बॉलीवुड की ये 10 रोमांटिक फ़िल्में आपको अपने पार्टनर के साथ जरूर देखनी चाहिए

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बॉलीवुड में फिल्मों का भरमार है और जब रोमांटिक फिल्मों की बात हो तो शायद ही कोई इंडस्ट्री बॉलीवुड से बेहतर फिल्में बना पाए। 80-90 के दशक से लेकर आज तक बॉलीवुड में कई बेहतरीन रोमांटिक फिल्में बनी हैं। आज हम आपको बॉलीवुड की उन 10 रोमांटिक फिल्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपको अपने पार्टनर के साथ जरूर देखनी चाहिए।

बरसात 1949

इस लिस्ट में सबसे पहले नाम राज कपूर द्वारा निर्देशित फिल्म बरसात का आता है। यह फिल्म 1949 में बनी थी। यह फिल्म दो प्रेम कहानियों पर आधारित है। इस फिल्म में प्राण (राज कपूर), रेशमा (नर्गिस), गोपाल (प्रेमनाथ) और नीला (निम्मी) मुख्य किदार में हैं।

इस फिल्म में प्राण और रेशमा को अपने प्यार को पाने के लिए कई कठिनाई का सामना करना पड़ता है और अंत में वे मिल जाते हैं। वहीं, दूसरी तरफ गोपाल अंततः सच्चा प्यार महसूस करता है और नीला की ओर दौड़ता है। जहाँ उसे वो मृत मिलती है। यह फिल्म गोपाल द्वारा नीला के अंतिम संस्कार के साथ समाप्त होती है।

कुछ कुछ होता है 1998

शाहरुख-काजोल-रानी की फिल्म ‘कुछ-कुछ होता है’ 1998 में रिलीज हुई थी। यह फिल्म बेहतरीन रोमांटिक फिल्मों में से एक है। इस फिल्म की कहानी कॉलेज में पढ़ने वाले दो बैस्ट फ्रैंड राहुल और अंजली पर आधारित है।

इसे करण जौहर ने लिखा और निर्देशित किया था। लोकप्रिय ऑन-स्क्रीन जोड़ी शाहरुख खान और काजोल ने यह अपनी चौथी फिल्म में एक साथ की थी। फिल्‍म ने कई सारे पुरस्‍कार भी अपने नाम किए थे।

आशिकी 1990

आशिकी, साल 1990 में रिलीज़ हुई एक म्यूजिकल रोमांस ड्रामा फिल्म है, जिसका निर्देशन महेश भट्ट ने किया था। यह इकलौती फिल्म है, जिसके लिए लोग एक्टर राहुल रॉय को याद करते हैं।

अनु अग्रवाल के साथ उनकी कैमिस्ट्री को लोगों ने खूब पसंद किया था। फिल्म में राहुल (राहुल रॉय) के पिता उनकी मां के होते हुए दूसरी शादी करते हैं, जिससे नाराज होकर राहुल शादी स्थल पर तोड़-फोड़ करते हैं।

दिल वाले दुहलनिया ले जाएंगे 1995

यश चोपड़ा ने शाहरुख़ खान और काजोल की जोड़ी को लेकर उस दौर की सबसे अच्छी फ़िल्में बनाई। समकालीन फिल्मों में “दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे” अब तक सबसे सफल फिल्मों में से एक है। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे।

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दिल वाले दुहलनिया ले जाएंगे फिल्म में कहानी दिखाई गई है राज और सिमरन की। सिमरन के पिता चाहते हैं कि उनकी बेटी अरेंज मैरिज करे, लेकिन सिमरन राज को चाहती है।

दिल तो पागल है 1997

साल 1997 में रिलीज हुई “दिल तो पागल है” बॉलीवुड की रोमांटिक, म्यूजिकल ड्रामा फिल्म है। यह फिल्म उस दौरान सुपरहिट साबित हुई थी। जिसे 3 नेशनल अवार्ड और 8 फिल्मफेयर अवार्ड मिले थे। इस फिल्म को शाहरुख खान, माधुरी दीक्षित, करिश्मा कपूर पर फिल्माया गया था।

 

मोहब्बतें, 2000

शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय और अमिताभ बच्चन की इस मल्टीस्टारर फिल्म से कई सारे एक्टर्स ने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था। ये फिल्म सुपरहिट रही थी। इस फिल्म ने उस दौर के लोगों को बिना किसी शर्त के प्यार करना सिखाया था।

 

हम आपके हैं कौन, 1994

यह फिल्म प्रेम (सलमान) और निशा (माधुरी दीक्षित) की प्रेम कहानी पर आधारित है। दोनों प्रेम के बड़े भाई राजेश (मोहनीश बहल) और निशा की दीदी, पूजा (रेणुका शहाणे) की शादी में मिलते हैं। दोनों शुरुआत में झगड़ते रहते हैं। फिर एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं। बात शादी तक पहुंच जाती है।

 

हम दिल दे चुके सनम

1999 में आई संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम‘ एक रोमांटिक फिल्म है। जिसकी कहानी राजस्थान के रेगिस्तान से यूरोपीय शहर हंगरी तक जाती है, जो शादी के बाद के प्रेम पर केंद्रित है।

इस फिल्म में सलमान खान, ऐश्वर्या राय बच्चन और अजय देवगन मुख्य भूमिकाओं में हैं। ये फिल्म इन स्टार्स के करियर के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई थी। इस फिल्म के रिलीज के बाद उन्हें बहुत लोकप्रियता मिली थी।

