मालचा महल को विलायत महल के नाम से भी जाना जाता है। यह दिल्ली के चाणक्यपुरी क्षेत्र में स्थित है। इसका निर्माण 1325 में दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाले फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा किया गया था।
इसे अवध की “बेगम विलायत महल” के नाम पर “विलायत महल” के नाम से जाना जाने लगा जिन्होंने खुद को अवध के शाही परिवार का सदस्य होने का दावा किया था।
वैसे तो दिल्ली के कई हॉन्टेड स्थानों के बारे में आपने सुना होगा पर मालचा महल (Malcha Mahal) की स्टोरी औरों से काफी दिलचस्प है।
चाणक्यपुरी क्षेत्र स्थित मालचा महल में बेगम विलायत महल ने 10 सितंबर 1993 को, 62 वर्ष की आयु में आत्महत्या कर ली थी । कहा जाता है कि विलायत महल की आत्मा आज भी यहां भटकती है।
स्थानीय लोगो के अनुसार रात को यहां तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती हैं। जंगल के बीच स्थित इस महल तक जाने का रास्ता भी काफी डरावना है।
करीब 1 किलोमीटर तक जंगल के बीच से होकर यहां पहुंचना होता है। घना जंगल की वजह से यहां बंदर, सियार, गाय-बैल आदि जानवर घूमते मिल जाते हैं।
चाणक्यपुरी क्षेत्र स्थित मालचा महल में बेगम विलायत महल ने 10 सितंबर 1993 को, 62 वर्ष की आयु में आत्महत्या कर ली थी । कहा जाता है कि विलायत महल की आत्मा आज भी यहां भटकती है।
स्थानीय लोगो के अनुसार रात को यहां तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती हैं। जंगल के बीच स्थित इस महल तक जाने का रास्ता भी काफी डरावना है।
करीब 1 किलोमीटर तक जंगल के बीच से होकर यहां पहुंचना होता है। घना जंगल की वजह से यहां बंदर, सियार, गाय-बैल आदि जानवर घूमते मिल जाते हैं।
कौन थीं बेगम विलायत महल
इतिहास के अनुसार लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को अंग्रेजों ने 1856 में सत्ता से बेदखल कर दिया था। उनको कोलकाता की जेल में डाल दिया गया, जहां उन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी 26 साल गुजारे थे।
उसके बाद वाजिद अली का परिवार बिखर गया था। बेगम विलायत महल अपने को वाजिद अली की आखिरी वारिस बताती थीं। जिसको देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1971 में कश्मीर में उन्हें रहने के लिए एक बंगला दिलवाया था।
कहा जाता है कि बाद में वह बंगला जल गया और उसके बाद बेगम विलायत महल रहने के लिए दिल्ली आ गईं। उनके साथ उनकी बेटी राजकुमारी सकीना महल, बेटे राजकुमार अली रजा उर्फ साइरस, 7 नौकर और 13 खूंखार कुत्ते भी आए थे।
बेगम विलायत ने दिल्ली रेलवे स्टेशन के वीआईपी लाउंज में करीब 9 साल तक धरना दिया था। वह अपने लिए मुआवजे के तौर महल की मांग कर रही थीं। जब रेलवे के अफसर उनको हटाने आते, तो उनके खूंखार कुत्ते उन पर झपट पड़ते। कहा जात है वो अपने साथ सांप का ज़हर रखती थी और धमकी देतीं थी कि अगर कोई भी आगे आया, तो सांप का जहर पीकर वो जान दे देंगी।
अंततः तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा 1985 में बेगम विलायत महल को मालचा महल का मालिकाना हक दे दिया गया और इसके बाद वह यहां रहने लगीं।
महल में रहते हुए 10 सितंबर 1993 को बेगम विलायत महल ने 62 वर्ष की उम्र में आत्महत्या कर ली थी। उनका शव यहां 10 दिनों तक पड़ा रहा। बाद में उनके बेटे-बेटी ने उनके शव को महल परिसर में ही कब्र में दफना दिया।
24 जून 1994 को खजाने की खोज में कुछ लोग महल में घुस आए। बेगम विलायत महल के बेटे और बेटी को डर हो गया कहीं ये लोग उनकी मां की कब्र न खोद दें। फिर दोनों ने खुद उनकी कब्र को खोदकर उनके शरीर को जला दिया और उनकी राख को एक बर्तन में रख दिया। इस घटना के बाद दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने उनको रिवॉल्वर मुहैया कराई।
बेगम विलायत महल की मौत के बाद से ही बेगम सकीना महल और प्रिंस अली रजा अपने कुत्तों और नौकरों के साथ रहने लगे। एक-एक कर कुत्ते और नौकर मरते गए। कुछ कुत्तों को तो उन लोगों ने मार दिया, जो अक्सर महल से खजाना लूटने की फिराक में लगे रहते थे। लोगों ने उनके महल से काफी सोना चांदी भी चुरा लिया था।
बेगम सकीना महल और प्रिंस अली रजा बहुत पढ़े-लिखे थे। सकीना महल ने तो अपनी मां के ऊपर एक किताब भी लिखी थी। किताब का नाम है –‘प्रिंसेस विलायत महल : अनसीन प्रेजन्स’।
सकीना महल ने न्यूयॉर्क टाइम्स को इंटरव्यू देते हुए कहा था कि मुझे यह समझ आ गया है कि ये दुनिया कुछ नहीं है। ये क्रूर प्रकृति हमारी बर्बादी में खुश होती है। हम जिंदा लाशों के खानदान बन गए हैं। सकीना महल कहती थीं कि आम होना एक जुर्म ही नहीं है, बल्कि पाप है।
2017 को मालचा महल में प्रिंस अली रजा मृत पाए गए थे। इनके अंतिम संस्कार के लिए जब कोई नहीं आया तब कई दिन बाद दिल्ली पुलिस ने वक्फ बोर्ड की मदद से दिल्ली गेट के पास उनके शव को दफन करवा दिया था।
इससे कुछ महीने बाद बेगम सकीना महल की भी मृत्यु हो गई। इस तरह से नवाब के परिवार ने गुमनामी की जिंदगी जीते हुए दम तोड़ दिया। बेगम विलायत महल और उनके बेटे-बेटी अपने अतीत को भुला नहीं सके। वो मरने तक खुद को नवाब की तरह समझते रहे।
महल तक आने और मिलने को किसी को इजाजत नहीं थी। महल के गेट पर ही लिखा था कि यहां किसी बाहरी व्यक्ति को देखते ही गोली मार दी जाएगी। बेगम सकीना महल और प्रिंस अली रजा सिर्फ विदेशी पत्रकारों को छोड़कर किसी और से नहीं मिलते थे।