मजेदार किस्सा : जब अनुपम खेर ने महेश भट्ट को दिया था श्राप, फिल्म से निकाले जाने के कारण रातों-रात मुंबई छोड़ रहे थे एक्टर

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बॉलीवुड के दिग्गज और वर्सटाइल एक्टर अनुपम खेर ने अपने करियर में 500 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया है। उन्होंने कॉमेडी, विलेन, सीरियस सभी तरह के किरदारों को बखूबी पर्दे पर निभाया है। उनका जन्म 7 मार्च 1955 को शिमला में हुआ था।

आज के लेख में हम आपको बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता से जुड़ा एक किस्सा बताने जा रहे हैं तो चलिए जानते हैं।

अनुपम खेर ने बॉलीवुड के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है। अनुपम पहली बार महेश भट्ट की फिल्म सारांश में नजर आए थे। ये फिल्म सुपरहिट साबित हुई थी। इसकी खास बात ये थी कि इस फिल्म में अनुपम ने एक बूढ़े पिता का किरदार निभाया था और उस वक्त उनकी उम्र केवल 28 साल थी।

Funny story Anupam Kher cursed Mahesh Bhatt

अनुपम ने अपने संघर्ष के बारे में एक इंटरव्यू में कहा था- मैं एनएसडी से पढ़ाई करने के बाद कलाकार बनने के लिए मुंबई आया था। उस वक्त मेरी जेब में 37 रुपये थे। उन दिनों मैं रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर सोया करता था।

अनुपम को फिल्म सारांश में काम मिल गया था लेकिन जब वह इसके लिए तैयार हुए तो महेश भट्ट ने उन्हें फिल्म से निकाल दिया और संजीव कुमार को कास्ट कर लिया।

जब अनुपम को सारांश से हटाए जाने की बात पता चली तो उनका दिल टूट गया। कई सालों से संघर्ष कर रहे अनुपम ने मुंबई छोड़ने का फैसला किया और महेश भट्ट के घर जाकर उन्हें भला-बुरा कहा।

अनुपम खेर ने एक इंटरव्यू में कहा था- मैंने महेश से कहा था कि आप सच्चाई पर फिल्म बना रहे हैं लेकिन आपकी जिंदगी में कोई सच्चाई नहीं है। मैं ब्राह्मण हूँ, तुम्हें श्राप देता हूँ। यह देखकर महेश भट्ट हैरान रह गए और उन्होंने अनुपम को मुंबई छोड़ने से रोक दिया।

सारांश के बाद ‘कर्मा’, ‘तेजाब’, ‘राम लखन’, ‘दिल’, ‘सौदागर’, ‘1942 ए लव स्टोरी’, ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ और ‘हम आपके हैं कौन‘ जैसी सफल फिल्मों में अनुपम खेर का रोल अलग था।

जानिए क्यों कहलाते हैं शिव “अर्धनारीश्वर”

भगवान शिव की पूजा सदियों से हो रही है लेकिन इस बात को बहुत कम लोग ही जानते हैं कि शिव का एक और रूप है जो है अर्धनारीश्वर।

दरअसल शिव ने यह रूप अपनी मर्जी से धारण किया था। वह इस रूप के जरिए लोगों का संदेश देना चाहते थे कि स्त्री और पुरुष समान है।

आइए जानते हैं इस घटना का चक्र कि आखिर किस वजह से भगवान शिव को यह रूप धारण करना पड़ा था।

हिंदू पौराणिक शास्त्र में भगवान उस मानवीय कल्पना का प्रतीक है जो या तो स्वतंत्र शिव के रूप में पूजे जाते हैं।

लिंग पुराण के अनुसार सृष्टि की शुरुआत में एक कमल खिला। उसके अंदर ब्रह्मा बैठे थे। जागरूक होने पर उन्हें अकेलापन महसूस हुआ लेकिन वे इस प्रश्न में उलझ गए कि किसी का साथ पाने के लिए किसी और जीव का निर्माण कैसे कर सकते हैं।

अचानक उन्हें अपनी आंखों के सामने शिव का आभास हुआ। शिव का दाहिना हिस्सा पुरुष का था और बायां हिस्सा स्त्री का।

इससे प्रेरित होकर ब्रह्मा ने अपने आप को दो हिस्सों में बांट दिया। दाएं हिस्से से सभी पुरुष जीव आए और बाएं हिस्से से स्त्री जीव।

नाथ जोगियों के अनुसार जब वे (जोगी) शिवजी से मिलने कैलाश पर्वत पर गए, तब यह देखकर हैरान रह गए कि शिव पार्वती के साथ आलिंगन में इतने मगन थे कि उन्होंने जोगियों की ओर ध्यान तक नहीं दिया।

फिर वे समझ गए कि शिव और पार्वती के आलिंगन को रोकना शरीर के दाएं हिस्से को बाएं हिस्से से अलग करने जैसा होगा इसलिए उन्होंने शिव को प्रणाम कर उन्हें अर्द्धनारीश्वर के रूप में कल्पित किया।

दक्षिण भारत के मंदिरों में शिव की ओर स्नेह से देखता हुआ भृंगी नामक व्यक्ति दिखाई देता है। भृंगी शिव के दूसरे उपासकों से अलग है और बहुत दुर्बल है।