 

जब वी मेट 2007

जब वी मेट वर्ष 2007 में रिलीज हुई एक रोमांटिक फिल्म है, जिसका निर्देशन इम्तियाज अली ने किया है। फिल्म में करीना कपूर, और शाहिद कपूर मुख्य भूमिका में थे। इस फिल्म का ऑडियंस के बीच गजब का क्रेज था। इम्तियाज अली की जब वी मेट बेहतरीन फिल्मों में से एक है।

 

रहना है तेरे दिल में, 2001

फिल्म “रहना है तेरे दिल में” सिनेमाघरों में 19 अक्टूबर सन 2001 को रिलीज हुई थी। इस फिल्म में माधवन बने थे  मैडी, जोकि अपने कॉलेज का बैड बॉय होता है। पढ़ाई-लिखाई से उसका दूर-दूर तक नाता नहीं होता।

वहीं उसका कट्टर प्रतिद्वंद्वी सैम (सैफ अली खान) एक गुड स्टूडेंट होता है। दोनों अक्सर लड़ते रहते हैं। खैर, कॉलेज खत्म होता है और दोनों अपने-अपने रास्ते निकल पड़ते हैं।

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यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित 7 टॉप रोमांटिक फ़िल्में

बॉलीवुड के दिग्गज निर्देशक स्वर्गीय यश चोपड़ा रोमांटिक फिल्मों के निर्देशन के लिए जाने जाते थे। अपनी फिल्मों के द्वारा उन्होंने नौजवान स्त्री-पुरुष के बीच प्रेम संबंधों को बेहद रोमांटिक और दिलचस्प ढंग से प्रस्तुत किया। अपने प्यार को पाने के लिए प्रेमी-प्रेमिका के द्वारा आखरी सांस तक लड़ने की इच्छा और संघर्ष को उन्होंने अपनी लगभग फिल्म की विषयवस्तु बनाया।

उनको अपने बेहतरीन निर्देशन के लिए कई पुरूस्कारों से भी सम्मानित किया गया। इससे अलग उन्हें 11 बेस्ट फिल्मफेयर पुरुस्कारों से भी सम्मानित किया गया। यहाँ प्रस्तुत है उनके द्वारा निर्देशित 7 रोमांटिक फिल्मों का संक्षिप्त समयानुसार ब्यौरा।

 वक़्त

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हालांकि यश चोपड़ा ने अपने करियर की शुरुआत “धूल के फूल” फिल्म के निर्देशन से की, लेकिन उनके सफलता के अभियान की शुरुआत उनके द्वारा निर्देशित फिल्म “वक़्त” से हुई। उनको इस फिल्म द्वारा बॉक्स ऑफिस में बेहतरीन प्रदर्शन के कारण बेस्ट फिल्म-फेयर पुरुस्कार दिया गया।

 कभी कभी

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कभी कभी” फिल्म एक बेहतरीन प्रेम कथा पर आधारित है। शायद यह यश चोपड़ा द्वारा बनाई गई सबसे अच्छी फिल्मों में से एक है। इस फिल्म में शशि कपूर और अमिताभ बच्चन ने मुख्य किरदार अदा किए थे। यह फिल्म अपने समय की आठवीं सबसे ज्यादा बॉक्स ऑफिस पर कमाई करने वाली फिल्म थी।

 चांदनी

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यश चोपड़ा की कुछ लगातार फिल्मों की असफलता के बाद उन्होंने 1989 में “चांदनी” फिल्म का निर्देशन किया। इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर बहुत अच्छी सफलता मिली। इस फिल्म में श्रीदेवी, ऋषि कपूर और विनोद खन्ना ने मुख्य किरदार निभाए। इस फिल्म को बेस्ट नेशनल फिल्म का पुरूस्कार भी दिया गया।

 लम्हे

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सूत्रों के मुताबिक “लमहे” फिल्म को पूरी तरह से यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित किया गया था। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस हालाँकि असफल रही लेकिन यह फिल्म शानदार स्टोरी और अभिनय के लिए समय खबरों में बनी रही। इस फिल्म ने कई सारे पुरुस्कार भी जीते।

दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे

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यश चोपड़ा ने शाहरुख़ खान और काजोल की जोड़ी को लेकर दौर की सबसे अच्छी फ़िल्में बनाई। समकालीन फिल्मों में “दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे” अब तक कि बनी फिल्मों में सबसे सफल फिल्मों में से एक है। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। मुंबई के मराठा मंदिर सिनेमाघर में 19 अक्टूबर 1995 को शुरू होने के बाद यह लगातार 1009 सप्ताह यानि लगभग 20 साल चली जो की एक विश्व रिकार्ड है।

 दिल तो पागल है

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यश चोपड़ा ने  “दिल तो पागल है” फिल्म को निर्देशित किया और यह फिल्म 1997 में सबसे सफल फिल्म रही। इस फिल्म में बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान ने मुख्य किरदार अदा किया।

इस फिल्म में करिश्मा कपूर और माधुरी दीक्षित ने अपने बेहतर प्रदर्शन से दर्शकों का दिल जीत लिया। इस फिल्म ने कई पुरुस्कार भी जीते और यह फिल्म “दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे” के बाद दूसरी सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म बनी।

