Thursday, April 18, 2024
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पतझड़ में पत्तों का रंग क्यों बदलता है?

पतझड़ के मौसम में पेड़ो से पत्ते झड़ने लगते है। गर्मियों के दौरान पेड़ों की पत्तियां हरे रंग की होती हैं। सितंबर के आसपास ये पत्तियां नारंगी, लाल और गहरे मरून जैसे सुंदर रंगों में बदल जाती है। क्या आपको पता है कि मौसम के अनुसार पत्ते रंग क्यों बदलते हैं? खास कर पतझड़ के मौसम में ऐसा क्यों होता है?

अगर नहीं तो आइए जानते है कि पत्ते अपना रंग क्यों बदलते हैं

पतझड़ में पत्तों का रंग

गर्मियों के दौरान क्लोरोफिल या रंगद्रव्य जिनके कारण पत्तियों का रंग हरे रंग का होता है वे सूर्य से काफी ज्यादा प्रकाश का अवशोषण करते हैं, और गर्मी के दिनों में हरा रंग ज्यादा प्रभावी होता है। सर्दियों से ठीक पहले दिन छोटे होने लगते हैं। पेड़ों को बहुत कम सूरज की किरणें मिलती हैं। तापमान ठंडा होने लगता है, जो chlorophyll के उत्पादन को धीमा कर देता हैं। इसलिए पत्तों के  रंग में परिवर्तन होता है।

पेड़ अपना भोजन सूर्य की किरणों और अपनी जड़ों की सहायता से बनाते हैं। पतझड़ का मौसम अक्सर वो होता है, जिसमें पेड़ स्थानीय जलवायु की प्रतिकूलता का अनुभव करते हैं या करने वाले होते हैं। जब पौधों को पर्याप्त मात्रा में सूर्य का प्रकाश नहीं मिलता है तो वो अपने संचय किये गए खाने में ही निर्भर रहते है परन्तु, पेड़ अपना बहुत सारा पानी पत्तो के छोटे- छोटे छेदों में से निकाल देते है। इससे पेड़ो का संचय किया गया बहुत सारा पानी नष्ट हो जाता है।

इसी के बचाव के लिए पेड पत्तों तक जाने वाले खाने को रोक देते हैं और खाना न मिलने की वजह से पत्ते पीले पड जाते हैं। जिन्हें हम पतझड कहते हैं गर्मियाँ आने से ठीक पहले कई पेड़ों की पत्तियों का रंग सुनहरा, लाल या भूरा और यहाँ तक कि नीला या बैंगनी होने लगता है। फिर ये पत्ते झड़कर पेड़ से गिर जाते हैं। लेकिन जैसे ही पौधों को उपयुक्त भोजन मिलने लग जाता है, तो नये पत्ते निकल आते हैं।

मध्य भारत में सर्दी खत्म होते ही बसन्त का मौसम शुरु हो जाता है जो कि फरवरी से अप्रैल तक रहता है। वहीं कश्मीर में पतझड़ का ये मौसम सर्दियों के सितम्बर से लेकर दिसम्बर के महीने तक रहता है। पतझड़ के मौसम में अपने आखिरी पड़ाव पर पहुँचकर चिनार के सूखते पत्ते कई रंग बिखेर देते हैं। कश्मीर में पतझड़ की इस अनोखी खूबसूरती को देखने वाला हर इन्सान इसका कायल है।

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