गणतंत्र दिवस के मौक़े पर इस बार देश के 18 बहादुर बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. इन 18 बच्चों में 11 लड़के हैं और 7 लड़कियां हैं. तीन बच्चों को मरणोपरांत ये राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार दिया गया है.
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार पांच श्रेणियों में दिए जाते हैं, जो इस प्रकार हैं, 1. भारत पुरस्कार, 2. गीता चोपड़ा पुरस्कार, 3. संजय चोपड़ा पुरस्कार, 4. बापू गैधानी पुरस्कार, 5. सामान्य राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार।
नाजिया: बच्ची जो जुए-सट्टे के अवैध व्यवसाय के खिलाफ खड़ी हुई
आगरा के मंटोला की रहने वाली 16 साल की नाज़िया को अवैध जुए और सट्टेबाज़ी के अड्डों को बंद कराने के लिए सबसे ऊंचा राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार भारत अवार्ड दिया गया है. नाजिया ने जुए और सट्टे के अवैध व्यवसाय के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने अपने घर के पड़ोस में कई दशकों से चल रहे जुए और सट्टे के अवैध व्यवसाय के खिलाफ आवाज उठाई और भयावह अंजाम की संभावना का निर्भय होकर सामना किया। उन्हें धमकियां भी मिलीं. इसके बावजूद उन्होंने सबूत जुटाए और 13 जुलाई 2016 को पुलिस के सामने पूरा मामले का खुलासा किया।
नाजिया की शिकायत के बाद पुलिस ने कार्रवाई की जिसमें 4 लोगों की गिरफ्तारी हुई और सट्टे का अवैध व्यवसाय बंद हो गया। इस पूरे घटनाक्रम के बाद नाजिया का घर से निकलना मुश्किल हो गया। उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों को मामले की जानकारी दी, लेकिन उत्पीड़न जारी रहा। आखिर में उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री से मदद मांगी। जिसके बाद बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई। साथ ही नाजिया की सुरक्षा भी सुनिश्चित की गई। नाज़िया ने लड़की होते हुए अद्वितीय पराक्रम से दूसरों के लिए आवाज उठाई और एक दुर्लभ मिसाल पेश की।
करनबीर सिंह: नाले में गिरी स्कूल बस, 15 बच्चों को बचाया
पंजाब के करनबीर सिंह ने स्कूल बस के नाले में गिर जाने पर अपनी जान की परवाह किए बगैर करीब 15 बच्चों को बचाया, इसके लिए उन्हें संजय चोपड़ा अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। करनबीर सिंह की उम्र महज 16 साल और 4 महीने थी, जब उन्होंने बहादुरी का यह काम किया। पूरा मामला 20 सितम्बर, 2016 का है जब कुछ बच्चे अपनी स्कूल की बस में वापिस लौट रहे थे। अटारी गाँव के पास एक पुल को पार करते समय, बस दीवार से टकराकर नाले में जा गिरी। बस में पानी भर गया और बच्चों का दम घुटने लगा। इसी दौरान करनबीर सिंह ने बहादुरीपूर्वक बस का दरवाजा तोड़ा और बच्चों को बाहर निकालना शुरू किया। करनबीर ने 15 बच्चों का जीवन बचाया। हालांकि 7 बच्चों को बचाया नहीं जा सका। करनबीर सिंह खुद भी घायल हो गया लेकिन उसने अपने अदम्य साहस से कई बच्चों की जान बचाई।
बेट्श्वाजॉन पेनलांग: घर में आग, 3 साल के भाई को बचाया
