आपने भूत-प्रेतों से जुड़े बहुत सारे किस्से सुने होंगे। कुछ लोग भूत-प्रेतों पर विश्वास करते हैं जबकि कुछ लोगों का मानना है कि यह केवल किस्से और कहानियां की बातें हैं. लेकिन इस पोस्ट को पढ़ कर शायद आपके रौंगटे खड़े हो जाएँ क्योंकि यहाँ हम एक भूत की की सच्ची कहानी बता रहे हैं.
लचुलुंग दर्रे का भुतहा 22 मोड़
मनाली-लेह मार्ग पर सरचू से 54 किलोमीटर दूर 16,616 फीट (5,059 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है लचुलुंग दर्रा (Lachulung La). यह मनाली से 278 किमी दूर लचुलुंग दर्रा जम्मू-कश्मीर के लेह जिले में पड़ता है. खैर, यह पोस्ट एक भूत की सच्ची कहानी के बारे में है.
लचुलुंग दर्रे के पास 22 मोड़ नामक जगह से गुजरने वाला हर वाहन चालक यहां पर बने ‘भूत मंदिर’ में पानी की एक बोतल चढ़ा कर ही आगे बढ़ता है. गाँव के लोग मानते हैं कि जो लोग जानबूझ कर भी पानी की बोतल नहीं चढ़ाते, उनके साथ कोई न कोई अनहोनी हो जाती है। ऐसा गांव वालों का विश्वास और धारणा है जो कि इन लोगों के तजुर्बे से बनी है.
भूत की सच्ची कहानी
इसके पीछे एक रोचक कहानी है। गाँव वालों के मुताबिक लगभग 8 साल पहले एक ट्रक लेकर ड्राईवर और कंडक्टर लेह जा रहे थे. लचुलुंग-ला के पास 22 मोड़ नामक जगह पर उस ट्रक का एक्सीडेंट हो गया और कंडक्टर इसमें गंभीर रूप से घायल हो गया.
कहते हैं कि ड्राईवर घायल कंडक्टर को छोड़कर भाग गया। वहीं कुछ लोग बताते हैं कि यह ड्राईवर दूर पंग गांव में मदद के लिए गया मगर उसे वापस लौटते काफी देर हो गई। उसी रात वहां से गुजर रहे एक अन्य ड्राईवर ने उस घायल कंडक्टर को देखा तो वह पानी-पानी चिल्ला रहा था।
दर्दनाक मौत के बाद भटकने लगी आत्मा
जब तक ड्राईवर पानी लाता उसकी मौत हो चुकी थी। बिना खाने और पानी के उसकी दर्दनाक मौत हो चुकी थी। कहते हैं इसके बाद से उसकी आत्मा यहां पर भटकने लगी।
बताया जाता है कि कंडक्टर की लाश को यहीं पर दफना दिया गया था। इसके बाद से ही यहां पर डरावनी घटनाएं होने लगी। आते जाते चालकों को एक लड़के की आत्मा डराने लगी और यह लड़का भी लोगों को दिखने लगा। यह आते जाते चालकों से खाने के लिए सामान मांगता था। जो लोग उसे यह नहीं देते थे वह किसी न किसी हादसे का शिकार होने लगे। बाद में यहां पर मंदिर बना लिया गया और लोग वहां खाने की चीजें और मिनरल वार्टर की बोतलें चढ़ाने लगे। यहाँ मिनरल वाटर की बोतलों का ढेर देखा जा सकता है. लोग कहते हैं भूत इस मंदिर में मिनरल वाटर पीता है।
लचुलुंग के भूत मंदिर में बोतलों का ढेर
क्या कहते हैं स्थानीय निवासी?
लाहौल के वयोवृद्ध इतिहासकार छेरिंग दोरजे बताते हैं यह एक भूत की सच्ची कहानी है. उनके अनुसार यह बात दस साल पहले की है।
लचुलुंग दर्रा (Lachulung La) के आस पास का दृश्य
ट्रक ड्राइवर सुरेंद्र कुमार, राजू राम, नंद किशोर और भागसेन के अनुसार इस मार्ग से गुजरते समय ड्राइवर-कंडक्टर यहां आत्मा के लिए पानी की बोतल छोड़ते हैं।
एसआरटीसी केलांग डिपो के चालक रमेश लाल ने बताया कि कई ड्राइवर उन्हें बता चुके हैं उन्होंने उस आत्मा की चीख सुनी है जो पानी मांगती है। डर से ही सही यहां ड्राइवर पानी की बोतलें छोड़ते हैं।
यह भूत की सच्ची कहानी है या झूठी कहानी यह तो भगवान ही जाने लेकिन यहाँ पर लगे बोतलों का ढेर कुछ तो जरूर कहता है.
एक पुरानी कमर्शियल ऐड थी जिसमें एक स्लोगन था, ‘सन्डे हो या मंडे रोज खाओ अंडे’. क्या यह स्लोगन गर्मियों के मौसम में भी लागू होता है? अधिकतर लोगों का मानना है कि गर्मियों में अंडा खाना सेहत को नुक्सान पहुंचाता है. कुछ लोग मानते हैं कि गर्मियों में अंडे खाने से मुहांसे यानी pimples निकलते हैं. इन सारी बातों में कितनी सच्चाई है आइए जानते हैं इस पोस्ट में.
पहले देखें यह विज्ञापन वीडियो, जिसमें स्वर्गीय दारा सिंह अंडे खाने को प्रेरित करते दिखाए गये हैं.
