दुर्भाग्य से हमारी सभी भावनाएं एक समान नहीं होती। ऐसा ज्यादातर देखा गया है कि हंसने वाले लोगों को सफल समझा जाता है और हमें यह भी सिखाया जाता है कि ज्यादा हंसने से आपके अधिक मित्र बनेंगे और ज्यादा लोग आपको पसंद करेंगे। जबकि उदासी को भावनाओं से पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया गया।
अगर कोई उदास होकर रोने लगता है तो उसे कमजोर और असुरक्षित समझा जाता है। लेकिन असल में जो लोग रोने में कोई शर्म महसूस नहीं करते वह मानसिक रूप से मजबूत होते हैं। यह हैं 5 कारण जो दर्शाते हैं कि ज्यादा रोने वाले लोग असल में मानसिक रूप में मजबूत होते हैं।
ज्यादा रोने वाले लोग अपनी भावनाओं को दूसरों के सामने लाने से नहीं डरते
अगर आप को किसी बात की ख़ुशी हो रही है, तो आप जोर-जोर से हंसते हैं। आपके हंसने की वजह ख़ुशी हो सकती है लेकिन अगर आप उदास हैं तो आप रोने से क्यों शर्माते हैं ? लोग जो अपनी उदासी की अनदेखी करते हैं असल में वह अपने आप को धोखा दे रहे होते हैं। उदास होना या रोने का यह अर्थ नहीं है कि आप कमज़ोर हैं।
ज्यादा रोने वाले लोगों को पता होता है कि रोने के भी चिकित्सक गुण होते हैं
रोने से आपका शरीर चिंता, दुख और निराशा से आजाद हो जाता है। रोने से आपकी आत्मा की सफाई, मन समर्द्ध हो जाता है और आप में नकरात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है। अगर आप बहुत ज्यादा दुखी हैं लेकिन आप रो नहीं रहे तो नकरात्मक ऊर्जा आपके अंदर ही रहेगी। जो आपको मानसिक और शरीरक रूप से बुरी तरह प्रभावित करेगी।
रोना एक उपचारात्मक क्रिया है
हाल ही में मनोवैज्ञानिक अध्ययन में सामने आया है कि रोना एक बहुत ही उपचारात्मक क्रिया है। रोने से हमारे दिमाग में एंडोर्फिन (endorphin) में संतुलन बना रहता है। रोने को प्राकृतिक दर्द दूर (Natural Pain Killer) करने वाली प्रक्रिया भी कहा जाता है।
ज्यादा रोने वाले लोग समाजिक उम्मीद की प्रवाह नहीं करते
ज्यादातर लोग समाज के डर से सभी के सामने नहीं रोते। हमारे समाज में अगर औरत रो रही है तो उसे अस्थिर, मजबूर माना जाता है अगर आदमी रो रहा हो तो उसे कमज़ोर या डरपोक माना जाता है। इसी वजह से कई लोग अपने दुख को अपने अंदर तक छुपा लेते हैं। असल में जो लोग समाज के सामने रोने से नहीं डरते वह मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।
ज्यादा रोने वाले लोग दूसरों को रोने के लिए प्रोत्साहित करते हैं
जब हम दूसरों के सामने दुखी होकर रोने लगते हैं तो उस समय हम दूसरों को भी रोने के लिए प्रोत्साहित कर रहे होते हैं। आपके द्वारा अपनी भावनाओं को अपने ही अंदर दबा देना आपके लिए बहुत ही खतरनाक हो सकता है। जब हम अपने शरीर के प्रति ईमानदार होते हैं तो हमारा शरीर भी अपनी अधिकतम क्षमता से काम करता है।