दरअसल उसकी सिर्फ़ हड्डियां नजर आती हैं और उसके दो नहीं, बल्कि तीन पैर हैं। कहते हैं कि भृंगी शिव का परम भक्त था। एक दिन कैलाश पर्वत पर आकर उसने शिव की प्रदक्षिणा करने की इच्छा व्यक्त की।

इस पर पार्वती ने कहा कि भृंगी उनके इर्द-गिर्द भी जाए लेकिन भृंगी तो शिव से इतना मोहित था कि उसे पार्वती के इर्द-गिर्द घूमने की कोई इच्छा नहीं हुई।

इसे देखकर माता पार्वती शिव की गोद में जा बैठीं और इस वजह से भृंगी अब दोनों के इर्द-गिर्द जाने को मजबूर था। लेकिन उसे तो सिर्फ़ शिव की प्रदक्षिणा करनी थी, इसलिए उसने अब सांप का रूप धारण कर शिव और पार्वती के बीच से खिसकने की कोशिश की।

शिव को यह मज़ेदार लगा और पार्वती को अपने शरीर का आधा हिस्सा बनाकर वे अर्द्धनारीश्वर में बदल गए लेकिन भृंगी ने अपनी हठ नहीं छोड़ी। वह कभी चूहे तो कभी मधुमक्खी का रूप लेकर शिव व पार्वती के बीच से जाने की कोशिश करता।

इससे पार्वती इतनी चिढ़ गईं कि उन्होंने भृंगी को श्राप दे दिया कि वह अपनी मां से मिले शरीर के सभी भाग खो देगा। भृंगी के शरीर से तुरंत मांस और खून गायब हो गया। सिर्फ़ हड्डियां बच गईं। वह ज़मीन पर ढेर हो गया।

तब भृंगी पर तरस खाकर शिवजी ने उसे एक तीसरा पैर दे दिया, ताकि वह तिपाई की तरह खड़ा हो सके। यह घटना दर्शाती है कि ईश्वर के स्त्रैण भाग को ना पूजने का क्या खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

वहीं, उत्तर भारत के पहाड़ी इलाक़ों की एक लोककथा के अनुसार जब पार्वती जी ने गंगा को शिवजी के सिर पर देखा तो वे बहुत क्रोधित हो गईं।

उन्होंने सोचा कि उनके होते हुए शिव किसी और स्त्री को कैसे अपने साथ रख सकते हैं। तब उन्हें शांत करने के लिए शिवजी ने दोनों का शरीर एक कर दिया और इस तरह वे अर्द्धनारीश्वर बन गए।

शिवलिंग पर भूलकर भी न चढ़ाएं ये चीज़े, रूठ जाते है भगवान

भगवान शिव की पूजा के दौरान लोग कभी शिवलिंग पर भांग-धतूरा तो कभी दूध, चंदन और भस्म चढ़ाते हैं। भगवान शिव को बैरागी कहा जाता है, यही वजह है कि उनके शिवलिंग पर कभी भी आम जिन्दगी में इस्तेमाल होने वाली चीजें नहीं चढ़ाई जाती हैं।

अगर आप भी भोलेबाबा के व्रत या उनकी पूजा करने वाले हैं तो भूलकर भी शिवलिंग पर न चढ़ाएं ये चीजें। आज इस पोस्ट के माध्यम से जानते हैं कि वो कौन-कौन सी चीज़े है जो शिवलिंग पर नहीं चढ़ानी चाहिए।

मान्यता है कि हर देवी देवता में चढ़ने वाले तुलसी और सिंदूर शिव को नहीं चढ़ाने चाहिए। ऐसा करने से शिव प्रसन्न होने की जगह पर नाराज हो जाते हैं।

आपको बता दें कि तुलसी मां लक्ष्मी का स्वरूप मानी जाती है यानी श्री विष्णु की अर्धांगिनी। भगवान विष्णु शालिग्राम की पूजा में ही सदैव तुलसी का प्रयोग किया जाता है मगर शिवलिंग पर तुलसी का प्रयोग वर्जित माना गया है।

सिंदूर को श्रृंगार की वस्तु कहा जाता है जोकि सभी देवियों को चढ़ाया जाता है मगर भगवान शिव वैरागी है और उन्हें महाकाल माना जाता है इसलिए सिंदूर शिव को नहीं चढ़ाना चाहिए।

शिव को अर्पित की गई वस्तु का प्रसाद नहीं लिया जाता, जैसे कि बाकी देवताओं पर चढ़ी चीजों को प्रसाद में लेते हैं।कथाओं के अनुसार एक बार केतकी पुष्प ने ब्रह्मा का झूठ में साथ दिया था जिसे जानकर शिव ने क्रोध में केतकी के पुष्प को श्राप दिया था। तब से इस पुष्प को शिवलिंग में नहीं चढ़ाया जाता हैं।

सभी देवी देवताओं की पूजा में हल्दी या हल्दी चावल का प्रयोग किया जाता हैं मगर कुछ लोगों की मानें तो हल्दी सौभाग्य का प्रतीक होती है तो विनाश के देवता भगवान शिव को यह नहीं अर्पित करनी चाहिए।

भगवान श‌िव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध क‌िया था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है, जो भगवान व‌िष्‍णु का भक्त था इसल‌िए व‌िष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है लेकिन श‌िव की नहीं।