पोषक तत्वों से भरपूर है अंडा
अंडे में विटामिन ए और डी का मुख्य स्रोत हैं जो हमारी हड्डियों को मजबूती प्रदान करती हैं ।इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, जस्ता, आयोडीन भी पाया जाता है। इसमें विटामिन बी2, कम मात्रा में वसा और कोलेस्ट्रॉल होता है , उच्च मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इस तरह से अंडा पोषक तत्वों का एक बड़ा स्रोत है. ये पोषक तत्व हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं।
गर्मियों में अंडा खाना नुक्सानदायक हैं, यह केवल भ्रान्ति
विशेषज्ञो का मानना है कि गर्मियों में अंडे खाना पूरी तरह से सुरक्षित है । अंडे में विटामिन और खनिज होते हैं जिनकी वजह से शरीर में पूरे दिन ऊर्जा बनी रहती है। किसी भी अन्य मौसम की तरह हर रोज 2-3 अंडे खाना नुक्सान दायक नहीं है. वैसे भी गर्मियों में भूख कम लगती है इसलिए अंडे खाने से इसकी भरपाई की जा सकती है।
एक और भ्रान्ति है कि अंडे खाने से पिम्पल्स होते हैं. यह पूरी तरह से गलत धारणा है और किसी भी रिसर्च में ऐसा संकेत नहीं मिला है।
हालाँकि, अंडे में अधिक मात्रा में प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व होते हैं इसलिए गर्मियों में इन्हें पचाने के लिए ज्यादा पानी की जरुरत पड़ेगी। इसलिए पर्याप्त पानी पीना चाहिए। अण्डों के साथ एक खीरा और एक टमाटर खाने से इसकी भरपाई की जा सकती है।
गर्मियों में वैसे भी कम खाना खाना चाहिए, इसलिए ज्यादा खाना चाहे वह अंडे हों या कुछ और, खाने से बदहजमी और बेचैनी जैसी शिकायत हो सकती है। इसलिए जो भी खाएं कम ही खाएं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत-चीन पर आरोप लगाकर जिस तरह पेरिस के जलवायु परिवर्तन समझौते से अपने देश को अलग किया है वह दुनिया में बढ़ते संकीर्ण राष्ट्रवाद के खतरे का संकेत है। इस समझौते को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस आधार पर अमेरिका की बड़ी सफलता बताया था कि उन्होंने इससे भारत-चीन को जोड़ लिया है. लेकिन अब इसी आधार पर डोनाल्ड ट्रम्प ने इसे खारिज कर दिया है।
ट्रम्प ने यह कहकर घोर अमेरिकावाद का परिचय दिया है कि इस समझौते के तहत भारत न सिर्फ अमेरिका से लाखों डॉलर की मदद लेगा बल्कि नए-नए कोयला संयंत्र लगाएगा और कोयले का उत्पादन दोगुना करेगा। उन्होंने यही आरोप चीन पर भी लगाया है और कहा है कि उसके विपरीत अमेरिका को नुकसान होगा, क्योंकि अमेरिका को न सिर्फ कोयले के संयंत्र लगाने की मनाही होगी बल्कि इन देशों को भारी आर्थिक मदद देनी होगी।
ओबामा ने अमेरिका का बड़प्पन और नैतिकता दिखाते हुए भावी पीढ़ियों के लिए जो जिम्मेदारी सहर्ष स्वीकार की थी उसे ‘फर्स्ट अमेरिका’ के सिद्धांत के तहत खारिज करके वर्तमान राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह जता दिया है कि वे अमेरिका को बेहद स्वार्थी देश बनाना चाहते हैं और ऐसी विश्व-व्यवस्था कायम करना चाहते हैं, जो सिर्फ अमीर देशों और अमीरों के हित में हो।
ओबामा ने इस समझौते के तहत अमेरिका की तरफ से तीन अरब डॉलर देने और एक दशक के भीतर 26 से 28 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन कम करने का वादा किया था, जिसमें से एक अरब डॉलर दिया भी जा चुका है लेकिन, अब ट्रम्प के नए रुख के चलते बाकी राशि नहीं मिलेगी और इस समझौते को लागू करने की जिम्मेवारी चीन-भारत के हाथ में जाएगी।
समझौते को लागू करने का प्रयास यूरोपीय संघ के देश भी करेंगे, क्योंकि उन्होंने अमेरिका की कड़ी आलोचना की है।
मंदिर :तमिलनाडु के कोयंबटूर शहर में स्थित भगवान शिव की आवक्ष (छाती से ऊपर) प्रतिमा को “विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा” माना गया है. इस प्रतिमा का उद्धाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने अभी हाल ही में किया था.
गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने इस मूर्ती को विश्व की सबसे ऊँची आवक्ष प्रतिमा के रूप शामिल किया है. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने अपनी वेबसाइट पर इसकी घोषणा की है.
ऊँची प्रतिमा का आकार
भगवान शिव की इस प्रतिमा को ईशा योग फाउंडेशन द्वारा बनाया गया है. ऊँची प्रतिमा की ऊंचाई 112.4 फीट, चौडाई 24.99 मीटर तथा लम्बाई 147 फुट है. इस विशाल प्रतिमा को सद्गुरू जग्गी वासुदेव ने डिजाइन किया है.
भगवान शिव की यह प्रतिमा उन 112 मार्गों को दर्शाती है जिनसे इंसान योग विज्ञान के जरिए अपनी परम प्रकृति को प्राप्त कर सकता है. हम आपको बता दें कि इस प्रतिमा में शिव के चेहरे को बनाने में ही करीब ढाई साल लगे थे तथा इस प्रतिमा का वजन 500 टन है. भगवान शिव की इस प्रतिमा को स्टील से बनाया गया है और इसे धातु के टुकड़ों से जोड़ कर बनाया गया है.
भगवान शिव की सवारी नंदी बैल की प्रतिमा को भी ईशा योग फाउंडेशन ने बड़े खास तरीके से तैयार किया गया है. नंदी बैल के ऊपरी हिस्से को भी धातु के टुकड़ों को जोड़कर बनाया गया है. इस के अंदर तिल के बीज, हल्दी, पवित्र भस्म, कुछ खास तरह के तेल, रेत, कुछ अलग तरह की मिट्टी मिलाकर कुल 20 टन सामग्री डाली गई है.
भगवान शिव की इस प्रतिमा को देखने के लिए हर रोज हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं. रात में जब नीली रोशनी में यह प्रतिमा नहाती है तो इसकी खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं.
भूकंम्प का नाम सुनते है दहशत सी हो जाती है. भूकंप के आते है सब कुछ हिलने लगता है. अधिक तीव्रता का भूकंप आने पर इमारतें गिर जाती हैं जिससे भारी संख्या में जान माल का नुक्सान झेलना पड़ता है. भूकंप एक भूगर्भीय घटना है जिसमें धरती की अंदरूनी प्लेटों के आपस में टकराने पर बहुत ही उच्च-क्षमता की एनर्जी पैदा होती है जिससे धरती की सतह पर कंपन महसूस किया जाता है.
भूकंप के कारण दुनिया भर में अब तक लाखों लोगों की जान जा चुकी है. आखिर भूकंप के आने का असली कारण क्या है और कौन से ऐसे तथ्य हैं जो हमने नहीं पढ़े. आज हम आपको भूकंप से जुड़े कुछ ऐसे ही तथ्यों से अवगत कराएंगे
जब पृथ्वी की ऊपरी सतह हिलती है तो उसे भूकंप का नाम दिया जाता है. भूकंप आने का मुख्य कारण टेक्टोनिक प्लेटों का खिसकना, ज्वालामुखी विस्फोट, परमाणु धमाके और खदानों की खुदाई आदि भी हो सकते हैं.
क्या आपको पता है कि पृथ्वी पर हर साल लगभग 5 लाख भूकंप आते है इन में से सिर्फ 1 लाख भूकंप ही महसूस किए जा सकते है. 1 लाख भूकंपों में से सिर्फ 100 भूकंप ही ऐसे होते है जो कि विनाशकारी प्रलय लाते हैं.
आज तक का सबसे विनाशकारी भूकंप सन 1960 में चिली में आया था, जिसकी तीव्रता 9.5 दर्ज की गई.
सन 1811 में एक जबरदस्त भूचाल के कारण उत्तरी अमरीका में बहने वाली मिसिसिप्पी नदी (mississippi river) उल्टी दिशा में बहने लगी थी.
भूकंप के कारण अब तक का सबसे खतरनाक हिमस्खलन सन 1970 में पेरू में आया था. यह हिमस्खलन लगभग 400 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से आया था. इस हिमस्खलन की वजह से पूरा गांव ही तबाह हो गया था और इसमें लगभग 18 हजार लोग मारे गए थे.
कैलिफोर्निया के पार्कफील्ड को “The Earthquake Capital of the World” कहा जाता है. दरअसल पार्कफील्ड ऐसी जगह स्थित है, जहां दो टेक्टोनिक प्लेट आपस में एक-दूसरे से जुड़ती हैं.
भूकंप आने के प्रारंभिक बिंदु को फोकस या HypoCenter (भूकंप के भूमिगत फोकस बिंदु) कहा जाता है.
26 दिसंबर, 2004 को इंडोनेशिया में भूकंप से हिन्द महासागर में जल प्रलय सुनामी आ गई. इसमें लगभग 2 लाख 30 हजार लोगों की जिंदगी चली गई.
15 अगस्त, 1950 को तिब्बत में आए विनाशकारी भूकंप में 780 लोगों की जान चली गई.
प्राचीन ग्रीस में लोगों का मानना था कि भूकंप समुद्र के देवता पोसाइडन की वजह से आता है. उनका कहना था कि जब देवता नाराज हो जाते है तो जमीन पर अपने त्रिशूल से प्रहार करते है जिससे धरती कांपती है.
भूकम्प के कारण अब तक का सबसे खतरनाक लैंडस्लाइड चीन के कान्सू प्रान्त में सन 1920 में आया था. लैंडस्लाइड की वजह से लगभग 2 लाख लोग मारे गये थे.
31 जनवरी,1906 को इक्वाडोर में 8.8 की तीव्रता से भूकंप आया. इससे वहां सुनामी आ गई. इस प्राकृतिक आपदा ने यहां कम से कम 500 लोगों को मौत की नींद सुला दिया.
भूकंप (Earthquake) के बचाव के लिए पैगोडा आकार के घर बनाये जाते है
प्लेट टेक्टोनिक्स थ्योरी का विकास 20वी सदी के मध्य में हुआ था. हैरी हेस के द्वारा सागर नितल प्रसरण की खोज से इस सिद्धान्त का प्रतिपादन आरंभ माना जाता है.
भूकंप की तीव्रता मापने के लिए रिक्टर स्केल का इस्तेमाल किया जाता है और इस यंत्र को रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल भी कहा जाता है. भूकंप की तरंगों को रिक्टर स्केल 1 से 9 तक के आधार पर मापता है.
सन 1935 में कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में कार्यरत वैज्ञानिक चार्ल्स रिक्टर ने बेनो गुटेनबर्ग की सहायता से रिक्टर स्केल पैमाने की खोज की थी.
25 अप्रैल, 2015 को7.8 की तीव्रता से भूकंप आया और नेपाल में तबाही मच गई। 8857 लोगों की मौत हुई. यहां पर इमारतों को काफी नुकसान पहुंचा.
दिल्ली: क्या अपने कभी सुना है कि कोर्ट में मुकद्दमे की कार्यवाही किसी कर्मचारी द्वारा रोक दी गयी हो? सुनने में तो यह थोड़ा अजीब लगता है लेकिन दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में कुछ दिन पहले ऐसा ही वाकया हुआ. दरअसल दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में भ्रष्टाचार के मामले में सुनवाई चल रही थी. कोर्ट में उपस्थित महिला स्टेनोग्राफर कोलकाता से लाइव सीबीआई (CBI) के गवाह के बयान रिकॉर्ड कर रही थी.
इसी दौरान महिला स्टेनोग्राफर ने मुकद्दमे की सुनवाई के बीच टोकते हुए जज को बताया कि उसके घर जाने का समय हो गया है और टैक्सी बाहर उसका इन्तजार कर रही है. जज ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह कार्यवाही पूरी होने तक साथ दे.
दरअसल महिला स्टेनोग्राफर ने शाम 4.25 बजते ही कोर्ट की कार्यवाही को बीच में ही रोक दिया और जज से यह कहकर जाने लगी जब तक कोर्ट की कार्यवाही खत्म होगी तब तक 5 बजे जाएंगे. महिला के ना मानने पर जज ने चेतावनी देते हुए कहा कि कार्यवाही के बीच में कोर्ट से बाहर नहीं जा सकती है. जज ने दलील दी कि दूसरी स्टेनोग्राफर के पैर में फ्रैक्चर हुआ है इसलिए उसे कोर्ट में नहीं बुलाया जा सकता, लेकिन महिला, ‘मुझे जाना है.. मुझे जाना है कहती हुई अड़ी रही’.
जज के आग्रह के बावजूद भी महिला स्टेनोग्राफर नहीं मानी और कोर्ट रूम में उपस्थित गवाहों और वकीलों के सामने ही जज से बहस करने लगी. वह बोली कि उसके दाएं हाथ में दर्द हो रहा है और फिर वह कोर्ट से बाहर चली गयी.
इसके बाद दूसरी घायल स्टेनोग्राफर को बैसाखियों के सहारे कोर्ट में लाया गया और तब जाकर कार्यवाही शुरू हो सकी. महिला स्टेनोग्राफर की इस अड़ियल हरकत की वजह से कोर्ट की कार्यवाही 5 से 10 मिनट तक बाधित हुई.
ऐसा वाकया पहली बार सुनने और देखने को मिला है कि किसी कर्मचारी की द्वारा कोर्ट की कार्यवाही में वाधा आई हो. महिला द्वारा इस तरह के व्यवहार से कोर्ट में उपस्थित जज और वकीलों को अगले स्टेनोग्राफर के आने तक इंतजार करना पड़ा.
जज ने इस संबंध में एक लिखित पत्र जारी करते हुए इस घटना को बहुत ही अफसोसजनक बताया है. महिला स्टेनोग्राफर के इस रवैये पर सख्त रुख करते हुए उन्होंने कहा कि महिला स्टेनोग्राफर ने अपने पद और कोर्ट की गरिमा का अपमान किया, वो भी तब जब कई वकीलों की मौजूदगी में सुनवाई चल रही थी. जज ने यह भी कहा कि एक स्टेनोग्राफर ने कोर्ट को हाईजैक कर लिया.
जज ने महिला स्टेनोग्राफर के रवइए पर जिला और सत्र न्यायालय को शिकायत भेज दी है. उसके खिलाफ उपयुक्त कार्यवाही करने को भी मांग की है.
आधुनिक युग के इस दौर में मोबाइल फोन हर किसी की जरूरत बन चुका है. यह लोगों के जीवन का एक अहम् हिस्सा बन चुका है. आजकल बच्चों से लेकर बुजुर्ग आदमी के पास मोबाइल है और उनमें से 90% मोबाइल में इन्टरनेट मौजूद है.
रिसर्च से पता चला है कि मोबाइल फोन से कैंसर होने का खतरा ज्यादा होता है. अधिकतर देखा गया है कि बच्चे मोबाइल रेडिएशन (विकिरण) की चपेट में ज्यादा आते हैं और मोबाइल की रेडिएशन से बच्चों में ल्यूकेमिया जैसी गंभीर बीमारियाँ भी होती हैं. इसलिए सरकार ने गाइडलाइन्स जारी करके मोबाइल फ़ोन से दूर रहने की सलाह दी है.
मोबाइल फ़ोन पर ज्यादा समय तक किसी से बातें ना करें.
मोबाइल से थोड़ी दूरी बनाये रखें. हमेशा मोबाइल का उपयोग नहीं करते रहना चाहिए.
जहाँ तक संभव हो मोबाइल पर किसी को कॉल करने की बजाये, एसएम्एस (sms) का उपयोग करें. हो सके तो मोबाइल पर बातचीत मोबाइल के स्पीकर मोड से करें.
मोबाइल को कानों से लगाकर सुनने की बजाए हमेशा मोबाइल हेडसेट(ब्लू-टूथ)का उपयोग करें.
मोबाइल फ़ोन को कान पर जोर से लगाकर नहीं सुनना चाहिए क्योंकि मोबाइल की रेडियो फ्रीक्वेंसी (Radio Frequency) आपकी ऊर्जा का अवशोषण कर लेती है.
