कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। सनातन धर्म में धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि की पूजा के साथ ही कुबेर यंत्र की भी पूजा का विधान है।
मान्यता है कि भगवान धनवंतरि की पूजा के साथ ही कुबेर यंत्र की भी पूजा का विधान है। मान्यता है कि धनतेरस के दिन अगर इस यंत्र की पूजा की जाए तो जीवन में धन की कमी नहीं होती है। तो आइए जानते हैं कि कुबेर यंत्र की पूजा और नियम :-
कुबेर यंत्र
यह धन अधिपति धनेश कुबेर का यंत्र है, इस यंत्र के प्रभाव से यक्षराज कुबेर प्रसन्न होकर अतुल सम्पत्ति की रक्षा करते हैं। यह यंत्र स्वर्ण और रजत पत्रों से भी निर्मित होता है, जहां लक्ष्मी प्राप्ति की अन्य साधनायें असफ़ल हो जाती हैं, वहां इस यंत्र की उपासना से शीघ्र लाभ होता है।
कुबेर यंत्र विजय दसमीं धनतेरस दीपावली तथा रविपुष्य नक्षत्र और गुरुवार या रविवार को बनाया जाता है। कुबेर यंत्र की स्थापना गल्ले, तिजोरियों व बन्द अलमारियों में की जाती है। लक्ष्मी प्राप्ति की साधनाओं में यह यंत्र अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
विशष नियम
- धनतेरस के शुभ मुहूर्त में भगवान धनवंतरि की पूजा के बाद धन के स्वामी कुबेर की पूजा करें। लेकिन ध्यान रखें जब भी कुबेर महराज की पूजा करें तो वहां कुबेर यंत्र जरूर रखें।
- इस यंत्र को दक्षिण दिशा की और मुख करके ही स्थापित करें। इसके बाद हाथ में गंगाजल लेकर विनियोग मंत्र ‘अस्य श्री कुबेर मंत्रस्य विश्वामित्र ऋषि:वृहती छन्द: शिवमित्र धनेश्वरो देवता समाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोग:’ पढ़ें।
- विनियोग मंत्र पढ़ने के बाद हाथ में लिया हुआ जल भूमि पर छिड़क दें और कुबेर मंत्र ‘ऊं श्रीं, ऊं ह्रीं श्रीं, ऊं ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:’ का जप करें। लेकिन ध्यान रखें कि मंत्र का स्पष्टरूप से उच्चारण करना जरूरी है।
- इसकी पूजा करते समय इन मंत्रों में से कोई भी एक मंत्र पढ़ सकते हैं। इसमें अष्टाक्षर मंत्र ‘ऊं वैश्रवणाय स्वाहा:,’ षोडशाक्षर मंत्र ‘ ऊं श्री ऊं ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम:’ का जप भी कर सकते हैं। इसके अलावा पंच त्रिंशदक्षर मंत्र ‘ऊं यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये धनधान्या समृद्धि देहि दापय स्वाहा’ कहा जाता है कि इन मंत्रों के जप से धन के स्वामी कुबेरजी अत्यंत प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा से जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती।