जन्मदिन विशेष : भारत की पहली महिला मुक्केबाज मैरी कोम के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य एवं जानकारी

मंगते चुंगनेइजैंग, जिन्हें आमतौर पर मैरी कॉम के नाम से जाना जाता है विश्व की सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों में से एक हैं। मैरी कॉम ने अपनी प्रतिभा और हुनर के दम पर कई मैडल जीतकर इतिहास रचा है। उन्होंने ने केवल इतिहास ही रचा बल्कि भारत को दुनिया के सामने गौरान्वित भी किया है। आइए जानते हैं भारत की पहली महिला मुक्केबाज मैरी कोम के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य।

मैरी कोम का जन्म 1 मार्च 1983 को मणिपुर के कांगथाही गाँव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। उनकी एक छोटी बहन और एक छोटा भाई भी है मैरी अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी हैं।

मैरी कॉम ने अपनी प्राथमिक शिक्षा लोकटक क्रिश्चियन मॉडल स्कूल और सेंट हेवियर स्कूल से पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए वह आदिमजाति हाई स्कूल, इम्फाल गयीं लेकिन परीक्षा में फेल होने के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और फिर राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय से परीक्षा दी।

मैरी कॉम का बचपन बहुत ही संघर्षपूर्ण था। वह स्कूल जाने के साथ साथ अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल भी करती थी। वह अपने माता-पिता की भी मदद करती थी जो खेतों में काम करते थे।

मैरी कॉम की रुचि बचपन से ही एथ्लेटिक्स में थी। स्कूल में उन्होंने वॉलीबॉल, फुटबॉल और एथलेटिक्स सहित सभी प्रकार के खेलों में भाग लिया करती थी। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने कभी भी बॉक्सिंग प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया था।

साल 1998 में जब मणिपुर के बॉक्सर डिंग्को सिंह ने जब एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीता, तब वे उनसे काफी प्रभावित हुईं और उन्होंने बॉक्सिंग में अपने करियर बनाने की ठान ली।

लेकिन एक महिला होने के नाते उनके लिए इसमें करियर बनाना इतना आसान नहीं था, लेकिन मैरी कॉम के शुरु से ही अपने इरादे में दृढ़ रहने की चाह ने आज उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों की सूची में शामिल कर दिया है।

दरअसल, मैरी कॉम के पिता और उनके घर वाले उनके बॉक्सिंग के करियर बनाने के बिल्कुल खिलाफ थे। गौरतलब है कि पहले लोग बॉक्सिंग के खेल को पुरुषों का खेल समझते थे। ऐसे में इस फील्ड में करियर बनाना मैरी कॉम के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था।

वहीं दूसरी तरफ परिवार की आर्थित हालत सही नहीं होने की वजह से मैरि कॉम के लिए बॉक्सिंग के क्षेत्र में प्रोफेशनल ट्रेनिंग लेना भी काफी मुश्किल था, लेकिन फौलादी इरादों वाली मैरी कॉम ने आसानी से इन सभी मुसीबतों का सामना कर लिया और विश्व की महान मुक्केबाज के रुप में उभर कर सामने आईं।

बॉक्सिंग के क्षेत्र में अपने करियर बनाने का मन में ठान बैठी मैरीकॉम ने अपने घर वालों को बिना बताए ही ट्रेनिंग लेना शुरु कर दिया था।

वहीं साल 1999 में एक बार मैरीकॉम ने “खुमान लंपक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स” लड़कियों को लड़कों के साथ बॉक्सिंग करते हुए देखा, जिसे देख कर वे काफी प्रेरित हुई और उन्होंने अपने लक्ष्य को किसी भी हाल में पाने का निश्चय कर लिया।

इसके बाद मैरी कॉम ने अपने सपने को सच करने के लिए मणिपुर राज्य के इम्फाल में बॉक्सिंग कोच एम नरजीत सिंह से ट्रेनिंग लेना शुरु कर दिया।

01 अक्टूबर 2014 को इन्होंने विश्व इतिहास रचते हुए एशियाई खेलो में स्वर्ण पदक जीतने के साथ वे भारत के पहली मुक्केबाज बनी।

8 नवंबर 2017 को उन्होंने वियतनाम में हो ची मिन्ह में आयोजित ASBC एशियाई परिसंघ की महिला मुक्केबाजी चैंपियनशिप में अभूतपूर्व पाँचवाँ स्वर्ण पदक (48 किलोग्राम) प्राप्त किया।

24 नवंबर 2018 को, उन्होंने 6 बार विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली पहली महिला बनकर इतिहास रच दिया, यह उपलब्धि उन्होंने नई दिल्ली में आयोजित 10 वीं एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में हासिल की।

साल 2001 में मैरी कॉम जब पंजाब में नेशनल गेम्स खेलने के लिए जा रही थी, तभी उनकी मुलाकात ओन्लर से हुई थी। उस समय ओन्लर दिल्ली यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई कर रहे थे। 4 सालों की दोस्ती के बाद 2005 में दोनों ने एक-दूसरे से शादी कर ली। शादी के बाद दोनों को तीन बच्चे हुए। साल 2007 में मैरी कॉम ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। इसके बाद साल 2013 में फिर से उन्हें एक और बेटा पैदा हुआ।

मां बनने के बाद भी उनके प्रोफेशनल एटिट्यूड में किसी तरह की कोई कमी नहीं आई। मां बनने के बाद उनका जुनून और भी बढ़ गया जिसके चलते उन्होंने वर्ल्ड टाइटल का खिताब हासिल किया।

वह फ्लाईवेट (51 किग्रा) वर्ग में 2012 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली और भारत के लिए कांस्य पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय महिला हैं। यह पहली बार था जब महिला मुक्केबाजी को ओलंपिक खेल के रूप में पेश किया गया था।

मेरी कोम के जीवन पर आधारित फिल्म ‘मेरी कोम’ को ओमंग कुमार ने बनाया था, जिसे 5 सितम्बर 2014 में रिलीज़ किया गया था। फिल्म में मुख्य भूमिका में प्रियंका चोपड़ा थी, जिसमें उनकी अदाकारी देखने लायक थी।

मैरी कॉम को ओलंपिक पदक जीतने के लिए सरकार से कई नकद पुरस्कार मिले। उन्हें अरुणाचल प्रदेश सरकार और जनजातीय मामलों के मंत्रालय से 10 लाख रुपये, असम सरकार से 20 लाख रुपये, उत्तर पूर्वी परिषद से 40 लाख रुपये और राजस्थान और मणिपुर सरकार से 50 लाख रुपये मिले। उन्हें मणिपुर सरकार से 2 एकड़ ज़मीन भी मिली।

2006 में मैरीकॉम को पद्मश्री, 2009 में उन्हें देश के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से भी नवाजा गया हैं।

‘मैग्नीफिसेंट मैरी’ उपनाम से सम्मानित कॉम को 2003 में अर्जुन पुरस्कार, 2009 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार, 2010 में पद्म श्री और 2013 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है।

2014 में ‘मैरी कॉम’ पर एक जीवनी फिल्म रिलीज हुई थी। इसका निर्माण संजय लीला भंसाली ने किया था और निर्देशन ओमंग कुमार ने किया था। मैरी कॉम की भूमिका निभाई. ऐसा कहा जाता है कि मैरी कॉम के रूप में प्रियंका ने अपनी पूरी जिंदगी में जितनी कमाई की, उससे कहीं ज्यादा कमाई उन्होंने मैरी कॉम के तौर पर एक फिल्म में की।

रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ता है “संतरा”

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संतरा खट्टा हो या मीठा, हर किसी का पसंदीदा फल होता है। यह खट्टा-मीठा फल उत्तरी भारत में बहुतायत में पाया जाता है और इसके सेवन से शरीर को स्फूर्ति, पौष्टिकता तथा बल मिलता है।

संतरे में विटामिन ए, बीसी पाए जाते हैं लेकिन विटामिन सी इसमें सबसे प्रचुर मात्रा में होती है। संतरे को कुछ स्थानों पर ‘नारंगी‘ के नाम से भी जाना जाता है। इस लेख में हम संतरे के औषधीय गुणों के बारे में जानेंगे, चलिए शुरू करते हैं।

  • संतरे के जूस में आयरन तथा कैल्शियम की भी प्रचुर मात्रा होती है। संतरे के रस का सेवन करने से रक्त साफ होता है।
  • संतरे के नियमित सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित होती है। त्वचा कोमल और  मुलायम बनती है। जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है, कब्ज की शिकायत दूर होती है, पाचन शक्ति बढ़ती है, उच्च रक्तचाप कम होता है।

  • सुबह-शाम संतरे का जूस पीने से शरीर में पौष्टिक तत्वों की पूर्ति और कमजोरी दूर होती है। संतरा खाने या संतरे का जूस नियमित पीने से शारीरिक शक्ति बढ़ने के साथ-साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित होती है।
  • प्रतिदिन सुबह या रात को सोते समय एक-दो संतरे खाने या इनका जूस पीने से कब्ज दूर होती है।
  • पेट दर्द, पेट में भारीपन व गैस पीड़ितों के लिए तो संतरा बहुत गुणकारी है।
  • उच्च रक्तचाप में संतरे का रस पीने से रक्तचाप कम होता है।
  • प्रतिदिन 3-4 संतरे खाने से जठराग्नि तेज होती है और आंतों की भी शुद्धि होती है।
  • बुखार से पीड़ित लोगों को संतरे का रस पिलाने से उन्हें ताकत मिलती है और जल्दी ही बुखार से छुटकारा मिल जाता है।
  • सुबह-शाम दोनों समय कम से कम एक-एक संतरे के सेवन से सूखी और खुरदरी त्वचा में एक नई जान आती है और त्वचा कोमल, मुलायम, चमकदार व आकर्षक बनती है।
  • संतरा शरीर में कैल्शियम और विटामिन सी की कमी दूर करता है और इनकी कमी से होने वाली विभिन्न बीमारियों से बचाने में सहायक होता है।
  • छोटे बच्चों के लिए तो संतरा मां के दूध के समान उपयोगी माना गया है। जो बच्चे मां के दूध पर ही आश्रित रहते हैं, उन्हें संतरे का थोड़ा- थोड़ा रस पिलाने से कई रोगों से उनका बचाव होता है और बच्चे हष्ट- पुष्ट होते हैं।
  • संतरे के छिलके भी गुणों के मामले में उतने ही बेमिसाल हैं। संतरे का छिलका कृमिनाशक, विषम ज्वरनाशक और अपचनाशक माना गया है इसलिए ऐसे रोगों में संतरे का छिलका पीस कर खिलाने से रोगी को लाभ मिलता है।
  • संतरे के छिलकों को पीसकर उसमें गुलाब जल मिलाकर चेहरे पर लगाने से दाग- धब्बे मिटते हैं।

