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करंसी नोटों का इतिहास और रोचक तथ्य

रिजर्व बैंक को 10,000 रुपए तक का नोट छापने का अधिकार है। यदि यह इससे भी बड़ा नोट छापना चाहती है तो उसको सरकार से पूछना पड़ेगा और सरकार को इसके लिए कानून में संशोधन करने की आवश्यकता होगी।

भारत में नोटों की छपाई 1928 में इंडिया सिक्योरिटी प्रैस, नासिक (महाराष्ट्र) में शुरू हुई। उससे पहले भारत के
लिए नोट लंदन में ‘बैंक ऑफ इंगलैंड’ छापता था।

इसके लिए वर्ष 1861 में ‘कागजी मुद्रा अधिनियम’ बनाया गया था जिससे पहले भारत में कागज के नोटों का प्रचलन नहीं था। शुरूआत में नोट आज के नोटों जैसे नहीं थे। समय के साथ उनमें तरह-तरह के बदलाव होते रहे।

जब नोट नहीं थे

सबसे पहले एक चीज के बदले चीज का लेन-देन किया जाता था। उसके बाद सिक्कों का चलन शुरू हुआ। जब कारोबार फैलने लगे और नोटों का प्रचलन नहीं था तब साहूकार अपनी साख के अनुसार हुंडियां जारी करते थे।

ये वर्तमान के वचन पत्र, बैंक ड्राफ्ट आदि का पुराना रूप कही जा सकती हैं। उन दिनों जब कोई व्यक्ति कहीं बाहर जाता तो वह अपना धन साहूकार के पास रख जाता था।

साहूकार बदले में उसे ‘रुक्का’ लिख कर दे देता जिसके आधार पर वह व्यक्ति दुसरी जगह धन तथा अन्य जरूरी चीजें प्राप्त कर लेता था। आज यह काम बैंक करते हैं

ब्रिटिश काल के पहले नोट

सबसे पहले ब्रिटिश इंडिया नोट विक्टोरिया पोर्टेट सीरीज’ के थे। इन्हें 10, 20, 50, 100, 1000 के मूल्यवर्ग में जारी किए गए थे। इनमें एक ओर ही छपाई होती थी जबकि दूसरी ओर से ये कोरे होते थे।

ये ‘लेवरस्टॉक पेपर मिल्स’ में निर्मित हाथ से बने कागज पर मुद्रित किए जाते थे। सुरक्षा के लिए इनमें वॉटरमार्क के रूप में ‘भारत सरकार’ ‘रुपी’ ‘दोहस्ताक्षर’ और ‘लहराती रेखाएं होती थीं।

बड़े पैमान पर इन्हें जाली रूप से तैयार होने पर इनकी जगह पर 1867 में ‘अंडरप्रिंट सीरीज’ शुरू की गई जो 1923 में ‘किंग्स पोर्टेट सीरीज’ शुरू करने तक चलते रहे।

आधुनिक करंसी नोट

ये वास्तव में बैंक नोट होते हैं जो एक तरह का वचन पत्र हैं। इन्हें बैंक नोट इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये बैंक द्वारा छपवाए और जारी किए जाते हैं।

प्रायः सभी देशों में वहां के प्रमुख बैंक, केंद्रीय बैंक के रूप में काम करते हैं और अपने देश में बैंक नोट जारी करते हैं।

नोटों की सुरक्षा के लिए

वाटर मार्क : कागज पर वाटर मार्क का चलन वर्ष 1282 में इटली के एक कागज निर्माता ने शुरू किया था। शुरू में नोट इतने सादा होते थे कि उनकी नकल आसानी से की जा सकती थी लेकिन अब नकल करना बहुत कठिन है क्योंकि पहचान के लिए नोटों पर कई तरह के वाटर मार्क बने होते हैं।

सिक्योरिटी थ्रैड : नोट की नकल न हो इसके लिए नोट पर लम्बा निशान भी डाला जाता है जिसे ‘सिक्योरिटी थ्रैड ‘ कहते हैं।

नोट के लिए कागज : नोट छापने के लिए विशेष तरह का कागज इस्तेमाल किया जाता है। यह कागज 1967-68 तक इंगलैंड की एक कम्पनी से खरीदा जाता था।

1962 में होशंगाबाद में कागज मिल लगाने का निश्चय किया गया जिसने जून 1968-69 में नोट छापने का कागज बनाना शुरू कर दिया। अब भारत में 4 जगहों पर नोटों की छपाई होती है।

नोटों के लिए कागज बनाते समय उसमें रोल का उपयोग विशेष ढंग से किया जाता है जिसकी वजह से कागज ज्यादा टिकाऊ होता है और वह भीगने या मोड़ने पर जल्दी नहीं फटता।

भारत में कौन छापता है नोट

रिजर्व बैंक द्वारा विभिन्न मूल्यों के नोट छापे जाते हैं। हालांकि रिजर्व बैंक को 10,000 रुपए तक का नोट मुद्रित करने का अधिकार है।

यदि यह इससे भी बड़ा नोट छापना चाहता है तो उसे सरकार से पूछना पड़ेगा और सरकार को इसकी अनुमति देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम में संशोधन करने की आवश्यकता होगी।

रिजर्व बैंक हर साल इस बात का अनुमान लगाता है कि अर्थव्यवस्था में कितने नोटों की जरुरत होगी, इसी के आधार पर वह बैंक नोटों को छापने के लिए सरकार से अनुमति लेता है लेकिन सरकार भी अंतिम निर्णय लेने से पहले रिजर्व बैंक के वरिष्ठ स्टाफ से सलाह लेती है।

यानी भारत में नोट छापने का अंतिम निर्णय भारत सरकार के पास है। हालांकि, सरकार भी रिजर्व बैंक से सलाह लेती है।

पंजाब केसरी से साभार

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भारतीय मुद्रा के बारे में 15 दिलचस्प तथ्य

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