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800 साल पुराने इस महादेव मंदिर में सूर्य की किरणें करती हैं शिवजी का अभिषेक

हमारे देश में अनेक शिव मंदिर हैं और सभी का अलग-अलग महत्व भी है। ऐसा ही एक मंदिर दक्षिण गुजरात के वलसाड जिले में अब्रामा गांव में स्थित है। इसे तड़केश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाता है।

मान्यता है कि ये मंदिर करीब 800 साल पुराना है। भोलेनाथ के इस मंदिर पर शिखर का निर्माण संभव नहीं है, इसलिए सूर्य की किरणें सीधे शिवलिंग का अभिषेक करती हैं। आज हम इस पोस्ट के माध्यम से जानेगें इस आलौकिक मंदिर के बारे में तो चलिए जानते हैं :-

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1994 में हुआ था पुनर्निर्माण

1994 में मंदिर का पुनर्निर्माण कर 20 फुट के गोलाकार आकृति में खुले शिखर में किया गया। शिव भक्त-उपासक हर समय यहां दर्शन कर धर्मलाभ अर्जित करने आते रहते हैं। श्रावण माह व महाशिव रात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है।

पौराणिक मान्यता

800 वर्ष पुराने इस अलौकिक मंदिर के बारे में उल्लेख मिलता है कि एक ग्वाले ने पाया कि उसकी गाय हर दिन झूड से अलग होकर घने जंगल में जाकर एक जगह खड़ी होकर अपने आप दूध की धारा प्रवाहित करती है।

ग्वाले ने अब्रामा गांव लौटकर ग्रामीणों को उसकी सफेद गाय द्वारा घने वन में एक पावन स्थल पर स्वत: दुग्धाभिषेक की बात बताई। शिव भक्त ग्रामीणों ने वहां जाकर देखा तो पवित्र स्थल के गर्भ में एक पावन शिला विराजमान थी फिर शिव भक्त ग्वाले ने हर दिन घने वन में जाकर शिला अभिषेक-पूजन शुरू कर दिया।

ग्वाले की अटूट श्रद्धा पर शिवजी प्रसन्न हुए। शिव जी ने ग्वाले को स्वप्न दिया और आदेश दिया कि घनघोर वन में आकर तुम्हारी सेवा से मैं प्रसन्न हूँ। अब मुझे यहां से दूर किसी पावन जगह ले जाकर स्थापित करो। ग्वाले ने ग्रामीणों को स्वप्न में मिले आदेश की बात बताई।

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ग्वाले की बात सुनकर सारे शिव भक्त ग्रामीण वन में गए। पावन स्थल पर ग्वाले की देख-रेख में खुदाई की तो यह शिला सात फुट की शिवलिंग स्वरूप में निकली। फिर ग्रामीणों ने पावन शिला को वर्तमान तड़केश्वर मंदिर में विधि-विधान से प्रतिष्ठित किया। साथ ही चारों ओर दीवार बना कर ऊपर छप्पर डाला।

ग्रामीणों ने देखा कि कुछ ही वक्त में यह छप्पर स्वत: ही सुलग कर स्वाहा हो गया। ऐसा बार-बार होता गया, ग्रामीण बार-बार प्रयास करते रहे। ग्वाले को भगवान ने फिर स्वप्न में बताया मैं तड़केश्वर महादेव हूँ।

मेरे ऊपर कोई छप्पर-आवरण न बनाएं। फिर ग्रामीणों ने शिव के आदेशानुसार शिवलिंग का मंदिर बनवाया लेकिन शिखर वाला हिस्सा खुला रखा ताकि सूर्य की किरणें हमेशा शिवलिंग पर अभिषेक करती रहें। तड़के का अभिप्राय धूप है जो यहां शिव जी को प्रिय है।

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