आज भी अनसुलझा है ब्लैक होल का रहस्य

ब्रह्मांड न जाने कितने रहस्यों को अपने भीतर छुपाए हुए है जिन्हें आज भी वैज्ञानिक सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हीं रहस्यों में से एक है “ब्लैक होल”।

ब्लैक होल ब्रह्मांड की सबसे रहस्य्मयी चीजों में से एक है। कहा जाता है कि हमें रोज आसमान में दिखने वाला तारा भी अपने अंतिम समय में ब्लैक होल ही बन जाता है। जहां अनंत गहराई और अंधकार के अलावा कुछ नहीं है।

आज इस लेख में हम इसी रहस्य्मयी ब्लैक होल के बारे में बात करने जा रहे हैं, तो चलिए शुरू करते हैं।

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क्या होता है ब्लैक होल?

ब्लैक होल तब बनते हैं जब कोई विशाल तारा मर जाता है और उसका कोर अपने आप ढह जाता है। ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल होता है कि कोई भी चीज़ इससे बच नहीं सकती यहाँ तक कि प्रकाश भी नहीं। इसीलिए उन्हें “ब्लैक होल” कहा जाता है।

जब चीजें ब्लैक होल के बहुत करीब पहुंच जाती हैं, तो वे अंदर खिंच जाती हैं और हमेशा के लिए गायब हो जाती हैं। यह एक विशाल वैक्यूम की तरह है जो अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को सोख लेता है।

ब्लैक होल अक्सर ज्यादा गर्म गैस और धूल से घिरे होते हैं। कहा जाता है कि इनका निर्माण तब होता है जब विशाल तारे ढहते हैं और शायद अन्य तरीकों से जो अभी भी अज्ञात हैं।

ब्लैक होल के प्रकार

ब्लैक होल एक जैसे नहीं होते? वैज्ञानिकों ने उनके आकार के आधार पर विभिन्न प्रकार के ब्लैक होल की पहचान की है। यहां नासा के अनुसार ब्लैक होल के कुछ प्रकारों का विवरण दिया गया है।

प्राइमर्डियल ब्लैक होल – ये सबसे छोटे प्रकार के ब्लैक होल माने जाते हैं।

तारकीय ब्लैक होल – सबसे सामान्य प्रकार के मध्यम आकार के ब्लैक होल को ‘तारकीय‘ (Stellar) कहा जाता है। एक तारकीय ब्लैक होल (Stellar Black Hole) का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से 20 गुना अधिक हो सकता है। हमारी मिल्की-वे गैलेक्सी के भीतर दर्जनों तारकीय द्रव्यमान वाले ब्लैक होल मौजूद हो सकते हैं।

महाविशाल ब्लैक होल – ये वास्तव में बहुत बड़े होते हैं। एक महाविशाल ब्लैक होल का द्रव्यमान सूर्य से लगभग एक अरब गुना अधिक हो सकता है।

मध्यवर्ती ब्लैक होल – सबसे बड़े ब्लैक होल को ‘सुपरमैसिव‘ (Supermassive Black Hole) कहा जाता है। इन ब्लैक होल का द्रव्यमान एकसाथ 1 मिलियन से भी अधिक सूर्यों के बराबर हो सकता है। अब तक के ज्ञात सबसे विशाल ब्लैक होल्स में से एक TON 618 का द्रव्यमान हमारे सूर्य के द्रव्यमान से 66 बिलियन गुना अधिक है।

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ब्लैक होल के बारे में तथ्य

  • Black Hole को हिंदी में “कृष्ण विवर” के नाम से भी जाना जाता है।
  • कहा जाता है कि अल्बर्ट आइंस्टीन ने ब्लैक होल के अस्तित्व की खोज की थी लेकिन यह गलत है उन्होंने पहली बार 1916 में अपने सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत के साथ ब्लैक होल के अस्तित्व की भविष्यवाणी की थी ।
  • Black Hole शब्द का इस्तेमाल कई साल बाद 1967 में अमेरिकी खगोलशास्त्री जॉन आर्चीबाल्ड व्हीलर द्वारा किया गया था। ब्लैक होल शब्द की उत्पत्ति के दशकों बाद भी ब्लैक होल को केवल सैद्धांतिक वस्तुओं के रूप में जाना जाता रहा है।
  • कार्ल श्वार्ज़चाइल्ड, आइंस्टीन के क्रांतिकारी समीकरणों का उपयोग करने वाले और यह दिखाने वाले पहले व्यक्ति थे कि Black Hole वास्तव में मौजूद हो सकते हैं।
  • किसी तारे के Black Hole बनने के लिए उसका द्रव्यमान हमारे सूर्य से कम से कम 10-20 गुना अधिक होना चाहिए। इसलिए सूर्य एक ब्लैक होल नहीं बन सकता क्योंकि उसके पास event horizon बनाने के लिए पर्याप्त द्रव्यमान नहीं है।
  • पृथ्वी के निकटतम Black Hole को द यूनिकॉर्न (The unicorn) कहा जाता है और यह लगभग 1,500 प्रकाश-वर्ष दूर स्थित है।
  • हालांकि Black Hole का पता लगाना एक मुश्किल काम है लेकिन नासा का अनुमान है कि मिल्की वे में 10 मिलियन से एक बिलियन ब्लैक होल हो सकते हैं।
  • वैज्ञानिक यह पता लगाने के लिए सितारों पर अध्ययन कर रहें हैं कि क्या वे (सितारें) ब्लैक होल के चारों ओर उड़ रहे हैं या परिक्रमा कर रहे हैं। जब एक ब्लैक होल और एक तारा पास-पास होते हैं, तो उच्च-ऊर्जा प्रकाश बनता है।
  • Black Hole को नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। इसे नई टेक्नोलजी के साथ विशेष उपकरण जैसे जेम्स वैब तथा हबल टेलीस्कोप आदी यह देख सकते हैं ।
  • मिल्की वे के केंद्र में एक ज्ञात सुपरमैसिव ब्लैक होल है जिसका नाम Sagittarius A* रखा गया है। नासा के एक बयान के अनुसार विशाल संरचना सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 4 मिलियन गुना है और पृथ्वी से लगभग 26,000 प्रकाश वर्ष दूर है।
  • Black Hole की पहली तस्वीर 2019 में इवेंट होराइज़न टेलीस्कोप (EHT) द्वारा ली गई थी।
  • हमारे सौर मंडल का निकटतम ज्ञात ब्लैक होल V616 monocerotis है, जिसे A0620-00 के रूप में भी जाना जाता है जो लगभग 3,000 प्रकाश-वर्ष दूर स्थित है और इसका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 7 गुना से अधिक है।
  • सबसे बड़े ज्ञात Black Hole को TON 618 कहा जाता है। यह NGC 4889 नामक आकाशगंगा के केंद्र में स्थित है। इसका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 66 बिलियन बड़ा है। यह सुपरमैसिव Black Hole अब तक ज्ञात सबसे बड़े ब्लैक होल में से एक है और यह हमारी मिल्की वे आकाशगंगा के केंद्र में मौजूद Black Hole से लगभग 14 गुना बड़ा है।

