जोसेफ़ स्टालिन : इतिहास के सबसे क्रूर तनाशाओं में से एक

0

इवान द टेरिबल” से लेकर “पीटर द ग्रेट” तक, रूसी इतिहास में कई शक्तिशाली शासकों ने शासन किया है। हालाँकि किसी भी शासक ने जोसेफ़ स्टालिन जैसी अमिट छाप नहीं छोड़ी। वह इतने प्रभावशाली थे कि उनके शासन प्रणाली को एक विशेष संज्ञा दी गई है जिसे “स्टालिनवाद” के नाम से जाना जाता है।

सोवियत संघ के शासक जोसेफ़ स्टालिन को कभी कम्युनिस्टों का आदर्श माना जाता था। उन्हें सोवियत संघ का हीरो माना जाता था, मगर क्या वो वाकई ऐसे थे? इतिहास को देखा जाए तो लगता है कि स्टालिन हीरो भी थे और विलेन भी।

जी हाँ, आज की हमारी यह पोस्ट जोसेफ़ स्टालिन के जीवन पर आधारित है। जिन्होंने शुरुआत तो इंकलाब से की थी, मगर बाद में वो सनकी तानाशाह बन गए।

स्टालिन का जन्म 18 दिसंबर 1879 को जॉर्जिया के गोरी में हुआ था। उनके बचपन का नाम था, जोसेफ विसारियोनोविच जुगाशविली। उस वक्त जॉर्जिया रूस के बादशाह जार के साम्राज्य का हिस्सा था।

स्टालिन के पिता पेशे से एक मोची थे। इतिहासकारों के अनुसार वह बहुत शराब पीते थे और स्टालिन को बहुत पीटते थे। उनकी मां कपड़े धोने का काम करती थी। सात साल की उम्र में स्टालिन को चेचक की बीमारी हो गई, जिससे उनके चेहरे पर दाग पड़ गए। इस बीमारी की वजह से उनके बाएं हाथ में भी खराबी आ गई थी। बचपन में स्टालिन बहुत कमजोर थे। दूसरे बच्चे उन्हें बहुत तंग किया करते थे।

काम अच्छा न चलने की वजह से कुछ समय के बाद स्टालिन के पिता रोज़गार की तलाश में जॉर्जिया की राजधानी तिफ़्लिस चले गए।

स्टालिन की मां धार्मिक ख्यालात वाली थीं। उन्होंने 1895 में स्टालिन को पादरी बनने की पढ़ाई करने के लिए जॉर्जिया की राजधानी तिफ्लिस भेजा, लेकिन स्टालिन को धार्मिक किताबों में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। उन्होंने इतिहास की किताबें जैसे कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स की रचनाएँ पढ़ना शुरू कर दिया, जिसने युवा स्टालिन के विश्वदृष्टिकोण को प्रभावित किया।

19 वर्ष की आयु में स्टालिन ने एक समाजवादी विचारधारा वाले संगठन की सदस्यता भी ले ली थी। ये संगठन रूस के बादशाह के खिलाफ लोगों को एकजुट करता था। मां की ख्वाहिश के खिलाफ जाकर स्टालिन ने पादरी बनने से साफ इनकार कर दिया। जिसके कारण 1899 में उन्हें धार्मिक स्कूल से बाहर कर दिया गया।

कार्ल मार्क्स और अन्य कम्युनिस्ट सिद्धांतकारों के बारे में स्टालिन के अध्ययन ने उन्हें बोल्शेविकों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, जो व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में रूस में एक क्रांतिकारी राजनीतिक आंदोलन था।

1899 ई. में इसके दल से प्रेरणा प्राप्त कर काकेशिया के मजदूरों ने हड़ताल शुरू कर दी, जिसका सरकार ने इन मज़दूरों का दमन किया। 1900 ई. में तिफ्लिस के दल ने फिर क्रांति का आयोजन किया। इसके फलस्वरूप जोज़फ़ को तिफ्लिस छोड़कर बातूम भागना पड़ा। 1902 ई. में जोज़फ़ को बंदीगृह में डाल दिया गया।

1905 में स्टालिन ने पहली बार रूसी साम्राज्य के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध में हिस्सा लिया। रूस में बोल्शेविक क्रांति के लीडर व्लादिमीर लेनिन से स्टालिन की पहली मुलाकात फिनलैंड में हुई थी। लेनिन उनकी प्रतिभा के कायल हो गए। 1907 में स्टालिन ने तिफ्लिस में एक बैंक में डकैती कर ढाई लाख रूबल चुरा लिए। ये रकम जार विरोधी आंदोलन में काम आई।

1903 से 1913 के बीच उन्हें छह बार साइबेरिया भेजा गया। मार्च 1917 में सब क्रांतिकारियों को मुक्त कर दिया गया। स्टालिन ने जर्मन सेनाओं को हराकर दो बार खार्कोव को स्वतंत्र किया और उन्हें लेनिनग्रेड से खदेड़ दिया।

जोसेफ़ स्टालिन ने 1906 में “केटेवान स्वानिजे” नाम की लड़की से शादी कर ली। वो एक छोटे-मोटे सामंती परिवार से ताल्लुक रखती थी। शादी के एक साल बाद स्टालिन के एक बेटा पैदा हुआ। तिफ्लिस में बैंक डकैती के बाद स्टालिन को जॉर्जिया छोड़कर भागना पड़ा था। वो अजरबैजान के बाकू शहर में जाकर रहने लगे।

शादी के एक साल बाद ही 1907 में स्टालिन की पत्नी केटेवान का टाइफाइड से निधन हो गया। इस बात से स्टालिन को जबरदस्त झटका लगा। स्टालिन ने अपने बेटे को उसके नाना-नानी के पास छोड़कर खुद को पूरी तरह से रूसी क्रांति के हवाले कर दिया। इसी दौरान उन्होंने अपना नाम बदलकर स्टालिन रख लिया। ‘स्टालिन‘ का रूसी में अर्थ है “लोह पुरुष“।

नवंबर 1917 में बोल्शेविक पार्टी ने अंततः अपना लक्ष्य हासिल कर लिया। लगभग एक साल की हड़तालों और प्रथम विश्व युद्ध के विनाशकारी प्रभावों के बाद लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविकों ने ज़ारिस्ट शक्तियों को उखाड़ फेंका और रूस पर नियंत्रण कर लिया। उन्होंने श्रमिक परिषदों या “सोवियतों” की एक प्रणाली स्थापित की जिससे सोवियत संघ का जन्म हुआ।

लेनिन ने लोगों से अमन, जमीन और रोटी का वादा किया। स्टालिन ने इस क्रांति में अहम रोल निभाया था। वो उस दौरान बोल्शेविक पार्टी का अखबार प्रावदा चलाते थे जब उन्होंने लेनिन को जार की सेना से छुड़ाकर फिनलैंड भागने में मदद की थी। इससे खुश होकर लेनिन ने स्टालिन को पार्टी में बड़ा ओहदा दिया।

जार की हुकूमत खत्म होने के बाद रूस में गृह युद्ध छिड़ गया। गृह युद्ध के दौरान स्टालिन ने पार्टी के भगोड़ों और बागियों को सरेआम सूली पर चढ़ाने का आदेश दिया। जब लेनिन सत्ता में आए तो उन्होंने स्टालिन को कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव नियुक्त किया।