उस जगह पर जाकर बातचीत करें जहाँ पर मोबाइल सिग्नल अच्छा है क्योंकि अगर मोबाइल का रेडियो सिग्नल कमज़ोर है तो मोबाइल अपने आपट्रांसमिशन सिग्नल बढ़ा देता है. जो आपके स्वास्थ्य के लिए बेहतर नहीं होता.
जब आपने चश्मा पहना हो तब फोन पर बात ना करें, क्योंकि चश्मों के फ्रेम धातु के बने होते है और पानी और धातु दोनों रेडियो तरंगों के बेहतरीन सुचालक हैं.
अगर आप किसी को कॉल कर रहे हो तो शुरू में मोबाइल पर कॉल करते समय आपको फ़ोन अपने कानों से नहीं लगाना चाहिए. मोबाइल को कानों से उस समय तक दूर रखना चाहिए जब तक रिसीवर फ़ोन नहीं उठाता क्योंकि मोबाइल शुरू में दुसरे मोबाइल को कॉल करते समय बहुत अधिक रेडिएशन उत्पन्न करता है. जो आपके दिमाग पर प्रभाव डालती है.
जब आपका सिर गीला हो या नहा कर आ रहे हैं तब मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल ना करें. क्योंकि पानी और धातु दोनों रेडियो तरंगों के बेहतरीन सुचालक हैं.
अगर आपके पास लैंडलाइन है तो हो सके मोबाइल की बजाए उसका इस्तेमाल करें.
अगर आपका फ़ोन ओन है, तो इसे अपनी छाती से लगाकर या अपनी पैंट की जेब में ना रखें. क्योंकि मोबाइल से निकलने वाली रेडिएशन आपके दिल को और आपकी प्रजनन क्षमता को नुक्सान पहुंचा सकती है.
बच्चों को मोबाइल फ़ोन कम इस्तेमाल करने चाहिए क्योंकि बच्चों पर मोबाइल फ़ोनों से निकलने वाली रेडिएशन लंबे समय तक अपना बुरा प्रभाव छोड़ती है.
मोबाइल खरीदते समय मोबाइल की एसएआर मूल्य की जांच करनी चाहिए. आप अपने मोबाइल का एसएआर (SAR) नंबर इन्टरनेट से भी देख सकते हो या खुद ही *#07# डायल करके भी देख सकते है. यदि आपके फ़ोन का SAR नंबर 1.6 वॉट प्रति किलोग्राम (1.6 W/kg) से नीचे हैं तब वह ठीक है अन्यथा तुरंत अपने स्मार्टफोन को बदल लें.
मोबाइल फ़ोन को कार या किसी बस में इस्तेमाल करने से इसके संकेत ओर भी ज्यादा बढ़ जाते हैं. जो आपकी सुनने की क्षमता पर प्रभाव डालते हैं. इसलिए मोबाइल फ़ोन का बस या कार में कम इस्तेमाल करना चाहिए.
दुनिया में बहुत से ऐसे अजीबो-गरीब तथ्य हैं जिनसे हम अंजान होते हैं और यह तथ्य जितने अजीब होते हैं उतने ही रोचक और हैरान करने वाले भी होते हैं. आज हम आपको इस लेख में कारों से जुड़े कुछ ऐसे रोचक तथ्यों से रूबरू करवाएंगे जिनके बारे में आप आजतक अनजान थे.
क्या आपको पता है कि दुनिया में कारों की संख्या लगभग 100 करोड़ से भी अधिक है.
अमेरिका में प्रति व्यक्ति लगभग हर साल 38 घंटे तक ट्रैफिक में व्यतीत करता है.
दुनिया की सबसे पुरानी कार डी डायोन बूटोन (Wikipedia) का निर्माण 1884 में फ्रांस में किया गया था. उसे आज तक सुरक्षित रखा गया है. इस कार की नीलामी सन 2011 में की गयी थी उस दौरान इस कार की कीमत 6 मिलियन डॉलर तय की गई थी.
सन 1902 में पहली बार तेज कार चलाने के कारण किसी चालक का चालान किया गया था. उस समय गाड़ी की रफ्तार 45 मील प्रति घंटा की थी.
साल 2016 में 7 करोड़ 20 लाख नई कारों का निर्माण किया गया था. इसका मतलब यह हुआ कि हर दिन 1 लाख 70 हज़ार नई कारें बनाई गयी थी.
क्या आपको पता है कि एक औसतन कार में 30 हज़ार के आस-पास पुर्जे होते हैं. (हो गए ना आप भी सोचने पर मजबूर 🙂 ).
दुनिया की सबसे पहली कार दुर्धटना सन 1891 अमेरिका के ऑहियो (Ohio) राज्य में हुयी थी.
रूस में अगर आप गंदी गाड़ी चलाते हैं तो उसे गैरकानूनी माना जाता है.
एक रिसर्च से पता चला है कि दुनिया भर में होने वाली 40 प्रतिशत दुर्घटनाओ के दौरान चालक ब्रेक का प्रयोग नहीं करते हैं.
बुगाटी वेरॉन सुपर स्पोर्ट कार दुनिया की सबसे तेज़ चलने वाली कार हैं इसकी रफ्तार 431 km/h है.
सन 1907 में दुनिया का पहला रेसिंग ट्रैक लंदन के ब्रूकलैंड शहर में बनाया गया था.
अगर आपको किसी कार का इंजन निकालकर उसकी जगह पर दूसरा इंजन लगाना पड़े तो आप उसके लिए कम से कम 2 या 3 घंटे का समय तो जरुर लेंगे ही, लेकिन क्या आपको पता है कि सन 1985 में महज 42 सेकेंड में ही कार का इंजन निकालकर उसकी जगह पर दूसरा इंजन लगाया गया था. उस कार का नाम फोर्ड एस्कॉर्ट था.
