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बिग बैंग सिद्धांत: हमारे ब्रह्मांड की रचना का इतिहास!

यह कल्पना करना भी बहुत मुश्किल है कि ब्रह्मांड कितना बड़ा हो सकता है. पहले वैज्ञानिक सोचते थे कि ब्रह्मांड हमेशा से ही ऐसा रहा होगा. लेकिन संभवत: ऐसा नहीं था.
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ब्रह्मांड के जन्म का सिद्धांत

ब्रह्मांड का जन्म एक महाविस्फोट के कारण हुआ है. लगभग बारह से चौदह अरब वर्ष पूर्व संपूर्ण ब्रह्मांड एक परमाण्विक इकाई के रूप में अति-संघनित (compressed) था। उस समय समय और स्थान जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी। लगभग १३.७ अरब वर्ष पूर्व इस महाविस्फोट से अत्यधिक ऊर्जा(energy) का उत्सजर्न(release) हुआ और हर 10-24 सेकंड से यह धमाका दोगुना बड़ा होता गया। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी जिसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जा रहा है। इस धमाके के 3 लाख साल बाद पूरा ब्रह्मांड हाइड्रोजन और हीलियम गैस के बादलों से भर गया. इस धमाके के 3 लाख 80 हज़ार साल बाद अंतरिक्ष में सिर्फ फोटोन ही रह गये. इन फोटोन से तारों और आकाशगंगाओं का जन्म हुआ, और बाद में जाकर ग्रहों और हमारी पृथ्वी का जन्म हुआ. यही महाविस्फोट यानी बिग-बैंग का सिद्धांत है।

महाविस्फोट सिद्धान्त का प्रतिपादन

आधुनिक भौतिक-शास्त्री  जार्ज लेमैत्रे (Georges Lemaître) ने सन 1927 में सृष्टि की रचना के संदर्भ में महाविस्फोट सिद्धान्त(बिग-बैंग थ्योरी) का प्रतिपादन किया. इस सिद्धांत के द्वारा उन्होंने दावा किया कि ब्रह्मांड सबसे पहले एक बहुत विशाल और भारी गोला था जिसमें एक समय के बाद बहुत जबरदस्त धमाका हुआ और इस धमाके से होने वाले टुकड़ों ने अंतरिक्ष में जाकर  धीरे धीरे तारों और ग्रहों का रूप ले लिया. उनका यह सिद्धान्त अल्बर्ट आइंसटीन के प्रसिद्ध सामान्य सापेक्षवाद के सिद्धांत पर आधारित था. लेकिन उस समय इस सिद्धान्त को आलोचकों द्वारा अनसुना कर दिया गया.
history.bigbang.theory.fundabookसन 1929 में एडविन ह्ब्बल(Edwin Hubble) ने लाल विचलन (Red Shift) के सिद्धांत के आधार पर पाया कि ब्रह्मांड फैल रहा है और ब्रह्मांड की आकाशगंगायें तेजी से एक दूसरे से दूर जा रही हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, पहले आकाशगंगाये एक दूसरे के और पास रही होंगी और इससे भी पहले यह एक दूसरे के और अधिक पास रही होंगी। यह सिद्धांत आईन्स्टाईन के अनंत और स्थैतिक ब्रह्मांड के विपरीत था. निरीक्षण से निष्कर्ष निकला कि ब्रह्मांड ने एक ऐसी स्थिति से जन्म लिया है जिसमें ब्रह्मांड का सारा पदार्थ अत्यंत उच्च तापमान और घनत्व पर एक ही स्थान पर केन्द्रित था। इस स्थिति को गुरुत्विक अपूर्वता (Gravitational Singularity) कहा गया।

दूसरी संभावना थी, फ़्रेड होयेल का स्थायी स्थिति माडल (Fred Hoyle’s steady state model), जिसमें दूर होती आकाशगंगाओं के बीच में हमेशा नये पदार्थों की उत्पत्ति  का प्रतिपादन था। दूसरे शब्दों में आकाशगंगाये के एक दूसरे से दूर जाने पर जो खाली स्थान बनता है वहां पर नये पदार्थों का निर्माण होता है। इस संभावना के अनुसार मोटे तौर पर ब्रह्मांड हर समय एक जैसा ही रहा है और रहेगा। होयेल ही वह व्यक्ति थे जिन्होने लेमैत्रे के महाविस्फोट सिद्धांत का मजाक उड़ाते हुये इसे “बिग बैंग आईडीया” का नाम दिया था।

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काफी समय तक वैज्ञानिक इन दोनों सिद्धांतों के बीच विभाजित रहे। लेकिन समय के साथ वैज्ञानिक प्रयोगों और निरीक्षणों से महाविस्फोट के सिद्धांत को बल मिलता गया। 1965 के बाद ब्रह्मांडीय सूक्ष्म तरंग विकिरण (Cosmic Microwave Radiation) की खोज के बाद इस सिद्धांत को सबसे ज्यादा मान्य सिद्धांत का दर्जा मिल गया। वर्तमान में खगोल विज्ञान का हर नियम इसी सिद्धांत पर आधारित है और इसी सिद्धांत का विस्तार है।

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