1924 में लेनिन की मौत हो गई। इसके बाद स्टालिन ने खुद को उनके वारिस के तौर पर पेश किया। हालांकि पार्टी के बहुत से नेता ये समझते थे कि लेनिन के बाद लियोन ट्राटस्की ही उनके वारिस होंगे, लेकिन ट्रॉटस्की को कई लोग बहुत आदर्शवादी मानते थे।

उन्हें लगता था कि ट्रॉटस्की के सिद्धांतों को असल जिंदगी में लागू कर पाना बहुत मुश्किल है। इस दौरान स्टालिन ने अपनी राष्ट्रवादी मार्क्सवादी विचारधारा का जोर-शोर से प्रचार शुरू कर दिया।

उन्होंने कहा कि उनका मकसद सोवियत संघ को मजबूत करना है, पूरी दुनिया में इंकलाब लाना नहीं। जब ट्रॉटस्की ने स्टालिन की योजनाओं का विरोध किया, तो स्टालिन ने उन्हें देश निकाला दे दिया। 1920 के दशक के आखिर के आते-आते स्टालिन सोवियत संघ के तानाशाह बन चुके थे।

जब स्टालिन नेता बने तब भी सोवियत कृषि पर छोटे ज़मींदारों का नियंत्रण था और पुराने ज़माने की कृषि तकनीकों का उपयोग किया जा रहा था। पिछड़े सोवियत संघ का औद्योगीकरण करने के लिए स्टालिन ने लेनिन की आर्थिक नीतियों को त्याग दिया।

बीस के दशक में ही स्टालिन ने पंचवर्षीय योजनाओं के जरिए देश की तरक्की के लिए काम करना शुरू कर दिया।स्टालिन के राज में सोवियत संघ में कोयले, तेल और स्टील का उत्पादन कई गुना बढ़ गया। देश ने तेजी से आर्थिक तरक्की की। स्टालिन ने अपनी योजनाओं को बहुत सख्ती से लागू किया।

कारखानों को बड़े-बड़े टारगेट दिए जाते थे। कई बार तो ये टारगेट पूरे कर पाना नामुमकिन सा लगता था। जो लोग टारगेट हासिल करने में नाकाम रहते थे, उन्हें देश का दुश्मन कह कर जेल में डाल दिया जाता था।

रूसी इतिहास में पहली गगनचुंबी इमारतें बनाई गईं। मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी की मुख्य इमारत, “सेवन सिस्टर्स” में से एक, 1997 तक यूरोप की सबसे ऊंची इमारत थी।

जोसेफ़ स्टालिन खुद को एक नरमदिल और देशभक्त नेता के तौर पर प्रचारित करते थे, लेकिन स्टालिन अक्सर उन लोगों को मरवा देते थे, जो भी उनका विरोध करता था। फिर चाहे वो सेना के लोग हों या फिर कम्युनिस्ट पार्टी के।

कहा जाता है कि स्टालिन ने पार्टी की सेंट्रल कमेटी के 139 में से 93 लोगों को मरवा दिया था। इसके अलावा उन्होंने सेना के 103 जनरल और एडमिरल में से 81 लोगों को मरवा दिया था।

स्टालिन की खुफिया पुलिस बड़ी सख्ती से उनकी नीतियां लागू करती थी। साम्यवाद का विरोध करने वाले तीस लाख लोग साइबेरिया के गुलाग इलाके में रहने के लिए जबरदस्ती भेज दिए गए थे। इसके अलावा करीब साढ़े सात लाख लोगों को मरवा दिया गया था।

1919 में जोसेफ़ स्टालिन ने नदेज्दा एल्लीलुएवा से दूसरी शादी की। इस शादी से स्टालिन को एक बेटी स्वेतलाना और बेटा वैसिली हुआ, लेकिन स्टालिन अपनी दूसरी पत्नी से बहुत बदसलूकी करते थे।

उनकी दूसरी पत्नी नदेज्दा ने 1932 में खुदकुशी कर ली। हालांकि आधिकारिक तौर पर बताया गया कि उनकी मौत बीमारी की वजह से हुई। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान स्टालिन की पहली शादी से हुए बेटे याकोव को जर्मन सेना ने गिरफ्तार कर लिया।

जब जर्मनी ने बंदियों की अदला-बदली में याकोव को रूस को सौंपने का प्रस्ताव किया, तो स्टालिन ने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया। जर्मनी के युद्धबंदी कैंप में ही स्टालिन के बेटे याकोव की 1943 में मौत हो गई थी।

जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ, तो स्टालिन ने जर्मनी के तानाशाह हिटलर के साथ समझौता करके पूर्वी यूरोप के देशों का आपस में बंटवारा कर लिया। जर्मनी की सेना ने बड़ी आसानी से फ्रांस पर कब्जा कर लिया। ब्रिटेन को भी पीछे हटना पड़ा।

Adolf-Hitler-min

इस दौरान रूसी सेना के जनरलों ने स्टालिन को आगाह किया कि जर्मनी सोवियत संघ पर भी हमला कर सकता है, लेकिन स्टालिन ने अपने फौजी कमांडरों की चेतावनी अनसुनी कर दी।

1941 में जर्मनी ने पोलैंड पर कब्जा कर लिया और सोवियत संघ पर भी जबरदस्त हमला किया। सोवियत सेनाओं को भारी नुकसान उठाना पड़ा।

हिटलर के धोखे से स्टालिन इस कदर गुस्सा हो गए कि वो कोई फैसला नहीं ले पा रहे थे। स्टालिन ने खुद को एक कमरे में कैद कर लिया। कई दिनों तक सोवियत संघ की सरकार दिशाहीन रही। इस दौरान हिटलर की सेनाएं राजधानी मॉस्को तक आ पहुंचीं। जर्मनी के लगातार हमलों से सोवियत संघ का बुरा हाल था।

देश तबाही के कगार पर खड़ा था, लेकिन स्टालिन नाजी सेना पर जीत के लिए अपने देश के लाखों लोगों को कुर्बान करने के लिए तैयार थे। दिसंबर 1941 में जर्मन सेनाएं रूस की राजधानी मॉस्को के बेहद करीब पहुंच गईं।

सलाहकारों ने स्टालिन को मॉस्को छोड़ने की सलाह दी मगर स्टालिन ने इससे साफ इनकार कर दिया। उन्होंने अपने कमांडरों को फरमान जारी किया कि उन्हें नाजी सेनाओं को किसी भी कीमत पर हराना होगा।

जर्मनी और रूस के बीच जंग में स्टालिनग्राड की लड़ाई से निर्णायक मोड़ आया। हिटलर ने इस शहर पर इसलिए हमला किया क्योंकि इसका नाम स्टालिन के नाम पर था।

वो स्टालिनग्राड को जीतकर स्टालिन को शर्मिंदा करना चाहता था लेकिन स्टालिन ने अपनी सेनाओं से कहा कि वो एक भी कदम पीछे नहीं हटेंगी। स्टालिनग्राड के युद्ध में रूसी सेना के दस लाख से ज्यादा सैनिक मारे गए लेकिन आखिर में सोवियत सेनाओं ने जर्मनी को मात दे दी।