जब पहली बार कार रेडियो का आविष्कार किया गया था, तब बहुत से ऐसे देश थे जिन्होंने कार में लगाए जाने वाले रेडियो को बैन कर दिया था. उनका मानना था कि कार रेडियो से चालक का ध्यान भटक सकता है और दुर्घटना होने की संभावनाएं बढ़ सकती है.
जीका वायरस (Zika Virus ; Wikipedia) ने पूरी दुनिया की नाक मे दम कर रखा है. क्या आप जानते है कि क्या है यह खतरनाक जीका वायरस? यह कहाँ से आया? कब आया? और क्या है इसके लक्षण?
जीका (Zika Virus) के लक्षण
जीका वायरस(Zika Virus) के लक्षण भी डेंगू बुखार की तरह होते है. जीका के लक्षण मुख्यतः बुखार, लाल आखें, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द, शरीर पर रैशेस यानी लाल चकत्ते होते है. बच्चों और बड़ों में इसके लक्षण लगभग एक ही जैसे होते हैं.
लेकिन कुछ मामलों में यह बीमारी हमारे नर्वस सिस्टम के डिसऑर्डर में बदल जाती है जिससे पैरालिसिस भी हो सकता है. जीका वायरस(Zika Virus) का सबसे ज्यादा ख़तरा गर्भवती महिलाओं के पेट में पल रहे नवजात शिशु पर पड़ता है. इससे बच्चों में कई तरह की दिमागी बीमारियां हो जाती है. इससे नवजात शिशुओं को माईक्रोसिफ़ेली होने का खतरा है जिसमें बच्चों के मस्तिष्क का पूरा विकास नहीं हो पता और उनका सिर सामान्य से छोटा रह जाता है.
विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) ने भारत में जीका वायरस(Zika Virus) के तीन मामलों की पुष्टि कर दी है. जिनमें एक 64 वर्षीय वृद्ध महिला, 34 वर्षीय पुरुष और एक 22 वर्षीय गर्भवती महीला में पाया गया है. अहमदाबाद के बी.जे. मेडिकल कॉलेज में मॉनिटरिंग के दौरान WHO को इन तीनों में जीका वायरस के लक्षण मिले हैं.
जीका वायरस फ्लाविविरिडए (Wikipedia) विषाणु परिवार से है. यह विषाणु दिन के समय अधिक सक्रिय रहते हैं.
इतिहास
1947 में पूर्वी अफ्रीकी विषाणु अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम यूगांडा के जीका जंगल में पीले बुखार पर शोध व् रिसर्च कर रही थी. वैज्ञानिकों की टीम ने एक रीसस मकाक यानी एक प्रकार के लंगूर को पिंजरे में रख कर शोध कर रही थी. उस लंगूर को बुखार था और उसी से ही यह वायरस मिला था. तभी से ही इस वायरस को जीका वायरस(Zika Virus) के नाम से जाना जाता है.
जब 1948 में फिर से वैज्ञानिकों की टीम ने जीका जंगल में रिसर्च की, तब उन्हें जीका जंगल के मच्छरों में भी वही वायरस मिला. सन 1954 में भी नाइजीरिया में एक व्यक्ति में इसके लक्षण पाए गये थे. इसके बाद 2007 में इसकी खोज होने से पहले इसके संक्रमण के मामले अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में पाए गये थे.
WHO यानि विश्व स्वास्थ संगठन ने जीका वायरस को लेकर दुनियाभर में अलर्ट जारी कर दिया है. खासतौर पर उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में. WHO की रिपोर्ट के अनुसार इस वायरस की चपेट में तीस से चालीस लाख लोग हो सकते हैं.
ब्राजील में इसके सबसे ज्यादा लक्षण पाए गये हैं?
ब्राजील में जीका वायरस के सबसे ज्यादा लक्षण पाए गये हैं. ऐसी आशंका जताई जा रही है कि हजारों लोग इस विषाणु से संक्रमित हो सकते हैं. मच्छरों के जरिये फैलने वाले इस वायरस से बच्चों का मस्तिष्क विकास रुक जाता है और उनके मस्तिष्क का आकार भी सामान्य से छोटा हो जाता है. जिसे माईक्रोसिफ़ेली (Wikipedia) कहते है
आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर से अब तक इसके 4,120 संदिग्ध केस पाए गये हैं. इन लोगों में से 270 लोगों की लैब टेस्ट में पुष्टि हो चुकी है. ब्राज़ील सरकार के अनुसार, ब्राज़ील के इतिहास में यह किसी भी बीमारी का सबसे घातक आक्रमण है.
जीका वायरस से बचाव के लिए कारगर उपाय
जीका वायरस दुनिया के और हिस्सों में अपने पैर फैला सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इससे बचाव के लिए उपाय सुझाए हैं. हम आपको बताते हैं जीका वायरस से बचाव के लिए कारगर उपाय…. 1. डब्ल्यूएचओ के अनुसार इस बीमारी को रोकने का सबसे अच्छा उपाय है मच्छरों की रोकथाम. 2. मच्छरों से बचने के लिए पूरे शरीर को ढककर रखें और हल्के रंग के कपड़े पहनें. 3. मच्छरों की रोकथाम के लिए घर के आसपास के गमले, बाल्टी, कूलर आदि में पानी जमा ना होने दें. 4. बुखार, गले में खराश, जोड़ों में दर्द, आंखें लाल होने जैसे लक्षण होने पर अधिक से अधिक तरल पदार्थों का सेवन और भरपूर आराम करें. 5. जीका वायरस का फिलहाल कोई टीका उपलब्ध नहीं है. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि स्थिति में सुधार नहीं होने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएँ.
