भारत के मेघालय राज्य में स्थित कांगथांग गांव एक ऐसा गांव है, जहां लोग एक दूसरे को नाम से नहीं बल्कि सीटी बजाकर बुलाते हैं। इस लिए इस गांव को व्हिसलिंग गांव के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर लोग एक दुसरे को बुलाने के लिए अलग-अलग स्टाइल में व्हिसल करते हैं। इस गांव में बहुत सारी ट्राइब्स के लोग रहते हैं|
जिस तरह से किसी खास काम के पीछे कोई कहानी या तथ्य जुड़ा होता है, ठीक उसी प्रकार यहां भी सीटी को प्रयोग करने के पीछे एक दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है। माना जाता है, कि सीटी बजाकर बात करने की परंपरा किसी पुरानी घटना से जुड़ी हुई है। कहानी के अनुसार गांव का एक आदमी दुश्मनों से अपनी जान बचाकर भागता हुआ, किसी पेड़ पर चढ़ गया था। मदद के लिए उसने अपने दोस्तों को बुलाने के लिए किसी जंगली आवाज का प्रयोग किया ताकि उसकी आवाज दुश्मन न पहचान सकें। जिसके बाद उसके दोस्तों ने उसकी जान को उन दुश्मनों से बचा लिया था, और इस घटना के बाद ही गांव में सीटी बजाकर बात करने की परंपरा शुरू हो गई थी |
इस गांव मे हर शख्स को दो नाम दिए जाते है, पहला नाम हमारी तरह ही साधारण नाम होता है और दूसरा व्हिसलिंग ट्यून नाम होता है । गांव के लोग साधारण नाम से बुलाने की बजाय व्हिसलिंग ट्यून नाम से ही एक दुसरे को
बुलाते हैं। इस लिए हर शख्स की व्हिसलिंग ट्यून अलग-अलग होती है ,जो की उनके नाम और उनकी पहचान का काम करती है। गांव में जब बच्चा पैदा होता है, तो यह धुन उसको उसकी मां देती है फिर बच्चा धीरे-धीरे अपनी धुन पहचानने लग जाता है।
कांगथांग गांव में करीब 109 परिवार के 627 लोग रहते हैं , यानी कि इस गांव में कुल 627 धुन हैं. इस गांव मे रहने वाले लोग इस धुन को प्रकृतिक ढंग से बनाते हैं. खासकर नई धुन को चिड़ियों की आवाज से ही बनाया जाता है|
जब भी गांव के लोग कोई भी धुन बजाते हैं, तो वो धुन दूर तक गूंजती है, कयोंकि कांगथांग गांव चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है। मतलब की गांव के लोगों का यह बातचीत करने का तरीका भी वैज्ञानिक रूप से सही है। वक्त बदलने के साथ-साथ यहां के लोग भी बदलने लगे हैं। अब यह लोग अपने धुन वाले नाम को मोबाइल पर रिकॉर्ड कर उसे रिंगटोन भी बना लेते हैं।
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