पूर्व सोवियत संघ की रहने वाली ल्यूडमिला पवलिचेंको (Lyudmila Pavlichenko) एक ऐसा नाम है जिसे इतिहास के जानकर “लेडी डेथ” के नाम से जानते हैं। ल्यूडमिला इतिहास की सबसे खतरनाक महिला शूटर (Sniper) मानी जाती है। कहा जाता है कि उस ने जर्मन तानाशाह हिटलर की सेना की नाक में दम कर दिया था। ल्यूडमिला को सोवियत संघ के ‘हीरो‘ के तौर पर भी जाना जाता है।
ल्यूडमिला द्वितीय विश्व युद्ध के समय सोवियत संघ की रेड आर्मी में एक बेहतरीन स्नाइपर थीं, वो भी तब जब महिलाओं को आर्मी में नहीं रखा जाता था। लेकिन ल्यूडमिला ने अपने हुनर से न सिर्फ सोवियत संघ बल्कि दुनियाभर में नाम कमाया। वैसे वह एक शिक्षक बनना चाहती थी पर वो कहते है न किस्मत में जो लिखा होता है वही होता है।
ल्यूडमिला का जन्म 12 जुलाई 1916 को रूसी साम्राज्य में कीव गवर्नरेट के बिला त्सेरकवा में हुआ था। जब ल्यूडमिला 14 वर्ष की थीं, तब उनका परिवार कीव चला गया। बचपन से ही ल्यूडमिला पवलिचेंको एक टॉमबॉय की तरह रहती थी ल्यूडमिला एथलेटिक और बाकि स्पोर्ट्स गतिविधियों में बहुत अच्छी थी।
उनके पिता कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे, और उन्होंने रेड आर्मी में रेजिमेंटल कमिसार के रूप में काम किया था। उन्हें ऑर्डर ऑफ द रेड बैनर से सम्मानित भी किया गया था।
1932 में ल्यूडमिला की शादी एलेक्सी पवलिचेंको से हो गई उन्हें एक बेटा भी हुआ जिसका नाम था रोस्टिस्लाव। कुछ समय के बाद शादी टूट गई और ल्यूडमिला अपने माता-पिता के साथ रहने लगी।
हेनरी साकैडा की किताब ‘हीरोइन्स ऑफ द सोवियत यूनियन‘ के मुताबिक, पवलिचेंको पहले हथियारों की फैक्ट्री में काम करती थीं, लेकिन बाद में एक लड़के की वजह से वो स्नाइपर (निशानेबाज) बन गईं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका यात्रा के दौरान ल्यूडमिला ने एक बार बताया था, कि ‘मेरे पड़ोस में रहने वाला एक लड़का शूटिंग सीखता था और वह जब देखो शेख़ी मारता रहता था।
बस उसी वक्त मैंने ठान लिया कि जब एक लड़का शूटिंग कर सकता है तो एक लड़की भी कर सकती है। इसके लिए मैंने कड़ा अभ्यास किया। इसी अभ्यास का नतीजा था कि कुछ ही दिनों में ल्यूडमिला ने हथियार चलाने में महारत हासिल कर ली।
हालांकि साल 1942 में युद्ध के दौरान ल्यूडमिला बुरी तरह घायल हो गईं, जिसके बाद उन्हें रूस की राजधानी मॉस्को भेज दिया गया। वहां चोट से उबरने के बाद उन्होंने रेड आर्मी के दूसरे निशानेबाजों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया और फिर बाद में वह रेड आर्मी की प्रवक्ता भी बनीं।
1945 में युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने सोवियत नौसेना के मुख्यालय में भी काम किया। 10 अक्तूबर 1974 को 58 साल की उम्र में मॉस्को में ही उनकी स्ट्रोक से उनकी मृत्यु हो गई।