मेघालय के 12 साल, 11 महीने के बेट्श्वाजॉन पेनलांग को उनकी बहादुरी के लिए बापू गैधानी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। घटना 23 अक्तूबर, 2016 की है जब बेट्श्वाजॉन और उसका तीन वर्षीय भाई आरबियस घर पर अकेले थे। इसी दौरान उनकी झोपड़ी में आग लग गई। बेट्श्वाजॉन उस समय घर से बाहर आया हुआ था, उसने जैसे ही देखा कि झोपड़ी में आग लग गई है वह तुरंत अपनी अपने भाई को बचाने के लिए आग की लपटों के बीच झोपड़ी में गया। खतरे और दर्द को सहते हुए बेट्श्वाजॉन ने अपने तीन साल के भाई को सुरक्षित बाहर निकाला। हालांकि इसमें उसका दाहिना हाथ और चेहरा बुरी तरह से जल गया और हाथ की उंगलियां विकृत हो गईं।
ममता दलाई: मगरमच्छ से 7 साल की बच्ची की बचाई जान
ओडिशा की 6 साल 8 महीने की ममता दलाई को उनकी बहादुरी के लिए बापू गैधानी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। घटना 6 अप्रैल 2017 को ओडिशा के केन्द्रापाड़ा जिले की है। ममता दलाई और आसन्ती दलाई (7 वर्ष) नजदीक के तालाब में स्नान के लिए गई हुई थीं। उस तालाब में पास की नदी से एक मगरमच्छ आया हुआ था। जिसने अचानक ही आसन्ती पर हमला कर दिया। पांच फुट लम्बे मगरमच्छ ने आसन्ती का दाहिना हाथ अपने जबड़ों में जकड़ लिया और तालाब में खींचने लगा। इस दौरान ममता ने बिना डरे आसन्ती हाथ मगरमच्छ के मुंह से खींचने की कोशिश की। काफी मशक्कत के बाद ममता कामयाब हुई, उन्होंने आसन्ती को सुरक्षित बचा लिया।
सेबासटियन विनसेंट: तेज रफ्तार ट्रेन की चपेट में आने से बचाई दोस्त की जान
केरल के 12 साल 3 महीने के सेबासटियन विनसेंट ने अपनी बहादुरी से अपने दोस्त की जान बचाई। उनके इस कारनामे की वजह से उन्हें बापू गैधानी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। घटना 19 जुलाई 2016 की सुबह की है जब सेबासटियन विनसेन्ट और उसके मित्र साइकिल से अपने स्कूल जा रहे थे। जब वे सब एक रेलवे क्रासिंग को पार कर रहे थे तब उसके एक दोस्त अभिजीत का जूता रेलवे ट्रैक में फंस गया। इस कारण वह साइकिल और स्कूल बैग के साथ ट्रैक पर गिर गया। इसी दौरान एक रेलगाड़ी तेज रफ्तार से उनकी आ रही थी। खतरे को देखते हुए सेबासटियन ने तुरन्त अपने दोस्त को
बचाने की कोशिश की। सेबासटियन ने शीघ्रता दिखाते हुए अभिजीत को पूरी ताकत से ट्रैक से दूर धकेला और स्वयं भी रेलगाड़ी आने से तुरन्त पहले ट्रैक से दूर जाकर गिरा। इस घटना में सेबासटियन के दाहिने हाथ की हड्डी टूट गयी, हालांकि अपनी दोस्त की जान बचाने में कामयाब रहा।
लक्ष्मी देवी: तीन अपराधियों को पकड़वाने में की मदद
पूरा मामला 02 अगस्त 2016 की रात करीब आठ बजे का है जब रायपुर की 15 साल 11 महीने की लक्ष्मी यादव और उसके एक मित्र गणेश नगर मार्ग पर बाईक खड़ी करके कुछ बात कर रहे थे। उसी समय एक अपराधी अपने दो साथियों के साथ वहां पहुंचा। उन दोनों के साथ गाली-गलौज और मार-पीट करते हुए उन्होंने उनकी मोटर साइकिल की चाबी छीन ली। इसी दौरान एक अपराधी ने जबरदस्ती लक्ष्मी को खींचते हुए बाईक पर बैठाया और तीनों उसे अगवा करके यौन शौषण के इरादे से एक सुनसान जगह पर ले गये। हालांकि लक्ष्मी ने अपना संतुलन बनाए रखा और बाइक की चाबी निकाल कर छिपा दिया। बदमाशों ने उन्हें पकड़ने की कोशिश कि लेकिन वो उन्हें धक्का देकर फरार हो गई। लक्ष्मी सीधे पुलिस चौकी पहुंची और मामले की सूचना दी। जिसमें तीनों बदमाश पुलिस के हत्थे चढ़े। इसी के लिए लक्ष्मी को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