खगोलीय घटनाओं को बेहद नजदीक से ट्रैक करने वाली संस्था नासा ने अंतरिक्ष का ‘दानव’ कहे जाने वाले ब्लैक होल की डरावनी आवाज रिकॉर्ड किया है। जिसे सुपरसोनिक साउंड क्वालिटी के साथ सुनने पर इसकी विशालता और भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है। ब्लैक होल से आने वाली आवाजें सुनकर आप हैरान रह जाएंगे।

नासा के मुताबिक जब एक ब्लैक होल में कोई सामग्री जाती है तो तेज एक्स-रे लाइट उत्पन्न होती है। इसके बाद ब्लैक होल से ईको (Echo) या गूंज की आवाज सुनाई देती है। ब्लैक होल से निकलने वाली ये आवाजें काफी डरावनी सुनाई पड़ती हैं।

इन आवाजों को ब्लैक होल बायनरीज (Black Hole Binaries) का नाम दिया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि ब्लैक होल का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से 5 से 15 गुना तक अधिक था।

देश के सबसे उम्रदराज प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से जुड़े कुछ अनसुने तथ्य

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भारत के छठे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को भदेली गांव, बुलसर जिला में हुआ था। मोरारजी देसाई एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने 1977 और 1979 के बीच जनता पार्टी द्वारा गठित सरकार का नेतृत्व करते हुए भारत के चौथे प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया।

राजनीति में अपने लंबे करियर के दौरान उन्होंने सरकार में कई महत्वपूर्ण पद संभाले जिनमें शामिल है बॉम्बे राज्य के मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, वित्त मंत्री और भारत के दूसरे उप प्रधान मंत्री। आज इस पोस्ट में हम मोरारजी देसाई से जुड़े कुछ अनसुने तथ्य जानेगें।

तथ्य

  • मोरारजी देसाई का जन्म एक गुजराती परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम रणछोड़जी नागरजी देसाई और माता का नाम वाजियाबेन देसाई था। वह अपने आठ भाई बहनों में सबसे बड़े थे। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे।

  • मोराजी देसाई ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ‘सेंट बुसर हाई स्कूल’ से प्राप्त की थी। इसके बाद तत्कालीन बंबई प्रांत के ‘विल्सन सिविल सेवा’ से वर्ष 1918 में स्नातक की डिग्री हासिल करने बाद उन्होंने 12 वर्षों तक डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्य किया।
  • गोधरा (Godhara) में 1927 में हुई साम्प्रदायिक हिंसा के बाद ही मोरारजी देसाई ने सरकारी नौकरी छोड़कर स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल होने का निर्णय कर लिया था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान श्री देसाई को तीन बार जेल भेजा गया।
  • मोरारजी देसाई भारत की स्वतंत्रता से पहले बॉम्बे के गृह मंत्री बने और बाद में 1952 में बॉम्बे के मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए।
  • वह पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से नहीं थे। वह भारतीय राजनीति के इतिहास में 81 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री का पद संभालने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति थे। जो आज भी एक रिकॉर्ड बना हुआ है।
  • उन्होंने जवाहर लाल नेहरू के शासनकाल में गृह मंत्री और इंदिरा गांधी के शासनकाल में डिप्टी पीएम और वित्त मंत्री के रूप में काम किया था।
  • जब इंदिरा गांधी ने उनसे वित्त विभाग छीन लिया और 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया, तो उन्होंने डिप्टी पीएम के पद से इस्तीफा दे दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन) का गठन किया, जिसे सिंडिकेट भी कहा जाता था।
  • गुजरात के नव निर्माण आंदोलन का समर्थन करने के लिए उन्होंने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की थी।
  • आठ वार्षिक और दो अंतरिम बजट के साथ मोरारजी देसाई अब तक सबसे अधिक बजट पेश करने वाले वित्त मंत्री हैं।
  • जब 1968 में भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) का गठन किया गया, तो देसाई ने इसे इंदिरा गांधी का प्रेटोरियन गार्ड माना और प्रधानमंत्री बनने पर इस एजेंसी की सभी गतिविधियों को बंद करने का वादा किया।
  • उन्होंने 24 मार्च 1977 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली गई। श्री देसाई 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक भारत के प्रधानमंत्री थे।
  • उनकी सरकार ने आपातकाल के दौरान संविधान में किए गए कई संशोधनों को रद्द कर दिया और भविष्य की किसी भी सरकार के लिए राष्ट्रीय आपातकाल लागू करना कठिन बना दिया।
  • मोरारजी देसाई ने उस समय के मशहूर टीवी शो ‘सिक्स्टी मिनट्स’ में एक इंटरव्यू में बताया कि वह स्वमूत्र चिकित्सा में विश्वास रखते हैं और इसका अभ्यास भी करते हैं। वह रोजाना एक गिलास अपने मूत्र का सेवन करते हैं।
  • मोरारजी देसाई का 10 अप्रैल 1995 को 99 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस : जाने क्या है इतिहास और उदेश्य