 वीर ज़ारा

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यश चोपड़ा ने एक बार फिर “वीर ज़ारा” फिल्म के निर्देशन से वापसी की। यह फिल्म भारतीय लड़के और पाकिस्तान की लडकी की प्रेम कहानी पर बनी है। इस फिल्म की सफलता के बाद यश चोपड़ा ने एक बार फिर इस फिल्म से अपने दर्शकों के दिलों को पूरी तरह से जीत लिया था। यह फिल्म 2004 में सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म बनी। यह फिल्म यश चोपड़ा द्वारा शाहरुख़ खान के साथ बनायी गयी तीसरी सबसे ज्यादा सफल फिल्म थी।

प्रखर वक्ता से कुशल राजनेता सुषमा स्वराज के बारे में रोचक तथ्य

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सुषमा स्वराज एक भारतीय महिला राजनीतिज्ञ और भारत की पूर्व विदेश मंत्री थीं। सुषमा स्वराज देश की उन चुनिंदा मंत्रियों में से थीं, जिनकी पहचान उनकी पार्टी से नहीं बल्कि उनके काम के जरिए होती थी।

सुषमा स्वराज के अंतिम समय तक उन्होंने अपने कामों से देश की राजनीति और अपनी पार्टी में एक अलग जगह बनाई हुई थी। आज हम इस लेख में जानेगें देश की सशक्त महिला राजनेता सुषमा स्वराज के बारे में कुछ रोचक तथ्य।

Interesting facts about Sushma Swaraj

रोचक तथ्य

  • सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा (तब पंजाब) राज्य की अम्बाला छावनी में हरदेव शर्मा तथा लक्ष्मी देवी के घर हुआ था।
  • उनके माता-पिता पाकिस्तान के लाहौर के धरमपुरा इलाके के रहने वाले थे।
  • उन्होंने अम्बाला के सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत तथा राजनीति विज्ञान में स्नातक किया। 1970 में उन्हें अपने कालेज में सर्वश्रेष्ठ छात्रा के सम्मान से सम्मानित किया गया था। वे तीन साल तक लगातार एस॰डी॰ कालेज छावनी की एन सी सी की सर्वश्रेष्ठ कैडेट और राज्य की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी वक्ता भी चुनी गईं थी।

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  • सुषमा स्वराज ने पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से वकालत की पढ़ाई की थी।
  • 1970 के दशक की शुरुआत में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में शामिल हो गईं और वहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा शुरू हुई।
  • 1973 में सुषमा स्वराज ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में अभ्यास शुरू किया। वह स्वराज कौशल के साथ बड़ौदा डायनामाइट मामले (1975-77) में जॉर्ज फर्नांडीस की कानूनी रक्षा टीम का हिस्सा थीं।
  • आपातकाल के दौरान, सुषमा स्वराज ने 13 जुलाई, 1973 को स्वराज कौशल से शादी की। स्वराज कौशल से शादी से पहले सुषमा स्वराज का नाम सुषमा शर्मा था। उनकी एक बेटी है जिसका नाम बांसुरी स्वराज है।
  • स्वराज कौशल को 34 वर्ष की कम उम्र में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था। उन्होंने मिजोरम के राज्यपाल (फरवरी 1990 से फरवरी 1993) के रूप में भी कार्य किया था।
  • 1977 में सुषमा स्वराज 25 साल की उम्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवीलाल की अध्यक्षता वाली जनता पार्टी सरकार में सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री बनीं।
  • 1979 में 27 साल की छोटी उम्र में सुषमा स्वराज हरियाणा राज्य की जनता पार्टी की अध्यक्ष बनीं। वह भारत में किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता भी थी।
  • भाजपा की पहली महिला मुख्यमंत्री, महासचिव, विपक्ष की नेता, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, प्रवक्ता और विदेश मंत्री के रूप में स्वराज के नाम कई उपलब्धियां हैं।
  • 19 मार्च 1998 से 12 अक्टूबर 1998 तक वह सूचना एवं प्रसारण मंत्री के पद पर रहीं। इस अवधि के दौरान उनका सबसे उल्लेखनीय निर्णय फिल्म उद्योग को एक उद्योग के रूप में घोषित करना था, जिससे कि भारतीय फिल्म उद्योग को भी बैंक से क़र्ज़ मिल सकता था।
  • सुषमा स्वराज ने 13 अक्टूबर 1998 से 3 दिसंबर 1998 तक दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया था।

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  • भीड़ के बीच उनकी लोकप्रियता स्पष्ट रूप उस वक्त देखी गई जब वह कर्नाटक में बेल्लारी निर्वाचन क्षेत्र के लिए अपने अभियान के केवल 12 दिनों में 358,000 वोट हासिल करने में सफल रहीं जहां उन्होंने सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था हालाँकि वह चुनाव हार गई थी।
  • केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री (जनवरी 2003 से मई 2004) के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर और ऋषिकेश में 6 अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान खोले।
  • सुषमा स्वराज भारतीय संसद की प्रथम एवं एकमात्र ऐसी महिला सदस्या थी जिन्हें आउटस्टैण्डिंग पार्लिमैण्टेरियन सम्मान मिला था।
  • उन्होंने 26 मई, 2014 से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया।

मज़ेदार किस्सा : जब सैफ अली खान ने अमृता सिंह से उधार लिए थे 100 रुपये

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जब सैफ अली खान ने बॉलीवुड में अपना सफर शुरू किया था तब वह काजोल के साथ एक रोमांटिक फिल्म बेखुदी से डेब्यू करने वाले थे। हालाँकि बाद में उनकी जगह कमल सदाना को इस फिल्म में कास्ट किया गया था।