मार्टिन लूथर किंग के बारे में रोचक तथ्य एवं जानकारी

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मार्टिन लूथर किंग जूनियर अमेरिका के एक पादरी, आन्दोलनकारी (ऐक्टिविस्ट), एवं अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता थे।

उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता है। उनके प्रयत्नों के परिणामस्वरूप अमेरिका में मतदान अधिकार अधिनियम पारित हुआ। इस कानून ने अफ्रीकी अमेरिकियों को वोट देने के अपने अधिकार का प्रयोग करने में मदद की।

आज इस पोस्ट में हम जानेगें मार्टिन लूथर किंग के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य एवं जानकारी, चलिए शुरू करते हैं।

जन्म के समय उनका नाम मार्टिन नहीं था

किंग का जन्म 15 जनवरी 1929 को अटलांटा, जॉर्जिया में माइकल किंग जूनियर के रूप में हुआ था। उनके पिता माइकल, अटलांटा के एबेनेज़र बैपटिस्ट चर्च के पादरी थे। वे बैपटिस्ट वर्ल्ड एलायंस के लिए रोम, मिस्र, जेरूसलम और बर्लिन जैसे स्थानों की विदेश यात्रा के दौरान प्रोटेस्टेंट सुधार नेता मार्टिन लूथर के काम से बहुत प्रेरित हुए।

स्टैनफोर्ड में मार्टिन लूथर किंग जूनियर रिसर्च एंड एजुकेशन इंस्टीट्यूट के अनुसार, जब वे 1934 में वापस लौटे, तो उन्होंने अपना और अपने बेटे का नाम माइकल किंग से बदलकर मार्टिन लूथर किंग रखने का फैसला किया।

1957 में मार्टिन लूथर जब 28 वर्ष के थे तब उन्होंने आधिकारिक तौर पर अपने जन्म प्रमाण पत्र पर नाम माइकल किंग जूनियर से बदलकर मार्टिन लूथर किंग जूनियर कर लिया था।

किंग ने 15 साल की उम्र में कॉलेज शुरू कर दिया था

एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका से किंग की जीवनी के अनुसार, 1944 में किंग ने एक युद्धकालीन कार्यक्रम के तहत अटलांटा के मोरहाउस कॉलेज में प्रवेश किया, जिसमें प्रतिभाशाली हाई स्कूल के छात्रों को प्रवेश दिया गया।

उनका शुरू में नेता बनने का इरादा नहीं किया था, लेकिन पीएच.डी. के लिए अध्ययन करते समय बोस्टन विश्वविद्यालय में, मार्टिन लूथर को धर्मशास्त्री और नागरिक अधिकार नेता हॉवर्ड थुरमन ने मार्गदर्शन दिया था, जिनका उन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा।

मार्टिन लूथर का परिवार

18 जून 1953 में उनकी मुलाकात संगीत की छात्रा और महत्वाकांक्षी गायिका कोरेटा स्कॉट से हुई और उन्होंने उनसे शादी की। उनके चार बच्चे थे: योलान्डा, मार्टिन लूथर किंग III, डेक्सटर स्कॉट और बर्निस।

Interesting facts and information about Martin Luther King
मार्टिन लूथर किंग अपनी पत्नी कोरेटा स्कॉट और बच्चों के साथ

वह ग्रैमी विजेता थे

किंग को 1970 में मरणोपरांत ग्रैमी से सम्मानित किया गया था। उन्होंने 1967 में दिए गए एक उपदेश से रिकॉर्ड किए गए “व्हाई आई ओपोज़ द वॉर इन वियतनाम” के लिए सर्वश्रेष्ठ स्पोकन वर्ड एल्बम का पुरस्कार जीता।

उन्हें पहले “आई हैव ए ड्रीम” और “वी शैल ओवरकम” की रिकॉर्डिंग के लिए स्पोकन-वर्ड श्रेणी में भी ग्रैमी के लिए नामांकित किया गया था।

1958 में भी उन पर पहला हत्या के प्रयास किया गया था

1968 में लोरेन मोटल में उनकी हत्या से लगभग एक दशक पहले भी उन पर हत्या का प्रयास हुआ था। 20 सितंबर, 1958 को 29 वर्षीय किंग न्यूयॉर्क शहर में एक पुस्तक पर हस्ताक्षर कर रहे थे, जब इज़ोला वेयर करी नाम की औरत ने उनसे पूछा, क्या आप मार्टिन लूथर किंग है? जब किंग ने जवाब दिया, “हां,” तो करी ने लेटर ओपनर उनके सीने में घोंप दिया था।

मोंटगोमरी बस बहिष्कार भाषण – मोंटगोमरी, अलबामा, 5 दिसंबर, 1955 को

जब रोजा पार्क्स को सिटी बस में अपनी सीट छोड़ने से इनकार करने के लिए गिरफ्तार किया गया, तो उसने मोंटगोमरी बस बहिष्कार को बढ़ावा दिया और किंग को सार्वजनिक भाषण देने का पहला मौका दिया। इसी भाषण में उन्होंने अपने कुछ प्रसिद्ध विचारों को प्रस्तुत किया, जिनमें अहिंसक विरोध भी शामिल था।

भाषण ने उनको राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया और उन्हें नागरिक अधिकार आंदोलन में सबसे आगे चलने वालों में से एक बना दिया। मोंटगोमरी बस बहिष्कार 381 दिनों तक चला लेकिन अंततः अलबामा में सार्वजनिक बसों पर नस्लीय अलगाव को समाप्त कर दिया गया। इसमें 100 से अधिक अन्य लोगोंको भी गिरफ्तार किया गया था।

मोंटगोमरी बस बहिष्कार के वर्षों बाद रोजा पार्क्स और मार्टिन लूथर किंग जूनियर

किंग के “आई हैव ए ड्रीम” भाषण में 250,000 से अधिक लोग शामिल हुए थे।

अगस्त 1963 में नौकरियों और स्वतंत्रता के लिए वाशिंगटन में मार्च के दौरान दिए गए भाषण को सुनने के लिए दुनिया भर से लोग आए थे। नेशनल कॉन्स्टिट्यूशन सेंटर के अनुसार, जब किंग ने वाशिंगटन, डीसी में अपना प्रसिद्ध “आई हैव ए ड्रीम” भाषण दिया था तब 250,000 से अधिक लोग उपस्थित थे।

किंग को 1964 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था

1964 में समान नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। वह 35 वर्ष की उम्र में नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। सम्मान के साथ, उन्हें $54,600 दिए गए थे, जिसे उन्होंने आंदोलन को दान कर दिया था।

सेल्मा, अलबामा, 25 मार्च 1965

मार्च 1965 में मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अफ्रीकी अमेरिकी मतदान अधिकारों के लिए लड़ने के लिए सेल्मा से मोंटगोमरी, अलबामा तक 25,000 लोगों के साथ मार्च किया। मार्च के अंत में मार्टिन लूथर ने ” हमारा ईश्वर आगे बढ़ रहा है ” भाषण दिया, जो नागरिक अधिकार आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

कानूनी और राजनीतिक अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय किंग के भाषण ने आंदोलन को आर्थिक समानता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। भाषण के अंत में किंग ने कॉल-एंड-रिस्पॉन्स तकनीक का इस्तेमाल किया जिसने इस भाषण को वास्तव में प्रतिष्ठित बना दिया।

किंग महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे

किंग महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे। मदरसा के छात्र के रूप में पढ़ाई के दौरान किंग पहली बार गांधीजी के शांतिपूर्ण तरीकों से परिचित हुए। वह उस व्यक्ति से कभी नहीं मिल पाए जिसके वे इतने बड़े प्रशंसक थे, लेकिन 1959 में वह एक महीने की लंबी यात्रा के लिए भारत आए, जहां वह गांधी के कई रिश्तेदारों से मिले।

Interesting facts and information about Martin Luther King

अन्य तथ्य

  • एक बच्चे के रूप में किंग को बताया गया था कि वह अपने श्वेत मित्र के साथ नहीं खेल सकता क्योंकि काले और श्वेत बच्चों को एक साथ नहीं रहना चाहिए ।
  • मई 1957 में किंग ने वाशिंगटन में तीर्थयात्रा के दौरान अपना प्रसिद्ध “गिव अस द बैलट” भाषण दिया।
  • उनके अंतिम महान भाषण को “आई हैव बीन टू द माउंटेन टॉप” संबोधन के रूप में जाना जाता है और यह 3 अप्रैल, 1968 को उनकी मृत्यु से एक दिन पहले दिया गया था।
  • 4 अप्रैल 1968 को मेम्फिस, टेनेसी में मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या कर दी गई थी। उन्हें जेम्स अर्ल रे ने गोली मार दी थी। कुछ लोगों ने आरोप लगाया था कि किंग की हत्या एक बड़ी साजिश का हिस्सा थी और रे सिर्फ बलि का बकरा था।
  • किंग का पसंदीदा गाना “टेक माई हैंड, प्रीशियस लॉर्ड” था। यह गाना उनके अंतिम संस्कार में उनकी दोस्त महलिया जैक्सन ने गाया था।
  • अपने जीवन के अंत में किंग ने अपना ध्यान नागरिक अधिकारों से हटकर गरीबी उन्मूलन और वियतनाम युद्ध को रोकने के अभियानों पर केंद्रित कर दिया था।
  • लोरेन मोटल जहां मार्टिन लूथर की हत्या हुई थी, अब राष्ट्रीय नागरिक अधिकार संग्रहालय का स्थान है।
  • उनकी मृत्यु के बाद किंग को 1977 में प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ़ फ़्रीडम और 2004 में कांग्रेसनल गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया।
एक भाषण के दौरान मार्टिन लूथर किंग जूनियर
  • 1983 में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने एक विधेयक पर हस्ताक्षर किए, जिसने मार्टिन लूथर किंग को सम्मानित करने के लिए एक संघीय अवकाश बनाया, लेकिन 2000 तक ऐसा नहीं हुआ क्योंकि कुछ राज्य नई छुट्टी को अपनाने के लिए अनिच्छुक थे, लेकिन वर्ष 2000 के बाद से, सभी 50 राज्यों ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर दिवस मनाया है।

महाशिवरात्रि 2024 : 300 साल बाद बन रहा महाशिवरात्रि पर विशेष योग, इन राशियों पर बरसेगी कृपा

महाशिवरात्रि हिन्दुओं और भगवान शिव का एक प्रमुख त्यौहार है। इस वर्ष महाशिवरात्रि पर्व 8 मार्च 2024 को शुक्रवार के दिन है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ था। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था।

साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से इस महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में शिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि 2024 शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, 8 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन शिव जी की पूजा का समय शाम के समय 06 बजकर 25 मिनट से 09 बजकर 28 मिनट तक है।

300 वर्ष बाद बनेगा त्रिग्रही योग

इस बार महाशिवरात्रि के मौके पर त्रिग्रही योग बन रहा है। यह योग 300 साल बाद बनने जा रहा है। मान्यताओं के अनुसार यह योग विशेष फलदायी है। इस दौरान पांच राशि वाले जातकों पर भगवान शिव की विशेष कृपा बरसेगी।

इस दुर्लभ योग और शुभ अवसर पर भगवान शंकर की पूजा करने से भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होगी। महाशिवरात्रि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है।

मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन व्रत रखने व विधि पूर्वक पूजा अर्चना करने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इस वर्ष शुक्रवार को प्रदोष और शिवरात्रि व्रत एक ही दिन मनाई जाएगी। शुक्र प्रदोष का अपना महत्व है।

गुरुवार सात मार्च को रात्रि 9.46 बजे त्रयोदशी का आगमन हो रहा है, जो शुक्रवार आठ मार्च को रात्रि 7.38 बजे तक रहेगा।

सिंह, कन्या, वृष, मेष, धनु आदि राशि वालों के लिए यह विशेष फलदायी है। महाशिवरात्रि के दिन सुबह आठ बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा।

महाशिवरात्रि के दिन मकर राशि में मंगल और चंद्रमा की युति से चंद्र मंगल योग बन रहा है। इसके साथ ही कुंभ राशि में शुक्र, शनि और सूर्य की युति और मीन राशि में राहु और बुध की युति से त्रिग्रही योग बन रहा है।

ऐसा संयोग कई राशियों के जीवन में खुशियां ला सकता है। इस दिन शहद से अभिषेक करना शुभ होगा।

महाशिवरात्रि पर इन 14 फूलों से करें महादेव को प्रसन्न

महाशिवरात्रि हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण और शुभ त्योहारों में से एक है जो हर साल फरवरी और मार्च के महीने में आता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह त्यौहार फाल्गुन या माघ महीने के कृष्ण पक्ष के चौदहवें दिन मनाया जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ था। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था।

साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से इस महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में शिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।

इस साल 2024 में महाशिवरात्रि 8 मार्च को है। महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त का समय शाम 06 बजकर 25 मिनट से 09 बजकर 28 मिनट तक है।

भगवान भोले नाथ कैसे हों प्रसन्न

महादेव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग को जल और दूध से नहलाया जाता है। यदि कोई भक्त सच्ची श्रद्धा से उन्हें सिर्फ एक लोटा पानी भी अर्पित करें, तो भी महादेव प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करना बड़ा सरल है।

यदि भक्त उन्हें विभिन्न तरीकों के फूल और पत्तियां अर्पित करते हैं, तब भी महादेव मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। भगवान शिव को फूल बहुत पसंद हैं, इसी तरह भगवान शिव को अलग- अलग फूल चढ़ाने के भी अलग- अलग फायदे है। आइए जानते वो 14 शुभ फूल, जिनसे महादेव होते हैं प्रसन्न।

आंकड़े के फूल

लाल और सफेद आंकड़े के फूलों से भगवान शिव का पूजन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

धतूरे के फूल

धतूरा महादेव को चढ़ाए जाने वाले फूलों में से एक है। धतूरे के फूल से पूजन करने पर संतान प्राप्ति का सुख मिलेगा।

चमेली के फूल

अगर आप गाड़ी खरीदना चाहते है, तो चमेली के फूलों से भोलेनाथ का पूजन करने पर गाड़ी का सुख मिलता है।

बिल्व पत्र

बिल्व पत्र के पेड़ को शिवद्रुम के नाम से भी जाना जाता है। भोलेनाथ को बेलपत्र अर्पित करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

अलसी के फूल

अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने पर मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है, कई पाप क्षमा होते हैं।

गुड़हल के फूल

गुड़हल फूल भगवान गणेश के साथ ही भगवान शिव के भी प्रिय फूल हैं। गुड़हल के फूल महादेव को अर्पित करने से दुश्मनों का विनाश होता है।

बेला के फूल

बेला के फूलों से भोलेनाथ का पूजन करने पर सुंदर और अच्छा लाइफ पार्टनर मिलेगा।

हरसिंगार के फूल

हरसिंगार के फूलों से महादेव का पूजन करने पर सुख-संपत्ति में वृद्धि होती है।

जूही के फूल

जूही के फूलों से भगवान शिव का पूजन करने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती और दरिद्रता भी नहीं रहती।

गुलाब के फूल

आमतौर पर देवी- देवताओं को लाल गुलाब की पंखुड़ियां चढ़ाई जाती है। अगर आप शिव शंकर को लाल गुलाब अर्पित करते हैं, तो धन व समृद्धि बढ़ने लगते हैं।

कनेर के फूल

कनेर के फूलों से भगवान शिव का पूजन करने से मनचाहा धन लाभ होगा।

लाल डंठलवाला धतूरा

लाल डंठलवाला धतूरा शिव पूजन में शुभ माना गया है। यह फूल भोलेनाथ को अर्पित करने से धन की मनोकामना पूरी होती है।

शमी वृक्ष के पत्ते

शमी वृक्ष के पत्तों से महादेव का पूजन करने पर अपार धन-संपदा का आशीष मिलता है।

दूब या दूर्वा

दूब या दूर्वा, यूं तो एक तरह की घास है, पर दूर्वा से भगवान शिव का पूजन करने पर आयु बढ़ती है।

महाशिवरात्रि पर महादेव को प्रसन्न करने के अचूक उपाय

महाशिवरात्रि हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण और शुभ त्योहारों में से एक है जो हर साल फरवरी और मार्च के महीने में आता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह त्यौहार फाल्गुन या माघ महीने के कृष्ण पक्ष के चौदहवें दिन मनाया जाता है।

इस साल 2024 में महाशिवरात्रि 8 मार्च को है। महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त का समय शाम 06 बजकर 25 मिनट से 09 बजकर 28 मिनट तक है।

इस पोस्ट में हम महाशिवरात्रि पर महादेव को प्रसन्न करने के अचूक उपायों के बारे में जानेगें, तो चलिए शुरू करते हैं।

महाशिवरात्री का महत्व

तीनों लोकों के मालिक भगवान शिव के विवाह का दिन यानि महाशिवरात्रि है। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन महाशिवरात्रि पड़ती है। इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न कर लेने से सभी मनुष्य की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

महाशिवरात्रि के अवसर पर सारे देवी-देवता एकत्रित होते हैं। इसलिए इसदिन भगवान शिव की कृपा से सभी देवी-देवताओं की कृपा मिलती है और रुके हुए सभी काम पूरे हो जाते हैं। आइए जानते महाशिवरात्रि पर महादेव को प्रसन्न करने के उपाय:

  • भगवान शिव की पूजा करते समय ऊँ महाशिवाय सोमाय नमः मंत्र का जाप करें।
  • जल चढ़ाते समय शिवलिंग को हथेलियों से रगड़ना चाहिए। इस उपाय से किसी की भी किस्मत बदल सकती हैं।
  • नंदी बैल को महादेव का वाहन कह कर पूजा जाता है। इस दिन नंदी बैल को हरा चारा खिलाना चाहिए, इससे धन लाभ और सुख समृद्धि प्राप्त होगी।
  • अगर आप शिवरात्रि पर किसी बिल्व वृक्ष के नीचे खड़े होकर खीर और घी का दान करते हैं, तो आप पर महालक्ष्मी की विशेष कृपा होगी।
  • इस दिन सुबह, दोपहर, शाम और रात इन चारों प्रहर में रुद्राष्टाध्यायी पाठ के साथ भगवान शिव का अलग-अलग पदार्थों जैसे दूध, गंगाजल, शहद, दही या घी से अभिषेक करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
  • चार पहर दिन में शिवालयों में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक और बेलपत्र चढ़ाने से महादेव की अनंत कृपा प्राप्त होती है।
  • इस दिन पर्स में लाल रंग का कागज, चावल, पीपल का पत्ता, चांदी का सिक्का और रुद्राक्ष रखने चाहिए।
  • इस दिन भगवान शिव पर शहद चढ़ाने से नौकरी या व्यवसाय में आ रही बाधाएं दूर हो जाएंगी।
  • इस दिन शिवलिंग पर काले तिल चढ़ाने से रोगों से मुक्ति मिलेगी।
  • किसी सुहागन को लाल साड़ी, लाल चूड़ियां, कुमकुम आदि सुहाग का सामान उपहार में दें। इससे वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर हो जाती हैं।
  • मुखी रुद्राक्ष को कुमार कार्तिकेय का स्वरूप माना जाता है। इसलिए इस दिन इस रुद्राक्ष को धारण करने से धन और स्वास्थ्य दोनों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
  • इस दिन शिवलिंग पर गाय का दूध अर्पित करने से कलह – क्लेश से छुटकारा पाया जा सकता है।
  • इस दिन जरूरतमंद व्यक्ति या गरीबों को दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • इस दिन घर में स्फटिक का शिवलिंग लाकर स्थापित करें और नियमित इसकी पूजा करें। इससे घर में किसी प्रकार के वास्तुदोष का अशुभ प्रभाव नहीं होता है।
  • बिल्वपत्रों पर चंदन से ॐ नमः शिवाय या श्रीराम लिखें। इसके बाद इन पत्तों की माला बनाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं।
  • महाशिवरात्रि के अवसर पर सारे देवी-देवता एकत्रित होते हैं इसलिए अन्य देवताओं की स्तुति भी विशेष फलदायी होती है

कैसे करे महाशिवरात्रि व्रत और पूजा की विधि

  • मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए। अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जाना चाहिए।
  • शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।
  • शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। हालाँकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।

महाशिवरात्रि 2024: जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त

हर साल फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व आता है, वैसे तो पूरे साल की प्रत्येक माह में  कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शंकर को समर्पित मास शिवरात्रि का व्रत किया जाता है लेकिन सालभर में एक बार की जाने वाली फाल्गुन कृष्ण पक्ष की शिवरात्रि का बहुत अधिक महत्व है।

इस दिन व्रत और पूजा करने से युवतियों को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। बताया जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की चार पहर की विशेष पूजा का महत्व है।

