इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर से प्रारंभ हो रहा है, जो 14 अक्टूबर तक रहेगा। 14 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ इसका समापन होगा। पूरे वर्ष में 15 दिन होते हैं जिन्हें श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है। साल के ये 15 दिन पूरी तरह से पितरों को समर्पित होते हैं।
इस दौरान लोग अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं और उनके लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे अनुष्ठान करते हैं ताकि उनके पूर्वजों को शांति और संतुष्टि मिल सके।
अक्सर आपने पूर्वजों के सपने में आने की बात जरूर सुनी होगी। स्वप्न शास्त्र के मुताबिक, सपने में पितरों के आने की कोई ना कोई खास वजह जरूर होती है।
आज इस पोस्ट में हम जानेंगे सपने में पूर्वजों का दिखना क्या संकेत देता है, तो चलिए जानते हैं :-
सपने में कब और क्यों आते हैं पितृ?
ऐसी मान्यताएं हैं कि मृत्यु होने के बाद जब किसी इंसान की ख्वाहिश अधूरी रह जाती है तो वो अपने वंशजों को सपने में में दिखाई देने लगते हैं। ऐसा कहते हैं कि पितृ केवल उन्हीं लोगों को दिखाई देते हैं जो उनकी अधूरी इच्छाओं को पूरा कर पाने में योग्य हैं।
जब तक उनकी ये ख्वाहिश पूरी नहीं होती, तब तक उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है। हालांकि ऐसे सपनों का अर्थ पितरों की मुद्रा या भाव पर भी निर्भर करता है।
- यदि सपने में आपके पितृ आपको हंसते हुए या खुश दिखाई दें तो ये उनके प्रसन्न होने का संकेत होता है। पितृ जब किसी इंसान से खुश होते हैं तो उनके जीवन की सारी बाधाएं, सारी समस्याएं खुद-ब-खुद समाप्त होने लगती हैं। पितरों का आशीर्वाद मिलने से वे जीवन में बड़ी उपलब्धियां भी भी हासिल कर सकते हैं।
- यदि सपने में पितृ आपको बाल संवारते हुए दिखाई दें तो इसका भी एक खास मतलब होता है। इसका अर्थ है कि आप पर जो मुसीबत आने वाली थी, पितरों ने आपको उससे बचा लिया है। इसे एक शुभ संकेत की तरह समझें।
- यदि सपने में पितृ आपको शांत मुद्रा में दिखाई दे रहे हैं तो समझ लीजिए, वे आपसे पूर्णत: संतुष्ट हैं। ये कोई बड़ी खुशखबरी मिलने का भी संकेत हो सकता है। आपको संतान पक्ष से कोई शुभ समाचार मिल सकता है। पेशवर जीवन या करियर के मोर्चे पर कोई बड़ी सफलता भी आपके हाथ लग सकती है। यदि आपको सपने में रोते हुए पितृ दिखाई दे रहे हैं तो ये बहुत ही अशुभ संकेत है। ऐसा होने पर आपको सावधानी बरतनी चाहिए।
- पितरों का रोना आप पर किसी भारी संकट के आने का संकेत हो सकता है। इसे इग्नोर करने की बजाए पहचानने की जरूरत है। ऐसे में पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर्म और पिंडदान करना बहुत जरूरी हो जाता है।