जिस समय सैफ एक संघर्षरत अभिनेता थे, उस समय अमृता सिंह बॉलीवुड में एक जाना-माना नाम बन गई थीं। इन दोनों की मुलाकात एक फोटोशूट के दौरान हुई थी। दोनों में दोस्ती हुई और दोस्ती धीरे धीरे प्यार में बदल गई।

दोनों ने 1991 में अपने परिवार के खिलाफ जाकर शादी कर ली। सैफ अमृता से 12 साल छोटे थे। इतना ही नहीं दोनों के बीच धर्म का भी बहुत बड़ा फासला था लेकिन इन सब के बावजूद सैफ और अमृता ने एक-दूसरे के साथ हमेशा रहने का फैसला किया। शादी के बाद दोनों के दो बच्चे सारा अली खान और इब्राहिम अली खान हुए, जिनके साथ अमृता और सैफ बहुत खुश थे।

लेकिन दोनों के रिश्ते के बीच वक्त के साथ तनाव आने लगा। इसी वजह से सैफ और अमृता ने शादी के 13 साल बाद आपसी सहमति से तलाक ले लिया। हालांकि जब अमृता सिंह और सैफ अली खान एक कपल थे तब दोनों सिमी गरेवाल के शो ‘रेंडेज़वस विद सिमी गरेवाल’ में गए थे। जहाँ अमृता ने एक मज़ेदार किस्सा बताया था।

उन्होंने कहा कि एक बार सैफ ने मुझसे 100 रुपये उधार लिए थे। जी हाँ, अमृता सिंह ने कहा कि एक बार सैफ अली खान मेरे घर आए और तब वह दो दिन तक मेरे घर ही रुक गए थे। इसके बाद जब उन्हें शूटिंग के लिए जाना था तो उन्होंने मुझसे 100 रुपये मांगे थे क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे। तो मैंने कहा था आप मेरी कार क्यों नहीं लेते? सैफ ने जवाब देते हुए कहा था, मेरे लिए प्रोडक्शन की कार बाहर इंतजार कर रही है, इसलिए मुझे आपकी कार की जरूरत नहीं है। सैफ की इस बात पर मैंने कहा था, नहीं ले लो। अगर और कुछ नहीं तो आप कम से कम कार वापस करने के लिए तो वापस आएंगे।

इसके आगे एक्ट्रेस ने सैफ अली खान की तारीफ करते हुए कहा, मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि मेरी शादी मुझसे इतनी छोटी उम्र के आदमी से होगी। सैफ ही एकमात्र व्यक्ति थे, जो मेरे साथ शांत रहते थे। उनकी ये बात मेरे लिए बहुत मायने रखती थी।

इस चैट शो में सैफ ने भी अमृता की तारीफ करते हुए कहा, कि मुझे लगता है कि आपको बहुत कम ऐसे लोगों से मिलते हैं, जिनके साथ आपका कनेक्शन बनता है। मुझे नहीं लगता कि, मैं दोबारा किसी की तलाश करूँगा, इसी वजह से मैं यहीं रुक गया।

“भारतीय कोकिला” के नाम से प्रसिद्ध सरोजिनी नायडू के बारे में कुछ रोचक तथ्य

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सरोजिनी नायडू को भारत की कोकिला या “भारतीय कोकिला” के नाम से जाना जाता है। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और महिलाओं के अधिकारों को भी बढ़ावा दिया। उनका जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। सरोजिनी नायडू एक कवयित्री और महान राजनीतिज्ञ थीं।

उनकी साहित्यिक रचनाएँ पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद वे उत्तरप्रदेश की पहली राज्यपाल बनी थीं। वह भारत की प्रभावशाली हस्तियों में से एक थीं जिन्होंने गौरवशाली जीवन जीया।