चिंगाई वांग्सा: बुजुर्ग को जिंदा जलने से बचाया
नागालैंड के 17 साल, 7 महीने के चिंगई वांग्सा ने बुजुर्ग की जान बचाई। घटना 4 सितम्बर 2016 की सुबह की है। अधिकांश ग्रामीण चर्च में थे जब एक घर में आग लग गई। 74 वर्षीय एक बुजुर्ग घर में सो रहे थे, कि उनकी रसोई से आग की लपटें उठने लगी। तभी पड़ोस में रहने वाले चिंगई वांग्सा ने बगल वाले घर की छत से आग की लपटें उठती हुई देखीं। चिंगई वांग्सा तुरन्त दरवाजा तोड़कर बुजुर्ग के घर में पहुंच गया। वृद्ध व्यक्ति निद्रावस्था में थे। चिंगई वांग्सा ने उन्हें उठाया और सुरक्षित बाहर लेकर आया। बाद में घर के पिछले हिस्से में बंधे पशुओं को बचाया। चिंगई की बहादुर के लिए उन्हें ये सम्मानित किया गया।
समृद्धि सुशील शर्मा: बदमाश से बचाई जान
गुजरात की समृद्धि सुशील शर्मा ने 16 साल 3 महीने की उम्र में बहादुरी पुरस्कार मिला है। पूरा मामला 1 जुलाई 2016 की दोपहर का है जब समृद्धि शर्मा घर पर अकेली थी। इसी दौरान दरवाजे की घंटी बजी। उसने दरवाजा खोला तो सामने खड़ा एक नकाबपोश व्यक्ति नौकरानी के विषय में पूछताछ करने लगा। समृद्धि ने उसे बताया कि वह अपना काम खत्म करके जा चुकी है। तब उसने पीने के लिए पानी मांगा। समृद्धि ने पानी के लिए मना किया तो उस शख्स ने चाकू निकाल लिया और उसकी गर्दन पर रख दिया। हालांकि किसी तरह समृद्धि ने उस शख्स का चाकू बाहर फेंक दिया और उसे भी दरवाजे से बाहर धकेल दिया। हंगामा बढ़ने पर आरोपी बदमाश भाग गया लेकिन समृद्धि को चोट आई। उसे दो बार ऑपरेशन करवाना पड़ा।
जोनुनतुआंगा: पिता पर भालू ने किया हमला, बचाई जान
15 साल 10 महीने के जोनुनतुआंगा मिजोरम के रहने वाले हैं। घटना 20 अगस्त 2016 की सुबह की जब जोनुनतुआंगा और उसके पिता मिजोरम के सरचिप जिले में स्थित एक छोटी नदी पर जा रहे थे। रास्ते में कुछ हलचल सुनकर, उसके पिता पता लगाने के लिए रुके तो अचानक एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया। पिता को अपने बचाव का एक भी मौका न देते हुए, जंगली जानवर ने अपना हमला जारी रखा और उनके चेहरे को भयानक रूप से घायल कर दिया। जोनुनतुआंगा कुछ दूर था जब उसने उनकी चीखें सुनी और दौड़कर वहां पहुंचा। उसने निडरता से भालू से मुकाबला किया। अपने साहसिक प्रयास से वह भालू को भगाने में सफल हो गया। पिता को बचाने के लिए उन्हें नेशनल ब्रेवरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
नदाफ इजाज अब्दुल रॉफ: दो लड़कियों की बचाई जान
महाराष्ट्र के नदाफ इजाज अब्दुल रॉफ की उम्र 16 साल, 6 महीने है। उन्होंने दो मासूम को डूबने से बचाया। घटना 30 अप्रैल 2017, गांव परडी, जिला नानदेड़, महाराष्ट्र की है। कुछ महिलायें और लड़कियां, एक नदी पर बने जलाशय के किनारे गई हुई थीं। अचानक उनमें से एक लड़की का पैर फिसला और वह पानी में गिर गयी। यह देख, शेख अफसर अपनी सहेली को बचाने के लिये जलाशय में उतरी। किन्तु पानी गहरा होने के कारण वह भी डूबने लगी। तब दो और लड़कियां शेख आफरीन और शेख तबस्सुम उन्हें बचाने के लिए गईं। हालांकि वो डूबने लगी। इसी दौरान इजाज अब्दुल रॉफ और दो अन्य व्यक्तियों ने पानी में छलांग लगा दी। वह तबस्सुम और आफरीन को बचाने में सफल हो गया। दुर्भाग्यवश दो अन्य लड़कियों को बचाया नहीं जा सका।