सोवियत संघ ने हिटलर की सेनाओं को वापस जर्मनी की तरफ लौटने को मजबूर कर दिया। सोवियत सेनाएं जर्मनी को खदेड़ते हुए राजधानी बर्लिन तक जा पहुंचीं।

दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी को हराने में स्टालिन ने बहुत अहम भूमिका निभाई थी। युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप के एक बड़े हिस्से पर सोवियत सेनाओं ने कब्जा कर लिया। उन्होंने जर्मनी की राजधानी बर्लिन के पूर्वी हिस्से पर भी कब्जा कर लिया।

स्टालिन ने कहा कि ये सभी देश सोवियत संघ के अंगूठे तले रहेंगे। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका और ब्रिटेन, स्टालिन के साथ थे मगर युद्ध के बाद स्टालिन की नीतियों के चलते वो उसके दुश्मन बन गए।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा कि स्टालिन यूरोप के एक बड़े हिस्से को लोहे के पर्दे से बंद कर रहे हैं। बर्लिन को लेकर ब्रिटेन-अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनातनी इस कदर बढ़ गई कि स्टालिन ने पूर्वी बर्लिन में अमेरिकी और ब्रिटिश सेनाओं के घुसने पर रोक लगा दी।

अमेरिका ने पूर्वी बर्लिन में फंसे लोगों को 11 महीने तक हवाई रूट से मदद पहुंचाई। शीत युद्ध का आगाज हो चुका था। सोवियत संघ ने 29 अगस्त 1949 को अपने पहले एटम बम का परीक्षण किया।

अपने आखिरी दिनों में स्टालिन बहुत शक्की हो गए थे। वो पार्टी में कई लोगों को अपना दुश्मन मानने लगे थे। पांच मार्च 1953 को दिल का दौरा पड़ने से स्टालिन का निधन हो गया।

सोवियत संघ में बहुत से लोगों ने उनकी मौत पर मातम मनाया। उन्हें महान नेता बताया जिसने देश को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया था। जिसने हिटलर को हराने में अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन सोवियत संघ में ही लाखों लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने स्टालिन की मौत का जश्न भी मनाया था।

स्टालिन के बाद सोवियत संघ के नेता बने निकिता ख्रुश्चेव ने स्टालिन की नीतियों से किनारा कर लिया। कुल मिलाकर स्टालिन की जिंदगी एक ऐसे शख्स की रही, जिसने शुरुआत तो इंकलाब से की थी। मगर बाद में वो सनकी तानाशाह बन गए।

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस : जानिए इतिहास, महत्व और 2024 की थीम

0

प्रतिवर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व में भाषायी एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देना है। यूनेस्को द्वारा अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस (बांग्ला: ভাষা আন্দোলন দিবস / भाषा आन्दोलोन दिबॉश) को अन्तरराष्ट्रीय स्वीकृति मिली थी। जो बांग्लादेश में सन 1952 से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है।

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2024 का विषय ‘बहुभाषी शिक्षा : शिक्षा को बदलने की आवश्यकता है‘। यह विषय समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने और स्वदेशी भाषाओं के संरक्षण में भाषाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देता है।

21 फरवरी को क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने की घोषणा यूनेस्को ने 17 नवंबर 1999 में की थी। जिसके बाद पहली बार 21 फरवरी 2000 को वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया।

दरअसल, कनाडा के रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम ने बांग्ला भाषा आंदोलन के दौरान ढाका में 1952 में हुए नृशंस हत्याओं को याद करने के लिए इस दिवस को मानने के लिए 21 फरवरी के दिन को चुनने का सुझाव दिया था। जिसके बाद से ही हर साल 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को मनाया जाता है।

अस्तित्व बचाने में 16 लोगों की हुई थी मौत

मातृभाषा के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए सबसे पहला आंदोलन बंगाल में शुरू हुआ था। दरअसल 21 फरवरी 1952 को मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रों और तमाम सामाजिक संगठनों ने एक बड़ा आंदोलन किया था।

उस दौरान तत्कालीन पाकिस्तानी सरकार ने उस आंदोलन को खत्म करने के लिए प्रदर्शनकारियों पर गोलियां भी चला दी थी, जिसके कारण यह पूरा आंदोलन नरसंहार में तब्दील हो गया था। इस गोलीकांड में 16 लोगों की मौत हुई थी।

लिहाजा मातृभाषा के अस्तित्व को बचाने के लिए हुए इस बड़े आंदोलन में शहीद हुए युवाओं को याद करने के लिए यूनेस्को ने साल 1999 में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा कर दी।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • यूनेस्को ने भाषायी विरासत के संरक्षण हेतु मातृभाषा आधारित शिक्षा के महत्त्व पर ज़ोर देना तथा सांस्कृतिक विविधता की रक्षा के लिए स्वदेशी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय दशक शुरू किया था।
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर दो सप्ताह में एक भाषा विलुप्त हो जाती है और विश्व एक पूरी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत खो देता है।
  • भारत में यह विशेष रूप से उन जनजातीय क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है जहाँ बच्चे उन विद्यालयों में सीखने के लिए संघर्ष करते हैं जिनमें उनको मातृ भाषा में निर्देश नहीं दिया जाता है।
  • ओडिशा में केवल 6 जनजातीय भाषाओं में एक लिखित लिपि है, जिससे बहुत से लोग साहित्य और शैक्षिक सामग्री की पहुँच से वंचित हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2022 और वर्ष 2032 के मध्य की अवधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दशक के रूप में नामित किया है।
  • 16 मई 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने प्रस्ताव में सदस्य देशों से “दुनिया भर के लोगों द्वारा बोली जाने वाली सभी भाषाओं के संरक्षण और इन भाषाओं को बढ़ावा देने” का आह्वान किया था।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बहुभाषावाद और बहुसंस्कृतिवाद के माध्यम से विविधता और अंतर्राष्ट्रीय समझ में एकता को बढ़ावा देने के लिए 2008 को अंतर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष के रूप में घोषित किया।
  • विश्व स्तर पर लगभग 40 प्रतिशत आबादी की उस भाषा में शिक्षा तक पहुंच नहीं है जिसे वे बोलते या समझते हैं।
  • दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6000 भाषाओं में से लगभग 43% संकट में हैं।

स्ट्रगल के बीच बुलंद हौसलों ने यूं बनाया स्टार, इस रियलिटी शो से पहचान मिली अन्नू कपूर को

0

अन्नू कपूर एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म अभिनेता, फिल्म निर्देशक, टेलीविजन प्रस्तोता, टेलीविजन निर्माता, हास्य अभिनेता और रेडियो होस्ट हैं जो मुख्य रूप से बॉलीवुड में अपने काम के लिए जाने जाते हैं।

वह एक मेजबान के रूप में ज़ी टीवी के “अंताक्षरी” नामक शो के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध थे। उन्होंने 1993-2006 तक प्रसिद्ध गायन टेलीविजन शो अंताक्षरी की मेजबानी की । जिसका निर्देशन अनुभवी गजेंद्र सिंह ने किया था।

उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत वर्ष 1979 में श्याम बेनेगल की फिल्म “मंडी” से की थी। बॉलीवुड सिनेमा, टेलीविजन धारावाहिकों और रियलिटी शो में विशिष्ट उपस्थिति दर्ज कराते हुए उनका करियर अब तीस साल से अधिक का हो गया है।

Annu-Kapoor-bollywood-actor

अन्नू कपूर का जन्म 20 फरवरी 1956 को इतवारा, भोपाल, मध्य प्रदेश में हुआ था। अन्नू कपूर का परिवार कला और देशभक्ति से बहुत प्रभावित था। अन्नू कपूर के पिता मदनलाल एक टूरिंग पारसी थिएटर ग्रुप के मालिक थे और शो के लिए यात्रा करते रहते थे। अन्नू की माँ एक कवयित्री और एक प्रशिक्षित शास्त्रीय नर्तकी थीं। उनके बड़े भाई रंजीत एक पटकथा लेखक और निर्देशक हैं जबकि उनके छोटे भाई निखिल एक लेखक और गीतकार हैं। उनकी बहन सीमा एक निर्माता और निर्देशक हैं, जिन्होंने अभिनेता ओम पुरी से शादी की थी लेकिन बाद में उनका तलाक हो गया।

जब अन्नू कपूर बच्चे थे तो उनकी इच्छा आईएएस या सर्जन बनने की थी लेकिन उनके परिवार के पास उन्हें मेडिकल कॉलेज भेजने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे।

वित्तीय कठिनाइयों के कारण उन्होंने 10वीं कक्षा के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ दी और पटाखों की दुकान चलायी, नकली मुद्राएँ बेचीं, चाय की दुकान चलाई और लॉटरी पास बेचे।

वर्ष 1976 में अपने बड़े भाई रंजीत कपूर के सुझाव पर अन्नू कपूर नई दिल्ली में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में शामिल हो गए। यहां एक नाटक के दौरान उन्होंने 23 साल की उम्र में 70 साल के बुजर्ग व्यक्ति का किरदार किया था जो फिल्मकार श्याम बेनेगल को काफी पसंद आया था। इसके बाद उन्हें फिल्म “मंडी” में काम करने का ऑफर मिला। इस फिल्म में उनके अभिनय की काफी सराहना हुई।

उनका वास्तविक नाम अनिल कपूर है लेकिन उन्होंने बॉलीवुड में आने बाद उन्होंने अपना नाम अन्नू कपूर रख लिया।

अन्नू कपूर ने अनुपमा कपूर से 1992 में शादी की थी, लेकिन अगले ही साल उनका तलाक हो गया था। अनुपमा अमेरिका की रहने वाली थीं और उनसे 13 साल छोटी थीं। इसके बाद अन्नू कपूर ने 1995 में अरुणिता मुखर्जी से शादी की। अन्नू चोरी-चुपके अपनी पहली पत्नी अनुपमा से होटल में मिला करते थे। ये सब पता चलने के बाद अरुणिता ने अन्नू कपूर को तलाक दे दिया। साल 2008 में अन्नू ने अपनी पहली पत्नी अनुपमा से फिर से शादी कर ली।

अन्नू कपूर भारतीय टेलीविजन उद्योग का भी एक चर्चित चेहरा रहे हैं। उन्होंने कई शो होस्ट किए हैं। टीवी शो ‘अंताक्षरी’ उनके यादगार शो में से एक है। उन्हें हिंदू शास्त्रों का भी ज्ञान है। अन्नू कपूर ने अपने करियर में तो खूब नाम कमाया लेकिन उनकी शादीशुदा जिंदगी में कई ट्विस्ट आए।

अभिनय के अलावा, वह एक रेडियो शो भी करते हैं, जिसका नाम सुहाना सफर विद अन्नू कपूर है, जो 92.7 बिग एफएम पर प्रसारित होता है। इस शो की टैग लाइन का शीर्षक “फिल्मी दुनिया की कहीं अनकही कहानियां” है।

उन्होंने अपने करियर में कई पुरस्कार जीते हैं, जिनमें दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, एक फिल्मफेयर पुरस्कार और दो भारतीय टेलीविजन अकादमी पुरस्कार शामिल हैं ।

 

विश्व का पहला ‘ओम’ आकृति वाला शिव मंदिर

0

सृष्टि के रचियता कहे जाने वाले त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश को ‘ॐ’ (ओम) का प्रतीक माना जाता है। ओम का निराकार स्वरूप धरती पर पहली बार राजस्थान में साकार हुआ है। राजस्थान के पाली जिले की मारवाड़ तहसील के जाडन गांव में ‘ओम’ की आकृति वाला शिव मंदिर बनकर तैयार है।

ओम आश्रम के सचिव स्वामी फूलपुरी ने बताया कि विश्वदीप गुरुकुल में स्वामी महेश्वरानंद के आश्रम में ओम की आकृति वाले इस भव्य मंदिर को बनाने में 28 साल का समय लगा। इसका निर्माण कार्य 23 जनवरी 1995 से चल रहा है। करीब 250 एकड़ में फैले आश्रम के बीचोंबीच इस मंदिर को बनाया गया है। शिलान्यास समारोह में देशभर से साधु-संतों ने हिस्सा लिया था।

World's-first-Shiva-temple-with-Om-shape

चार खंडों में विभाजित मंदिर

यह शिव मंदिर चार खंडों में विभाजित है। एक पूरा खंड भूगर्भ में बना हुआ है जबकि तीन खंड जमीन के ऊपर हैं। बीचोंबीच स्वामी माधवानंद की समाधि है। भूगर्भ में समाधि के चारों तरफ सप्त ऋषियों की मूर्तियां हैं।

नागर शैली में बना मंदिर

इस मंदिर में जैसे-जैसे प्रवेश करेंगे, मंदिर की भव्यता आंखों में समाती चली जाएगी। मंदिर की ऐतिहासिक नक्काशी इसकी दूसरी खासियत है। मंदिर जितना विशाल है, उतनी ही इसकी नक्काशी सजीव है। मंदिर नागर शैली में बना है और यहां की हर दीवार भगवान के स्वरूपों और भारतीय संस्कृति की गवाह नजर आती है।

शिखर पर ब्रह्मांड की आकृति

आश्रम में भगवान शिव की 1008 अलग-अलग प्रतिमाएं और 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित की गए हैं। मंदिर परिसर में कुल 108 कक्ष हैं। इसका शिखर 135 फुट ऊंचा है। सबसे ऊपर वाले भाग में महादेव का शिवलिंग स्थापित है जिसके ऊपर बह्मांड की आकृति बनाई गई है। जाडन आश्रम में शिवालय के अलावा श्री माधवानंद योग विश्वविद्यालय भी स्थापित किया गया है।

