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गुब्बारों की दैत्य से प्यार तक की कहानी

मेले और बाज़ार में रंग बिरंगे गुब्बारों (Balloon) को देखकर ऐसा लगता है कि, केवल बच्चो के खेलने भर का एक खिलौना हैl जब्कि गुब्बारों का इतिहास जाने तो पता चलता है कि गुब्बारों से लड़ाई भी लड़ी गयी है | गुब्बारों की खोज का किस्सा भी अत्यधिक रोचक है | दरअसल गुब्बारों की शुरुवात 17 वीं  शताब्दी में फ़्रांस में दो भाई रहते थे, एक का नाम स्टीफन और दुसरे का नाम जोसेफ था | दोनों फ़्रांस के एनोएन नगर में रहते थे | दोनों भाइयो की इच्छा थी कि उड़ने की कला सीखी जाए | उन्होंने सोचा यदि कागज का एक थैला बनाकर उसमे भाप भर दी जाए तो वह हवा में तैरेगा|

गुब्बारे का अविष्कार

5 जून 1783 का दिन था | कागज का 10 मीटर व्यास का एक खोखला गोला बनाकर इसे एक खम्भे के उपर बाँध दिया और नीचे भूसा जलाया गया | भूसे के जलने से धुँआ बना वह कागज के खोखले गोले में समाता गया | धुँआ भरने से गोला हल्का होने लगा और कुछ ही मिनटों में 1800 मीटर की उचाई पर जा पहुंचा | मगर वह जल्दी ही वापस नीचे गिरने लगा |

हाइड्रोजन गैस का इस्तेमाल

[adinserter block=”33″]इस प्रयोग की खबर फ़्रांस के ही एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक चार्ल्स को लगी | चार्ल्स ने इस प्रयोग को दोहराने का निश्चय किया | चार्ल्स को पता था कि धुएं के बदले यदि हाइड्रोजन गैस भरी जाये तो गुब्बारा ज्यादा उपर तक जाएगा क्योंकि हाइड्रोजन गैस हवा से साढ़े चौदह गुना हल्की होती हैl इसलिए चार्ल्स ने धुएं के बदले हाइड्रोजन गैस का इस्तेमाल किया |गुब्बारा उड़ाने के लिए चंदा इकट्ठा किया | अपने साथियो की मदद से उसने 4 मीटर व्यास का रेशम का एक गुब्बारा बनाया और अंदर से उस पर गोंद पोत दिया ताकि गैस बाहर न निकल जाए | उस समय हाइड्रोजन गैस लोहे पर गंधक के अम्ल की क्रिया से बनाई जाती थी | 23 अगस्त 1783 को एक दिन पूर्व रेशम के गोले को 3 किमी दूर एक मैदान में ले जाया गया | वहा उसे देखने के लिए लोगो की भीड़ इकट्ठी हो गयी थी | लोग रहस्यमयी निगाहों से गुब्बारे को देख रहे थे |

शाम पांच बजे गुब्बारा उड़ाया गया | गुब्बारा काफी हल्का था | दो मिनट से भी कम समय में वह 100 मीटर की उंचाई पर उड़ गया | देखते देखते बरसात होने लगी और गुब्बारा एक बादल में ओझल हो गया | ऐसा अनुमान लगाया कि गुब्बारा 6000 मीटर की ऊँचाई तक गया होगा | गुब्बारा पेरिस से 25 किमी दूर एक खेत में जा गिरा | गुब्बारे को गिरते हुए दो किसानों देखा, जिससे देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ |

गुब्बारे को देखकर लोगो के  मन का वेहम

[adinserter block=”33″]उस समय गुब्बारा उडाना किसी जादू से कम नही था वे गुब्बारे को आसमान से उतरने वाला कोई दैत्य समझ बैठे | वो डर के मारे उसके नजदीक नही जा रहे थे | उन्होंने गुब्बारे पर दूर से पत्थर मारने शुरू कर दिए | नतीजा यह हुआ कि गुब्बारा फट गया | फिर उनमे से एक साहसी किसान उसके पास गया और धीरे से फटे गुब्बारे को एक घोड़े की पुंछ से बांधकर गाँव की ओर ले गया | गाँव के पादरी के पास जाकर किसान ने प्रार्थना की, कि वह उन्हें इस जानवर के बारे में जानकारी दी | पादरी ने देखा कि गुब्बारे के साथ चमड़े के एक थैले में कागज पर चार्ल्स नाम लिखा था और एक सूचना लिखी थी जिस किसी को भी गुब्बारा मिले ,वह इसको लिखे हुए पते पर पहुँचा दे |दोनों किसान बेहद खुश हुए |

गुबारों से हुई लड़ाई

जैसे जैसे गुब्बारों का प्रचलन बढ़ने लगा, वैसे वैसे उसके साथ अनेक प्रयोग किये जाने लगे | सन 1808 में दो लोगों ने गुब्बारे के जरिये हवा में लड़ाई लड़ी | ये दो आदमी एम.डी.ग्राडपर और एम.एल.पिक थे | दोनों के बीच एक अभिनेत्री को लेकर लड़ाई चल रही थी | दोनों ने गुब्बारों द्वारा युद्ध करने का फैसला किया | इस युद्ध में पिक और उसके सहायक मारे गये और ग्रांडपर पेरिस से 30 किमी दूर जाकर उतरे |

चार्ल्स की जान का खतरा

वैज्ञानिक चार्ल्स की जान का खतरा उसके द्वारा उडाये गये गुब्बारे की घटना के कारण टल गया था | वास्तव में चार्ल्स राजा के यहाँ नौकरी करता था | राजा को दुश्मनों ने जेल में डाल दिया ,इसलिए चार्ल्स को भी पकड़ लिया थाl राजा को मौत की सजा सुना दी गयी थी लेकिन चार्ल्स के गुब्ब्बारे वाली बात बतलाई तो कुछ लोगो ने उन्हें पहचान लिया और उनको बचा लिया गया |

गर्म हवा के गुब्बारे का आविष्कार

[adinserter block=”33″]फ़्रांस में दो वैज्ञानिक 1804 में अनेक वैज्ञानिक यंत्रो के साथ एक गुब्बारे से उड़े | वे यह जानना चाहते थे कि क्या चुम्बकीय सुई काफी उंचाई पर भी वैसा ही व्यवहार करती है जैसे पृथ्वी पर करती है ? इस उड़ान में एक घटना घटी जिसने एक गडरिया लडकी को लगा कि यह कोई चमत्कार है गुब्बारा 2100 मीटर की ऊंचाई तक उड़ा | आज गुब्बारों का प्रयोग प्रचार माध्यम के रूप में किया जाता है |गुब्बारे पर विज्ञापन छापकर उसको हवा में छोड़ दिया जाता है |

एक वक़्त था जब लोग इस गुब्बारे से डर रहे थे और आज लोग इन गुबारों को अपनी हर ख़ुशी में शामिल करते है. यहां तक की अब तो गुबारों को प्रेम और ख़ुशी का प्रतीक माना जाता है।

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