सैंट्रल लंदन में ब्रिटेन की महारानी क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय के महल बकिंघम पैलेस के पड़ोस में कुछ पेलिकन यानी बड़े आकार वाले बत्तख जैसे पक्षी भी रहते हैं।
डक आईलैंड पर सेंट जेम्स पार्क में पेलिकनों को रखने की परम्परा का अपना एक इतिहास है। वर्ष 1684 में इसकी शुरूआत हुई जब रूसी राजदूत ने किंग चार्ल्स द्वितीय को पहले पेलिकन भेंट किए। पानी में रहना पसंद करने वाले इन पक्षियों को अब चिड़ियाघरों से यहां लाया जाता है।
फिलहाल यहां जो तीन पेलिकन हैं उनके नाम टिफैनी, गार्गी तथा आयला हैं। इस पार्क से पेलिकन केवल एक ही बार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दूर रहे जब उन्हें लंदन चिड़ियाघर में रखा गया था। युद्ध के बाद उन्हें यहां वापस लाया गया। आज ये पेलिकन पार्क के प्रमुख पर्यटक आकर्षण बन चुके हैं।
1975 से पार्क के जानवरों की देखभाल का काम देख रहे मैलकम केर बताते हैं, “हमारा एक पेलिकन विशेष रूप से भरोसेमंद था क्योंकि उसे लोगों ने ही पाला-पोसा था। उसे लगता था कि वह भी एक इंसान है। वह हमेशा पर्यटकों के बगल में बैंच पर बैठता था।” एक अन्य पेलिकन करीब स्थित रेस्तरां के खिसकने वाले दरवाजे से होकर टेबलों से खाना चुराया करता था।
मैलकम प्रतिदिन दो बजे पेलिकनों को खाने को मछलियां देते हैं। हर पक्षी प्रतिदिन 10 से 12 मछलियों का सेवन करता है जिन्हें इंगलैंड के आसपास समुद्र से पकड़ा जाता है। हर मछली में एक विटामिन की गोली भी डाली जाती है। ये पक्षी 55 वर्ष की आयु तक जी सकते हैं। हालांकि, गत दिनों एक पेलिकन दिल के रोग की वजह से 20 साल में ही चल बसा था।
पार्क में रहने वाली गार्गी नामक पेलिकन को 1996 की एक सर्द सुबह एक व्यक्ति ने अपने घर के बगीचे में पाया था। फिर उसे सेंट जेम्स पार्क के रूप में नया घर मिल गया । कोई नहीं जानता कि इससे पहले वह कहां से आया था। हो सकता है कि वह फ्रांस से इंगलिश चैनल को पार करके यहां पहुंचा हो।
ये सुंदर पक्षी इंगलैंड की कड़ाके की सर्दी को भी सरलता से झेलने में प्राकृतिक रूप से सक्षम हैं। सर्दी लगने पर जहां इंसानों के रौंगटे खड़े होने लगते हैं, वहीं पेलिकन के पंखों की जड़ों की ओर खून का दौरा बढ़ जाता है। इससे उनकी त्वचा एकदम लाल हो जाती है जो पंखों के नीचे गुलाबी रंग में चमकती प्रतीत होती है। इस तरह से उनका शरीर कड़ाके की ठंड में भी गर्म रहता है।
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