था जबकि सामान्य व्यक्ति सिर्फ 1-2 प्रतिशत का उपयोग कर सकता है।
यह वास्तव में एक बहुत प्रसिद्ध मिथक है जो 19वीं शताब्दी के शुरू में पैदा हुआ था। सच्चाई यह है कि मनुष्य केवल 10% मस्तिष्क का उपयोग नहीं करते हैं. मस्तिष्क वास्तव में हमेशा सक्रिय रहता है और मनुष्य अपने ज्ञान, अनुभव, क्षमता और विवेक के साथ पूरा का पूरा इस्तेमाल करता है.
10% के मिथक की बात वैज्ञानिक संभवत: मनोवैज्ञानिक कार्ल लैशली के अध्ययन के दौरान उत्पन्न हुई, जब वे मस्तिष्क में मेमोरी इग्राम पर शोध कर रहे थे। उन्होंने एक भूलभुलैया पर चलाने के लिए चूहों को प्रशिक्षित और उनकी दिमागी गतिविधिओं को नोट किया.
वहीँ कुछ लोग मानते हैं कि यह गलत धारणा तब बनी जब हार्वर्ड विश्वविद्यालय के दो मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स और बोरिस सिडिस एक बहुत ही उच्च बुद्धि IQ वाले बालक विलियन सिडिस नामक एक के बच्चे का अध्ययन कर रहे थे जिसका IQ व्यस्क होने पर 250-300 था. इस शोध के दौरान इन मनोवैज्ञानिकों ने कहा कि लोग अपनी मानसिक क्षमता का केवल कुछ भाग ही उपयोग करते हैं। उनकी यह स्टेटमेंट समय के साथ-2 मिथक के रूप में प्रसिद्ध हो गयी।
इस की मुख्य वजह थी मीडिया जिन्होंने टेलीविजन, रेडियो और इन्टरनेट के माध्यम से लोगों को बताया कि मनुष्य अपने दिमाग का सिर्फ 10 प्रतिशत हिस्सा ही इस्तेमाल करता है और यह भी यकीन दिलाया कि कोशिश करने से हम अपने मस्तिष्क का 10 प्रतिशत से भी ज्यादा इस्तेमाल कर सकते हैं.
वास्तव में, यह साबित हो चुका है कि मनुष्य अपने दैनिक जीवन के विभिन्न कार्यों के लिए अपने दिमाग के सभी भागों का उपयोग करते हैं।
अगर यह मान लें कि मनुष्य अपने मस्तिष्क का सिर्फ 10 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल करता है इसका मतलब हुआ कि हमारे दिमाग की 10 में से सिर्फ 1 तंत्रिका (Nerve) कोशिका काम करती हैं और हमारे मस्तिष्क के सिर्फ 10 प्रतिशत नयूरोंस (neurons) काम करते हैं, जो कि असम्भव है. असल में हमारे मस्तिष्क के 100 प्रतिशत नयूरोंस एक दूसरे से संकेतों का आदान प्रदान करते हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि मनुष्य का दिमाग 100 प्रतिशत इस्तेमाल होता है न कि 10 प्रतिशत.
ऐसे कई अध्ययन हैं जिनमें यह पता चलता है कि अगर न्यूरॉनस को दी जाने वाली इनपुट (input) स्थगित होती है तो हमारे दिमाग का न्यूरॉन सिस्टम ठीक ढंग से कार्य नहीं करता. दूसरी तरफ छोटे बच्चों का दिमाग बहुत अनुकूलनीय (adaptable) होता है. अगर छोटे बच्चों के दिमाग का कोई हिस्सा काम नहीं करता तो उस हिस्से की जगह दिमाग में बचे हुए टिश्यूओं द्वारा ले ली जाती है.
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