Sarojini Naidu

सरोजिनी नायडू के बारे में रोचक तथ्य

  • 12 साल की उम्र में उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत की। बचपन में उन्होंने एक नाटक “माहेर मुनीर” लिखा जिससे उन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली।
  • उन्हें 16 साल की उम्र में हैदराबाद के निज़ाम से छात्रवृत्ति मिली और वह पढ़ने के लिए लंदन किंग्स कॉलेज चली गईं। वहां नोबेल पुरस्कार विजेता आर्थर साइमन और एडमंड गॉसे ने उन्हें लेखन के लिए भारतीय विषयों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कविताओं के माध्यम से अपनी भावनाओं और अपने अनुभवों को व्यक्त करके वह 20वीं सदी की एक अविश्वसनीय कवयित्री बन गईं थी।
  • लंदन में, अपने कॉलेज के दिनों के दौरान, उन्हें एक चिकित्सक पदिपति गोविंदराजुलु नायडू से प्यार हो गया और 1898 में 19 साल की उम्र में उन्होंने शादी कर ली। उनके चार बच्चे थे जिनके नाम जयसूर्या, पद्मजा, रणधीर और लीलामन था।
  • उनका राजनीतिक करियर 1905 में शुरू हुआ जब वह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनीं। 1915-18 में भारत में उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों, स्थानों की यात्रा की जहाँ उन्होंने सामाजिक कल्याण, महिला सशक्तिकरण और राष्ट्रवाद पर उपदेश दिए। 1917 में उन्होंने महिला भारतीय संघ (WIA) की स्थापना की।
  • 1925 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं थी। उन्होंने 1930 में नमक सत्याग्रह में भी भाग लिया था।
  • भारत में प्लेग महामारी के दौरान उनके काम के लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कैसर-ए-हिंद मेडल से भी सम्मानित किया था।
  • उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसी दौरान ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था।
  • 1905 में उनका पहला कविता संग्रह ‘द गोल्डन थ्रेशोल्ड‘ नाम से प्रकाशित हुआ। इसके अलावा 1961 में सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू ने ‘द फेदर ऑफ द डॉन‘ नाम से दूसरा कविता संग्रह प्रकाशित किया, जो 1927 में लिखा गया था।
  • उन्होंने 1947 से 1949 तक आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।
  • सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज, सरोजिनी नायडू कॉलेज फॉर वुमेन, सरोजिनी नायडू स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड कम्युनिकेशन, सरोजिनी देवी आई हॉस्पिटल जैसे कई संस्थानों का श्रेय भारत की सबसे प्रभावशाली शख्सियत यानी सरोजिनी नायडू को दिया जाता है।
  • 2 मार्च 1949 को लखनऊ के गवर्नमेंट हाउस में कार्डियक अरेस्ट के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी।
  • वह राष्ट्रपिता “गांधीजी” की सबसे मजबूत वकील थीं और उन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने की हर विचारधारा में उनका समर्थन किया था। उन्हें महात्मा गांधी प्यार से “मिक्की माउस” कहते थे।

अबू धाबी में बनने जा रहा ” पहला हिन्दू मंदिर” जाने कुछ खास बातें

संयुक्त अरब अमीरात अबू धाबी में पहला हिंदू मंदिर उद्घाटन के लिए तैयार है। यह मंदिर एक पारंपरिक हिंदू पूजा स्थल है जिसे संयुक्त अरब अमीरात के अबू धाबी में बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था द्वारा बनाया जा रहा है ।

यह मंदिर संयुक्त अरब अमीरात में सांस्कृतिक विविधता और सहिष्णुता का प्रतीक है, साथ ही भारत और यूएई के बीच गहरे संबंधों को भी दिखाता है। 14 फरवरी को पीएम मोदी इस मंदिर का उद्घाटन करेंगे। दोनों देशों में मौजूद हिंदू समुदाय के लिए यह मंदिर बेहद महत्व रखता है।

बीएपीएस मंदिर सहयोग, विश्वास और विविधता में एकता की शक्ति का एक प्रमाण है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में कार्य करेगा। पश्चिम एशिया का यह सबसे बड़ा मंदिर होगा। यह पूरी तरह से पत्थर का बना है।

इस लेख में हम जानेगें इस मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में, तो चलिए शुरू करते हैं।

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  • इस मंदिर की ऊंचाई 108 फीट, लंबाई 262 फीट और चौड़ाई 180 फीट है। मंदिर अबू धाबी में ‘अल वाकबा‘ नाम की जगह पर 27 एकड़ जमीन पर बनाया गया है, हाइवे से सटा अल वाकबा अबू धाबी से तकरीबन 30 मिनट की दूरी पर है।
  • मंदिर में नक्काशी के माध्यम से प्रामाणिक प्राचीन कला और वास्तुकला को पुनर्जीवित किया गया है। ऐतिहासिक मंदिर का काम समुदाय के समर्थन, भारत और यूएई के नेतृत्व से आगे बढ़ रहा है।
  • मंदिर में स्वामी नारायण, अक्षर पुरुषोत्तम, राधा-कृष्ण, राम-सीता, लक्ष्मण, हनुमान, शिव-पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, पद्मावती- वेंकटेश्वर, जगन्नाथ और अयप्पा की मूर्तियां होंगी।
  • यह पश्चिम एशिया का सबसे बड़ा मंदिर होगा जिसमें 10,000 लोगों की क्षमता होगी। इसकी अन्य वास्तुशिल्प विशेषताओं में शामिल हैं दो घुमट (गुम्बद), सात शिखर (संयुक्त अरब अमीरात में सात अमीरात के प्रतीक), 12 समरन और 402 स्तम्भ इसमें बलुआ पत्थर की इमारत की पृष्ठभूमि में संगमरमर की नक्काशी की गई है।
  • मंदिर भारत में कुशल कारीगरों द्वारा तराशे गए 25,000 से अधिक पत्थरों से बना है। प्रत्येक शिखर के भीतर रामायण, शिव पुराण, भागवतम, महाभारत की कहानियों और जगन्नाथ, स्वामीनारायण, वेंकटेश्वर के जीवन को चित्रित करने वाली नक्काशी है।
  • डोम ऑफ हार्मनी पांच प्राकृतिक तत्वों- पृथ्वी, जल,अग्नि, वायु और अंतरिक्ष को प्रदर्शित करता है। यहां घोड़ों और ऊंट जैसे जानवरों की नक्काशी भी है, जो संयुक्त अरब अमीरात का प्रतिनिधित्व करती है।
  • भारतीय दूतावास के आंकड़ों के मुताबिक, यूएई में तकरीबन 26 लाख भारतीय रहते हैं, जो वहां की आबादी का लगभग 30% हिस्सा है।
  • यूएई सरकार ने अबू धाबी में मंदिर बनाने के लिए 20,000 वर्ग मीटर जमीन दी थी। यूएई सरकार ने साल 2015 में उस वक्त ऐलान किया था, जब प्रधानमंत्री मोदी दो दिवसीय दौरे पर वहां गए थे। पीएम नरेंद्र मोदी ने 2018 में दुबई के दौरे पर वहां के ओपेरा हाउस से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था ने मंदिर की आधारशिला रखी थी।