हर साल 28 फरवरी को पूरे देश में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस “रमन प्रभाव” की खोज के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का उद्देश्य है विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों को बताना और दुनिया के सामने रखना है। इस अवसर के माध्यम से युवाओं को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

इसके अलावा समाज में वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है। जिससे आने वाली पीढ़ियों को विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल सके और वे इस क्षेत्र में अपना भविष्य बना सके।

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2024 के लिए थीम “विकसित भारत के लिए स्वदेशी प्रौद्योगिकियाँ ” रखी गई है।

“रमन प्रभाव” की खोज

सीवी रमन तमिल ब्राह्मण परिवार से आए थे। वह स्कूल और फिर विश्वविद्यालय के एक होनहार छात्र थे। रमन ने संगीत ध्वनियों की भौतिकी का अध्ययन किया और अंततः प्रकाश के बिखरने की घटना का निरीक्षण और विश्लेषण करना शुरू किया।

उन्होंने 1907 से 1933 तक इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस, कोलकाता, पश्चिम बंगाल में काम किया।

यहां उन्होंने भौतिकी के विभिन्न विषयों पर शोध किया था, जिनमें से एक “रमन प्रभाव” भी है, जो भारतीय इतिहास में विज्ञान के क्षेत्र में सबसे बड़ी खोज थी। जिसके लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

1986 में राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद (एनसीएसटीसी) ने भारत सरकार से 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में नामित करने के लिए कहा था। जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया और पहला राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 28 फरवरी 1987 को मनाया गया था।

क्या है रमन प्रभाव?

रमन प्रभाव स्पेक्ट्रोस्कोपी में एक घटना है जिसे प्रख्यात भौतिक विज्ञानी ने “इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस” कोलकाता की प्रयोगशाला में काम करते समय खोजा था।

रमन प्रभाव अणुओं द्वारा फोटॉन कणों का लचीला प्रकीर्णन है जो उच्च कंपन या घूर्णी ऊर्जा स्तरों को प्रोत्साहित करते हैं। इसे रमन स्कैटरिंग भी कहा जाता है।

सरल शब्दों में यह प्रकाश की तरंगदैर्ध्य में परिवर्तन है जो प्रकाश की किरणों के अणुओं द्वारा विक्षेपित होने के कारण होता है।

जब प्रकाश की एक किरण किसी रासायनिक यौगिक के धूल रहित एवं पारदर्शी नमूने से होकर गुज़रती है तो प्रकाश का एक छोटा हिस्सा आपतित किरण की दिशा से भिन्न अन्य दिशाओं में उभरता है।

इस प्रकिर्णित प्रकाश के अधिकांश हिस्से का तरंगदैर्ध्य अपरिवर्तित रहता है। हालाँकि प्रकाश का एक छोटा हिस्सा ऐसा भी होता है जिसका तरंगदैर्ध्य आपतित प्रकाश के तरंगदैर्ध्य से भिन्न होता है और इसकी उपस्थिति रमन प्रभाव का परिणाम है।

रमन प्रभाव रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का आधार निर्मित करता है जिसका उपयोग रसायन विज्ञानियों और भौतिकविदों द्वारा सामग्री के बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु किया जाता है।

ये है दुनिया का सबसे बड़ा “डिजिटल कैमरा”

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उत्तरी चिली के मरुस्थल में पहाड़ियों के ऊपर कई विशाल डिश और दूरबीनें लगी हैं। अब यहां दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल कैमरा लगाया जा रहा है, जो सितारों के साथ इंसानी संपर्क में क्रांतिकारी बदलाव कर सकता है।

चिली की वेरा सी रूबिन ऑब्जर्वेटरी के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वहां लगे टेलीस्कोप में कार के आकार का डिजिटल कैमरा लगाने से ब्रह्मांड के अध्ययन में बड़ी तरक्की हो सकती है।

world's largest digital camera

2025 से होगी शुरुआत

2.8 मीट्रिक टन का कार के आकार का यह डिजिटल कैमरा एक बेहद परिष्कृत और आधुनिक उपकरण है, जिससे ब्रह्मांड के उन कोनों तक भी पहुंचा जा सकेगा, जहां इंसानी नजर पहले कभी नहीं गई।