चार मंजिला इस इमारत में स्कूल-कॉलेज भी होंगे। इसका निर्माण विश्वदीप गुरुकुल ट्रस्ट की ओर से करवाया गया है। खास बात यह है कि आश्रम के निर्माण में धौलपुर का बंशी पहाड़ का पत्थर काम में लाया गया है।

om-shape-temple-in-pali-rajasthan

गर्भगृह के सामने नंदी की प्रतिमा

केवल आसमान से ही नहीं, बल्कि धरती से भी मंदिर की खूबसूरती देखते ही बन रही है। मंदिर में प्रवेश से पहले नंदी की प्रतिमा के दर्शन होते हैं। यह प्रतिमा भी बेहद खास है।

जिस तरह केदारनाथ में गर्भगृह के सामने नंदी बैठे हुए हैं, ठीक उसी तरह इस मंदिर में भी नंदी को गर्भगृह के ठीक सामने बैठाया गया है। यहां से मंदिर के गर्भगृह की भव्यता को देखा और महसूस किया जा सकता है।

कैसे पहुंचें इस मंदिर में

जाडन आश्रम पाली से गुजर रहे नैशनल हाईवे 62 पर सड़क किनारे स्थित है। निकटवर्ती एयरपोर्ट जोधपुर करीब 71 किलोमीटर दूर है। ट्रेन के जरिए मारवाड़ जंक्शन तक पहुंच सकते हैं जो यहां से 23 किलोमीटर है।

पंजाब केसरी से साभार

छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़े रोचक तथ्य

छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के एक महान राजा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने 1674 ई. में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी।

छत्रपति शिवाजी महाराज को उनके बुद्धिमता, कुशल शासक, अदम्य साहस, कूटनीति और महान योद्धा के रूप में पुरे भारत में जाना जाता है। महान मराठा शासक छत्रपति शिवाजी शौर्य और साहस की जीती-जागती मिसाल थे।

आइए जानते हैं छत्रपति शिवाजी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य:-

  • छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था।
  • शिवाजी का पूरा नाम शिवाजी राजे भोसले था।
  • शिवाजी एक कट्टर हिन्दू थे, वो अपनी प्रजा को भी इसके लिए प्रेरित करते थे।
  • शिवाजी ने एक शक्तिशाली नौसेना का निर्माण किया था। इसी वजह से उन्हें भारतीय नौसेना के पिता के रूप में भी जाना जाता है।
  • शिवाजी महाराज का विवाह मात्र 10 वर्ष की उम्र में कर दिया था शिवाजी की 8 पत्नियां थीं।
  • शिवाजी महाराज महिलाओं के सम्मान के कट्टर समर्थक थे उन्होंने हमेशा महिलाओं के प्रति हिंसा और उत्पीड़न का विरोध किया।
  • शिवाजी की लड़ाइयों को धर्म-युद्ध से जोड़कर देखा जाता है जबकि वह अपने राज्य की रक्षा करने के लिए युद्ध करते थे।
  • प्रतापगढ़ व रायगढ़ दुर्ग जीतने के बाद शिवाजी महाराज ने रायगढ़ को मराठा राज्य की राजधानी बनाया।
  • शिवाजी को “माउंटेन रैट” कह कर भी पुकारा जाता था क्योंकि वह अपने क्षेत्र को बहुत अच्छी तरह से जानते थे और कहीं से कहीं निकल कर अचानक ही हमला कर देते थे या गायब हो जाते थे।
  • छत्रपति शिवाजी युद्ध रणनीति बनाने में बहुत ही कुशल थे उन्होंने महज 15 साल की उम्र में ही तोरणा किले पर कब्जा कर लिया था।
  • शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक सन 1674 में रायगढ़ में हुआ। यहीं पर उन्हें छत्रपति की उपाधि मिली।
  • शिवाजी ने कभी भी देश के मुसलमानों को अपना दुश्मन नहीं समझा था उनकी लड़ाई सिर्फ बहार से आए मुगलों के खिलाफ ही थी। इसी वजह से शिवाजी के कई सारे दोस्त और उच्च अधिकारी मुसलमान थे।
  • 3 अप्रैल 1680 में बीमारी की वजह से शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गयी थी।

क्रिकेट से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

दुनिया भर में कई प्रकार के खेल खेले जाते है। उन्हीं में से क्रिकेट भी एक है। बहुत से लोग क्रिकेट के फैन है, जो क्रिकेट देखते है और इसके बारे में जानकारी रखते है। परन्तु क्रिकेट बारे में कुछ ऐसे रोचक तथ्य है जिनके बारे में आप नहीं जानते। आइये जानते हैं क्रिकेट से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में:-

