Thursday, April 18, 2024
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प्रमाण सहित: क्या सचमुच में कर्ण से प्रेम करती थीं द्रौपदी??

दरअसल यह अफवाह किसी अधकचरे लेखक की कपोल कल्पना भर है. यह शायद सनसनी पैदा करने और व्यूअर्स खींचने  के लिए खबर को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का एक प्रयास है, जिसमें झूठ को भी शामिल कर लिया गया. बाकि साइटों ने भेड़-चाल में इस झूठ को फैला दिया. (प्रमाण नीचे है)

क्या है सारा मामला?

“क्या आप जानते हैं कि पांच पतियों से विवाह करने वाली द्रौपदी को अर्जुन से नहीं, बल्कि महारथी कर्ण से प्रेम था”

“अर्जुन से नहीं कर्ण से करना चाहती थी द्रौपदी विवाह”

“द्रौपदी का विवाह पांडवों से हुआ, लेकिन विवाह से पहले उनका असली प्रेम कौन था, क्या आप जानते हैं?”

अर्जुन से नहीं कर्ण से करना चाहती थी द्रौपदी विवाह, पढ़िए महाभारत की अनोखी प्रेम कहानी

Gazabpost, जागरण जैसी ही कुछ वैब-साइट्स पर और अन्य कुछ वैब साइट्स पर यह स्टोरी ऐसी ही हैडलाइनस के साथ पोस्ट की गयी हैं.  पहले तो इन पोस्ट्स को पढ़ कर थोड़ी हैरत हुई. फिर सोचा यदि ऐसा है तो इसे मिर्च-मसाला लगाकर फंडाबुक के नियमित पाठकों के लिए पेश करूँ. लेकिन शंका जरुर हुई, इसलिए कॉमन सेन्स के अनुसार थोड़ी-बहुत रिसर्च करना जरुरी समझा.

घटिया मानसिकता और सस्ती पत्रकारिता की मिसाल

मैंने महाभारत को कई बार पढ़ा है और धारावाहिकों में भी देखा है लेकिन कभी इस बात के कहीं पर भी संकेत नहीं मिले जिनसे ऐसा लगा हो कि द्रौपदी कर्ण से “प्रेम” करती थी. जिस तरह से कुछ साइट्स द्रौपदी और कर्ण के संबंधों को बढ़ा-चढ़ा कर उन्हें प्रेमी-प्रेमिका के रूप में पेश कर रही हैं वह भी चौंकाने वाला है. यह न सिर्फ इतिहास से छेड़छाड़ करने जैसा है बल्कि द्रौपदी जैसी महान पतिव्रता स्त्री के चरित्र को शंका के दायरे में लाने जैसा भी है.

इसलिए हमने जरुरी समझा कि इस बात की तह तक जाया जाए और पता किया जाए कि क्या कुछ सचमुच में कुछ ऐसा था जिसमें द्रौपदी और कर्ण के बीच में पनपे प्रेम की बात को मैंने और मुझसे भी कहीं बेहतर समझ वाले महाभारत के जानकारों ने मिस कर दिया था?

आखिर क्या है सच्चाई??

उपलब्ध साहित्य, ग्रंथों और इंटरनेट में इस विषय के बारे में काफी सर्च करने के बाद जो कुछ भी सामने आया उससे केवल एक ही बात सामने आई कि द्रौपदी और कर्ण के बीच में प्रेम-व्रेम जैसा कुछ भी नहीं था. स्वयंवर के दौरान, जान-पहचान के सत्र के दौरान  द्रौपदी कर्ण की और आकर्षित जरुर हुई थी, लेकिन श्रीकृष्ण ने इस बात को ताड़ लिया था और द्रौपदी को कर्ण के सूत-पुत्र होने की बात बता कर मामला वहीँ ख़त्म कर दिया था.

