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जब ज़िंदा रहने ये भी खाना पड़ा- सबसे “डरावने प्लेन क्रैश” की रौंगटे खड़े कर देने वाली कहानी!

दुनिया में कोई इंसान कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, जिंदा रहने के लिए उसे भोजन की जरूरत पड़ती ही है। कई बार इंसान को जिंदगी के लिए कड़े संघर्ष करने पड़ते हैं। 50 साल पहले एक विमान हादसे में बचे 16 लोगों ने खुद को जिंदा रखने के लिए जो जद्दोजहद की, उसके बारे में जानकर आप सिहर उठेंगे। यह 72 दिनों के उस संघर्ष की कहानी है।

13 अक्तूबर, 1972 को उरुग्वे की रग्बी टीम को ओल्ड क्रिश्चियन क्लब की टीम के साथ चिली में मैच खेलना था। चिली जाने के लिए एक प्लेन में 12 अक्तबर को उरुग्वे के 19 खिलाड़ियों, मैनेजर, उनके मालिक और उनके दोस्तों ने उड़ान भरी। इनके साथ विमान में 5 क्रू सदस्य भी थे।

उरुग्वे एयरफोर्स के इस विमान को उड़ान भरने के कुछ ही समय बाद मौसम खराब होने के कारण चिली की जगह अर्जेंटीना में उतारना पड़ा।

यहां पर रुक कर मौसम साफ होने का इंतजार किया गया और अगले दिन यहां से चिली के लिए उड़ान भरी गई। विमान ने दोपहर 2.18 मिनट पर उड़ान भरी।

विमान के पायलट को ग्लेशियर से 29 बार गुजरने का अनुभव था, लेकिन उनकी जगह को-पायलट विमान उड़ा रहा था और मौसम भी खराब था। विमान ऐंडीज पर्वतमाला की एक पहाड़ी की चोटी से टकरा गया और इसका पिछला हिस्सा टूट गया।

इसमें उड़ान के दौरान 45 लोग थे और हादसे के बाद 35 लोग जिंदा थे। अगले दिन 5 अन्य लोगों की मौत हो गई। पहाड़ी पर फंसे लोगों ने शून्य से कम तापमान और सर्द हवाओं से बचने के लिए टूटे विमान के टुकड़ों को इकट्ठा किया और उन्हें सील करने की कोशिश की।

धीरे-धीरे उन लोगों के पास खाना खत्म हो गया तो उन्होंने सीट के ऊपर लगे लैदर कवर को खाना शुरू कर दिया, टुथपेस्ट तक खाने की कोशिश की लेकिन इससे वे बीमार पड़ने और मरने लगे।

वहां मरने वाले लोगों की लाशें खराब नहीं हुई क्योंकि शून्य से कम तापमान होने के कारण वे जम चुकी थीं। विमान के टूटे कांचसे टुकड़े बनाकर लाशों के मांस को काट विमान तथा नक्शे में जहां हादसा हुआ (इन्सैट में) कर पहली बार खाया गया। इसके बाद इनमें समझौता हुआ कि जो भी मरता है, उसकी लाश को खाया जा सकता है।

इस घटना में बचे इंजीनियर हार्ले बताते हैं, “हम मर रहे थे, और जब आपके सामने दो ही चीजें हों कि या तो आप मर जाओ या जीने के लिए जो जरूरी हो वह करो, तो आप जीवन को चुनते हैं।”

हादसे की जानकारी मिलते ही उरुवे सरकार ने सक्रियता दिखाई और बचाव अभियान शुरू किया, लेकिन विमान कारंग सफेद होने के कारण बर्फ से ढंके सफेद एंडीज पर्वत पर उसे ढूंढना घास के ढेर में सुई ढूंढने के बराबर था।

लगातार 10 दिनों तक असफलता हाथ लगने पर 11वें दिन बचाव अभियान बंद कर दिया गया। सबका मानना था कि एंडीज के विषम मौसम में बिना भोजन-पानी के किसी का भी इतने दिनों तक जिंदा रहना नामुमकिन है।

दो खिलाड़ियों ने बचाई जान

हादसे को 60 दिन बीत चुके थे। मदद की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दी, तो दो खिलाड़ियों नैन्डो पैरेडो और रॉबर्ट केनेसा ने सोचा कि यहां पड़े-पड़े मरने से अच्छा है कि मदद की तलाश में निकला जाए।

60 दिनों में दोनों कमजोर हो चके थे, बर्फ पर ट्रैकिंग करने के लिए उनके पास साधन नहीं थे लेकिन दोनों खिलाड़ी थे और अंत तक हार नहीं मानने का जज्बा था।

दोनों जैसे-तैसे चिली के आबादी वाले क्षेत्र तक पहुंच गए, जहां दोनों ने रेस्क्यू टीम को अपने साथियों की लोकेशन बताई। जब विमान पर सवार हुए थे तब हालें 84 किलो के थे, लेकिन जब वह बचाए गए तो उनका वजन केवल 37 किलो रह गया था।

रिकॉर्ड के अनुसार औसतन हर बचे हुए व्यक्ति का 29 किलो वजन कम हुआ था। हादसे के 72 दिनों बाद 16 लोगों का बचना भी किसी चमत्कार से कम नहीं माना जा रहा था। इस हादसे पर एक संग्रहालय भी बनाया गया है।

पंजाब केसरी से साभार

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