उत्तर भारत में इस दिन को फाल्गुन के महीने के रूप में माना जाता है, जबकि अंग्रेजी महीने में यह दिन फरवरी या मार्च के महीने में आता है।

आज इस पोस्ट में हम जानेंगे इस साल कब है शिवरात्रि और शुभ मुहूर्त। तो आइए जानते हैं।

महाशिवरात्रि 2024 शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, 8 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन शिव जी की पूजा का समय शाम के समय 06 बजकर 25 मिनट से 09 बजकर 28 मिनट तक है।

महाशिवरात्रि 2024 चार प्रहर मुहूर्त

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय – शाम 06 बजकर 25 मिनट से रात 09 बजकर 28 मिनट तक
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय – रात 09 बजकर 28 मिनट से 9 मार्च को रात 12 बजकर 31 मिनट तक
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय – रात 12 बजकर 31 मिनट से प्रातः 03 बजकर 34 मिनट तक
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय – प्रात: 03.34 से प्रात: 06:37

महाशिवरात्रि का महत्व

महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा और व्रत रखने का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन ही भगवान शिव लिंग के स्वरूप में प्रकट हुए थे। इसके अलावा ऐसी भी मान्यता है कि इसी तिथि पर पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।

महाशिवरात्रि पर अविवाहित कन्याएं पूरे दिन उपवास रखते हुए शिव आराधना में लीन रहती है और भगवान शिव से योग्य वर की प्राप्ति के लिए कामना करती हैं।

महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने से सभी तरह के सुख और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। महाशिवरात्रि पर सुबह से ही शिव मंदिरों में शिव भक्तों की भीड़ जुटना प्रारंभ हो जाती है।

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महाशिवरात्रि पूजा का संकल्प

  • महाशिवरात्रि व्रत इस वर्ष त्रयोदशी पर शुरू होगा। इस दिन सुबह उठकर स्नान करें, साफ कपड़े पहनें और पूजा स्थल को अच्छी तरह से साफ करें।
  • शिव और देवी पार्वती की मूर्तियों को लकड़ी के तख्ते पर रखें और पंचामृत से स्नान कराएं।
  • शिवलिंग को स्नान कराएं और बेल के पत्ते, भांग, धतूरा, फल और मिठाई चढ़ाएं।
  • चंदन की माला से शिव की पूजा करें और मां पार्वती को कुमकुम चढ़ाएं।
  • महाशिवरात्रि पर उपवास करने का संकल्प लें और मंदिर जाकर शिव को जल चढ़ाएं।

‘जटायु नेचर पार्क’ : दुनिया का सबसे बड़ा ‘पक्षी मूर्ति वाला पार्क’

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केरल में कोल्लम जिले के ‘चादयमंगलम‘ गांव में 4 जुलाई, 2018 को खोला गया ‘जटायु नेचर पार्क‘ खूबसूरत वादियों में 65 एकड़ में फैला हुआ है। यहां से आप पहाड़ों के मनोरम दृश्य देख सकते हैं।

यहां स्थापित पौराणिक पक्षी ‘जटायु’ की 200 फुट लंबी, 150 फुट चौड़ी और 70 फुट ऊंची मूर्ति भारत में सबसे बड़ी मूर्तियों में से एक होने के अलावा दुनिया की सबसे बड़ी पक्षी प्रतिमा भी है।

रामायण में जिक्र है कि रावण जब सीता माता को लंका ले जाने का प्रयास कर रहा था, तब जटायु ने उन्हें बचाने की कोशिश की। जटायु ने रावण का साहसपूर्वक मुकाबला किया लेकिन जटायु के बहुत बूढ़ा होने के कारण रावण ने जल्द ही उन्हें हरा दिया।

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रावण ने जटायु के पंख काट दिए थे, जिससे वह ‘चादयमंगलम‘ में चट्टानों पर जा गिरे। श्री राम और लक्ष्मण जब सीता माता की खोज के दौरान मरणासन्न जटायु से मिले तो उन्होंने ही उन्हें रावण के सीता को ले जाने की सूचना दी और बताया कि वह दक्षिण की ओर गया था।

जटायु की मूर्ति उसी पहाड़ी की चोटी पर विराजमान है, जहां उन्होंने श्री राम तथा लक्ष्मण को सूचना देने के बाद अंतिम सांस ली थी। यह विशाल प्रतिमा एक किंवदंती का प्रतिनिधित्व करती है और महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान तथा सुरक्षा की प्रतीक है।

इसे प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और मूर्तिकार राजीव आंचल ने डिजाइन किया जो गुरुचंद्रिका बिल्डर्स एंड प्रॉपर्टी प्राइवेट लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक भी हैं। यह नेचर पार्क उनका ही विचार था ।

जटायु के आकार की इमारत में है 6 डी थिएटर

इस इमारत में ऑडियो-विजुअल आधारित डिजिटल म्यूजियम व 6डी थिएटर है, जो रामायण के बारे में बताता है। पर्यटक मूर्ति के अंदर से समुद्र तल से 1,000 फुट ऊपर से खूबसूरत नजारे का भी अनुभव ले सकते हैं।

इस मूर्ति को बनाने में 7 साल लगे हैं। कंक्रीट के ढांचे को स्टोन फिनिश दिया गया है। इस इमारत को बनाने में काफी मुश्किलें आईं क्योंकि सभी सामग्रियों को पहाड़ की चोटी पर ले जाना बेहद मुश्किल था ।