समय बीतने के साथ-2 इन दोनों के बीच सिर्फ एक ही चीज़ बढ़ी थी और वह कड़वाहट और बाद में द्रौपदी की कर्ण के प्रति नफरत थी, जो कि मुख्यत:  द्यूत- सभा में कर्ण के द्वारा द्रौपदी को वेश्या कहने के बाद द्रौपदी के मन में पैदा हुई थी.

द्रौपदी: झूठ की एक बानगी देखिये
द्रौपदी: झूठ की एक बानगी देखिये

इस खबर के पीछे न तो कोई रिसर्च है न ही कोई प्रमाण हैं. लेकिन मेरी इस इस बात को कहने पीछे प्रमाण हैं जिन्हें में नीचे पेश कर रहा हूँ. देखिये:

स्वयंवर

द्रौपदी और कर्ण की पहली मुलाकात केवल स्वयंवर के दौरान हुई. अफवाह भरी पोस्टस में लिखा गया है कि “द्रौपदी अपनी सखियों के साथ भ्रमण करने के लिए जाया करती थी. द्रौपदी को देखते ही कर्ण को उनसे प्रेम हो गया”.  यह कोरी वकवास है. किसी भी ग्रंथ में ऐसा कोई प्रसंग नहीं है जिससे यह पता चले कि कर्ण ने द्रौपदी को स्वयंवर से पहले कहीं देखा हो.

हाँ तो, द्रौपदी और कर्ण की पहली मुलाकात केवल स्वयंवर के दौरान हुई. जब कर्ण ने प्रतियोगिता में भाग लेने की कोशिश की तो द्रौपदी ने उसका पक्ष नहीं लिया.  द्रौपदी के जुड़वाँ भाई दृष्टदयुम्न ने श्रीकृष्ण के कहने पर कर्ण को सूत-पुत्र कहते हुए भाग लेने से मना कर दिया था, और द्रौपदी ने कोई विरोध नहीं किया न ही कर्ण के प्रति उस समय या कभी बाद में प्रेम या आकर्षण का प्रदर्शन किया.

गरीब ब्राहमण से विवाह और द्रौपदी का समर्पण

जब अर्जुन ने स्वयंवर में लक्ष्य को भेदा तो द्रौपदी ने बिना किसी दबाव के अर्जुन को अपना जीवन साथी चुना और अपनी ख़ुशी से अर्जुन के साथ चल पड़ी, यह जानते हुए भी कि वह एक गरीब ब्राहमण की जीवन संगिनी बन चुकी है. स्वयंवर जीतने के बाद कर्ण और दूसरे क्षत्रियों ने अर्जुन को युद्ध के लिया ललकारा और अर्जुन उसमे भी विजयी हुए. इतना सब होने के बाद भी द्रौपदी अर्जुन के प्रति समर्पित रही और उनके साथ डटी रहीं.

अर्जुन की असलियत जानने के बाद

जब द्रौपदी को पता चला कि अर्जुन एक गरीब ब्राहमण नहीं बल्कि कुरु वंश के भावी सम्राट हैं तो उनके लिए इससे अधिक ख़ुशी कोई नहीं हो सकती थी. यह न केवल उनके जन्म के उद्देश्य (कुरुवंश का विनाश) के अनुरूप था बल्कि वह एक सम्राज्ञी बनने जा रही थी इसलिए उनके मन में अपने पतियों के इलावा किसी और के प्रति प्रेम रखने का कोई औचित्य नहीं था. महाभारत में कहीं भी द्रौपदी और उनके पतियों के बीच टकराव या मनमुटाव का कोई भी प्रसंग नहीं है.

द्यूत सभा में अपमान के बाद

कपोल कल्पना करने वालों का एक तर्क यह है कि द्यूत सभा में उनके पतियों की उसको विफलता के बाद द्रौपदी के मन में आया कि शायद कर्ण उनकी बेहतर रक्षा करने में समर्थ था. लेकिन यह फ़ालतू तर्क तब दम तोड़ देता है जब उन्हें बताया जाए कि कर्ण ही वह शख्स था जिसने दुर्योधन को द्रौपदी को भरी सभा में लाकर उसे बेइज्जत करने का आइडिया दिया था. कर्ण ही था जिसने द्रौपदी को पांच पतियों से विवाह करने के कारण एक वेश्या होने का ताना दिया था. यदि द्रौपदी के मन में कर्ण के लिया कोई सहानुभूति थी भी तो यह कर्ण के इस कुकर्म के कारण नष्ट हो गयी.