अमरीकी फंडिंग से तैयार किया गया यह कैमरा 2025 में काम शुरू करेगा, जब 80 करोड़ डॉलर के इस कैमरे से पहली तस्वीर ली जाएगी। हर तीन दिन में यह आसमान का एक चक्कर लगाएगा, जिससे वैज्ञानिकों को विश्लेषण के लिए भरपूर डाटा और तस्वीरें मिलेंगी।

क्रांतिकारी बदलाव की उम्मीद

यह ऑब्जर्वेटरी चिली की राजधानी सैनटिएगो से 560 किलोमीटर उत्तर में सेरो पाचों पहाड़ी पर 2,500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसका फायदा चिली को भी होगा, जो अंतरिक्ष अध्ययन का एक बड़ा केंद्र है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली टेलीस्कोपों में से एक-तिहाई यहीं स्थित हैं क्योंकि यहां का आसमान दुनिया में सबसे साफ माना जाता है।

रूबिन ऑब्जर्वेटरी में लगने वाले कैमरे का पहला काम पूरे आसमान की दस साल की समीक्षा करना होगा। इस समीक्षा को ‘लेगी सर्वे ऑफ स्पेस एंड टाइम‘ कहते हैं। उम्मीद है कि इस समीक्षा से करीब 2 करोड़ आकाशगंगाओं, 1.7 अरब सितारों और 60 लाख अन्य अंतरिक्षीय पिंडों के बारे में सूचनाएं मिलेंगी। इससे वैज्ञानिक हमारी आकाशगंगा का भी एक नक्शा बना पाएंगे और डार्क मैटर की और गहराई में जा पाएंगे।

3,200 मैगापिक्सल क्षमता वाला कैमरा

नए कैमरे से 3,200 मैगापिक्सल की तस्वीरें ली जाएंगी यानी यह तस्वीर एक औसत टैलीविजन तस्वीर से लगभग 300 गुना ज्यादा बड़ी होगी। फिलहाल जो दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल कैमरा है, उससे यह तीन गुना ज्यादा शक्तिशाली होगा। इस वक्त दुनिया का सबसे शक्तिशाली कैमरा 870 मैगापिक्सल का हाइपर सुप्रीम कैम है, जो जापान में लगा है।

ऑब्जर्वेटरी के निदेशक स्टीफन हीथकोट बताते हैं, “जब चिली में पहला टैलीस्कोप लगाया गया था तो उसे खच्चर पर लाद कर लाया गया था क्योंकि तब यहां सड़क नहीं थी।’ वेरा सी रूबिन ऑब्जर्वेटरी को अमरीकी खगोलविद पर यह नाम दिया गया है, जिन्होंने डार्क मैटर की खोज की थी।

पंजाब केसरी से साभार

शाहिद कपूर के बारे में कुछ अनसुने तथ्य

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शाहिद कपूर बॉलीवुड के सबसे प्रतिभाशाली और बहुमुखी अभिनेताओं में से एक हैं। वह बॉलीवुड के उन स्टार किड्स में से एक हैं जिन्हें फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए काफी संघर्ष और उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा। लेकिन वह आज इंडस्ट्री में एक बड़ा नाम हैं। इस पोस्ट में हम शाहिद कपूर के जीवन बारे में कुछ अनसुने तथ्य जानेगें, तो चलिए शुरू करते हैं।

शाहिद कपूर का जन्म 25 फरवरी 1981 में अभिनेता पंकज कपूर और अभिनेत्री नीलम आजमी के घर दिल्ली में हुआ था, लेकिन जब शाहिद 3 साल के थे तो उनके माता-पिता का तलाक हो गया था।

शाहिद कपूर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के ज्ञान भारती स्कूल से प्राप्त की थी। उसके बाद उन्होंने मुंबई के राजहंस विद्यालय से अपनी उच्च शिक्षा पूरी की और फिर मिथिबाई कॉलेज मुंबई में अपनी स्नातक की डिग्री पूरी की थी।

भले ही शाहिद कपूर बॉलीवुड के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं में से एक हैं, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब इस अभिनेता को मौका पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। अपनी पहली फिल्म “इश्क विश्क” से पहले उन्होंने 100 बार ऑडिशन दिया था। अभिनेता ने एक थ्रोबैक इंटरव्यू में यह भी बताया था कि कई बार उनके पास ऑडिशन में जाने के लिए पैसे भी नहीं होते थे।

हालांकि शाहिद कपूर आज बॉलीवुड में एक बड़े स्टार हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि उनके करियर की शुरुआत बहुत ही साधारण तरीके से हुई थी। अभिनेता ने सुभाष घई की फिल्म ‘ताल‘ में बैकग्राउंड डांसर के रूप में काम किया था। एक गाने में ऐश्वर्या राय बच्चन को सफेद कपड़े में लिपटे हुए दिखाया गया था। उन्हें लपेटने वाला शख्स कोई और नहीं बल्कि शाहिद थे। वह फिल्म ‘दिल तो पागल है‘ में भी बैकग्राउंड डांसर का हिस्सा थे।

इसके बाद 2006 में सूरज बड़जात्या की फिल्म ‘विवाह‘ आई, जो बड़ी हिट साबित हुई। वहीं 2007 में इम्तियाज अली की ‘जब वी मेट‘ को शाहिद की अब तक की यादगार फिल्मों में शुमार किया जाता है। 2009 में विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘कमीने‘ में अभिनय के लिए शाहिद को खूब वाहवाही मिली।