एडवेंचर जोन और करीब 20 गेम्स

जटायु नेचर पार्क में एक एडवेंचर सैक्शन भी है। पेंट बॉल, लेजर टैग, तीरंदाजी, राइफल शूटिंग, रॉक क्लाइम्बिंग और बोल्डरिंग जैसी गतिविधियों के लिए यहां कई विकल्प उपलब्ध हैं। पार्क में एक अनूठा आयुर्वेदिक गुफा रिजॉर्ट भी है। यहां आपको मनोरंजन से लेकर रोमांच और आराम तक सब कुछ मिलेगा।

अत्याधुनिक केबल कार

इस नेचर पार्क में यात्रियों के लिए एक अत्याधुनिक रोप-वे की भी सुविधा है। रोपवे पर धीरे-धीरे 1000 फुट की चढ़ाई एक शानदार अनुभव है, जहां से मंत्रमुग्ध कर देने वाले नजारे दिखाई देते हैं।

 

जटायु-राम मंदिर

जटायु प्रतिमा के पास ही एक जटायु-राम मंदिर भी बनाया गया है। यहां करीब ही एक जगह पर पैरों के निशान हैं। मान्यता है कि ये निशान श्री राम के पैरों के हैं।

कैसे पहुंचें

कोल्लम जिला रेल तथा हवाई मार्ग से देश भर से जुड़ा शहर से पार्क तक पहुंचने के लिए बस तथा टैक्सी आदि ली जी सकती है। आगंतुकों को पार्क के शीर्ष तक पहुंचने के लिए केबल कार का इस्तेमाल करना पड़ता है। पार्क में प्रवेश करने के लिए टिकट लेना भी आवश्यक है।

पंजाब केसरी से साभार

इसे ग्रैंड श्राइन : जापान का एक ऐसा अनोखा मंदिर जो हर 20 साल बाद तोड़कर फिर से बनाया जाता है

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जापान के इसे शहर (Ise city) में स्थित इसे ग्रैंड श्राइन मंदिर (Ise Grand Shrine), जिसे इसे जिंगू के नाम से भी जाना जाता है जापान के सबसे पवित्र धर्मस्थलों में से यह एक है।

यह मंदिर शिन्तो (शिंटो) के सबसे पवित्र और सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। (शिंटो धर्म विश्व के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। यह जापान का मूल धर्म है, तथा इसमें कई देवी-देवता हैं, जिनको कामी कहा जाता है) यह मंदिर सौर देवी अमेतरासु (जापानी सूर्य देवी) को समर्पित है।

दरअसल, यह मंदिर दो हिस्सों नाइकू-आंतरिक मंदिर, और गेकू-बाहरी मंदिर में बंटा हुआ है। आंतरिक श्राइन, नाइकू जिसे “कोटाई जिंगु” के रूप में भी जाना जाता है में “अमेतरासु” की पूजा की जाती है और मध्य इसे के दक्षिण में उजी-ताची शहर में स्थित है, जहां वह निवास करती है। मंदिर की इमारतें ठोस सरू की लकड़ी से बनी हैं और इनमें कीलों का उपयोग बिल्कुल भी नहीं नहीं किया गया है।

बाहरी श्राइन, गेकू जिसे “टॉयउके डाइजिंगु” के रूप में भी जाना जाता है नाइकू से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और कृषि और उद्योग के देवता टॉयौके-ओमिकामी को समर्पित है।

नाइकू और गेकू के अलावा, इसे शहर और आसपास के क्षेत्रों में 123 अतिरिक्त शिंटो मंदिर हैं, उनमें से 91 नाइकू से और 32 गेकू से जुड़े हुए हैं।

इन तीर्थस्थलों की खासियत यह है कि इनको उजी पुल के साथ हर 20 साल में तोड़ दिया जाता है और फिर दोबारा बनाया जाता है। बीते 1300 सालों से यह परंपरा चली आ रही है, जो शिंतो परंपरा से जुड़ी है।

इसे मृत्यु और पुनर्जीवन से जोड़कर देखा जाता है। यह मंदिर निर्माण के कौशल और तकनीक को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने का भी एक तरीका है। नए मंदिर का निर्माण पुराने मंदिर के बिल्कुल पास में ही किया जाता है।

इस मंदिर का निर्माण आखिरी बार 2013 में हुआ जो इसकी 62वीं पुनरावृत्ति थी। अब इस मंदिर को साल 2033 में दोबारा तोड़कर बनाया जाएगा।

मंदिर के निर्माण को खास बनाने के लिए ओकिहिकी फेस्टिवल मनाया जाता है। इस त्यौहार के दौरान लोगों द्वारा साइप्रेस के पेड़ों के बड़े-बड़े डंडे लाए जाते हैं।

ये डंडे दो तीर्थस्थलों के आसपास के पवित्र जंगल से काटे गए जापानी सरू के पेड़ों से तैयार किये जाते हैं। इनका उपयोग अंततः नए मंदिर के निर्माण में किया जाता है। नई इमारत के लिए लगभग 10,000 सरू के पेड़ काटे गए हैं। काटे गए इन पेड़ों में से कुछ 200 साल से भी अधिक पुराने होते हैं।