वसंत पंचमी 2024 : जाने माँ सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

वसंत पंचमी को ‘सरस्वती पंचमी’ या ‘श्री पंचमी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से ज्ञान, विद्या, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती को समर्पित है।

इस दिन माँ सरस्वती का जन्म हुआ था। मान्यता है कि वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती हाथों में पुस्तक, विणा और माला लिए श्वेत कमल पर विराजमान हो कर प्रकट हुई थीं, इसलिए इस दिन माँ सरस्वती की विषेश पूजा-अर्चना की जाती है।

यह त्यौहार भारतीय धर्मों में क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। वसंत पंचमी हिंदू कैलेंडर के ‘माघ’ महीने में शुक्ल पक्ष की ‘पंचमी’ (पांचवें दिन) को मनाई जाती है, जो अंग्रेजी कैलेंडर में जनवरी-फरवरी के महीने में आती है। यह भारत में वसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है। वसंत पंचमी को होली की तैयारी की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है, जो चालीस दिन बाद होती है।

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वसंत पंचमी 2024 की तिथि

पंचांग के अनुसार माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 13 फरवरी को दोपहर 02 बजकर 41 मिनट से हो रही है। अगले दिन 14 फरवरी को दोपहर 12 बजकर 09 मिनट पर इसका समापन होगा। उदया तिथि 14 जनवरी को है, इसलिए इस साल वसंत पंचमी का पर्व 14 फरवरी को मनाया जाएगा।

14 फरवरी को वसंत पंचमी वाले दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 1 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। ऐसे में इस दिन पूजा के लिए करीब 5 घंटे 35 मिनट तक का समय है।

वसंत पंचमी का महत्व

वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन किया जाता है। इस दिन मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ करना चाहिए। इस दिन सभी स्कूल-कॉलेज में मां सरस्वती की पूजा की जाती है। वसंत पंचमी को पीले वस्त्र पहनने और दान करने का काफी महत्व माना जाता है।

मान्यता है कि इस दिन सरस्वती मां की पूजा करने से ज्ञान और बुद्धि का आशीर्वाद मिलता है। कई जगह वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती के साथ साथ विष्णु भगवान की पूजा भी की जाती है। इस दिन मां सरस्वती को खिचड़ी और पीले चावल का भोग लगाया जाता है।

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वसंत पंचमी की पूजा विधि

  • वसंत पंचमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर पीले या सफेद रंग का वस्त्र पहनें। उसके बाद सरस्वती पूजा का संकल्प लें।
  • पूजा स्थान पर माँ सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। माँ सरस्वती को गंगाजल से स्नान कराएं। फिर उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं।
  • इसके बाद पीले फूल, अक्षत, सफेद चंदन या पीले रंग की रोली, पीला गुलाल, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें।
  • इस दिन सरस्वती माता को गेंदे के फूल की माला पहनाएं। साथ ही पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं।
  • इसके बाद सरस्वती वंदना एवं मंत्र से माँ सरस्वती की पूजा करें।
  • आप चाहें तो पूजा के समय सरस्वती कवच का पाठ भी कर सकते हैं।
  • आखिर में हवन कुंड बनाकर हवन सामग्री तैयार कर लें और ‘ओम श्री सरस्वत्यै नमः स्वहा” मंत्र की एक माला का जाप करते हुए हवन करें।
  • फिर अंत में खड़े होकर माँ सरस्वती की आरती करें।

तिब्बती नव-वर्ष के त्यौहार “लोसर” से जुड़े कुछ रोचक तथ्य और जानकारी

“लोसर” (लोसार, Tibetan: ལོ་སར་ English: Losar) तिब्बत, नेपाल और भूटान का सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध त्यौहार है। यह त्यौहार भारत के असम और सिक्किम राज्यों में भी मनाया जाता है। लोसर तिब्बती भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है – नया वर्ष ( लो = नया, सर = वर्ष ; युग) यानी लोसर मतलब नया साल।

लोसर त्यौहार चंद्र-सौर तिब्बती कैलेंडर के पहले दिन से शुरू होता है जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में फरवरी या मार्च की तारीख से मेल खाता है। इस वर्ष यह त्यौहार 10 फरवरी से शुरू हो रहा है। तिब्बती लोग इस त्यौहार को नए साल के साथ साथ फसल के मौसम की शुरुआत के रूप में भी मनाते हैं।

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लोसर का इतिहास और महत्व

लोसर का उत्सव बौद्ध-पूर्व काल से चला आ रहा है जब तिब्बती लोग बॉन धर्म का पालन करते थे। उस समय हर सर्दियों में एक आध्यात्मिक समारोह आयोजित किया जाता था जिसमें स्थानीय देवताओं और आत्माओं को धूप जलाने की परंपरा थी। इस विश्वास के साथ कि वे लोगों की भलाई और रक्षा करेंगे। इस प्रकार यह धार्मिक त्यौहार किसानों का त्यौहार बन गया जो खुबानी के पेड़ों पर फूल खिलने के दौरान मनाया जाने लगा।

