सितंबर 2004 में रूस के बेसलान में हुए इस स्कूल बंधक कांड(Beslan school siege) में 330 लोगों की मौत हो गई थी जिनमें 156 स्कूली बच्चे शामिल थे। इसे इतिहास की सबसे घातक स्कूली गोलीबारी माना जाता है।
यह आतंकवादी हमला 1 सितंबर 2004 को शुरू हुआ और तीन दिनों तक चला। रूसी बलों द्वारा किये गए बचाव अभियान में बेसलान नरसंहार में शामिल सभी 31 चेचेन आतंकवादी शामिल मारे गए थे। यह आतंकवादी हमला रियाद-उस सालिहीन(Riyad-us Saliheen – Islamic Brigade of Shaheeds)) द्वारा प्रायोजित था।
इस हमले का मकसद चेचेन्या से रूसी सेना को बाहर निकलने के लिए रूस के शीर्ष नेतृत्व को मजबूर करना था। हालाँकि ऐसा नहीं हुआ और इसमें कई बेकसूर आम नागरिक और बच्चे मारे गए।
घटनाक्रम
1 सितंबर स्थानीय स्कूली शिक्षा प्रणाली का पहला दिन होता है। यह एक उत्सव की तरह होता है जिसमें नए और पुराने छात्रों के अभिभावक स्कूल समारोह में बच्चों के साथ भाग लेते हैं। चेचेन अतिवादिओं ने जानबूझ कर इस दिन को चुना ताकि अधिक से लोगों को बंधक बना कर रूस के साथ सौदा किया जा सके।
इसी विचार को ध्यान में रखकर चेचेन आतंकियों ने 1 सितंबर को बेसलान के स्कूल में बच्चों सहित 1000 से भी ज्यादा लोगों को बंधक बना लिया। बेसलान के वन स्कूल में दो नकाबपोश महिलाएं और 30 पुरुष विस्फोटक बेल्ट पहने हुए और गोलियां चलाते हुए घुस गए। स्कूल में दाखिल होते ही आतंकियों ने वहां मौजूद गार्ड समेत दस लोगों को मार दिया, जिससे कोई उन्हें रोक न सके। आतंकियों ने बंधकों को स्कूल के स्पोर्ट्स हॉल में रखा था और बास्केबॉल कोर्ट पर विस्फोटक लगा रखे थे।
हमले की जिम्मेवारी
ऐसी रिपोर्टें थीं कि जुलाई 2004 के दौरान मरम्मत करने वालों के वेश में लोगों ने स्कूल में हथियार और विस्फोटक छुपाए थे, जिसे अधिकारियों ने बाद में नकार दिया था। हालाँकि, कई गवाहों के अनुसार उन्हें स्कूल में छिपे हथियारों को निकालने में मदद करने के लिए मजबूर किया गया था। ऐसे भी दावे थे कि स्पोर्ट्स-हॉल की छत पर एक “स्नाइपर का गोदाम” पहले से ही बनाया गया था।
हमलावरों ने न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता को बताया कि वे रियाद अल-सलीहिन नामक आतंकवादी संगठन से संबंधित हैं, जिसका नेतृत्व कुख्यात चेचन सरगना शमिल बसयेव करता था।
किसी भी स्कूल में सबसे क्रूर नरसंहार
बेसलान नरसंहार को अब तब का सबसे क्रूर नरसंहार माना जाता है। आतंकियों ने यहां निर्दयता की सारी हदें लांग दी थीं। आतंकियों ने सभी लोगों और बच्चों को भूखे प्यासे तीन दिन तक रखा। ऐसे में भूखे-प्यासे बच्चों को पेशाब पीने पर मजबूर होना पड़ा।
कौन हैं चेचेन आतंकवादी
1864 में रूस के तत्कालीन शासक ने चेचेन्या पर कब्जा कर लिया था, लेकिन चेचेन्या ने कभी अपने आपको रूस का हिस्सा नहीं माना। इसके बाद से ही रूस के सैनिकों और चेचेन आतंकियों के बीच से खूनी संघर्ष होता आ रहा है। रूस हमेशा हथियारों के दम पर चेचेन आतंकियों को रोकने की कोशिश करता रहा है।
चेचेन्या के लोग मूल रूप से उत्तरी काकेशस के निवासी हैं। वे काकेशसी भाषा बोलते हैं। ये इस्लाम धर्म के सुन्नी समुदाय के हैं। चेचेन्या का कुल क्षेत्रफल लगभग 6 हजार वर्ग किलोमीटर है और यहां की आबादी तकरीबन 12 लाख 67 हजार है।
बच्चियों से रेप की खबर, लेकिन गवाहों के अनुसार रेप नहीं हुआ
कई हिंदी वैब साइट के अनुसार आतंकियों ने 8 साल की बच्चियों का रेप किया था और ब्लीडिंग के कारण उनकी मौत हो गयी थी। लेकिन अधिकतर बंधक गवाहों के अनुसार ऐसा कुछ नहीं हुआ था। इसके विपरीत इस्लामी आतंकियों ने कुछ बच्चियों को उनके भड़काऊ वस्त्रों के लिए लताड़ लगायी और उनकों अपने अंगों को ढकने के लिए कहा।
रूस की नाकामी
इस घटना के प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार रूस ने घटना में आतंकियों से निपटने के दौरान भारी युद्ध सामग्री जैसे टैंको और रॉकेट्स का वेवजह इस्तेमाल किया था जिसकी वजह से अधिक हानि हुई। रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी ने इस वारदात का पहले से अंदेशा जताया था लेकिन सरकार और प्रशासन इससे निपटने में नाकाम रहा।
बमों के असमय फटने, छत ढहने और जहरीली गैस की वजह से अधिक मौतें
आतंकियों ने जिम्नेजियम हाल में माइंस और बम प्लांट कर रखे थे जिनमें अकारण ( अस्पष्ट वजह से ) विस्फोट हो गया। इसमें कई बंधकों की मौत हो गयी। इसके कुछ समय के बाद जिम की छत ढह गयी दब कर बहुत सारे बंधकों और कुछ आतंकियों की मौत हो गयी।
रूसी सुरक्षाबलों ने आतंकियों से निपटने और संकट को हल करने के लिए लोगों बेहोश करने के लिए जहरीली गैस का इस्तेमाल किया जिसमें कई बच्चों की मौत हो गयी।
अन्य तथ्य
- आतंक का यह सिलसिला करीब तीन दिनों तक चला था। रूसी सैनिक बच्चों के चलते कोई आक्रामक कार्रवाई नहीं कर पा रहे थे।
- चेचेन आतंकियों की डिमांड थी रूसी सरकार चेचेन्या से रशियन आर्मी को हटा ले, लेकिन रूस ने इससे साफ इनकार कर दिया था।
- रूसी सरकार ने आतंकियों के सामने न झुकते हुए कमांडो कार्रवाई का आदेश दिया था। स्कूल में आतंकियों समेत सभी लोगों के बेहोश करने के लिए जहरीली गैस का भी उपयोग किया था, लेकिन गैस की ज्यादा मात्रा से कई बच्चों की दम घुटने से मौत हो गई थी। इसके अलावा सैकड़ों बच्चे आर्मी और आतंकियों के बीच हुई मुठभेड़ में मारे गए थे। ऑपरेशन 3 सितंबर को खत्म हुआ था।
- तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के अनुसार, “इस घटना में हुई मौतें एक बार फिर ये याद दिलाती हैं कि आतंकवादी सभ्य समाज को भयभीत करने के लिए किस हद तक जा सकते हैं”।