“करवा चौथ” यह व्रत सुहागन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह व्रत पति-पत्नि के बीच आपसी प्यार और समझ को बढ़ाने वाला पर्व है। इस दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले उठकर सरगी खाती हैं।
यह खाना उनकी सास बनाती हैं। इस दिन महिलाएं नए कपड़े पहन कर सजधज कर पूरे दिन भूखी-प्यासी रहती हैं। दिन में शिव, पार्वती और कार्तिक की पूजा की जाती है।
शाम को करवा देवी की पूजा होती है, जिसमें पति की लंबी उम्र की कामना की जाती है। चंद्रमा दिखने पर महिलाएं छलनी से पति और चंद्रमा की छवि देखती हैं। पति इसके बाद पत्नी को पानी पिलाकर व्रत खुलवाता है।
बन रहा है ये शुभ योग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस वर्ष करवा चौथ के दिन अद्भुत संयोग का निर्माण भी हो रहा है, जिसमें शिवयोग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक सर्वार्थ सिद्धि योग में किया गया कार्य या पूजा शुभ फल प्रदान करती है। साथ ही इस दिन वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी भी मनाई जाएगी।
करवा चौथ तिथि और शुभ मुहूर्त
इस वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 31 अक्टूबर मंगलवार को रात नौ बजकर तीस मिनट से शुरू होकर 1 नवंबर को रात नौ बजकर उन्नीस मिनट तक है।
ऐसे में उदया तिथि के अनुसार करवा चौथ्र का व्रत 1 नवंबर बुधवार को रखा जाएगा। करवा चौथ की पूजा 1 नवंबर को शाम पांच बजकर चौवालीस मिनट से सात बजकर दो मिनट तक की जा सकती है। उस दिन चंद्रोदय आठ बजकर छब्बीस मिनट पर होगा।
चांद निकलने का समय : व्रत खोलने के लिए चंद्रोदय (Chandrodaya) का समय सगभग रात 8:26 बजे है.
करवाचौथ का इतिहास
करवा चौथ की शुरुआत प्राचीन काल में सावित्री की पतिव्रता धर्म से हुई। सावित्री ने अपने पति की मृत्यु हो जाने पर भी यमराज को उन्हें अपने साथ नहीं ले जाने दिया और अपने दृढ़ प्रतिज्ञा से पति को फिर से प्राप्त कर लिया।
दूसरी कहानी पांडवों की पत्नी द्रौपदी की है। वनवास काल में अर्जुन तपस्या करने नीलगिरि के पर्वत पर चले गए थे। द्रौपदी ने अुर्जन की जान बचाने के लिए अपने भाई भगवान कृष्ण से मदद मांगी थी।
तब उन्होंने पति की रक्षा के लिए द्रौपदी से वैसा ही उपवास रखने को कहा जैसा माता पार्वती ने भगवान शिव की रक्षा के लिए रखा था। द्रौपदी ने ऐसा ही किया और कुछ ही समय के पश्चात अर्जुन वापस सुरक्षित लौट आए।
ऐसे होती है व्रत की शुरुआत
करवा चौथ के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले जागकर सरगी खाती है, जिसमें मिठाई, फल और मेवे होते हैं l यह सरगी उनकी सास दवारा दिया जाता है। फिर पूरा दिन महिलाएं व्रत रखती है, और रात को चाँद देखकर व्रत तोड़ती है।
व्रत की कथा
जो महिलाएं इस दिन उपवास रखती है, वो अपनी संस्कृति और परम्परा के अनुसार पूजा थाली लेकर एक घेरा बनाकर बैठ जाती हैं l उनमें से एक ज्येष्ठ (उम्र में बड़ी ) औरत करवा चौथ की कथा (गौरी, गणेश और शंकर) सुनाती हैं, और तब वे 7 बार फेरी (वृत्त में अपने थाल एक दूसरे से बदलना) लगाते हुए करवा चौथ का गीत गाती है। माना जाता है कि करवा चौथ के दिन व्रत कथा पढ़ने से पति की लम्बी उम्र की कामना की जाती है।
ऐसे मनाया जाता है त्यौहार
यह त्यौहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। करवा का अर्थ है, मिट्टी का पात्र और चौथ का अर्थ चतुर्थी का दिन। इस महिलाएं नया करवा खरीदकर लाती हैं उसे और उसे सुंदर तरीके से सजाती हैं। करवा चौथ के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं इन करवों को अन्य महिलाओं के साथ बदलती हैं।