पंकज सेमवाल: गुलदार से अपनी मां की बचाई जान
उत्तराखंड के पंकज सेमवाल की उम्र 15 साल 10 महीने है। घटना 10 जुलाई 2016 की रात करीब एक बजे, उत्तराखण्ड के टीहरी गढ़वाल जिले में हुई। घर की दूसरी मंजिल पर बरामदे में, पंकज सेमवाल अपनी मां और भाई-बहनों के साथ सोया हुआ था। एक गुलदार, सीढ़ी के रास्ते होता हुआ बरामदे में पहुंचा और अपने पंजों से उसकी मां पर हमला कर दिया। मां की चीखें सुनकर, पंकज उठा और एक डंडा लेकर गुलदार को भगाने का प्रयास करने लगा। बाद में गांव वाले भी इकट्ठा हो गए। हालांकि पंकज अपनी मां को बचाने में कामयाब रहा।
पंकज कुमार माहंत: तीन की बचाई जान
पंकज कुमार माहंत ओडिशा के रहने वाले हैं, उनकी उम्र 13 साल, 11 महीने है। घटना 22 मई 2017 की सुबह, ओडिशा के केंदुझर जिले में घटी। तीन महिलाएं बैजयन्ती (25 वर्ष), पुष्पलता (22 वर्ष) एवं सुचिता (34 वर्ष) स्नान के लिए बैतारनी नदी पर गई हुई थीं। स्नान करते समय, गीली रेत पर बैजयन्ती का पैर फिसला और वह 20 फुट गहरे पानी में जा गिरी। अन्य दो महिलाओं ने उसे बचाने का प्रयास किया परन्तु वे भी डूबने लगी। यह देख, पंकज तुरन्त उन्हें बचाने के लिए दौड़ा और तैरकर पानी की गहराई में पहुंचा। तीनों महिलाओं का वजन, पंकज के वजन और ताकत से कहीं अधिक था। अपने जीवन को दांव पर लगाकर, उसने उन तीनों को एक-एक कर बाहर निकाला। पंकज कुमार माहंत ने अपने निर्भीक एवं साहसिक कृत्य से तीन जीवन बचाए। जिसके लिए पंकज को बहादुरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
एफ. ललछंदामा: दोस्त को बचाने के लिए गंवाई अपनी जान
17 साल, 11 महीने के मिजोरण के एफ. ललछंदामा को मरणोपरांत बहादुरी अवॉर्ड मिला है। घटना 7 मई 2017 की दोपहर, ललछंदामा अपने सहपाठियों के साथ शहर से आठ किलोमीटर दूर त्लांग नदी पर गया जो कि मिजोरम की सबसे बड़ी नदी है। उन्होंने एक घंटे तैराकी का आनन्द लिया। जब वे वापसी की तैयारी कर रहे थे, तो अचानक उनके एक मित्र ललरेमकीमा का पैर, चट्टान पर जमी काई के कारण, फिसल गया और संतुलन बिगड़ने से वह नदी में जा गिरा। घबराहट की वजह से, वह तैर नहीं सका और मदद के लिए चिल्लाने लगा। ललछंदामा और ललमुंआसांगा ने तुरन्त पानी में छलांग लगा दी और तैरकर अपने असहाय मित्र के पास पहुंचे। डूबते हुए लड़के ने ललमुंआसांगा की गर्दन पकड़ ली जिस कारण उसे सांस लेने और तैरने में कठिनाई होने लगी। परिणामस्वरूप वे दोनों डूबने लगे। ललछंदामा ने साहस से ललमुंआसांगा को ललरेमकीमा की पकड़ से छुड़वाया और उसे किसी तरह किनारे तक पहुंचाने में सफल रहा। परिणाम की परवाह किए बिना, बहादुर ललछंदामा बगैर हिचकिचाहट, अपने दूसरे मित्र को बचाने के लिए एक बार फिर गहरे पानी में गया। निरन्तर कोशिश के बावजूद, वह अपने प्रयास में विफल हो गया और दोनों को अपने प्राण गंवाने पड़े।