9वें तिब्बती राजा, पुडे गुंग्याल के शासनकाल के दौरान, एक बुजुर्ग महिला ने लोगों को चंद्रमा के विभिन्न चरणों के आधार पर समय की गणना करना सिखाया। चंद्र कैलेंडर की स्थापना के बाद ही किसानों ने इस त्यौहार को लोसर के रूप में मनाना शुरू किया।

पूरे भारत में लोसर का त्यौहार

लोसर 3 दिवसीय त्यौहार है लेकिन आम तौर पर यह उत्सव 15 दिनों तक चलता है जिसमें तिब्बती समुदाय के लोग अपने घरों को अच्छी तरह से साफ करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और अपने भगवान को ताजा पका हुआ भोजन चढ़ाते हैं। मुख्य उत्सव पहले तीन दिनों तक होता है।

पहला दिन: लामा लोसर

पहले दिन, लोग अपने घरों की साफ सफाई करते हैं और उन्हें सजाते हैं। इस दिन प्रसिद्ध गुथुक सूप और चांगकोई नामक बीयर तैयार की जाती है। यह पारंपरिक तिब्बती नूडल सूप, थुकपा भटुक का एक रूप है, जो छोटे भातसा नूडल्स से बनाया जाता है। सूप नौ सामग्रियों से बनाया जाता है – बीफ, बीफ स्टॉक, प्याज, लहसुन, मूली, मटर, टमाटर, पालक और सूखा पनीर।

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दूसरा दिन: ग्यालपो लोसर

दूसरे दिन को ग्यालपो लोसर या किंग्स लोसर के नाम से जाना जाता है और इसमें धार्मिक समारोह आयोजित किए जाते हैं। लोग स्थानीय मठों में जाते हैं और भिक्षुओं को उपहार देते हैं। पटाखे जलाए जाते हैं। माना जाता है कि पटाखे आस-पास छिपी किसी भी प्रकार की बुरी आत्मा को डरा देते हैं।

तीसरा दिन: चोए-क्योंग लोसर

तीसरे दिन, लोग जल्दी उठते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, देवताओं को प्रसाद चढ़ाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। पूजा के बाद सारा परिवार एकजुट होकर काप्से (एक प्रकार का केक) और चांग (एक स्थानीय पेय) खाते हैं।

लोग एक-दूसरे को ‘हैप्पी लोसर ‘ या “लोसर ताशी डेलेक” कहकर बधाई देते हैं। प्राथमिक लोसर त्यौहार तीसरे दिन समाप्त हो जाता है लेकिन उत्सव 12 दिनों तक जारी रहता है, जहां लोग रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने जाते हैं।

लीजेंड- सीपी कृष्णन नायर जिन्होंने 65 की उम्र में पत्नी के नाम से शुरू की “लीला होटल” चेन

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सी. पी. कृष्णन नायर का जन्म 9 फरवरी 1922 को केरल के कन्नूर में हुआ था। उनका पूरा नाम चित्तरत पूवक्कट्ट कृष्णन नायर था। वह एक भारतीय व्यवसायी थे जिन्होंने “द लीला ग्रुप” की स्थापना की थी।

भारतीय सेना में उनकी सेवा के कारण उन्हें कैप्टन नायर के नाम से भी जाना जाता था। इनके पिता अप्पू नायर ब्रिटिश सरकार में बिल कलेक्टर थे जबकि उनकी मां माधवी एक गृहणी थीं।

सी. पी. कृष्णन नायर ने अपने करियर की शुरुआत भारतीय सेना में एक कैप्टन के तौर की थी। उनकी पहली पोस्टिंग एबटाबाद (पाकिस्तान) में वायरलैस ऑफिसर के रूप में हुई थी। और उनका काम दो मुख्य धुरी ताकतों जर्मनी और जापान के बीच संदेशों को पकडऩा था।

the leela hotel C. P nair

आर्मी में रहते हुए ही इनकी शादी कन्नूर के एक कारोबारी ए के नायर की बेटी लीला नायर से हो गयी। 1951 में कृष्णन नायर ने आर्मी से रिटायरमेंट ले लिया और अपने ससुर के हैंडलूम के कारोबार को जॉइन कर लिया। उन्होंने एक सेल्स एजेंट के रूप में काम करना शुरू किया। कारोबार बढ़ाने के लिए उन्होंने कई देशों की यात्रा की।

इस दौरान उन्हें एक ऐसा होटल तैयार करने का आइडिया आया जो अपनी लग्जरी खूबियों के लिए जाना जाए और दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाए। इसी आइडिये के साथ उन्होंने 1983 में होटल लीलावेंचर लिमिटेड की शुरुआत की।

उनका पहला लीला होटल 1987 में मुंबई में खुला। इसके बाद बैंगलोर में “लीला पैलेस”, “द लीला” गोवा में और तिरुवनंतपुरम में लीला बीच रिज़ॉर्ट खोला गया।

ताज और ओबेरॉय को दी कड़ी टक्कर

जिस दौर में “द लीला” की शुरुआत हुई उस दौर में ताज और ओबेरॉय जैसे फाइव स्टार लोगों की जुबान पर थे। इन्हें कॉम्पिटीशन देना और आगे बढ़ना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन द लीला का लग्जीरियस इंफ्रास्ट्रक्चर और हॉस्पिटैलिटी के कारण इसने अपनी अलग पहचान बनाई और समय के साथ पॉपुलैरिटी बढ़ती गई।