  • श्रीलंका आज तक ऑस्ट्रेलियाई टीम से केवल एक टेस्ट मैच जीती है।
  • टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा नॉट आउट रहने वाले खिलाड़ी राहुल द्रविड़ नहीं, बल्कि कोर्टनी वाल्श हैं। वह 185 पारियों में कुल 61 बार नाबाद रहे हैं।
  • सौरव गांगुली ODI में लगातार चार बार मैन ऑफ द मैच पुरस्कार जीतने वाले एकमात्र खिलाड़ी हैं।
  • ग्रीम स्मिथ क्रिकेट के इतिहास में एकमात्र खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 100 से अधिक टेस्ट मैचों के लिए एक टीम की कप्तानी की है।
  • डिर्क नन्नेस ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड दोनों का प्रतिनिधित्व किया है।
  • शाहिद अफरीदी ने एक वनडे मैच में सबसे तेज़ शतक बनाने के लिए वकार यूनुस के उधार के बल्ले का इस्तेमाल किया था ।
  • सनथ जयसूर्या के पास शेन वार्न की तुलना में अधिक एकदिवसीय विकेट हैं। सनथ जयसूर्या – 323 विकेट और शेन वॉर्न –  293 विकेट
  • ढाका के शेर-ए-बांग्ला स्टेडियम और बंगबंधु स्टेडियम ने लॉर्ड्स की तुलना में अधिक वनडे की मेजबानी की है।
  • एक ओवर में बनाए गए सर्वाधिक रन 36 नहीं हैं। बल्कि 77 है।
  • इस ओवर (0444664614106666600401) में 77 रन बने थे।
  • एडम गिलक्रिस्ट के पास सबसे अधिक टेस्ट खेलने का रिकॉर्ड है।
  • ईशांत शर्मा 21 वीं सदी में भारत के खिलाफ एक बल्लेबाज द्वारा बनाए गए तीन सर्वोच्च स्कोर के लिए जिम्मेदार हैं।
  • 12 जनवरी 1964 को, भारतीय स्पिनर बापू नाडकर्णी ने चेन्नई में इंग्लैंड के खिलाफ 21 लगातार मैदानी ओवर फेंके।
  • क्रिस मार्टिन और बी.एस.चंद्रशेखर ने अपने करियर में जितने टेस्ट रन बनाए उससे ज्यादा टेस्ट विकेट लिए हैं।
  • 71 टेस्ट मैचों में मार्टिन ने 123 रन बनाए हैं, जबकि उन्होंने 233 विकेट अपने नाम किए हैं, वहीं दूसरी ओर            चंद्रशेखर के नाम 242 विकेट के साथ 167 रन हैं।
  • फर्स्ट क्लास क्रिकेट में विल्फ्रेड रोड्स ने 4,204 विकेट लिए थे।
  • सर जैक हॉब्स ने अपने फर्स्ट क्लास करियर में 199 शतक बनाए।
  • विश्व कप मैच में, 335 का पीछा करते हुए, सुनील गावस्कर ने 174 गेंदों में नाबाद 36 रन बनाए थे ।
  • जिम लेकर ने एक बार टेस्ट मैच में 19 विकेट लिए थे।
  • सौरव गांगुली विश्व कप के नॉक आउट चरणों में शतक बनाने वाले एकमात्र भारतीय खिलाड़ी हैं।
  • विराट कोहली के डेब्यू के बाद, भारत ने पांच बार 300+ के लक्ष्य का पीछा किया है।  इन 5 मैचों में से 4 में, विराट कोहली ने शतक बनाया।
  • महेला जयवर्धने एकमात्र ऐसे बल्लेबाज हैं जिन्होंने विश्व कप के सेमीफाइनल और फाइनल दोनों में शतक बनाए हैं।
  • 1989 में, सचिन तेंदुलकर के साथ, 23 अन्य क्रिकेटरों ने अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू किया। सचिन से पहले संन्यास लेने वाले आखिरी खिलाड़ी न्यूजीलैंड के क्रिस केर्न्स थे, जो 2004 में सेवानिवृत्त हुए थे।
  • अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पहली ही गेंद पर इंजमाम उल हक ने एक विकेट लिया था ।
  • सर डॉन ब्रैडमैन ने अपने पूरे करियर में सिर्फ 6 छक्के लगाए हैं।
  • T20, ODI और टेस्ट में वीरेंद्र सहवाग का उच्चतम स्कोर क्रमशः 119, 219 और 319 है।
  • वसीम अकरम का 257 रन का सर्वाधिक टेस्ट स्कोर सचिन तेंदुलकर से अधिक है।
  • इंग्लैंड क्रिकेट टीम एकदिवसीय फाइनल (1979 विश्व कप) में 60 ओवर, एकदिवसीय फाइनल (1992 विश्व कप और 2004 चैंपियंस ट्रॉफी) में 50 ओवर और एकदिवसीय फाइनल (2013 चैंपियंस ट्रॉफी) में हारने वाली एकमात्र टीम है।
  • लांस क्लूजनर, अब्दुर रज्जाक, शोएब मलिक और हसन तिलकरत्ने एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने वनडे में 10 अलग-अलग बल्लेबाजी पदों पर बल्लेबाजी की है।
  • सचिन तेंदुलकर अपने रणजी करियर में केवल एक बार ही ज़ीरो में आउट हुए थे। भुवनेश्वर कुमार ने उन्हें आउट किया था
  • एमएस धोनी और सुरेश रैना ने कभी भी एशिया के बाहर वनडे में शतक नहीं बनाया है।
  • 27 अगस्त 2014 को सुरेश रैना ने इंग्लैंड के खिलाफ कार्डिफ में एकदिवसीय शतक बनाया था।
  • सईद अजमल ने कभी भी एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार नहीं जीता है।

‘हॉकी के जादूगर’ मेजर ध्यानचंद के बारे में कुछ अनसुने तथ्य

भारतीय हॉकी में मेजर ध्यानचंद का योगदान अतुलनीय है। मेजर ध्यानचंद भारतीय हॉकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान थे। मेजर ध्यानचंद को सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ियों में से एक माना जाता है।

उनमें गोल करने की असाधारण प्रतिभा थी, जिसके कारण भारत ने 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक खेलों में हॉकी स्वर्ण पदक जीते। उनके युग को भारतीय हॉकी का “स्वर्ण काल” कहा जाता है। उनकी जन्मतिथि को भारत में “राष्ट्रीय खेल दिवस” के रूप में मनाया जाता है।

गेंद पर उनके उत्कृष्ट नियंत्रण के कारण उन्हें “हॉकी का जादूगर” भी कहा जाता है। उन्होंने 1000 से अधिक गोल दागे थे। जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। मेजर ध्यानचंद ने वर्ष 1948 में हॉकी से संन्यास की घोषणा की थी।

इस पोस्ट में हम मेजर ध्यानचंद के बारे में कुछ अनसुने तथ्यों के बारे में जानेंगे, तो चलिए शुरू करते हैं

  • मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। उनका जन्म ध्यान सिंह के रूप में श्रद्धा सिंह और समेश्वर सिंह के घर हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में एक सैनिक थे।

  • मेजर ध्यानचंद के छोटे भाई रूप सिंह भी हॉकी खिलाड़ी थे। ध्यानचंद ने वर्ष 1932 में ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। बचपन के दिनों में ध्यानचंद को कुश्ती में रुचि थी।
  • 1922 में, बहुत कम उम्र में ध्यानचंद भारतीय सेना में शामिल हो गए और एक सैनिक के रूप में काम किया। ध्यान सिंह अपनी ड्यूटी करने के बाद रात में अभ्यास करते थे, इसलिए उनके साथी खिलाड़ी उन्हें “चाँद” उपनाम से संबोधित करने लगे।
  • ध्यानचंद हॉकी के इस कदर दीवाने थे कि वह पेड़ से हॉकी के आकार की लकड़ी काटकर उससे खेलना शुरू कर देते थे। रात भर वह हॉकी खेलते रहते थे। उनको हॉकी के आगे कुछ याद नहीं रहता था। हॉकी के सामने वह पढ़ाई को भी भूल जाते थे।
  • एक बार मैच खेलते समय ध्यानचंद विपक्षी टीम के खिलाफ एक भी गोल नहीं कर पाए। कई बार असफल होने के बाद उन्होंने मैच रेफरी से गोलपोस्ट की माप के बारे में शिकायत की और आश्चर्यजनक रूप से यह पाया गया कि गोलपोस्ट की आधिकारिक चौड़ाई अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुरूप नहीं थी।
  • 1936 के बर्लिन ओलंपिक में भारत के पहले मैच के बाद लोग ध्यानचंद की जादुई हॉकी देखने के लिए हॉकी मैदान पर इकट्ठा हुए थे। एक जर्मन अखबार का शीर्षक था: ‘ओलंपिक परिसर में अब एक जादू का शो है।’ अगले दिन बर्लिन की सड़कें पोस्टरों से भर गईं, जिन पर लिखा था, “हॉकी स्टेडियम जाएं और भारतीय जादूगर का जादू देखें“।
  • एक किंवदंती के अनुसार जब हिटलर ने जर्मनी के खिलाफ ध्यानचंद का जादुई खेल देखा तो उसने उन्हें जर्मनी में बसने को कहा और उन्हें अपनी सेना में कर्नल का पद देने की पेशकश की, लेकिन ध्यानचंद ने मुस्कुराते हुए इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
  • 1936 के ओलंपिक में जर्मनी के साथ एक मैच के दौरान जर्मनी के तेजतर्रार गोलकीपर “टीटो वर्नहोल्ट” से टकराने पर ध्यानचंद का दांत टूट गया था। प्राथमिक उपचार के बाद मैदान पर लौटने पर, ध्यानचंद ने जर्मन खिलाड़ियों को सबक सिखाने के लिए भारतीय खिलाड़ियों को गोल न करने की सलाह दी। भारतीय खिलाड़ी बार-बार गेंद को जर्मनी के गोलपोस्ट तक ले गए और फिर से गेंद को वापस अपने पाले में ले आए।
  • 1935 में जब भारतीय हॉकी टीम ऑस्ट्रेलिया में थी तो महान क्रिकेट खिलाड़ी डॉन ब्रैडमैन और महानतम हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद एडिलेड (एडिलेड ऑस्ट्रेलिया का एक प्रमुख नगर है) में एक दूसरे से मिले। ध्यानचंद का खेल देखने के बाद डॉन ब्रैडमैन ने कहा था, “वह हॉकी में उसी तरह गोल करते हैं जैसे क्रिकेट में रन बनते हैं।
  • वियना (ऑस्ट्रिया) के निवासियों ने उनकी चार हाथों और चार हॉकी स्टिक वाली एक मूर्ति स्थापित की थी जो गेंद पर उनके नियंत्रण और महारत को दर्शाती है। हालाँकि यह अतिशयोक्ति भी हो सकती है क्योंकि वर्तमान में न तो ऐसी कोई मूर्ति है और न ही उससे जुड़े दस्तावेज़।
  • एक बार नीदरलैंड में अधिकारियों ने ध्यानचंद की हॉकी स्टिक के अंदर चुंबक होने की आशंका के कारण उसकी हॉकी स्टिक तोड़ दी थी।