नेत्रावती चव्हान: डूब रहे दो बच्चों को बचाने में गंवाई जान
कर्नाटक की 14 साल, 10 महीने की नेत्रावती चव्हान को मरणोपरांत गीता चोपड़ा अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। नेत्रावती ने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए तालाब में डूब रहे दो बच्चों को बचाने की कोशिश की। जिसमें उनकी मौत हो गई। मामला 13 मई, 2017 का है जब नेत्रावती चव्हान, एक पत्थर की खदान के पास बने तालाब के किनारे कपड़े धो रही थी। इसी दौरान दो लड़के गणेश और मुथू तालाब में तैराकी के लिए पहुंचे, लेकिन अचानक ही ये बच्चे तालाब में डूबने लगे। नेत्रावती तुरंत ही इन बच्चों को बचाने के लिए पानी में कूद पड़ी। 30 फुट गहरे तालाब में नेत्रावती ने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए पहले 16 वर्षीय मुथु को सुरक्षित बाहर निकाल लाई। फिर वो 10 वर्षीय गणेश को बचाने के लिए तालाब में उतरी। इसी दौरान उनकी दम घुटने से मौत हो गई। उन्हें मरणोपरांत वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
मनशा एन, एन. शैंगपोन कोन्याक, योकनेई को बहादुरी अवॉर्ड
मेरीबनी (3 वर्ष) और चुम्बेन (6 वर्ष) की माता के देहान्त के बाद, मनशा उनकी देखभाल किया करती थी। 7 अगस्त 2016 की रात करीब डेढ़ बजे, मनशा ने मेरीबनी की दबी-घुटी आवाज सुनी। वह बच्ची को देखने के लिए गई। वहां मेरीबनी के पिता को उसका गला दबाकर मारने का प्रयास करते देख, वह आश्चर्यचकित रह गई। मनशा ने तुरन्त बच्ची को छीना और उसके पिता को धक्का देकर, बच्ची को अपने साथ ले गई। कुछ मिनट बाद, दुबारा उसने वैसी ही आवाज सुनी। वह तुरन्त भागकर वहां पहुंची तो देखा कि पिता अपने बेटे चुम्बेन का बेल्ट से गला घोंटने का प्रयास कर रहा था। मनशा ने उसे बच्चे से दूर धकेला और मदद के लिए चिल्लाई। इसी दौरान शेंगपॉन और योकनेई वहां पहुंचे। इसी दौरान वेनथंगो कुल्हाड़ी लेकर पहुंचा और अपने बच्चों को मारने की कोशिश की। हालांकि किसी तरह से उन बच्चों को बचाया गया। मनशा, शेंगपॉन और योकनेई की बहादुरी से मासूम बच्चों की जान बच गई।
लोकराकपाम राजेश्वरी चनु: अपनी जान देकर बचाई दो जानें
मणिपुर की 13 साल, 7 महीने लोकराकपाम राजेश्वरी चनु को बहादुरी अवॉर्ड मरणोपरांत मिला है। घटना 10 नवम्बर 2016 की है। ओगंबी केबीसाना अपनी बेटी इनंगंबी (तीन वर्षीय) और एक अन्य लड़की राजेश्वरी चनु के साथ एक लकड़ी का पुल पार कर रही थीं। छोटी बच्ची पुल पर बने छेद से नदी में गिर पड़ी। अपने बच्चे को बचाने के लिए उसकी मां भी तत्काल पानी में कूद पड़ी। परन्तु तैरना न आने के कारण, वह भी डूबने लगी। यह देख, राजेश्वरी चनु ने 30 फुट गहरे पानी में छलांग लगा दी। उसने बच्ची और उसकी मां को पकड़कर, किनारे की ओर धकेला। इस बीच कुछ लोगों ने चीख-पुकार सुनकर मां और बच्ची को बाहर निकाला। परन्तु राजेश्वरी चनु तीव्र जलधारा में बह गयी और उसे ढूंढा नहीं जा सका। राजेश्वरी चनु ने, अत्यन्त पराक्रम से, दो अमूल्य जीवन बचाने के प्रयास में, अपने प्राणों की आहूति दे दी।
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