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आज भी मौजूद है नोएडा में मराठा और अंग्रेजों के बीच हुए युद्ध की निशानी

नोएडा गोल्फ कोर्स वैसे तो गोल्फ को लेकर प्रसिद्ध है लेकिन क्या आपको पता है कि इस गोल्फ कोर्स के मैदान में करीब 200 साल पहले एक युद्ध भी लड़ा गया था ? यह युद्ध ब्रिटिश और मराठा सेनाओं के बीच हुआ था।

युद्ध में मराठाओं की सेना को हार का सामना करना पड़ा था। इस मैदान में ब्रिटिश और मराठा सेनाओं के बीच युद्ध की स्मृति में एक ऐतिहासिक स्मारक भी बनाया गया है।

नोएडा गोल्फ कोर्स की स्थापना प्राधिकरण ने यू.पी. सरकार के सहयोग से की थी। मुख्य गोल्फ कोर्स और कई अभ्यास क्षेत्रों से मिलकर, यहां दी जाने वाली विश्व स्तरीय सुविधाएं कुछ ऐसी हैं, जो देश भर से बड़ी संख्या में खिलाड़ियों को आकर्षित करने का काम करती हैं।

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यहां पर एक कॉफी शॉप, कई रेस्तरां और मैदान के साथ-साथ कई और चीजें भी मौजूद हैं। नोएडा का गोल्फ कोर्स शहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता रहा है। गोल्फ कोर्स नोएडा सैक्टर-43 में मौजूद है। यहां का नजदीकी मैट्रो स्टेशन गोल्फ कोर्स ही हैं।

सितम्बर 1803 में ईस्ट इंडिया कम्पनी की ब्रिटिश सेना ने दिल्ली के भाग्य का फैसला करने के लिए मराठों से भीषण युद्ध लड़ा था। जानकारी के अनुसार, युद्ध के समय दिल्ली मुगल सम्राट शाह आलम की राजधानी हुआ करती थी।

मुगल सम्राट के राज प्रतिनिधि का दायित्व मराठा राजा दौलत राव सिंधिया के हाथों में था। यह युद्ध जनरल जेरार्ड लेक के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों और मराठा की सेना के बीच हुआ था।

इस युद्ध के बाद एक और युद्ध 12 दिन बाद महाराष्ट्र के जालना क्षेत्र में हुआ, जिसने सल्तनत के भाग्य का फैसला किया। इन युद्धों को इतिहासकारों ने ब्रिटिश-मराठा युद्ध के रूप में करार दिया है। इन युद्धों से उत्तरी भारत में अंग्रेजों का प्रभुत्व उभरकर सामने आया।

क्या लिखा है स्तम्भ लेख में

1916 में निर्मित गोल्फ कोर्स के स्तम्भ के अभिलेख में लिखा है कि, इस स्थान के पास सितम्बर 1803 को दिल्ली की सल्तनत के लिए भीषण युद्ध हुआ था, जिसमें मराठों की सेना ने ब्रिटिश सेना का जमकर मुकाबला किया था। इस युद्ध में जनरल जेरार्ड लेक की ब्रिटिश सेना को जीत मिली थी।

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भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेस्ली को लिखे एक पत्र में विजयी ब्रिटिश जनरल लेक ने कहा है कि, युद्ध के लिए मराठों ने यमुना नदी को पार कर लिया था। उन्होंने ब्रिटिश सेना पर इतना जोरदार हमला बोला कि सेना के अधिकारियों और सैनिकों को काफी नुकसान हुआ।

इतिहासकारों के अनुसार, मराठा सेनाएं आंतरिक मतभेद के चलते इस युद्ध को जीत नहीं पाई थीं। इन युद्धों को इतिहासकारों ने ब्रिटिश-मराठा युद्ध के रूप में करार दिया है। इन युद्धों से उत्तरी भारत में अंग्रेजों का प्रभुत्व उभरकर सामने आया।

पंजाब केसरी से साभार

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