वर्ष 2010 से 2012 का करियर शाहिद के लिए बुरा साबित हुआ। इस दौरान उन्होंने दिल बोले हड़िप्पा, चांस पे डांस, पाठशाला, बदमाश कंपनी, मिलेंगे मिलेंगे, मौसम और तेरी मेरी कहानी जैसी फिल्मों में काम किया, लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही।

वर्ष 2013 में प्रभुदेवा के निर्देशन में बनी फिल्म ‘आर राजकुमार‘ रिलीज़ हुई। इस फिल्म में शाहिद ने अपने जबरदस्त एक्शन दृश्यों के जरिए दर्शकों का दिल जीत लिया।

उसके बाद शाहिद की वर्ष 2014 में फिल्म ‘हैदर‘ रिलीज हुई। विशाल भारद्वाज के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए शाहिद कपूर को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किए किया। इसके अलावा फिल्म “पद्मावत “और “कबीर सिंह” में भी उनके अभिनय को बहुत सराहा गया। कबीर सिंह शाहिद की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी।

शाहिद की करीना कपूर के साथ जोड़ी खूब जचती थी। दोनों की जोड़ी को पर्दे पर दर्शकों का खूब प्यार मिला। शाहिद और करीना के अफेयर्स की खबरें भी काफी सुर्खियों में रहीं। हालांकि, करीना ने सैफ अली खान से तो शाहिद ने मीरा राजपूत से शादी कर ली।

रिपोर्ट्स के मुताबिक शाहिद कपूर दिग्गज अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के सौतेले भतीजे हैं। कहा जाता है कि उनकी सौतेली मां सुप्रिया पाठक, रत्ना पाठक शाह की बहन हैं, जिनकी शादी नसीरुद्दीन शाह से हुई है।

शाहिद कपूर अमेरिकी एफ-16 सुपर वाइपर उड़ाने वाले पहले बॉलीवुड अभिनेता हैं और उन्होंने यह बड़ी उड़ान भरने से पहले एक महीने से अधिक समय तक प्रशिक्षण लिया था। वह अपने काम के प्रति इतने जुनूनी हैं कि उन्होंने मौसम नामक फिल्म के लिए विमान उड़ाना सीखा।

रिपोर्ट्स के मुताबिक शाहिद अपने पासपोर्ट पर खट्टर सरनेम का इस्तेमाल करते हैं। यह उपनाम अभिनेता राजेश खट्टर, ईशान खट्टर के पिता और शाहिद की मां और नीलिमा अज़ीम के पूर्व पति का है।

ब्रेन हिंस द्वारा लिखित किताब “लाइफ इस फेयर” (Life is Fair) को पढने के बाद उन्होंने मॉस खाना छोड़ दिया था।

गुरु रविदास जयंती पर पढ़ें उनके दोहे जो जीवन बदल सकते हैं

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ मास की पूर्णिमा तिथि को संत रविदास की जयंती के रूप में मनाया जाता है। संत गुरु रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा तिथि के दिन हुआ था।

सतगुरु रविदास जी भारत के उन विशेष महापुरुषों में से एक हैं जिन्होंने अपने आध्यात्मिक वचनों से सारे संसार को आत्मज्ञान, एकता, भाईचारा पर जोर दिया।

जगतगुरु रविदास जी की अनूप महिमा को देख कई राजा और रानियाँ इनकी शरण में आकर भक्ति मार्ग से जुड़े। जीवन भर समाज में फैली कुरीति जैसे जात-पात के अन्त के लिए काम किया।

रविदास जी के सेवक इनको “सतगुरु“, “जगतगुरु” आदि नामों से सत्कार करते हैं। रविदास जी की दया दृष्टि से करोड़ों लोगों का उद्धार किया जैसे: मीरा बाई आदी।

रविदास जयंती तिथि 24 फरवरी को है। पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 23 फरवरी 2024 को 03 बजकर 33 मिनट से और पूर्णिमा तिथि समाप्त 24 फरवरी को 5 बजकर 59 मिनट पर होगी।

इस पोस्ट में हम जानेंगे रविदास जी के प्रचलित दोहे:-

मन चंगा तो कठौती में गंगा

दोहे का अर्थ है कि अगर आपका मन पवित्र है तो साक्षात ईश्वर आपके हृदय में निवास करते हैं।

हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।

दोहे का अर्थ है कि हरी के समान कीमती हीरे को छोड़कर अन्य की आशा करने वाले अवश्य नरक को जाएंगे। यानी प्रभु की भक्ति को छोड़कर इधर-उधर भटकना व्यर्थ है।

रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।।

संत रविदास जी कहते हैं कि जिस हृदय में दिन-रात राम का नाम रहता है, ऐसा भक्त राम के समान होता है। राम नाम जपने वाले को न कभी क्रोध आता है और न ही उस पर काम भावना हावी होती है।

रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच।।

इसका अर्थ है कि ‘कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा अपने जन्म के कारण नहीं बल्कि अपने कर्म के कारण होता है। व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं। संत रविदास जी सभी को एक समान भाव से रहने की शिक्षा देते थे।

करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास

गुरु रविदास जी कहते हैं कि ज्यादा धन का संचय, अनैतिकता पूर्वक व्यवहार करना और दुराचार करना गलत बताया है। इसके अलावा अंधविश्वास, भेदभाद और छोटी मानसिकता के घोर विरोधी थे।

 