हिन्दू धर्म में महाभारत को पांचवा वेद माना जाता है. माना जाता है कि इस महाकाव्य में व्यक्ति, परिवार, समाज, धर्म, कर्म, माया, ईश्वर, देवता, राजनीति, कूटनीति, महासंग्राम, महाविनाश, ज्ञान-विज्ञान, तंत्र-साधना, भक्त-भगवान और न जाने कितने अनेकोनेक विषयों के बारे में विस्तृत वर्णन किया गया है. महाभारत में वर्णित श्रीभगवत गीता ईश्वर, आत्मा, कर्म और योग के विवेचन का एक ऐसा विश्व-कोष है जिसके स्तर का ग्रन्थ अन्यंत्र मिलना दुर्लभ है.
लगभग हर हिंदू व्यक्ति महाभारत की कथा और गाथा के बारे में जानता है. लेकिन महाभारत के कुछ ऐसे दिलचस्प तथ्य हैं जो केवल महाभारत के बारे में गहन रुचि और अध्ययन करने वाले व्यक्ति को ही पता हैं और हम-आप साधारण जन के लिए जान पाना लगभग असंभव ही है. कुछ ऐसे ही खास तथ्य हमें इंटरनेट के माध्यम से पता चले और हमने आपके लिए उनको यहाँ पर संकलित और प्रस्तुत किया है.
तो आइए शुरू करते हैं कौरव-पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के जन्म से सम्बंधित प्रसंग से.
द्रोणाचार्य का जन्म
कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोण महऋषि भरद्वाज के पुत्र थे. महर्षि भरद्वाज एक महान वैज्ञानिक, चिकित्सक, तत्व-वेता और प्रकांड विद्वान थें. एक बार महर्षि भरद्वाज अपनी दिनचर्या के अनुसार गंगा नदी में स्नान के लिए जा रहे थे. उसी समय घृताची नामक अप्सरा केवल एक पारदर्शी वस्त्र में गंगा जी में स्नान कर रही थी. अप्रितम सुंदर और कमनीय अप्सरा को देखकर महऋषि भरद्वाज उत्तेजित हो गये और उनका अवांछित वीर्यपात हो गया.
उस समय में वीर्य को केवल नए जीवन के बीज के रूप में ही बाहर निकालने की परंपरा थी. दूसरे, वर्षों की कड़ी तपस्या और सयंम से पुरुष का वीर्य एक अति-तेजस्वी और बलशाली संतान को सक्षम देने में समर्थ था, महऋषि ने इस वीर्य को व्यर्थ जाने देना उचित नहीं समझा और उसे पीपल के पत्ते की सहायता से एक द्रोणा यानि कलश में कुछ अन्य उपाय करके स्थापित कर दिया. समय आने पर इससे तेजस्वी और महान धनुर्धर गुरु द्रोणाचार्य का जन्म हुआ. अत: द्रोणाचार्य पहले ज्ञात टेस्ट ट्यूब बेबी थे.
एकलव्य का धृष्टदयुम्न के रूप में पुनर्जन्म
एकलव्य ने धृष्टदयुम्न के रूप में पुनर्जन्म लेकर द्रोणाचार्य का वध किया
द्रौपदी के साथ उनके भाई धृष्टदयुम्न का भी जन्म हुआ था. माना जाता है कि धृष्टदयुम्न पूर्वजन्म के एकलव्य थे. गुरु द्रोण ने उनकी तीरंदाजी के महाकौशल को देखते हुए उन्हें राज-परंपरा के लिए एक खतरा समझा और उनसे गुरुदक्षिणा में उनका अंगूठा मांग लिया था. एकलव्य ने बायें हाथ से धनुष चलाना सीख लिया था.
रुक्मिणी के हरण के समय श्रीकृष्ण के हाथों से एकलव्य मारा गया. उस समय श्रीकृष्ण ने एकलव्य को अगले जन्म में द्रोणाचार्य के वध के लिए जन्म लेने का वरदान दिया था. इस तरह एकलव्य ने पुनर्जन्म लेकर द्रोणाचार्य का वध किया था. यह शरीर बदल कर कार्य करने के सिद्धांत का एक अन्य उदाहरण था.
केवल अर्जुन ने ही श्रीकृष्ण के विश्वरूप को नहीं देखा था
अर्जुन के रथ पर ध्वजा पर विराजमान पवन-पुत्र हनुमान
युद्ध के शुरू होने से पहले ही शत्रु सेना में अपने सगे-सम्बन्धियों को देख कर अर्जुन के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया. अर्जुन को पलायन करता देख श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता के रूप उपदेश दिया और उन्हें अपने विराट विश्वरूप के दर्शन कराये जिससे अर्जुन का मन मोह-माया को त्याग कर युद्ध के लिए तत्पर हुआ. ऐसा माना जाता है कि यह उपदेश और दर्शन अर्जुन को ही प्राप्त हुआ लेकिन दो अन्य लोग भी थे जिन्होंने यह उपदेश भी सुना और भगवान के विश्व-रूप के दर्शन भी किये.
संजय ने दिव्य दृष्टि के कारण देखा और सुना
संजय महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र थे. वे कौरव राजा धृतराष्ट्र के सारथी थे. महाभारत युद्ध के शुरू होने पर धृतराष्ट्र ने युद्ध देखने का आग्रह किया. चूंकि धृतराष्ट्र अंधे थे इसलिए महर्षि वेदव्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की ताकि वे सारा वृत्तांत धृतराष्ट्र को ‘लाइव’ सुना सकें. इसी कारण संजय ने भी दिव्य दृष्टि से कृष्ण के विश्वरूप को देखा था.
