चैत्र नवरात्रि हो या शारदीय नवरात्रि देवी माँ की पूजा तब तक पूरी नहीं मानी जाती जब तक कन्या पूजन न हो जाए। नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्त्व होता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके कुछ नियम भी होते हैं जिनका विशेष ध्यान रखना होता है।
मान्यता है कि अगर इन नियमों पालन किया जाए तो देवी माँ अत्यंत प्रसन्न होती हैं। तो आइए जानते हैं कन्या पूजन का महत्त्व और नियम?

कन्या पूजन का महत्व
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देवी स्वरूपा की पूजा
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नवरात्रि के आठवें या नवें दिन (अष्टमी या नवमी) कन्याओं को माता दुर्गा का प्रतीक मानकर पूजा जाता है।
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प्रत्येक कन्या में देवी दुर्गा के नौ रूपों का आभास होता है।
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सांस्कृतिक और धार्मिक संदेश
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कन्या पूजन यह सिखाता है कि नारी शक्ति का सम्मान समाज की मजबूती के लिए आवश्यक है।
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यह हमें अहंकार और लालच से दूर, सादगी और सेवा भाव अपनाने की प्रेरणा देता है।
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सकारात्मक ऊर्जा का संचार
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माना जाता है कि कन्याओं को भोजन, मिठाई और उपहार देने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-शांति बनी रहती है।
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नियम
कन्या पूजन षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी या नवमी में किसी भी दिन किया जाता है। ख्याल रखें कि कन्याओं की उम्र 2 से 7 साल के बीच होनी चाहिए। कन्या पूजन में बालक को जरूर आमंत्रित करना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा न करने पर कन्या पूजन पूर्ण नहीं होता।
सबसे पहले कन्याओं के पैर दूध या फिर पानी से अपने हाथों से साफ करें। इसके बाद उनके पैर छूकर उन्हें साफ स्थान पर बैठाएं। कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम का तिलक लगाएं। कन्याओं को खीर-पूड़ी का प्रसाद खिलाएं।
नमकीन में चना भी खिला सकते हैं कन्याओं को भोजन कराने के बाद उन्हें दान में रूमाल, लाल चुनरी, फल और खिलौने देकर उनके चरण छुकर आर्शीवाद लें। इसके बाद कन्याओं को खुशी-खुशी विदा करें। ऐसा करने से मातारानी की कृपा और उनका आर्शीवाद आप के ऊपर हमेशा बना रहेगा।
ध्यान रखने योग्य बातें
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साफ-सफाई और स्वच्छता
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कन्या पूजन में उपयोग होने वाले थाल, कपड़े और भोजन पूरी तरह स्वच्छ होने चाहिए।
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सादगी और संयम
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पूजन में महंगे उपहार और भव्य भोजन की तुलना में सादगी और हृदय की भक्ति को महत्व दें।
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सुरक्षा का ध्यान
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बच्चों और कन्याओं की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें।
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भीड़ वाले आयोजन में अनुशासन बनाए रखें।
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उचित समय और दिन
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अष्टमी या नवमी का दिन सबसे शुभ माना जाता है।
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समय सुबह या दोपहर के पहले भाग में करें।
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पौराणिक कथा
मान्यता है कि माता के भक्त पंडित श्रीधर की कोई संतान नहीं थी। एक दिन उन्होंने नवरात्र में कुंवारी कन्याओं को आमंत्रित किया। इसी बीच मां वैष्णों कन्याओं के बीच आकर बैठ गईं।
सभी कन्याएं तो भोजन करके और दक्षिणा लेकर चली गईं लेकिन मातारानी वहीं बैठी रहीं। उन्होंने पंडित श्रीधर से कहा कि तुम एक भंडारा रखो और उसमें पूरे गांव को आमंत्रित करो।
इसी भंडारे में भैरोनाथ भी आया और वहीं उसके अंत का आरंभ हुआ। माँ ने भैरोनाथ का अंत करने के साथ ही उसका उद्धार किया।
निष्कर्ष
कन्या पूजन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमें समानता, सेवा और नारी शक्ति का सम्मान सिखाता है। नवरात्रि में इस पूजन के माध्यम से हम अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सामूहिक सौहार्द और भक्ति की भावना बढ़ा सकते हैं।

