Sunday, December 22, 2024
13 C
Chandigarh

कैमरे ने बदली कूड़ा बीनने वाले लड़के की ज़िन्दगी

क्या आपने कभी सोचा है कि एक कैमरे ने किसी की ज़िन्दगी बदल दी. 1999 में 11 वर्षीय एक लड़का पश्चिम बंगाल के पुरूलिया में अपने घर से भाग कर नई दिल्ली पहुंचा, जहाँ पेट भरने की मजबूरी में रेलवे स्टेशन पर कूडा बीनने का काम करने लगा. कुछ दिन पूर्व वही कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री द्वारा आयोजित एक सम्मलेन में मेहमान वक्ता के रूप में उपस्थित था. वहां मौजूद उद्योगपतियों कॉर्पोरेट घरानों के दिग्गजों तथा अन्य प्रमुख लोगों के बीच उसने जीवन की अपनी अनूठी कहानी सुनाई.

एक वक्त ट्रेनों की पैंट्री कारों से बचा बचा खाना चुराने तथा बेघरों के लिए बने आश्रय स्थलों के ठंडे फर्श पर सोकर दिन गुजारने वाला वह लड़का विक्की रॉय आज अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डाक्यूमेन्ट्री फोटोग्राफर है. दिसम्बर में ही दिल्ली में उसकी फ़ोटोज़ की ताजा प्रदर्शनी लगी थी. इस प्रदर्शनी में पेश की गई उसकी फ़ोटोज़ दिखा रही थी कि किस तरह से विकास के नाम पर खूबसूरत पहाड़ों, नदियों तथा हिमाचल की वादियों को बर्बाद किया जा रहा है.

विक्की के पिता एक दर्जी थे जिनके लिए अपनी नाममात्र आय से 7 बच्चों को पालना संभव नहीं था. वह मुश्किल से ढाई वर्ष का था, जब उसे नाना नानी के घर भेज दिया गया था.29 वर्षीय विक्की बताता है,”मेरे नाना तथा मामा बोकारो स्टील प्लांट में काम करते थे. मेरे माता पिता ने सोचा कि उनके पास रह कर कम से कम मै स्कूल की पढाई तो पूरी कर ही लूँगा.” परंतु नए घर में अक्सर होने वाली पिटाई से वह बेहद परेशान रहने लगा. उसके अनुसार “एक रात उसने कुछ पैसे चुराए और दिल्ली को जाने वाली ट्रेन में चढ़ गया.

मैंने कुछ फ़िल्में देखी थी जिनके प्रभाव में मैंने सोचा कि एक बड़े शहर में जाने पर मेरी ज़िन्दगी बदल जाएगी.”नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कूड़ा बीनने वालों के समूह के साथ उसने 6 महीने गुजारे. कुछ महीने बाद अजमेर गेट के एक ढाबे पर वह छोटे मोटे काम करने लगा क्यूंकि रेलवे स्टेशन पर बड़े खतरे थे. वह कहते है,”स्थानीय ठग और पुलिस अक्सर हमे पीटाकरते थे. हम बच्चों में आपस में मार पिटाई भी आम बात थी, जो छोटी सी बात पर भी ब्लेड से हमला कर देते थे.”

सन 2000 में एक सामाजिक कार्यकर्ता ने ढाबे पर विक्की को देखा उसे सलाम बालक ट्रस्ट के पास ले गया. 10वीं कक्षा की परीक्षा देने के बाद कैमरे ने उसे नई ज़िन्दगी दी.उसके टीचर ने उसे वोकेशनल कोर्स करने की सलाह दी क्यूंकि उसे केवल 48 प्रतिशत अंक मिले थे. उन्होंने उसे टी.वी मैकेनिक बनने को कहा परन्तु उसने फोटोग्राफी को चुना. उसका पहला कैमरा था, कोडक केबी 10 जिसकी उस वक़्त कीमत 500 रुपये से कम थी. 18 वर्ष का होने पर स्वंयसेवी संस्था ने उसे पोर्ट्रेट फोटोग्राफर अनय मान के असिस्टेंट की नौकरी दिलवा दी. विक्की के अनुसार अनय की देखरेख में फोटोग्राफी सीखना उसके साथ होने वाली सबसे अच्छी बात रही.

सन 2008 में अमेरिका की मेबैक फाउंडेशनने वर्ल्ड ट्रेड टावर के पुन्रनिर्माण की डॉक्यूमेंटेशन करने के लिए विक्की का चयन किया. इसके बाद सन 2014 में उसे एम.आई.टी इंडिया लैब फेलोशिप प्रदान किया. अपनी प्रदर्शनियों के बीच विक्की विश्व स्वस्थ्य संगठन तथा unicef के साथ मिल कर काम करने के अलावा बतौर पैशेवर फोटोग्राफर भी काम करता है. वक़्त मिलने पर वह परिवार से मिलने पुरूलिया जाता है. विक्की खुद को बचाने वाली स्वंयसेवी संस्था की फंड जुटाने में भी मदद करता है. उसने कहा,”मुझे अच्छे लोग मिले जिनकी वजह से सब अपने आप होता गया”

यह भी पढ़ें:-

सेहत के लिए खतरनाक हो सकती है “वाटर डाइटिंग”

 

Related Articles

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

15,988FansLike
0FollowersFollow
110FollowersFollow
- Advertisement -

MOST POPULAR