  • वैसे तो ध्यानचंद ने कई यादगार मैच खेले, लेकिन उन्होंने 1933 के “बीटन कप” के फाइनल मैच को अपना सर्वश्रेष्ठ मैच माना जो “कलकत्ता कस्टम” और “झांसी हीरोज” के बीच खेला गया था।
  • 1932 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान को क्रमशः 24-1 और 11-1 से हराया। इन 35 गोलों में से ध्यानचंद ने 12 गोल किये जबकि उनके भाई रूप सिंह ने 13 गोल किये। इस शानदार प्रदर्शन के कारण दोनों भाइयों को “हॉकी ट्विन्स” के नाम से जाना जाने लगा।
  • अपने पूरे करियर में उन्होंने लगभग 185 मैच खेले और 400 से अधिक गोल किये।
  • भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1956 में तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया। उनके जन्मदिन 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस दिन राष्ट्रपति द्वारा कई पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं।
  • हॉकी के जादूगर ध्यानचंद की आत्मकथा “गोल” 1952 में प्रकाशित हुई थी। अपनी आत्मकथा ‘गोल’ में उन्होंने लिखा था “आपको मालूम होना चाहिए कि मैं बहुत साधारण आदमी हूँ”
  • मेजर ध्यानचंद ने 3 दिसंबर 1979 को अंतिम सांस ली।
  • मेजर ध्यानचंद को श्रद्धांजलि देने के लिए भारतीय डाक विभाग ने 1979 में दिल्ली के नेशनल स्टेडियम का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद स्टेडियम, दिल्ली कर दिया।
  • 2021 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया जाएगा।

स्काई डाइविंग के साथ सिद्धार्थ मल्होत्रा की फिल्म ‘योद्धा’ का पोस्टर रिलीज, इस दिन होगी फिल्म रिलीज

0

सिद्धार्थ मल्होत्रा की आने वाली फिल्म ‘योद्धा’ के मेकर्स ने 13 हजार फीट की ऊंचाई पर फिल्म का पोस्टर रिलीज किया है। मेकर्स ने सोशल मीडिया पर एक टीजर शेयर करते हुए इसकी जानकारी दी। इसमें प्रोफेशनल स्काई डाइवर्स दुबई के पाम आइलैंड के ऊपर फिल्म का पोस्टर लॉन्च करते नजर आ रहे हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि यह पहली बार है जब किसी बॉलीवुड फिल्म का पोस्टर 13 हजार फीट की ऊंचाई पर लॉन्च किया गया। मेकर्स अब 19 फरवरी को फिल्म का टीजर रिलीज करेंगे।

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Karan Johar (@karanjohar)

फिल्म पिछले साल होने वाली थी रिलीज

इस फिल्म की रिलीज डेट कई बार बदली जा चुकी है। पहले फिल्म ‘योद्धा’ 15 सितंबर 2023 को रिलीज होने वाली थी। इससे पहले भी यह फिल्म 7 जुलाई 2023 को रिलीज होने वाली थी, लेकिन यह रिलीज नहीं हो पाई। अब यह फिल्म 15 मार्च 2024 को रिलीज होने जा रही है।

करण जौहर ने फिल्म ‘योद्धा’ की नई रिलीज डेट की घोषणा करते हुए लिखा, ‘हम आसमान में उड़ने के लिए तैयार हैं’।

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Karan Johar (@karanjohar)

फिल्म का निर्माण पुष्कर ओझा और सागर अंब्रे ने किया है। इस फिल्म के निर्माता करण जौहर हैं। फिल्म योद्धा में सिद्धार्थ मल्होत्रा के अलावा दिशा पटानी, साउथ एक्ट्रेस राशि खन्ना, अमित सिंह ठाकुर और अन्य लोग भी नजर आएंगे। अब सिद्धार्थ के फैंस को इस एक्शन-ड्रामा फिल्म के लिए थोड़ा और इंतजार करना होगा।

गेलिलियो गैलिली के बारे में रोचक तथ्य और जानकारी

0

गैलीलियो गैलिली एक इतालवी खगोलशास्त्री, भौतिक विज्ञानी और गणितज्ञ थे। उनका जन्म 15 फरवरी 1564 को इटली के पीसा में हुआ था। उन्हें “अवलोकनात्मक खगोल विज्ञान “(observational astronomy) “आधुनिक भौतिकी ” और “आधुनिक विज्ञान” का जनक भी कहा जाता है।

उनके पिता विन्सौन्जो गैलिली उस समय के जाने माने संगीत विशेषज्ञ थे। वे ‘ल्यूट’ नामक वाद्य यंत्र बजाते थे, यही ल्यूट नामक यंत्र बाद में गिटार और बैन्जो के रूप में विकसित हुआ। उनकी माता का नाम जूलिया (Giulia) था। सात भाई बहनों में गैलीलियो सबसे बड़े थे।