जानिए गुरु रविदास जयंती पर उनसे जुड़े कुछ रोचक तथ्य

गुरु रविदास जयंती शनिवार 24 फरवरी 2024 को मनाई जाएगी। इस वर्ष संत गुरु रविदास की 647 वीं जयंती मनाई जाएगी। गुरु रविदास जी को रैदास, रोहिदास और रूहीदास के नाम से भी जाना जाता है। वे भक्ति आंदोलन के एक सुप्रसिद्ध संत थे।

इतिहासकारों के मुताबिक, संत गुरु रविदास का जन्म 1377 सी.ई. में वाराणसी के मंडुआडीह में हुआ था। हिंदू पंचांग के अनुसार यह कहा जाता है कि माघ पूर्णिमा के दिन गुरु रविदास का जन्म हुआ था इसलिए माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास का जन्मदिन आस्था के साथ मनाया जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन रविदास जी का जन्म हुआ था, उस दिन रविवार था। इसी की वजह से इनका नाम रविदास पड़ गया।

इसके अलावा रविदास जी की जयंती को सिख धर्म के लोग भी बेहद श्रद्धा से मनाते हैं। इस दिन के दो दिन पहले गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ किया जाता है।

इसे पूर्णिमा के दिन समाप्त किया जाता है। इसके बाद कीर्तन दरबार होता है। साथ ही रागी जत्था गुरु रविदास जी की वाणियों का गायन करते हैं।

जुड़ी कुछ रोचक तथ्य

  • संत रविदास समाजिक संत थे। वह तब जन्में जब समाज में जातिगत भेदभाव बहुत ज्यादा था। ऐसे में उनके द्वारा दिया ज्ञान, इतिहास के स्वर्णअक्षरों में अंकित हो गया।
  • वे संत कबीर के गुरुभाई थे। संत रविदास के गुरु का नाम रामानंद था। 15वीं सदी में जन्में रविदास जी ने भक्ति आंदोलन को एक नई दिशा दी। जिसका उल्लेख उनके द्वारा लिखित काव्यों में साक्षात् मिलता है।
  • संत रविदास का जन्म उत्तप्रदेश के काशी नगर में मां कालसा देवी और पिता संतोख दास जी के यहां हुआ था।
  • उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए।
  • प्राचीनकाल से ही भारत में विभिन्न धर्मों तथा मतों के अनुयायी निवास करते रहे हैं। इन सब में मेल-जोल और भाईचारा बढ़ाने के लिए संतों ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे संतों में रैदास का नाम अग्रगण्य है।
  • लोगों की नजरों में उनकी छवि एक मसीहा के रूप में थी।

अपनी पहली ही फिल्म से रातोंरात स्टार बन गई थी “भाग्यश्री”

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भाग्यश्री बॉलीवुड की एक मशहूर अभिनेत्री हैं। इन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ में दमदार अभिनय कर दर्शकों का दिल जीत लिया था और रातोंरात स्टार बन गई थी। भले ही आज भाग्यश्री फिल्मों से दूर हो, लेकिन वे सोशल मीडिया के जरिए अपने फैंस से जुड़ी रहती हैं।

आज की हमारी इस पोस्ट में हम भाग्यश्री के जन्मदिन पर जानेगें उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में, तो चलिए शुरू करते हैं।

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भाग्यश्री का जन्म महाराष्ट्र के सांगली में एक शाही मराठी परिवार में हुआ था और उनके पिता विजय सिंहराव माधवराव पटवर्धन सांगली के राजा हैं।

उन्होंने अपने अभिनय करियर की शुरुआत फिल्मों से नहीं बल्कि टेलीविजन से की थी। उन्हें पहली बार अमोल पालेकर के सीरियल “कच्ची धूप” में देखा गया था, जो चित्रा पालेकर द्वारा लिखा गया था। इसमें प्यार, त्याग और किशोरावस्था की छोटी छोटी खुशियाँ जैसे विषयों के बारे में बताया गया था।

उन्होंने अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत ‘मैंने प्यार किया‘ से की, जो वर्ष 1989 में रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म में भाग्यश्री के अपोजिट सलमान खान को कास्ट किया गया था। फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट फीमेल डेब्यू का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था। रिपोर्ट्स के अनुसार, भागयश्री ने सलमान खान से तीन गुनी फीस चार्ज की थी।

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मैंने प्यार किया के दौरान भाग्यश्री और सलमान खान

भाग्यश्री एक शाही परिवार से थीं और अपने पुराने दोस्त हिमालय दासानी से शादी करना चाहती थीं। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि हिमालय से शादी करने के लिए उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था, क्योंकि उनके पिता इस शादी के खिलाफ थे। वह भाग गई और एक मंदिर में उससे शादी कर ली।

उनकी पहली फिल्म ‘मैंने प्यार किया‘ एक बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्म थी और फिल्म की सफलता के तुरंत बाद, उन्हें कई फिल्मों के प्रस्ताव मिले। लेकिन उन्होंने आगे काम करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय एक गृहिणी बनने का फैसला किया।

भाग्यश्री ने हिंदी के अलावा भोजपुरी, मराठी और तेलुगु फिल्मों में भी अभिनय किया है। इन फिल्मों से भाग्यश्री वो चार्म नहीं बिखेर पाईं, जो उनकी पहली फिल्म में दिखा। उनके बेटे अभिमन्यु दासानी भी फिल्मों में कदम रख चुके हैं। भाग्यश्री की एक बेटी भी है, जो बॉलीवुड डेब्यू करने जा रही हैं।