 रक्षक की भूमिका

यदि मान भी लिया जाए कि द्रौपदी समझती थी कि कर्ण उसे बचा सकता था, तो वह जरुर अपने “तथाकथित प्रेम”  से अपनी इज्ज़त को बचाने के लिए गुहार लगाती. कोई भी समझदार  स्त्री अपने मान-सम्मान को बचाने के लिए अपनी इगो या आत्म-ग्लानि को जरुर त्याग देगी. इसलिए यह कहना कि “आत्मग्लानि के कारण द्रौपदी ने कर्ण से सहायता नहीं मांगी. वहीं कर्ण भी स्वयंवर में अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए मौन रहे” अपने आप में हास्यकर है.” बचकाने लेखक का यह कहना कि प्रतिशोध के लिए कर्ण चुप रहा, तो फिर प्रेम कहाँ गया?

ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि अर्जुन कर्ण से बेहतर धनुर्धर थे. गुरु द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा  में कौरवों और पांडवों को पांचाल देश पर चढ़ाई करने को कहा. पहले कौरवों ने पांचाल पर आक्रमण किया और वह कर्ण के होते हुए पांचालों से हार गये. बाद में अर्जुन के नेतृत्व में पांडव सेना ने पांचालों को हराया.

वफ़ादारी और सतीत्व

यदि बचकाने लेखक सतीत्व के अर्थ को समझ पायें तो इसका मतलब यह होता था, कि हर हाल में पति के साथ खड़े रहना, चाहे पति गलत राह भटक रहा हो, उसका साथ न छोड़ते हुए बेहतर राह की उम्मीद करना. महाभारत की द्यूत-सभा में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. दुर्योधन ने द्रौपदी के सामने विकल्प रखा कि यदि वह सबके सामने युधिष्ठिर के कृत्य को अधर्म के रूप में स्वीकार करे तो वह पांडवों और द्रौपदी को मुक्त कर देगा. चूंकि युधिष्ठिर ने जुए में खुद को हारने के बाद द्रौपदी को दांव पर लगाया था, और या एक अधर्म ही था, फिर भी द्रौपदी ने युधिष्ठिर के इस कदम की निंदा नहीं की और उनके साथ खड़ी रहीं. यह पतिव्रता धर्म और त्याग की ऐसी मिसाल थी जिसकी बराबरी करना दुर्लभ है. हालाँकि अकेले में द्रौपदी ने युधिष्ठिर की इस मजबूरी और निष्ठुरता की जम कर आलोचना की थी.

मेरी तरफ से निवेदन

ऐसी पतिव्रता और धर्म-परायण नारी के  व्यक्तित्व को महज़ कुछ सौ व्यूज़ और लाइक्स के लिए दांव पर लगाने के लिए मैं तथा-कथित मीडिया साइट्स की निंदा करता हूँ और आशा करता हूँ कि ऐसे मीडिया संस्थान भविष्य में जिम्मेदारी का एहसास करते हुए इतिहास से छेड़-छाड़ करने से गुरेज करेंगे.

कुछ कुतर्क समर्थकों का कहना है कि द्रौपदी और कर्ण एक दूसरे से प्रेम करते हैं लेकिन वे यह बात कभी एक दूसरे से कह नहीं पाए. भई, हमने तो कहीं नहीं पढ़ा, फिर आपने उन दोनों के मन की बात कैसे जान ली? कोई सौर्स से बात पता चली या फिर वे आप लोगों के सपने में आये थे? यदि आपको पता चले तो हमें भी जरुर बताएं.

कॉमेंट्स और फीडबैक आमंत्रित हैं. यदि पोस्ट अच्छी लगे तो हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें.

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