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“टपकेश्वर मंदिर” जो बनाया गया है पथरीली चट्टानों को काटकर

टपकेश्वर मंदिर को टपकेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

यह मंदिर टोंस नदी के तट पर एक प्राकृतिक गुफा के शीर्ष पर बना है। गुफा में एक प्राकृतिक शिवलिंग है, जो स्थानीय लोगों के लिए श्रद्धा का स्थान है। बताया जाता है कि टपकेश्वर मंदिर 6,000 साल पुराना है।

ऐतिहासिक टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर गढ़ी कैंट में स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए ढलान में जाती लगभग 100-125 सीढ़ियों को उतरना पड़ता है, तब जाकर मंदिर का द्वार नजर आता है।

Tapkeshwar-Mahadev-Temple-Drona-Cave-Dehradun
Tapkeshwar-Mahadev-Temple-Drona-Cave-Dehradun

यह मंदिर पथरीली चट्टानों को काट कर मंदिर बनाया गया है। यहां कोई मानव निर्मित दीवार नहीं, छत नहीं अपितु चट्टानों को इतनी कारीगरी से काटा गया है कि मनुष्य के खड़े होने लायक ऊंचाई ही मिलती है।

महाभारत काल से जुड़ा इतिहास

कहा जाता है कि इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। हिंदू महाकाव्य महाभारत में पांडवों और कौरवों के शिक्षक द्रोणाचार्य यहाँ निवास करते थे। उनके नाम पर इस गुफा को द्रोण गुफा भी कहा जाता है।

कहा जाता है कि जब महर्षि द्रोण हिमालय की ओर तपस्या करने के लिए निकले तो ऋषिकेश में एक ऋषि ने उन्हें तपेश्वर में भगवान भोले की उपासना करने की सलाह दी।

गुरु द्रोण अपनी पत्नी कृपि के साथ तपेश्वर आ गए। गुरु द्रोण जहां शिव से शिक्षा लेने के लिए तपस्या करते थे, वहीं उनकी पत्नी कृपि पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए जप करती थीं।

Tapkeshwar Temple dehradun uttrakhand
Tapkeshwar Temple dehradun uttrakhand

भगवान शिव प्रसन्न हुए और कृपि को अश्वत्थामा जैसा पुत्र प्राप्त हुआ, वहीं द्रोण को शिक्षा देने के लिए भगवान रोज आने लगे। मां कृपि को दूध नहीं होता था, इसलिए वो अश्वत्थामा को पानी पिलाती थीं।

मां के दूध से वंचित अश्वत्थामा को मालूम ही नहीं था कि श्वेत रंग का यह तरल पदार्थ क्या है। अपने अन्य बाल सखाओं को दूध पीते देखकर अश्वत्थामा भी अपनी मां से दूध की मांग करते थे।

दिन प्रतिदिन अश्वत्थामा के बढ़ते हठ के कारण महर्षि द्रोण भी चिंतित रहने लगे। एक दिन महर्षि द्रोण अपने गुरु भाई पांचाल नरेश राजा द्रुपद के पास गए। राजा द्रुपद धन वैभव के मद में चूर थे। वे गुरु द्रोण के आगमन पर प्रसन्न तो हुए लेकिन उन्हें द्रोण के मुख से भगवान शिव की महिमा पसंद नहीं आई।

गुरु द्रोण ने उनसे अपने पुत्र के लिए एक गाय की मांग की। राजसी घमंड में चूर पांचाल नरेश द्रुपद ने कहा कि अपने शिव से गाय मांगों, मेरे पास तुम्हारे लिए गाय नहीं है।

यह बात महर्षि द्रोण को चुभ गई। वो वापस लौटे और बालक अश्वत्थामा को दूध के लिए शिव की आराधना करने को कहा। अश्वत्थामा ने छह माह तक शिवलिंग के सामने बैठकर भगवान की कठोर आराधना शुरू कर दी तभी एक दिन अचानक श्वेत तरल पदार्थ की धारा शिवलिंग के ऊपर गिरने लगी।

यह देखकर अश्वत्थामा ने अपने माता पिता को इस आश्चर्य के बारे में बताया। महर्षि द्रोण ने जब देखा तो समझ गए कि यह सब भगवान शिव की महिमा है। फिर एक दिन भगवान भोलेनाथ उन्हें दर्शन देकर बोले की अब अश्वत्थामा को दूध के लिए व्याकुल नहीं होना पड़ेगा।

Tapkeshwar mahadev Temple
Tapkeshwar mahadev Temple

उसी धारा से अश्वत्थामा ने पहली बार दूध का स्वाद चखा। उस समय जो भी भक्त भोले के दर्शन करने तपेश्वर आता था, वो प्रसाद के रूप में दूध प्राप्त करता था।

कहते हैं कि यह सिलसिला कलयुग तक चलता रहा। लेकिन बाद में भगवान् के इस प्रसाद का अनादर होने लगा। यह देखकर शिवशंकर ने दूध को पानी में तब्दील कर दिया, और धीर धीरे यह पानी बूंद बनकर शिवलिंग पर टपकने लगा।

आज तक यह ज्ञात नहीं हुआ कि यह पानी कहां से शिवलिंग के ऊपर टपकता है। पानी टपकने के कारण कलयुग में यह मंदिर भगवान टपकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

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