galileio-galilei

  • गैलीलियो गैलीली एक चिकित्सक बनना चाहते थे। जब वे 16 वर्ष के थे तब उन्होंने चिकित्सा का अध्ययन करने के लिए पीसा विश्वविद्यालय में दाखिला लिया लेकिन अपनी रुचि के विपरीत होने के कारण उन्होंने अध्ययन बीच में ही छोड़ दिया और एक खगोल वैज्ञानिक के रूप में काम किया।
  • गौलीलियो ने वैज्ञानिक कोपर्निकस के नियम पर प्रयोग शुरू किया था। कोपर्निकस एक ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने सबसे पहले बताया था कि पृथ्वी गोल है और पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य के ईर्द-गिर्द चक्कर लगाते हैं। कोपर्निकस को इस खोज के कारण कट्टर ईसाइयों ने जिंदा जला दिया था। लेकिन गौलीलियो ने इसे फिर से सिद्ध किया और बताया कि ब्रह्माण्ड का सभी गृह सूर्य का चक्कर लगाते हैं।
  • उन्होंने टेलीस्कोप की मदद से साबित किया कि चांद एक चिकनी सतह वाला गोला नहीं है, बल्कि उसमें खड्डे और पहाड़ हैं। उन्होंने जूपिटर के चार उपग्रहों की खोज भी की और शनि ग्रह के इर्द गिर्द घूमते छल्लों को पहली बार देखा। हालांकि तब उन्हें लगा था कि ये छल्ले कोई और ग्रह हैं।
  • 1610 में गैलीलियो बृहस्पति के चार चंद्रमाओं की खोज थी। इन चंद्रमाओं का नाम उनके नाम पर “गैलीलियन चंद्रमा” रखा गया था। ये चार चंद्रमा हैं लो, यूरोपा, गेनीमेड और कैलिस्टो। “गैलीलियन चंद्रमाओं” में सबसे बड़ा गेनीमेड है। इस प्रकार उन्होंने पृथ्वी के अलावा किसी अन्य ग्रह की परिक्रमा करने वाले पहले ज्ञात चंद्रमाओं की खोज की थी।
  • उन्होंने यह भी खोज की कि जितने तारे हम नग्न आँखों से देखते हैं दूररबीन से देखने पर उनकी संख्या बहुत अधिक है।
  • वास्तव में गैलीलियो ने दूरबीन का आविष्कार नहीं किया था। हंस लिपरही (Hans Lipperhey) नामक एक डच फिल्म निर्माता ने दूरबीन का आविष्कार किया था, लेकिन इसमें सुधार करने के लिए गैलिलियो ने अनेक प्रयास किए और दूरबीन की देखने की क्षमता को बढ़ा दिया।
  • गैलीलियो गैलीली एक महान चित्रकार भी थे, उन्होंने अपनी ब्रह्माण्ड खोजों के अतिरिक्त समय ड्राइंग और पेंटिंग कौशल के लिए बिताया, जिसमें निस्संदेह उन्हें अपने टेलीस्कोप द्वारा खोजे गए स्थलों की व्याख्या करने में बहुत सहायता मिली।
  • यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि गैलिलियों ने जीवनभर शादी नहीं की। गैलीलियो के मरीना गाम्बा नाम की एक महिला से तीन बच्चे हुए, जिनसे उन्होंने कभी शादी नहीं की। उनकी बेटियों के नाम वर्जीनिया और लिविया था और बेटे का नाम सेलेस्टा था
  • गैलीलियो गैलीली के अविष्कारों को लेकर एक बार आइंस्टीन ने कहा था कि उनके अविष्कार खगोल विज्ञान और भौतिकी की वास्तविक शुरुआत का प्रतीक है। यह गैलीलियो ही थे जिन्होंने सर्वप्रथम आकाश में एक दूरबीन की सहायता से बह्माण्ड को देखा और उनकी खोजों ने ब्रह्मांड की हमारी सोच और समझ को पूरी तरह से परिवर्तित कर दिया।
  • अमेरिका ने इस महान खगोलशास्त्री की याद में “गैलीलियो” नामक मानवरहित अंतरिक्ष यान लॉन्च किया था। अंतरिक्ष यान को बृहस्पति और उसके चार चंद्रमाओं का अध्ययन करने का काम सौंपा गया था।
गैलीलियो" नामक मानवरहित अंतरिक्ष यान
गैलीलियो” नामक मानवरहित अंतरिक्ष यान
  • गैलीलियो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बताया कि आकाशगंगा तारों से बनी है।
  • गैलीलियो के कार्य जिसका उनके जीवनकाल में चर्च द्वारा विरोध किया गया था, को उनकी मृत्यु के बाद चर्च द्वारा मान्यता दी गई। आधुनिक युग में 20वीं सदी के पोप पायस XII और जॉन पॉल द्वितीय ने गैलीलियो के साथ चर्च के व्यवहार पर खेद व्यक्त करते हुए आधिकारिक बयान दिए थे ।
  • गैलीलियो केप्लर के इस सिद्धांत के ख़िलाफ़ थे कि चंद्रमा के कारण पृथ्वी पर ज्वार-भाटा आता है। उनका मानना था कि वे पृथ्वी के घूमने के कारण आते थे।
  • उनकी पुस्तक “सिडेरियस नुनसियस” या “द स्टाररी मैसेंजर” पहली बार 1610 में प्रकाशित हुई थी, जिससे वह प्रसिद्ध हो गए।
  • गैलीलियो के बारे में एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि आइजैक न्यूटन का जन्म उसी वर्ष हुआ था जिस वर्ष गैलीलियो की मृत्यु हुई थी। न्यूटन ने पिंडों की गति पर बहुत काम किया और गैलीलियो के विचारों को आगे बढ़ाया।
  • यूरोप ने नागरिक नेविगेशन की एक वैश्विक उपग्रह प्रणाली विकसित की थी। उन्होंने 17वीं शताब्दी के महान वैज्ञानिक के सम्मान में इसका नाम “गैलीलियो” रखा था। गैलीलियो एक वैश्विक नेविगेशन उपग्रह प्रणाली है जिसे यूरोपीय संघ द्वारा बनाया गया था। इसमें 24 मुख्य उपग्रह और 6 बैकअप उपग्रह शामिल हैं जो संपूर्ण उपग्रह प्रणाली का निर्माण करते हैं।
गैलीलियो एक वैश्विक नेविगेशन उपग्रह प्रणाली
  • गैलीलियो की पुस्तक “डायलॉग कंसर्निंग द टू चीफ वर्ल्ड सिस्टम्स” को चर्च द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था। हालाँकि पुस्तक पर से प्रतिबंध इसके मूल प्रकाशन के लगभग 200 साल बाद 1835 में चर्च द्वारा हटा दिया गया था।
  • गैलीलियो ने गति के विज्ञान (कीनेमेटिक्स) पर 20 साल का लंबा अध्ययन किया था और “द लिटिल बैलेंस” नामक एक पुस्तक प्रकाशित की।
  • गैलीलियो आकाश को देखने के लिए दूरबीन का उपयोग करने वाले पहले व्यक्ति नहीं थे। ध्यान दें कि थॉमस हैरियट एक अंग्रेज दूरबीन से आकाश का निरीक्षण करने वाले पहले व्यक्ति थे। हालाँकि दोनों के बीच एकमात्र अंतर यह है कि गैलीलियो ने आकाश के अपने अवलोकनों से कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष भी निकाले, जो हैरियट निकालने में असमर्थ थे। गैलीलियो अपने अवलोकनों के लिए प्रसिद्ध हुए जिससे दुनिया को खगोलीय पिंडों की बेहतर समझ मिली।
  • गैलीलियो अल्बर्ट आइंस्टीन के पसंदीदा वैज्ञानिक थे।

इस वीडियो को देखकर आप अपने हंसी नहीं रोक पाएंगे

दिल खोलकर हंसने के लिए तैयार हो जाइए क्योंकि इस वीडियो में भारतीय शादी के कुछ मजेदार क्षणों को इक्क्ठा किया गया है। जिन्हें देखकर आप अपने हंसी नहीं रोक पाएंगे।