श्री हनुमान ने भी देखा-सुना है क्योंकि वे अर्जुन के रथ पर विराजमान थे
पवन-पुत्र हनुमान, अर्जुन के रथ पर ध्वजा पर विराजमान थे. इसलिए रणभूमि में जो कुछ भी घटित हुआ वह सब कुछ उन्होंने देखा और सुना.
अर्जुन किन्नर के रूप में
एक दिन जब स्वर्ग में गन्धर्व चित्रसेन अर्जुन को संगीत और नृत्य की शिक्षा दे रहे थे, वहाँ अप्सरा उर्वशी आई और अर्जुन पर मोहित हो गई. उर्वशी ने अर्जुन के सामने विवाह करने का प्रस्ताव रखा लेकिन अर्जुन ने इसे विनम्रता से ठुकरा दिया. क्योकिं वह इंद्र की पत्नी थी और चूंकि अर्जुन इंद्र के अंश-पुत्र थे इसलिए उनके लिए उर्वशी माता के समान थी.
अर्जुन द्वारा ठुकराए जाने पर उर्वशी क्रोधित हो गईं और उसने अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसक या हिजड़ा बनने का शाप दे दिया. यह श्राप अज्ञात-वास के दौरान उनके काम आया जब वे बृहन्नला नाम से विराट नगर में अपनी होने वाली पुत्रवधू उत्तरा की संगीत और नृत्य की शिक्षिका के रूप में कार्यरत रहे.
भीष्म के पांच ‘पांडव विनाशक’ तीर
युद्ध के दौरान, दुर्योधन ने भीष्म पितामह पर पांडवों के प्रति नरम रवैया अपनाने का आरोप लगाया. इस आरोप से भीष्म क्षुब्ध हो गये और उन्होंने अपने तरकश से पांच तीर निकाले, उन पर कुछ मंत्र फूंके और दुर्योधन को वचन दिया कि इन पांच तीरों से वे अगले दिन पांडवों का वध करेंगे. दुर्योधन इससे संतुष्ट नहीं हुआ और उसने इन तीरों को अपने कब्जे में ले लिया.
श्रीकृष्ण की सलाह पर अर्जुन ने दुर्योधन से ये पांच तीर दुर्योधन द्वारा अर्जुन को दिए एक वरदान के बदले में मांग लिए.
श्रीकृष्ण हुए शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा को तोड़ने के लिए विवश
क्रोध में भीष्म को मारने ले लिए लपकते श्रीकृष्ण और उनको रोकते अर्जुन
युद्ध से पहले, भगवान श्रीकृष्ण ने प्रण किया था कि वह इस युद्ध में हथियार नहीं उठाएँगे. वहीँ महायोद्धा भीष्म ने भी प्रण किया था कि वह या तो श्रीकृष्ण को हथियार उठाने पर मजबूर कर देंगे या पांडवों का वध कर देंगे. युद्ध के दौरान, भीष्म पांडवों की सेना को बुरी तरह कुचल रहे थे और अर्जुन भी उन्हें रोक नहीं पा रहे थे.
कोई चारा न देख अंत्यंत क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह को मारने के लिए रथ के पहिए को उठा कर दौड़ पड़े. अर्जुन ने उन्हें भक्त और सखा होने का वास्ता देकर रोक लिया ताकि श्रीकृष्ण के प्रण की मर्यादा बनी रहे.
जब अर्जुन युधिष्ठिर को मारने के लिए उतारू हुए
सूतपुत्र कर्ण पांडव सैनिकों का भयानक संहार कर रहा था. इसी दौरान कर्ण ने युधिष्ठिर पर एक ज़ोरदार वार किया और वे बुरी तरह घायल हो गये. नकुल तथा सहदेव ने भ्राता युधिष्ठिर की यह हालत देखी तो शीघ्र ही वे उन्हें शिविर में ले गए.
युधिष्ठिर ने जब अर्जुन आते देखा तो वह बहुत खुश हुए. उन्हें अति-विश्वास था कि अर्जुन ने अपने भ्राता को घायल करने के बदले में कर्ण को अवश्य ही मार डाला होगा. लेकिन जब पता चला कि कर्ण जीवित है तो युधिष्ठिर बहुत क्रोधित हुए. युधिष्ठिर ने क्रोध में आकर अर्जुन गांडीव को त्याग देने को कह क्योंकि वह अपने भाई की रक्षा और प्रतिशोध नहीं ले पाने के कारण इसके लायक नहीं रहे थे.
दूसरी और, बहुत पहले ही, अर्जुन ने प्रण कर रखा था कि जो भी उन्हें गांडीव को त्यागने को कहेगा वे उसे मार डालेंगे. अब उन्हें इस दुविधा में पाकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को किसी ऐसे व्यक्ति का अनादर करने की सलाह दी जिसका वे पहले आदर करते रहे हों. इस तरह से अर्जुन ने जीवन में पहली बार भ्राता युधिष्ठर का अनादर किया.
दरअसल, किसी का अनादर करना भी कुछ समय के लिए उस व्यक्ति को नजरों में खो देने या क्षणिक मार डालने के समान समझा गया है. इस तरह से त्रिकाल-दर्शी भगवान श्रीकृष्ण की सूझबूझ से पांडवों का एक बड़ा संकट टल गया.
(यह पोस्ट Quora पर महाभारत के विषय में किये गये एक प्रश्न के एक उत्तर का हिंदी अनुवाद है. मैं Fundabook टीम की ओर से Quora और उत्तर के लेखक Aditya Anshul का आभार व्यक्त करता हूँ.)