1991 में कंपनी ने अपना दूसरा होटल गोवा में खोला। इतना ही नहीं, कंपनी ने अरब सागर और साल नदी के पास अपना रिजॉर्ट विकसित किया। यह इंटरनेशनल टूरिस्ट का गढ़ बना।

साल 2000 के बाद ग्रुप ने बड़े भारतीय शहरों की ओर रुख करना शुरू किया। जैसे- बेंगलुरू, केरल, उदयपुर और गुरुग्राम में अपनी चेन खोलीं।

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सी. पी. कृष्णन नायर और उनकी पत्नी लीला

पुरस्कार

  • अमेरिकन एकेडमी ऑफ हॉस्पिटैलिटी साइंसेज (AAHS) ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने उन्हें 1999 में ग्लोबल 500 रोल ऑफ ऑनर अवार्ड से सम्मानित किया था।
  • उन्हें 2009 में जिनेवा, स्विट्जरलैंड स्थित इंटरनेशनल होटल्स एंड रेस्तरां एसोसिएशन द्वारा “होटलियर ऑफ द सेंचुरी” पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
  • 2010 में उन्हे भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड भी मिल चुके हैं।
  • उन्होंने 7 फरवरी को होटल “द लीला” के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। 2013 में उन्होंने अपने बड़े बेटे, विवेक नायर ने उनका उत्तराधिकारी बनाया।
  • उनकी मृत्यु 92 वर्ष की आयु में 17 मई 2014 को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुई थी।

‘खुदा गवाह’ से जुड़ा एक मज़ेदार किस्सा जिसमें अमिताभ बच्चन ने श्रीदेवी को मनाने के लिए भेजा था गुलाबों से भरा ट्रक

बॉलीवुड के शहँशाह यानी अमिताभ बच्चन और दिवंगत एक्ट्रेस श्रीदेवी कभी हिंदी सिनेमा के सबसे पॉपुलर स्टार रहे हैं। इन दोनों की एक्टिंग का हर कोई दीवाना है।

अमिताभ बच्चन के साथ कई एक्ट्रेसेस की जोड़ी बनी लेकिन श्रीदेवी के साथ उनकी जोड़ी को सबसे ज्यादा पसंद किया गया था। उस दौरान हर दूसरा एक्टर अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए अमिताभ बच्चन के साथ काम करना चाहता था।

हालांकि श्रीदेवी के मामले में ऐसा नहीं था। श्रीदेवी को मनाने के लिए अमिताभ बच्चन को बहुत पापड़ बेलने पड़े थे। जी हाँ इस लेख में हम आपको श्रीदेवी से जुड़ा एक मजेदार किस्सा बताने जा रहे हैं।

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अमिताभ बच्चन ने श्रीदेवी पर की थी फूलों की बारिश

दरअसल 1992 में आई फिल्म ‘खुदा गवाह’ के लिए श्रीदेवी को मनाने के लिए बिग बी को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी।

सत्यार्थ नायक ने एक किताब लिखी है ‘श्रीदेवी: द इटरनल स्क्रीन गॉडेस‘। इस किताब में उस किस्से का ज़िक्र किया गया है जिसका दिवंगत कोरियोग्राफर सरोज खान ने खुलासा किया था।

उन्होंने कहा कि श्रीदेवी उनके साथ एक गाने पर काम कर रही थी और गाने के सेट पर एक फूलों से भरा ट्रक आया। ”जब ट्रक आया तो हम एक गाना फिल्मा रहे थे। उन्होंने श्रीदेवी को इसके पास खड़ा किया और पूरा कैरियर झुकाकर उन पर गुलाब के फूल बरसाए। यह काफी खूबसूरत सीन था।

अमिताभ बच्चन के इस खूबसूरत अंदाज़ ने श्रीदेवी को काफी इम्प्रेस किया लेकिन वह अभी भी आश्वस्त नहीं थीं क्योंकि उन्हें लगा कि उनके पास इस फिल्म में करने के लिए कुछ खास काम नहीं है। वो फिल्म में साइड कैरेक्टर प्ले नहीं करना चाहती थीं। वो महिला केंद्रित फिल्मों का हिस्सा बनना चाहती थीं।

खुदा गवाह के मेकर्स के सामने श्रीदेवी ने एक शर्त रखी थी। उन्होंने कहा था कि वो फिल्म एक ही शर्त पर करने के लिए हां कहेंगी। अगर उन्हें अमिताभ बच्चन के साथ लीड रोल और उनकी बेटी दोनों का रोल करने दिया जाएगा।

फिल्ममेकर मनोज देसाई और मुकुंद आनंद ने उनकी शर्त मान ली थी और इस तरह से श्रीदेवी खुदा गवाह की एक्ट्रेस बन गई थीं। ये फिल्म सुपरहिट साबित हुई थी।

38वें फिल्मफेयर पुरस्कारों में, खुदा गवाह को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (अमिताभ बच्चन), सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (श्रीदेवी) और सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री (शिरोडकर) सहित 9 नामांकन प्राप्त हुए और सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (आनंद) और सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता सहित 4 पुरस्कार जीते थे।

आखिरी बार श्रीदेवी और अमिताभ बच्चन साथ में गौरी शिंदे की इंग्लिश विंग्लिश में नजर आए थे। ये फिल्म 2012 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म में बिग बी का कैमियो था तो श्रीदेवी लीड रोल में नजर आईं थीं।