14 अप्रैल को भगवान महावीर स्वामी को जयंती है। सम्पूर्ण मानव समाज को अन्धकार से प्रकाश की ओर लाने वाले महापुरुष भगवान श्री महावीर स्वामी का जन्म 599 वर्ष पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि को बिहार में लिच्छिवी वंश में हुआ था l
उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशिला देवी था। जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी की जयंती चैत्र महीने की शुक्ल-त्रयोदशी को मनाई जाती है।
- भगवान महावीर का जन्म एक राजपरिवार में हुआ था। बचपन में भगवान महावीर स्वामी का नाम वर्द्धमान था। उनके परिवार में ऐश्वर्य, धन-संपदा की कोई कमी नहीं थी l वे मनचाहा उपभोग भी कर सकते थे, परन्तु युवावस्था में क़दम रखते ही वे संसार की माया-मोह, सुख-ऐश्वर्य और राज्य को छोड़कर सन्यासी हो गए।
- राजकुमार वर्द्धमान के माता-पिता जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। वर्द्धमान सबसे प्रेम का व्यवहार करते थे। उन्हें इस बात का अनुभव हो गया था, कि इन्द्रियों का सुख, विषय-वासनाओं का सुख, दूसरों को दुःख पहुँचा कर ही पाया जा सकता है। महावीर जी जब 28 वर्ष के थे तब इनके माता-पिता का देहान्त हो गया।
- तीस वर्ष की आयु मे महावीर स्वामी ने पूर्ण संयम रखकर अध्ययन-यात्रा पर निकल गये। अधिकांश समय वे ध्यान में ही मग्न रहते। हाथ में ही भोजन कर लेते थे l गृहस्थों से कोई चीज नहीं माँगते थे। धीरे-धीरे उन्होंने पूर्ण आत्मसाधना प्राप्त कर ली।
- इसके पश्चात साढ़े बारह वर्ष की कठिन तपस्या और साधना के बाद ऋजुबालुका नदी के किनारे महावीर स्वामी जी को शाल वृक्ष के नीचे वैशाख शुक्ल दशमी के दिन केवल ज्ञान- केवल दर्शन की उपलब्धि प्राप्त हुई l
- वर्द्धमान महावीर ने 12 साल तक मौन तपस्या की और तरह-तरह के कष्ट झेले। अन्त में उन्हें ‘केवलज्ञान’ प्राप्त हुआ। केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद जनकल्याण के लिए उपदेश देना शुरू किया। महावीर जी अर्धमागधी भाषा में उपदेश देने लगे ताकि जनता उसे भलीभाँति समझ सके।
- भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में अहिंसा, सत्य, और ब्रह्मचर्य पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। भगवान महावीर ने श्रमण और श्रमणी, श्रावक और श्राविका, सबको लेकर चतुर्विध संघ की स्थापना की। उनका मानना था कि जीवन का एक ही लक्ष्य होना चाहिए वह है ” समानता”। देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया।
- भगवान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को मोक्ष प्राप्त किया। इनके मोक्ष दिवस पर घर-घर दीपक जलाकर दीपावली मनाई जाती है।
- यदि हम भगवान महावीर के उपदेशों का सच्चे मन से पालन करने लगें और यह जान लें कि संसार के सभी छोटे-बड़े जीव हमारी ही तरह हैं, हमारी आत्मा का ही स्वरूप हैं। तो हमारा जीवन सफल हो जाए।
- जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, वर्द्धमान ने कठोर तप द्वारा अपनी समस्त इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर विजेता कहलाए l इन्द्रियों को जीतने के कारण उन्हें जितेन्द्रिय भी कहा जाता था। यह कठिन तप पराक्रम के समान माना गया, इसलिए वे ‘महावीर’ कहलाए। उन्हें ‘वीर’ ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ भी कहा जाता है।