उत्तरी चिली के मरुस्थल में पहाड़ियों के ऊपर कई विशाल डिश और दूरबीनें लगी हैं। अब यहां दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल कैमरा लगाया जा रहा है, जो सितारों के साथ इंसानी संपर्क में क्रांतिकारी बदलाव कर सकता है।
चिली की वेरा सी रूबिन ऑब्जर्वेटरी के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वहां लगे टेलीस्कोप में कार के आकार का डिजिटल कैमरा लगाने से ब्रह्मांड के अध्ययन में बड़ी तरक्की हो सकती है।
2025 से होगी शुरुआत
2.8 मीट्रिक टन का कार के आकार का यह डिजिटल कैमरा एक बेहद परिष्कृत और आधुनिक उपकरण है, जिससे ब्रह्मांड के उन कोनों तक भी पहुंचा जा सकेगा, जहां इंसानी नजर पहले कभी नहीं गई।
अमरीकी फंडिंग से तैयार किया गया यह कैमरा 2025 में काम शुरू करेगा, जब 80 करोड़ डॉलर के इस कैमरे से पहली तस्वीर ली जाएगी। हर तीन दिन में यह आसमान का एक चक्कर लगाएगा, जिससे वैज्ञानिकों को विश्लेषण के लिए भरपूर डाटा और तस्वीरें मिलेंगी।
क्रांतिकारी बदलाव की उम्मीद
यह ऑब्जर्वेटरी चिली की राजधानी सैनटिएगो से 560 किलोमीटर उत्तर में सेरो पाचों पहाड़ी पर 2,500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसका फायदा चिली को भी होगा, जो अंतरिक्ष अध्ययन का एक बड़ा केंद्र है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली टेलीस्कोपों में से एक-तिहाई यहीं स्थित हैं क्योंकि यहां का आसमान दुनिया में सबसे साफ माना जाता है।
रूबिन ऑब्जर्वेटरी में लगने वाले कैमरे का पहला काम पूरे आसमान की दस साल की समीक्षा करना होगा। इस समीक्षा को ‘लेगी सर्वे ऑफ स्पेस एंड टाइम‘ कहते हैं। उम्मीद है कि इस समीक्षा से करीब 2 करोड़ आकाशगंगाओं, 1.7 अरब सितारों और 60 लाख अन्य अंतरिक्षीय पिंडों के बारे में सूचनाएं मिलेंगी। इससे वैज्ञानिक हमारी आकाशगंगा का भी एक नक्शा बना पाएंगे और डार्क मैटर की और गहराई में जा पाएंगे।
3,200 मैगापिक्सल क्षमता वाला कैमरा
नए कैमरे से 3,200 मैगापिक्सल की तस्वीरें ली जाएंगी यानी यह तस्वीर एक औसत टैलीविजन तस्वीर से लगभग 300 गुना ज्यादा बड़ी होगी। फिलहाल जो दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल कैमरा है, उससे यह तीन गुना ज्यादा शक्तिशाली होगा। इस वक्त दुनिया का सबसे शक्तिशाली कैमरा 870 मैगापिक्सल का हाइपर सुप्रीम कैम है, जो जापान में लगा है।
ऑब्जर्वेटरी के निदेशक स्टीफन हीथकोट बताते हैं, “जब चिली में पहला टैलीस्कोप लगाया गया था तो उसे खच्चर पर लाद कर लाया गया था क्योंकि तब यहां सड़क नहीं थी।’ वेरा सी रूबिन ऑब्जर्वेटरी को अमरीकी खगोलविद पर यह नाम दिया गया है, जिन्होंने डार्क मैटर की खोज की थी।
पंजाब केसरी से साभार